mamataअगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमी-फाइनल समझे जा रहे पश्चिम बंगाल नगर निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने एक बार परचम लहरा दिया है. इस जीत से तृणमूल कांगे्रस ने अपने विरोधियों को संदेश दिया है कि राज्य की सत्ता से उसे बेदखल करना आसान नहीं है. ऐतिहासिक जीत के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि तृणमूूल की जीत उन प्रतिद्वंद्वी ताकतों के लिए करारा जवाब है, जो उनकी और पार्टी की छवि खराब करने का अभियान चला रही हैं. लेकिन, वामदलों ने ममता बनर्जी के इस दावे को यह कहकर नकार दिया कि चुनावी नतीजे जनता की सही राय व्यक्त नहीं करते, क्योंकि इस चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली और हिंसा हुई है, मतदाताओं को मतदान करने से रोका गया है. वहीं ममता बनर्जी ने दावा किया कि राज्य में चुनाव पूरी तरह स्वतंत्र एवं शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए. उन्होंने कहा कि मीडिया ने उनकी छवि बिगाड़ने का प्रयास करते हुए उन्हें और उनकी पार्टी को निशाना बनाया, उनके ऊपर व्यक्तिगत हमले किए गए. बकौल ममता, यदि ऐसा किसी अन्य राज्य में हुआ होता, तो उसका जाने क्या परिणाम होता.
कोलकाता नगर निगम सहित प्रदेश के 92 नगर निकायों के लिए हुए चुनाव में 71 पर तृणमूल कांग्रेस, पांच पर सीपीएम और चार पर कांग्रेस ने कब्जा किया, जबकि भाजपा एक भी नगर निकाय पर कब्जा नहीं कर सकी. 12 नगर निकायों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. वर्ष 2010 में हुए निकाय चुनाव में तृणमूल ने 66 नगर निकायों पर कब्जा किया था. इसके बाद वह राज्य की सत्ता पर काबिज हुई थी. जबकि वामदल पिछली बार 25 नगर निकायों पर काबिज हुए थे, इस बार वे घटकर पांच के आंकड़े पर सिमट गए. कोलकाता नगर निगम (केएमसी) की 144 सीटों पर हुए चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 114 सीटों पर सफलता प्राप्त की. वहीं सीपीआई (एम) को 10, भाजपा को सात और कांग्रेस को पांच सीटों पर जीत हासिल हुई. तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई. 2010 में कोलकाता नगर निगम के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 95, सीपीआई (एम) को 33, कांग्रेस को आठ और भाजपा को तीन सीटों पर सफलता मिली थी. इस बार राज्य के कुल 2,090 वार्डों में से तृणमूल को 1425, वामदलों को 285, कांग्रेस को 186 और भाजपा को 85 में जीत हासिल हुई. कई नगर निकाय तो ऐसे हैं, जहां विपक्षी दलों का खाता भी नहीं खुल सका. तीन नगर पालिकाओं झालदा, जियागंज-अजीमगंज और बेलदंगा में तृणमूल कांग्रेस भी अपना खाता नहीं खोल सकी. हालांकि, वामदलों के लिए परिणाम निराशाजनक रहे, बावजूद इसके वे मुख्य विपक्षी पार्टी का तमगा हासिल करने में कामयाब रहे. वाममोर्चा को पांच निकायों सिलीगुड़ी नगर निगम, जंगीपुरा, दीनहाटा, ताहेरपुर और दाईहाट में बहुमत मिला. कांग्रेस को कालियागंज, इस्लामपुर, मुर्शिदाबाद और कांदी में बहुमत मिला. सिलीगुड़ी नगर निगम में सीपीआई (एम) ने 47 सीटों में से 23, तृणमूल ने 17, कांग्रेस ने पांच और भाजपा ने दो सीटों पर कब्जा किया, जबकि एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई.
चुनाव के बाद आए ज़्यादातर ओपिनियन पोल में तृणमूल को ही मजबूत दावेदार बताया गया था. इस ऐतिहासिक सफलता के बाद राज्य में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कद और बड़ा हो गया है. सारधा घोटाले की वजह से पार्टी की स्थिति चुनाव से पहले डांवाडोल लग रही थी और पूर्व महासचिव मुकुल रॉय जैसे कई बड़े नेता ममता बनर्जी से दूर हो गए थे. इसके अलावा पार्टी के कई नेताओं के नाम सारधा घोटाले में आने की वजह से तृणमूल कांग्रेस की साख को बहुत धक्का लगा था. ऐसे में ये निकाय चुनाव ममता बनर्जी के लिए व्यक्तिगत साख का सवाल बन गए थे. वहीं दूसरी तऱफ सारधा घोटाले को लेकर भाजपा पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत करने की पुरजोर कोशिश कर रही थी. अपनी वास्तविक स्थिति के आकलन के लिए उसके सामने निकाय चुनाव थे, लेकिन भाजपा एक भी नगर निकाय में बहुमत हासिल नहीं कर सकी. ऐसे निराशाजनक परिणाम से भाजपा को खासा झटका लगा है.
2014 में हुुए लोकसभा चुनाव में राज्य की कुल 42 सीटों में से तृणमूल को 34, कांग्रेस को चार और भाजपा-सीपीआई (एम) को दो-दो सीटें हासिल हुई थीं. 42 लोकसभा क्षेत्रों में से 30 में भाजपा तीसरे और तीन में दूसरे स्थान पर रही थी तथा उसे राज्य में कुल 16.8 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे. इसी तरह विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया था. ऐसे में आशा की जा रही थी कि भाजपा विधानसभा चुनाव में राज्य में कमजोर होते वामदलों की जगह भरने में कामयाब होगी और वहां मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरेगी, लेकिन निकाय चुनाव में
निराशाजनक प्रदर्शन भाजपा के सपनों पर कुठाराघात है. ताजा स्थिति ने भाजपा को विधानसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति में आमूलचूल परिवर्तन करने को मजबूर कर दिया है. ग़ौरतलब है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले दिनों पश्चिम बंगाल का दौरा करके पार्टी को मजबूत बनाने की पुरजोर कोशिश की थी, लेकिन उनकी सारी कवायद बेकार साबित हुई. राज्य के भाजपा कार्यकर्ता इस बात के लिए अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि 2010 के निकाय चुनाव में पार्टी को पूरे पश्चिम बंगाल में केवल 10 वार्डों में जीत हासिल हुई थी, लेकिन इस बार यह आंकड़ा बढ़कर 85 तक जा पहुंचा है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने कहा कि चुनावी नतीजों से हम संतुष्ट नहीं हैं, लेकिन इस चुनाव में भाजपा गेनर है और बाकी सब लूजर. उन्होंने कहा कि कोलकाता नगर निगम में पहले हमारी सीटें तीन थीं, अब सात हैं और हम 50 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे. यदि चुनाव निष्पक्ष होते, तो भाजपा को इतनी सीटें मिलतीं कि तृणमूल अकेले बोर्ड का गठन न कर पाती.
हालांकि, नगर निकाय चुनाव का वास्ता शहरी क्षेत्रों से होता है, तो ऐसे में पूरे राज्य के परिप्रेक्ष्य में इससे केवल भविष्य की राजनीतिक स्थितियों का आकलन किया जा सकता है. चुनाव से पहले वामदलों के वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की आशा थी, लेकिन पार्टी एक बार फिर औंधे मुंह गिर पड़ी. वामदलों की पकड़ पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में है, शहरी क्षेत्रों में उनकी पकड़ कमजोर हुई है. ऐसे में वामदलों को अपने अस्तित्व की लड़ाई ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी लड़नी होगी. पश्चिम बंगाल के मुसलमानों का रुझान ज़्यादातर तृणमूल कांग्रेस की तऱफ है. ऐसे में सीपीआई (एम) को राज्य में दमदार वापसी के लिए अपनी नीतियों में आधारभूत बदलाव करने होंगे और इसकी ज़िम्मेदारी अब नवनियुक्त महासचिव सीताराम येचुरी के कंधों पर है. वह वामदलों की डूबती नैया कैसे पार लगाते हैं, यह देखने वाली बात होगी. अगले विधानसभा चुनाव से पहले हुए निकाय चुनाव को सभी राजनीतिक दलों के लिए शक्ति परीक्षण का एक अहम मौक़ा माना जा रहा था. नतीजों से लोगों का तृणमूल कांग्रेस के प्रति विश्वास एक बार फिर जाहिर हुआ है. ममता बनर्जी ने कहा कि विपक्ष के तमाम कुप्रचार के बावजूद राज्य की जनता ने तृणमूल कांग्रेस पर भरोसा जताया. कुल मिलाकर चुनाव परिणाम बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का हरा रंग फिलहाल फीका पड़ता नहीं दिखाई देता और ममता बनर्जी का जादू अब भी बरकरार है.

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