उत्तर प्रदेश में योगी का कर्मयोग बोलने और दिखने लगा है. शासन व्यवस्था दुरुस्त करने की तेज रफ्तार कवायद में लगे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देख कर उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी भी ‘स्पीड’ में आ गए हैं. मुख्यमंत्री के पदभार ग्रहण करते ही सड़क से लेकर सत्ता गलियारे तक व्यवस्था चाक-चौबंद होती दिख रही है. पान-गुटखा से होने वाली पारिवेशिक गंदगी और छेड़खानी-लुच्चेबाजी से होने वाली सामाजिक गंदगी साफ करने की प्राथमिकता में किसानों के हित का काम भी उपेक्षित नहीं हो रहा है.

सांगठनिक तौर पर भाजपा परिवार में जिस तरह ‘घुसपैठार्थियों’ को टिकट देने में तरजीह दी गई, उसी तरह मंत्री बनाने में भी इसका ध्यान भले ही रखा गया, लेकिन काम में योगी किसी मंत्री को बख्शने वाले नहीं हैं, ऐसा लोगों को अभी से लगने लगा है. भाजपा के अपने पुराने पारिवारिक सदस्यों को यह मलाल जरूर है कि उन्हें यथोचित सम्मान नहीं मिला, जबकि उनका अधिकार अधिक था. भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बाद उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से परामर्श लेकर ही मंत्रिमंडल का गठन किया.

भाजपा के वरिष्ठ नेता यह जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ अपने फैसले खुद लेने वाले आत्मविश्वासी व्यक्ति हैं. वे नेता भी कहते हैं कि मंत्रिमंडल की पहली खेप का गठन भले ही केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में हुआ हो, लेकिन आगे ऐसा नहीं होगा. कई ऐसे विधायक जिनका मंत्री बनना पक्का माना जा रहा था, उनका नाम नदारद होना आश्चर्यजनक तो है, लेकिन इसे लेकर अभी सत्ता गलियारे में खास चुप्पी है. सबसे उपेक्षित मुजफ्फरनगर को माना जा रहा है, जहां से छह सीटें जीतने के बाद भी कोई विधायक मंत्री नहीं बना. भाजपाई यह आशंका भी जताते हैं कि योगी की सरकार कहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश की सरकार न बनकर रह जाए.

भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में जुटने वाली भीड़ और गहमागहमी में इस बात को लेकर चर्चा है कि मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के अर्ंतगत आने वाली सरधना विधानसभा सीट से जीते संगीत सोम को मंत्रिमंडल में जगह क्यों नहीं मिली! इसी तरह मुजफ्फरनगर की ही मीरापुर विधानसभा सीट से जीते अवतार सिंह भड़ाना को भी मंत्री नहीं बनाए जाने से लोगों में क्षोभ है. नोएडा विधानसभा सीट से जीते पंकज सिंह को भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जाना लोगों को हैरत दे गया. हालांकि भाजपाई यह भी मानते हैं कि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने बेटे को अभी फिलहाल मंत्री बनाए जाने से मना किया होगा.

लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के धर्म सिंह सैनी, सुरेश राणा और अतुल गर्ग को मंत्री बनाए जाने के बावजूद भाजपाइयों को खास तौर पर संगीत सोम और भड़ाना को मंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर अफसोस है. भाजपा नेताओं को इस बात पर भी असंतोष है कि नौ ‘घुसपैठार्थियों’ को मंत्री पद दिया गया, लेकिन अपने सदस्यों की उपेक्षा कर दी गई. सपा, कांग्रेस और बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नौ नव-निर्वाचित विधायकों में कांग्रेस छोड़ कर आईं रीता बहुगुणा जोशी, नंदगोपाल नंदी, बसपा छोड़ कर आए स्वामी प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक, दारा सिंह चौहान, चौधरी लक्ष्मी नारायण, धर्म सिंह सैनी और समाजवादी पार्टी से आए एसपी सिंह बघेल और अनिल राजभर शामिल हैं, जिन्हें मंत्री का पद प्राप्त हुआ है.

उत्तर प्रदेश में बनी भाजपा सरकार में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री, केशव प्रसाद मौर्य व डॉ. दिनेश शर्मा उपमुख्यमंत्री के साथ 44 मंत्री शामिल हैं. इनमें पांच महिलाएं भी हैं. योगी मंत्रिमंडल में 22 कैबिनेट, नौ राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 13 राज्यमंत्री शरीक हुए हैं. पेशे के दृष्टिकोण से योगी मंत्रिमंडल में 13 व्यापारी, 11 किसान, सात समाजसेवी, पांच वकील, चार शिक्षक, दो खिलाड़ी और एक डॉक्टर शामिल किए गए हैं. योगी मंत्रिमंडल में पिछड़ों को अधिक तरजीह देते हुए अन्य जातियों का समीकरण-संतुलन बनाए रखने की कोशिश की गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी कैबिनेट में सबसे अधिक नौ पिछड़ों (ओबीसी) को स्थान दिया है.

राजपूत और ब्राह्मण जाति के सात-सात विधायक मंत्री बने हैं. अति पिछड़ा समुदाय के भी छह विधायक मंत्री बने हैं. पिछड़ा कोटे से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, एसपी सिंह बघेल, धर्मपाल सिंह, कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह, स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी वगैरह शामिल हैं. जाट समुदाय के दो नेताओं लक्ष्मी नारायण चौधरी (कैबिनेट) और भूपेंद्र सिंह चौधरी (राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार) को मंत्रिमंडल में जगह मिली है. वैश्य समुदाय से आने वाले चार लोगों को मंत्रिमंडल में जगह मिली, जिनमें नंद कुमार गुप्ता ‘नंदी’ (कैबिनेट), राजेश अग्रवाल (कैबिनेट), अनुपमा जायसवाल (राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार) और अतुल गर्ग (राज्यमंत्री) शामिल हैं.

कायस्थ जाति के भी एक विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह (कैबिनेट) को योगी मंत्रिमंडल में जगह मिली है. कुर्मी समुदाय के तीन विधायकों को मंत्री बनाया गया. इनमें मुकुट बिहारी वर्मा (कैबिनेट), स्वतंत्र देव सिंह (राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार) और जय कुमार सिंह ‘जैकी’ (राज्यमंत्री) को मंत्रिमंडल में जगह मिली है. यादव जाति से आने वाले गिरीश यादव को राज्यमंत्री बनाया गया है. योगी मंत्रिमंडल में दलितों और अति पिछड़ों को भी सम्मानजनक जगह दी गई है.

कोरी समुदाय के मनोहर लाल पंथ उर्फ मन्नू कोरी (राज्यमंत्री), राजभर समुदाय से ओम प्रकाश राजभर (कैबिनेट), अनिल राजभर (राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार), बिंद-निषाद-नोनिया समुदाय से दारा सिंह चौहान (कैबिनेट) और जय प्रकाश निषाद (राज्यमंत्री) को मंत्री बनाया गया है. दलित समुदाय में चर्मकार जाति के रमापति शास्त्री, धोबी समुदाय की गुलाबो देवी (राज्यमंत्री) और पासी समुदाय के सुरेश पासी (राज्यमंत्री) को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है. सिख समुदाय के बलदेव सिंह ओलख (राज्यमंत्री) और मुस्लिम समुदाय के मोहसिन रज़ा (राज्यमंत्री) को मंत्रिमंडल में जगह मिली है.

राजपूत समुदाय से आने वाले राजेंद्र प्रताप सिंह ‘मोती सिंह’ (कैबिनेट), जय प्रकाश सिंह (कैबिनेट), चेतन चौहान (कैबिनेट), डॉ. महेंद्र सिंह (राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार), सुरेश राणा (राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार), स्वाति सिंह (राज्यमंत्री) और रणवेंद्र प्रताप उर्फ ‘धुन्नी सिंह’ (राज्यमंत्री) मंत्रिमंडल में शामिल किए गए हैं. ब्राह्मण जाति के भी सात विधायकों को योगी मंत्रिमंडल में जगह मिली है. इनमें डॉ. दिनेश शर्मा (उपमुख्यमंत्री), रीता बहुगुणा जोशी (कैबिनेट), बृजेश पाठक (कैबिनेट), सत्यदेव पचौरी (कैबिनेट), श्रीकांत शर्मा (कैबिनेट), अर्चना पांडेय (राज्यमंत्री) और नीलकंठ तिवारी (राज्यमंत्री) शामिल हैं. खत्री समुदाय के तीन विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह मिली है, जिनमें सुरेश खन्ना (कैबिनेट), आशुतोष टंडन ‘गोपाल’ (कैबिनेट) और सतीश महाना (कैबिनेट) शामिल हैं. भूमिहार समुदाय के दो नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है. सूर्य प्रताप शाही (कैबिनेट) और उपेंद्र तिवारी को राज्य मंत्री बनाया गया है.

योगी मंत्रिमंडल में लखनऊ के सात मंत्री, डॉ. दिनेश शर्मा, बृजेश पाठक, रीता बहुगुणा जोशी, आशुतोष टंडन, स्वाति सिंह, महेंद्र कुमार सिंह और मोहसिन रजा शामिल हैं. योगी मंत्रिमंडल की औसत उम्र 54 साल है. योगी खुद कह चुके हैं कि वे राहुल गांधी से एक साल छोटे और अखिलेश यादव से एक साल बड़े हैं. योगी ने यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री व राजस्थान के मौजूदा राज्यपाल कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह को राज्यमंत्री बनाया है, जिनकी उम्र 26 वर्ष है. पूर्व क्रिकेटर और पूर्व सांसद चेतन चौहान करीब 70 साल के हैं. योगी कैबिनेट के सबसे कम उम्र के मंत्री श्रीकांत शर्मा हैं. मंत्रिमंडल के पांच सदस्य उत्तर प्रदेश के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सांसद हैं. डॉ. दिनेश शर्मा लखनऊ के मेयर थे. स्वतंत्रदेव सिंह और मोहसिन रजा भाजपा संगठन से जुड़े हैं. अब इन लोगों को छह महीने के अंदर विधानमंडल का सदस्य बनना होगा.

मंत्रिमंडल गठन के पूर्व 19 मार्च को राजधानी लखनऊ के स्मृति उपवन में हुए शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय शहरी विकास आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन व सूचना और प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू, केंद्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी, केंद्रीय विधि एवं न्याय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद, केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री कलराज मिश्र, केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) महेश शर्मा, केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चन्द्रबाबू नायडू, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस, गुजरात के मुख्यमंत्री विजयभाई आर. रूपानी, राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे, गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर, असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, नारायण दत्त तिवारी, अखिलेश यादव, जम्मू कश्मीर के उप मुख्यमंत्री डॉ. निर्मल कुमार सिंह, पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी और भारी जनसमूह की मौजूदगी में राज्यपाल राम नाईक ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री व मंत्रिमंडल के सहयोगियों को शपथ दिलाई.

योगी ने कहा सपा-बसपा के भ्रष्टाचार का हिसाब लेंगे तो वे बुरा मान गए

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के फौरन बाद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वे सपा और बसपा के शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच करेंगे और घोटालों का पूरा हिसाब-किताब लेंगे, तो सपा और बसपा के नेता बुरा मान गए. दोनों पूर्ववर्ती सत्ताधारी पार्टियां भ्रष्टाचार पर किए गए योगी के हमले के जवाब में पेशबंदियां करने लगीं.

योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पिछले 15 वर्षों में उत्तर प्रदेश विकास की दौड़ में काफी पिछड़ गया है. इस अवधि में सत्ता पर काबिज रही सरकारों (सपा और बसपा) के भ्रष्टाचार और परिवारवाद के साथ-साथ बदहाल कानून-व्यवस्था ने राज्य का और राज्य की जनता का भारी नुकसान किया. इसलिए मौजूदा सरकार भ्रष्टाचार के तमाम पुराने अध्याय खोलेगी, उसकी जांच कराएगी और दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई करेगी.

इसके अलावा आम जनता के कल्याण और उत्थान के लिए प्रभावी कार्रवाई शुरू की जाएगी. योगी ने कहा कि भोजन, आवास, सड़क, पेयजल और शौचालय जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ कानून-व्यवस्था को चाक-चौबंद रखने के लिए प्रदेश सरकार निरंतर सजग रहेगी.

मुख्यमंत्री ने चुनाव के पहले जारी भाजपा के लोक कल्याण संकल्प पत्र को शत-प्रतिशत लागू करने का संकल्प लिया और कहा कि लोक कल्याण के प्रति समर्पित प्रदेश सरकार बगैर किसी भेदभाव के समाज के सभी वर्गों के लिए काम करेगी. योगी ने प्रधानमंत्री के नेतृत्व और निर्देश में सबका साथ, सबका विकास लागू करने का दृढ़ निश्चय दोहराया और कहा कि शासन-प्रशासन को संवेदनशील और जवाबदेह बनाया जाएगा.

मुख्यमंत्री के इस बयान पर निवर्तमान सत्ताधारी पार्टी समाजवादी पार्टी बौखला गई. सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने फौरन बयान दिया कि भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री महंत आदित्यनाथ ने समाजवादी सरकार के भ्रष्टाचार और नाकारेपन के बारे में जो बयान दिए हैं, वे तथ्यहीन और निराधार हैं. चौधरी ने योगी के बयान को दुष्प्रचार बताया और कहा कि संघ को ऐसे दुष्प्रचार की विशेषज्ञता हासिल है, योगी को उससे बचना चाहिए. बसपा ने भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि योगी काम कम, दिखावा अधिक कर रहे हैं.

योगी की सख्ती गुटखागीरी, रोमियोगीरी से बूचड़गीरी तक

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही वो सारे मसले योगी-एक्शन के दायरे में आते दिखने लगे, जो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में मुद्दा बनते रहे हैं. योगी ने सत्ता संभालते ही प्रदेशभर में अवैध बूचड़खानों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया. बिजली की स्थिति दुरुस्त करने की कवायदें होने लगीं और लड़कियों के खिलाफ सरेआम होने वाली छेड़खानियों को रोकने के लिए लुच्चों पर सख्त कार्रवाइयां होने लगीं. प्रदेश के 11 जिलों में एंटी रोमियो स्न्वॉड का गठन भी हो गया. प्रधानमंत्री के  स्वच्छता अभियान को सख्ती से लागू करने के लिए नौकरशाहों को कसमें तक खिलाई गईं.

मुख्यमंत्री ने खुद सचिवालय के विभिन्न कक्षों का दौरा शुरू कर दिया और पान व गुटखा की गंदगी पर भड़क उठे. उन्होंने सरकारी परिसर में पान व गुटखा पर तत्काल रोक लगा दी और फाइलों पर अंटे पड़े धूल-गर्द को देख कर त्वरित गति से फाइलों के निस्तारण का फरमान जारी किया. मुख्यमंत्री ने कार्यभार ग्रहण करने के दूसरे ही दिन हजरतगंज कोतवाली का आकस्मिक निरीक्षण किया और पुलिस को सुधर जाने की ताकीद की.

उन्होंने पुलिसकर्मियों को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने का निर्देश दिया और कहा कि थाने पर फरियाद लेकर आने वाले शिकायतकर्ताओं को पूरा सम्मान दिया जाना चाहिए. प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति की एफआईआर तत्काल दर्ज करने को कहा गया है. एक तेजाब पीड़िता के साथ हुई बदसलूकी की खबर आते ही मुख्यमंत्री का उस युवती से मिलने अस्पताल पहुंच जाना भी आम लोगों की चर्चा का विषय बना हुआ है.

लोग अभी से योगी की संवेदनशीलता की चर्चा करते मिल जाएंगे. मुख्यमंत्री ने सत्ता संभालते ही गौ तस्करी पर अविलम्ब पूर्ण प्रतिबंध लगाने के भी निर्देश दिए और इस अवैध धंधे में लगे अपराधियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने को कहा. उन्होंने विभिन्न शहरों और कस्बों में संचालित अवैध बूचड़खानों और मांस की अवैध दुकानों को बंद करने के लिए तत्काल एक्शन प्लान तैयार करने का निर्देश दिया.

योगी ने नौकरशाहों से साफ-साफ कहा कि जनता ने ‘गुड गवर्नेंस’ के लिए भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया है, लिहाजा जनता को चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में रामायण संग्रहालय के लिए 25 एकड़ जमीन देने की भी घोषणा कर दी. आपको याद होगा कि इस परियोजना के लिए मोदी सरकार पहले ही 154 करोड़ रुपए जारी कर चुकी है.

योगी को याद है किसानों का हित, दिए सख्त निर्देश

किसानों के हित का ध्यान रखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे प्रदेश में गेहूं खरीद के लिए पुख्ता व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं, ताकि किसानों को अपनी उपज बेचने में कोई कठिनाई न हो. इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने गन्ना किसानों के बकाये के त्वरित भुगतान के लिए भी सख्त निर्देश जारी किए हैं. पेराई सत्र 2015-16 की बकायेदार चीनी मिलों को सख्त निर्देश दिया गया है कि वे किसानों के सम्पूर्ण बकाये का भुगतान एक माह के अंदर कर दें. मौजूदा पेराई सत्र 2016-17 की उन चीनी मिलों के मालिकों को भी निर्देश दिया गया कि जिन्होंने निर्धारित अवधि के अन्तर्गत किसानों को भुगतान नहीं दिया है, वे भी एक महीने में बकाये का भुगतान हर हाल में कर दें.

योगी ने इस बारे में मुख्य सचिव राहुल भटनागर को आवश्यक निर्देश दिए और कहा कि प्रदेश में गन्ना किसानों का समय से भुगतान सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है. निर्धारित अवधि में भुगतान न करने पर सम्बन्धित मिल मालिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. गन्ना आयुक्त विपिन कुमार द्विवेदी ने बताया कि वर्तमान पेराई सत्र 2016-17 में प्रदेश की चीनी मिलों पर 22 मार्च तक 4,160 करोड़ रुपए बकाया हैं. इसके पहले के पेराई सत्र (2015-16) का भी 223 करोड़ रुपए बकाया है, यानि चीनी मिलों पर किसानों का 4,383 करोड़ रुपए का बकाया है.

अब कौन बनेगा यूपी भाजपा का अध्यक्ष!

उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के यूपी का उप मुख्यमंत्री बन जाने के बाद प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली होने वाला है. इसके साथ ही प्रदेश संगठन के कई पद खाली होंगे, जिसे जल्दी ही भरा जाना है. प्रदेश अध्यक्ष का पद किसे मिलेगा इसे लेकर कयास से ज्यादा छीना-झपटी शुरू हो गई है. जाति और परिवारवाद के खिलाफ तमाम सियासी तकरीरें पढ़ने वाली भारतीय जनता पार्टी ने टिकट बंटवारे से लेकर मंत्रिमंडल के बंटवारे तक जाति और परिवार को ही आधार बनाया. अब इसी आधार पर प्रदेश अध्यक्ष का पद झपटने की भी तैयारी है. प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर ब्राह्मणों में कुछ अधिक ही दावेदारी है.

अधैर्य इतना है कि एक खेमे ने विजय बहादुर पाठक का नाम भी नए प्रदेश अध्यक्ष के बतौर चलवा दिया. पाठक के शरीर की भाषा भी अध्यक्षीनुमा बोली बोलने लगी. दूसरी तरफ दलित समुदाय के लोगों में यह मांग बढ़ी कि पिछड़ी जाति के अध्यक्ष के उप मुख्यमंत्री बनने के बाद उस दलित समुदाय के नेता को अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए, जिसकी राजनीतिक ताकत अधिक है और जिसने मायावती के खिलाफ अधिक लोहा लिया है और भाजपा का खुला साथ दिया है. राज्य की करीब बीस फीसदी दलित आबादी में 16 फीसदी वाली पासी जाति दूसरी सबसे बड़ी दलित उपजाति है. इस आधार पर पासी समुदाय के लोगों का दावा अधिक मजबूत है.

अभी इस बारे में भाजपा आलाकमान ने स्पष्ट तौर पर तय नहीं किया है, लेकिन प्रदेश संगठन के कई नेताओं के मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद खाली हुए महत्वपूर्ण पदों के लिए फौरन ही तमाम नेताओं ने जोर आजमाईश शुरू कर दी. आलाकमान ने अगर दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया, तो आगरा के सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया, लखनऊ के मोहनलालगंज से सांसद कौशल किशोर, बुलंदशहर के सांसद भोला सिंह, कौशाम्बी के सांसद विनोद सोनकर, पूर्व विधायक मुंशीलाल गौतम और विद्याशंकर सोनकर के नामों पर विचार किया जा सकता है.

कौशल किशोर पासी समुदाय से आते हैं. यूपी विधानसभा के चुनाव में मलिहाबाद सीट से उनकी पत्नी जय देवी चुनाव जीत कर आई हैं, लिहाजा इस रेस में कौशल की दावेदारी मजबूत मानी जा सकती है. लेकिन सबसे मजबूत दावेदारी भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री अशोक प्रधान की है, जिनके अथक प्रयास से मायावती के दलित वोट में सेंध लगी और भाजपा को बड़ी संख्या में दलित मत मिले.

इसी तरह प्रदेश संगठन के विभिन्न पदों पर भी मनोनयन होना है. टिकट वितरण में कई प्रतिबद्ध और प्रबल दावेदारों को टिकट नहीं मिला. कई क्षेत्रीय मंत्रियों तक को टिकट नहीं मिला जबकि कई जूनियरों को टिकट दे दिया गया. भाजपा नेतृत्व के इस रवैये के खिलाफ संगठन में अंदर-अंदर जो नाराजगी है उसे दूर करने के लिए उन सभी दावेदारों को प्रदेश संगठन में सांगठनिक पद दिए जाने की तैयारी हो रही है. इसके लिए खास तौर पर प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल को जिम्मेदारी दी गई है कि वे संगठन के खाली होने वाले पदों के लिए योग्य पदाधिकारियों का चयन करें.

इस सत्ता में भी गोटी लाल करने में लगे हैं नौकरशाह

योगी के मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश की नौकरशाही में हड़कंप जैसा मच गया. शीर्ष सत्ता गलियारे से लेकर सरकारी विभागों के प्रमुख सचिव और सचिव पद को लेकर नौकरशाहों की गतिविधियां शुरू हो गईं. मुख्य सचिव और डीजीपी की नई तैनाती की संभावनाओं पर जोड़तोड़ शुरू हो गए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने के लिए तमाम नौकरशाहों की वीवीआईपी गेस्ट हाउस में लाइन लगने लगी. सपा कार्यकाल में सत्ता गलियारे में लगे नौकरशाहों के जमावड़े को साफ करने की कवायद में सेंध लगाने की कोशिश वे नौकरशाह भी कर रहे हैं, जो मायावती या अखिलेश, दोनों के शासनकाल में बड़े प्रभावी रहे.

डीजीपी पद पर जावीद अहमद बने रहें, इसके लिए वे प्रयास कर रहे हैं, तो मुख्य सचिव पद पर बने रहने के लिए राहुल भटनागर कोशिश में लगे हुए हैं. मुख्यमंत्री सचिवालय में जगह पाने के लिए नौकरशाहों का नया लॉट तैयार हो रहा है. अखिलेश सरकार के दौरान हाशिए पर रखे गए अफसरों को मुख्यधारा में लाने पर भी काम हो रहा है. खबर लिखे जाने से लेकर प्रकाशित हो जाने की अवधि तक शीर्ष सत्ताई गलियारे में नौकरशाहों के तमाम चेहरे फिट हो जा सकते हैं.

कई अफसर इस प्रतीक्षा में भी हैं कि नया मुख्य सचिव तय हो, तो वे उस मुताबिक अपने कार्ड खोलें. प्रदेश की शीर्ष नौकरशाही में तिकड़म के अवयव नेताओं से अधिक हैं.

अब तो हाल यह है कि कोई भी बड़ा अफसर बड़ी आसानी से पहचान लिया जाता है कि वह किस पार्टी या किस नेता का चहेता है. कुछ अफसर आलू की तरह हर पार्टी में घुल जाते हैं और उनका स्वाद बन जाते हैं. जो अफसर तटस्थ और ईमानदार होते हैं, उन्हें सत्ताधारी पार्टी हाशिए पर डाल देती है. कई अफसर तो चुनाव परिणाम आने के पहले ही तमाम बड़े नेताओं और उनसे जुड़े प्रतिष्ठानों के चक्कर लगाने लगे थे.

इसी का नतीजा था कि चुनाव परिणाम आने के पहले ही मायावती-काल की तमाम प्रतिमाएं धुलने-पुछने लगी थीं और सारे पत्थर के हाथियों को नहला-धुला कर धूल-गर्द से मुक्त कर दिया गया था. चुनाव परिणाम आने के पहले ही बसपाई काल के सारे स्मारकों की साफ-सफाई हो गई थी. तब अखिलेश यादव की सरकार थी. प्रशासन के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे स्वनामधन्य अफसरों को लग रहा था कि अब तो मायावती ही आ रही हैं. प्रदेश की नौकरशाही का स्तर यही है.

आपको याद होगा कि चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश के मुख्य सचिव राहुल भटनागर और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) जावीद अहमद को हटाने की चुनाव आयोग से मांग की थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ था. अब प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद दोनों शीर्ष अधिकारियों का स्थानान्तरण तय माना जा रहा है. मुख्य सचिव ने बसपा खेमे से सम्बन्ध बनाने के प्रयास शुरू कर दिए थे, लेकिन बसपा कहीं की नहीं रही.

भाजपा के साथ अपने समीकरण प्रगाढ़ करने में पूर्व मुख्य सचिव दीपक सिंघल और वरिष्ठ आईएएस संजय अग्रवाल भी लगे हुए हैं. संजय अग्रवाल के भाई अनिल अग्रवाल गुजरात काडर में आईपीएस अफसर हैं, तो वे भी अपने भाई के लिए गुजरात-लाइन ठीक कर रहे हैं. प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी सदाकांत और अनूप चंद पांडेय की भी सक्रियता देखी जा रही है. सदाकांत कल्याण सिंह के खास अफसर रहे हैं. अनूप चंद पांडेय कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में सूचना निदेशक थे.

पांडेय उमा भारती के निजी सचिव भी रह चुके हैं. दूसरी तरफ मुख्य सचिव से रिटायर होने के बाद अखिलेश यादव के मुख्य सलाहकार बने आलोक रंजन ने योगी सरकार के आते ही इस्तीफा दे दिया. उस पद के लिए भी कई पूर्व नौकरशाहों में प्रतियोगिता है. आलोक रंजन यूपीएसआईडीसी और फिल्म एवं टीवी इंस्टीट्यूट से भी हटेंगे, लिहाजा वहां भी स्थान पाने की कई अफसरों में अभिलाषा है.

प्रतिनियुक्ति पर गए कई अफसर भी अब वापस लौटने की जुगाड़ में हैं. बसपा और सपा सरकार में कई अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे. 1981 बैच के राजीव कुमार (प्रथम), 1982 बैच के जेएस दीपक, नीरज गुप्ता, प्रभाष झा, 1984 बैच के दुर्गा शंकर मिश्रा, 1986 बैच के प्रभात कुमार षारंगी, 1987 बैच के अरुण सिंघल, जीवेश नन्दन, 1988 बैच के आलोक कुमार (प्रथम), 1989 बैच के शशि प्रकाश गोयल समेत कई अधिकारियों की यूपी वापसी की चर्चा नौकरशाही गलियारे में तेज है.

अखिलेश सरकार में मुख्यमंत्री के खास नौकरशाहों में आमोद कुमार, पार्थसारथी सेन शर्मा, पंधारी यादव, अमित गुप्ता, जीएस नवीन कुमार, अरविंद सिंह देव, अरविंद कुमार, राजीव कुमार (द्वितीय), रमारमण, प्रांजल यादव, कामरान रिजवी और संजय अग्रवाल वगैरह शामिल रहे हैं. जैसा आपको बताया कि इनमें से कई अधिकारी योगी के ‘गुड-बुक’ में आने के लिए हलकान हैं.

बसपा और सपा के कार्यकाल में सत्ता का केक आपस में बांटने वाले नौकरशाहों की बाकायदा शिनाख्त हो चुकी थी. मायावती की सरकार में उनकी जाति के फतेहबहादुर के साथ-साथ नवनीत सहगल, अनिल सागर, कुमार कमलेश, दिनेश चंद्र, एसएम बोबड़े, सुधीर गर्ग, नेतराम और डीएस मिश्रा जैसे अधिकारियों की तूती बोलती थी. उन्हीं अधिकारियों में से कुछ की अखिलेश सरकार में भी तूती बोलती रही. अब वे योगी सरकार में भी अपनी तूती फिट करने की कोशिश में लगे हुए हैं.

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