रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा इस समय बिहार की राजनीति में हॉटकेक  बने हुए हैं. लोकसभा चुनाव के लिए वक्त जितना कम हो रहा है, उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ रखने या फिर अपने पाले में लाने की कोशिशें उतनी ही तेज होती जा रही हैं. ज्यादा बेताव तो तेजस्वी यादव ही दिख रहे हैं. वे तो सार्वजनिक मंचों पर भी उपेंद्र कुशवाहा को गले लगाने की बात कर रहे हैं, जबकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कोशिश में है कि लोकसभा चुनाव तक मौजूदा एनडीए के समीकरण में कोई छेड़छाड़ न हो, नही तो 2019 की जंग में पिछड़ने का भारी खतरा है.

वेट एंड वाच मूड में कुशवाहा

सात से आठ फीसदी कुशवाह वोटर लोकसभा की कम से कम 12 और विधानसभा की 70 से 80 सीटों के चुनावी गणित को प्रभावित करते हैं. उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक उत्थान के बाद इस समाज को लग रहा है कि इसके पास अब एक ऐसा चेहरा है, जिसके माथे पर ताज रखा जा सकता है और दूसरे समाज के लोगों को इससे कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. कुशवाहा समाज चाहता है कि अबकी बार उपेंद्र कुशवाहा को ही चेहरा बनाकर चुनावी जंग में कूदा जाए, चाहे खेमा महागठबंधन का हो या फिर एनडीए का. अपने समाज की इस भावना के जमीनी फीडबैक से उपेंद्र कुशवाहा भी भलीभांति अवगत हैं. उपेंद्र कुशवाहा को इसका अच्छी तरह अहसास है कि उनका समाज क्या चाहता है और इसका सम्मान करना इनकी मजबूरी भी है. रालोसपा की राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि अगर उपेंद्र कुशवाहा को सीएम का चेहरा घोषित कर दिया जाए, तो फिर पूरा कुशवाहा समाज एकतरफा वोट कर देगा और जिस गठबंधन के लिए यह एकतरफा वोट होगा सरकार उसी की बनेगी. यही वजह है कि उपेंद्र कुशवाहा ने किसी के लिए भी दरवाजे बंद नहीं किए हैं. वे वेट एंड वाच की स्थिति में हैं

तेजस्वी का वोटिंग समीकरण

अब यह समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर तेजस्वी यादव उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ करने के लिए इतने बैचेन क्यों हैं. राजद के पुराने नेताओं के उलट कुछ मामलों में तेजस्वी यादव का नजरिया बिल्कुल साफ है. तेजस्वी यादव का गणित कहता है कि मुसलमान, यादव, कुछ सवर्ण और कुछ पिछड़े और अतिपिछड़ों को मिलाकर इनके पास लगभग 31 फीसदी  वोट है. इसमें अगर कुशवाहा समुदाय का सात फीसदी वोट मिला लिया जाए, तो यह गठबंधन बिहार के किसी भी चुनाव में अजेय हो जाएगा. तेजस्वी राजद के सामाजिक दायरे के साथ ही साथ वोट प्रतिशत भी बढ़ाना चाहते हैं और इसके लिए उपेंद्र कुशवाहा इन्हें सबसे मुफीद सहयोगी लग रहे हैं. एनडीए को तोड़कर तेजस्वी यादव यह संदेश भी देना चाहते हैं कि हवा महागठबंधन की बह रही है, इसलिए सारे लोग इधर आ रहे हैं.

भाजपा की मजबूरियां

जहां तक सवाल एनडीए और खासकर भाजपा का है, तो इसकी हर संभव कोशिश है कि मौजूदा सहयोगियों को हर हाल में साथ रखा जाए. उपेंद्र कुशवाहा के इफ्तार पार्टी में भाजपा ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई, जबकि जद (यू) और लोजपा ने जाने की जहमत नहीं उठाई. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी पता है कि उपेंद्र कुशवाहा को 2019 की जंग के लिए साथ रखना कितना जरूरी है. इसके अलावा, रालोसपा की मांग भी ऐसी नहीं है, जिसपर विचार न किया जा सके. भाजपा के रणनीतिकारों को पता है कि अगर कुशवाहा का वोट महागठबंधन में जुट गया, तो फिर 2019 की जंग काफी कठिन हो जाएगी. इसलिए लोकसभा चुनाव तक उपेंद्र कुशवाहा को साथ लेकर चलने में ही भलाई है. जब बात विधानसभा चुनाव की आएगी, तो उस समय के हालात के हिसाब से फैसला लिया जा सकता है. उपेंद्र कुशवाहा के लिए भी यह स्थिति ठीक रहेगी, क्योंकि अभी तो चुनाव दिल्ली का होना है और इसमें सीएम का पद कहीं नहीं आ रहा है.

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