माहौल बहुत खराब है। सारे बुद्धिवाद पर हथौड़े पड़ रहे हैं। लपेटे में पूरा हिंदुस्तान है। क्या आम आदमी और क्या कारपोरेट। ट्रोल्स, आईटी सेल, गोदी मीडिया और इन सबको संरक्षण देती सरकारें। रास्ता हर कोई तलाशना चाहता है। लेकिन सब बहसों में उलझे हैं। उर्मिलेश जी ने सही कहा कि अब लिबरल लोगों की बहसों से कुछ नहीं होगा। जब तक वैकल्पिक सांगठनिक ताकतें नहीं उभरतीं। उस दिशा में क्या हो रहा है। प्रश्न यह है। राजनीतिक दलों को हम देख रहे हैं। रवीश कुमार राहुल गांधी को जगह दे रहे हैं। भरपूर दे रहे हैं। शायद वे भी जानते हैं कि राहुल की हस्ती क्या है। लेकिन रवीश का जगह देना इसलिए भी उपयुक्त है क्योंकि बीजेपी का आईटी सेल, मंत्री और हर भाजपाई पिछलग्गू भी राहुल को ध्वस्त करने पर तुला रहता है। लेकिन कोई वैकल्पिक सांगठनिक ताकत राहुल जैसे लोग भी नहीं खड़ी कर सकते जबकि पूरे देश में आज भी कांग्रेस की सांसें मजबूत हैं।

शायद सब जानते हैं और अच्छी तरह से जानते हैं कि इस वक्त भाजपा सरकार के खिलाफ देश भर का माहौल जुदा जुदा है। लोहा गर्म है बस समझ बूझ से वार करने की देर है। लेकिन जब सारी विरोधी ताकतें एक होते हुए भी एक न दिखें। एक मंच पर आकर भी वैकल्पिक ताकत में तब्दील न हो पाएं तो ‘फूट करो और राज करो’ नीति पर चलने वाली सरकार का बाल बांका नहीं हो सकता। जैसे हम सरकार की नीतियों और चालों के प्रति चौकन्ने होकर बहस में आ जाते हैं और स्वयं को तसल्ली दे बैठते हैं। उसी तरह मोदी सरकार भी तो इसी फिराक में रहती है कि कैसे और किन मुद्दों से बेसमझ गरीब वोटर को बरगलाया जाए। यह सच कि बरगलाने वाली सरकार सिर्फ इन्हीं हथकंडों से ज्यादा दिन नहीं टिक सकती। लेकिन हम यहां भी फेल होते हैं और जीत उनकी हो जाती है। यहां इतिहास का एक प्रसंग याद आता है जब क्लाइव लायड प्लासी की लड़ाई में अपने केवल तीन सौ सैनिकों के साथ नवाब सिराजुद्दौला के तीन हजार सैनिकों पर फतह हासिल करता है ।क्या ऐसा ही कुछ आज नहीं हो रहा।

समझा जा सकता है कि दिन पर दिन कितना मुश्किल होता जा रहा है सब कुछ। जब सरकार देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं को भी वश में कर ले। यहीं नहीं जहां सबसे बड़ी अदालत के जज भी खुद के भविष्य को देख कर फैसले देने लगें तो समझ लीजिए हम कहां खड़े हैं। सत्य तो यह है कि सत्तर साल में कोई सरकार अपनी मजबूती में इतनी धूर्त नहीं हुई और इसलिए किसी सरकार को उखाड़ने पछाड़ने में कभी इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ी। तो सवाल यही है कि क्या हम बहसों से इस सरकार को परास्त कर सकते हैं। जिस तरह कांग्रेस सोचती है कि सत्ता खुद ब खुद चल कर उसके पास आएगी उसी तरह शायद बुद्धिजीवी भी अपने सीमित प्रशंसकों के बीच समझते हैं कि हमारी बहसें क्रांति ला सकतीं हैं। हम रोज सोशल मीडिया के तमाम कार्यक्रमों को देखते सुनते हैं। वही हमारी खुराक भी बन गये हैं। लेकिन उर्मिलेश जी की चिंता ही हमारी भी चिंता है। सत्ताएं हमारी भूलों का लाभ उठाना जानती हैं। प्रितीश नंदी लिखते हैं कि हाथरस कांड में लड़की गाय चराने गयी थी और उस गांव में 15 घर दलितों के हैं। सत्य क्या है। सत्य वह है जो आरफा खानम शेरवानी ने हाथरस जाकर बताया। और उसके बाद भाषा सिंह भी वहां गयीं। दोनों ने भले देर से ही पर बेहतरीन रिपोर्टिंग की। जब सब लोग एक सी बातें कर रहे हैं तो प्रितीश नंदी अलग तथ्य क्यों दे रहे हैं समझ नहीं आता। जहां गलती या भूल की बात है वहां पुण्य प्रसून वाजपेयी सीबीआई के डायरेक्टर राकेश अस्थाना की जगह धीरेन्द्र अस्थाना बोल गये और एक बार नहीं तीन तीन बार। कहानीकार और पत्रकार धीरेन्द्र अस्थाना मुंबई में मौजूद हैं और बखूबी हैं। पर वाजपेयी की आदत है कि भूल पर कोई अफसोस नहीं करते। पहले भी दो चार बार ऐसा हुआ है। हमने लिखा भी। पर कोई फर्क नहीं। कम से कम अगले एपीसोड में भूल स्वीकार करनी चाहिए।

आजकल ‘लाउड इंडिया टीवी’ खूब चर्चा में है। संतोष भारतीय विभिन्न लोगों से बात कर रहे हैं। कश्मीर मुद्दे पर उन्होंने चिंतक ओ.पी.शाह और नेशनल कांफ्रेंस के तनवीर सादिक से बढ़िया बातचीत की। आलोक जोशी और संतोष भारतीय दोनों की यह खूबी देखने में आयी कि दोनों अपने पैनलिस्ट को भरपूर समय देते हैं। इसीलिए उसे सुनने में भी मजा आता है। संतोष भारतीय जब अभय कुमार दुबे से बात करते हैं तो वह और भी लाजवाब होता है। आने वाले रविवार को शाम चार बजे वे दुबे जी से आरएसएस पर खुल कर पूरी बात करने वाले हैं। सुनना दिलचस्प होगा। आशुतोष ने सेक्यूलरिज्म पर बढ़िया बातचीत की। इस बातचीत में आलोक जोशी और उर्मिलेश जी को खासतौर पर सुनना अच्छा लगा। जोशी जी ने सही कहा कि संविधान के प्रियंबल में ‘सेक्युलर’ शब्द क्यों जोड़ा गया वह तो संविधान की आत्मा में ही है।
अंत में उर्मिलेश जी की बात को ही फिर दोहराना पड़ेगा कि जब तक वैकल्पिक सांगठनिक ताकतें नहीं उभरती तब तक कुछ संभव नहीं। यह सरकार बहुत शातिर और धूर्त है और सांगठनिक रूप से बहुत मजबूत भी।संगठन आरएसएस का है। इसलिए संगठन को संगठन की ताकत से ही परास्त किया जा सकता है। इस बात को योगेन्द्र यादव, अपूर्वानंद और ऐसे ही तमाम लोग समझते तो होंगे ही।ऐसे ही लोगों से उम्मीद भी है।

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