आजकल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह जगह-जगह ‘बोनस तिहार’ को लेकर जनसभाएं कर रहे हैं. वे जहां भी जा रहे हैं, जनता को बता रहे हैं कि किसानों को धान का यह बोनस पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सहयोग से मिला है. लेकिन बीजेपी के इन दोनों शीर्ष नेताओं की बेवजह तारीफ के सियासी मायने क्या हो सकते हैं?

पीएम मोदी तक बात समझ में आती है, लेकिन पार्टी अध्यक्ष की तारीफों के पीछे क्या वजह है? इसे लेकर कई तरह की बातें राजनीतिक फिज़ाओं में तैर रही है. पहली बात ये है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ही राज्यों से जुड़े मसलों को देख रहे हैं. अगर ऐसा है तो क्या बाकी राज्यों के मुख्यमंत्री भी क्या इनकी तरह अमित शाह की तारीफ कर रहे हैं. ऐसा दिखता नहीं है. तो फिर क्यों रमन सिंह बार-बार अमित शाह का ज़िक्र कर रहे हैं. क्या वाकई में धान का बोनस दिलाने में अमित शाह की अहम भूमिका रही है या वजह कुछ और भी है.

छत्तीसगढ़ में हर छह महीने में यह हवा बनती है कि मुख्यमंत्री रमन सिंह बदले जाएंगे. यह ख़बर कांग्रेस और रमन सिंह  विरोधियों के चेहरों पर मुस्कान ला देती है. लेकिन कुछ समय बाद सबके चेहरे मुरझाने लगते हैं और रमन सिंह फिर मुस्कुराते नजर आते हैं. पिछले दिनों उनके मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से विवाद के बाद राज्य में हालात बेहद बिगड़ गए थे. दोनों का मामला शाह दरबार में पहुंचा. जहां दोनों नेताओं को समझा-बुझाकर शांत किया गया.

जब मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के फैसले का निपटारा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष करें, तो संकेत स्पष्ट है कि राजनीति में बाहुबली सिर्फ मोदी नहीं हैं, बल्कि अमित शाह भी हैं.  दरअसल, मोदी लहर से पूर्व भाजपा में रमन सिंह का कद काफी मज़बूत था. पार्टी में राजपूत लॉबी उनके साथ होने के कारण उनकी स्थिति मजबूत थी. उनकी ताजपोशी में अहम भूमिका तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह की रही. राजनाथ सिंह ने हर मुश्किल वक्त में रमन सिंह की मदद की. उन्हें बचाया. चूंकि उस वक्त पार्टी में अटल और आडवाणी की चलती थी और राजनाथ दोनों ही नेताओं के चहेते थे. इसलिए जब-जब रमन को हटवाने की मुहिम उनके विरोधियों ने की, राजनाथ सिंह के चलते उन्हें मुंह की खानी पड़ी. रमन सिंह के दूसरे तारणहार राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह रहे. वे रमन सिंह की लॉबिंग और उनकी ब्रान्डिंग का काम दिल्ली में करते रहे. इन दोनों के रहते रमन सिंह काफी सुरक्षित रहे.

लेकिन अटल और आडवाणी के राजनीति में पार्श्व में जाने के बाद से पार्टी के अंदरखाने के समीकरण बदल गए. सत्ता और संगठन में मोदी और शाह ही सर्वेसर्वा हो गए. उनकी मर्जी के आगे सब बेबस हो गए. राजनाथ सिंह की हैसियत किसी से छिपी नहीं है. सौदान सिंह संघ से जुड़े हैं, लेकिन उन्हें ओड़ीशा की बड़ी जिम्मेदारी सौंपकर वहां फंसा दिया गया है. अब रमन सिंह की मजबूरी है कि शाह और मोदी को साधे रखें, क्योंकि दोनों ठाकुर नेताओं के दरकिनार होने के बाद केंद्र में रमन सिंह की स्थिति पहले जैसी मज़बूत नहीं रही.

रमन सिंह की शाह की जयकारे की दूसरी वजह जो बताई जा रही है, वो भी कम दिलचस्प नहीं है. कहा जा रहा है कि रमन सिंह की नज़र बीजेपी संसदीय बोर्ड के 12वें सदस्य पर है. अब तक इस पद पर उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू काबिज़ थे. लेकिन उनके उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद इस पद के कई दावेदार सामने आ गए हैं. संसदीय बोर्ड पार्टी का निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था होती है. इसमें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं. बोर्ड में पीएम नरेंद्र मोदी की एंट्री गुजरात के मुख्यमंत्री के नाते हुई थी. बाद में संसदीय बोर्ड द्वारा ही उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया.

चूंकि शिवराज और मोदी दोनों तीन-तीन बार के मुख्यमंत्री हैं, लिहाज़ा रमन सिंह बीजेपी के सबसे ज़्यादा समय तक मुख्यमंत्री होने के नाते अपना दावा पेश कर रहे हैं. इस बोर्ड का सदस्य बनने के बाद केंद्र में रमन सिंह का कद बढ़ जाएगा. रमन सिंह की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है कि वे एक छोटे से राज्य छत्तीसगढ़ से आते हैं, जहां केवल 11 लोकसभा की सीटें हैं.जबकि सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सबसे अमीर राज्य महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस अपनी दावेदारी कर रहे हैं. फडणवीस के हक़ में ये बात भी जाती है कि वे आलाकमान के निर्देशों का बखूबी पालन करते हैं.

बताया जा रहा है कि रमन सिंह इसी तर्ज पर योजनाओं का श्रेय मोदी और शाह को देकर अपना स्थान पक्का करने की जुगत में हैं. वे जानते हैं कि उनकी कुर्सी पर जो भी खतरा है वो संसदीय बोर्ड के सदस्य बनने के बाद कम हो जाएगा.

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