नेपाल में आए भीषण भूकंप ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया. वहां हज़ारों लोग काल के गाल में समा गए, बड़ी संख्या में लोग अभी भी लापता हैं. भारत में भी सैकड़ों लोग भूकंप से प्रभावित हुए. जब-जब हमने प्रकृति से छेड़छाड़ की, प्रकृति अपने रौद्र रूप में हमारे सामने उपस्थित हुई. अगर मानव जनित कारणों पर नज़र दौड़ाएं, तो हम पाएंगे कि हमने खुद ही प्राकृतिक आपदाओं को आमंत्रित किया. भूकंप क्या, क्यों और कैसे, आइए डालते हैं एक नज़र…

earthquakभूकंप अक्सर भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं. धरती या समुद्र के अंदर होने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के कारण भूकंप आते हैं. हमारी धरती चार परतों यानी इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट से बनी हुई है. 50 किलोमीटर की यह मोटी परत विभिन्न वर्गों में बंटी हुई है, जिन्हें टैक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है. ये टैक्टोनिक प्लेट्स अपनी जगह से हिलती रहती हैं, लेकिन जब ये बहुत ज़्यादा हिलती हैं और इस क्रम में एक प्लेट दूसरी के नीचे आ जाती है, तो भूकंप आता है.
कैसे मापा जाता है भूकंप
भूकंप की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर और मरकेली स्केल का पैमाना इस्तेमाल किया जाता है. भूकंप की तरंगों को रिक्टर स्केल 1 से 9 तक के आधार पर मापता है. इस स्केल के अंतर्गत प्रति स्केल भूकंप की तीव्रता 10 गुणा बढ़ जाती है और भूकंप के दौरान जो ऊर्जा निकलती है, वह प्रति स्केल 32 गुणा बढ़ जाती है. इसका सीधा मतलब यह हुआ कि 3 रिक्टर स्केल पर भूकंप की जो तीव्रता थी, वह 4 स्केल पर 10 गुणा बढ़ जाएगी. मरकेली स्केल में भूकंप को तीव्रता के बजाय ताकत के आधार पर मापते हैं. भूकंप के कारण होने वाले ऩुकसान के लिए कई कारण ज़िम्मेदार हो सकते हैं, जैसे घरों की खराब बनावट, खराब संरचना, भूमि की प्रकृति, आबादी की बसावट आदि.
भूकंप प्रभावित क्षेत्र
भारत को भूकंप के लिहाज से चार हिस्सों जोन-2, जोन-3, जोन-4 और जोन-5 में बांटा गया है. जोन-2 सबसे कम खतरे वाला तथा जोन-5 सर्वाधिक खतरनाक माना जाता है. उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में ही आते हैं. उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर हिस्से तथा दिल्ली जोन-4 में आते हैं. मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज़्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं.
भूकंप आने के दौरान क्या करें

  • यदि आप किसी भवन के अंदर हैं, तो कुछ क़दम से अधिक न चलें. खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें. कंपन थम जाने तक अंदर ही रहें और बाहर तभी निकलें, जब आप यह निश्चित कर लें कि अब ऐसा करना सुरक्षित है.
  •  यदि आप किसी एलिवेटर पर हैं, तो खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें. कंपन थमने पर नज़दीकी फर्श पर जाने की कोशिश करें, यदि आप सुरक्षित रूप से ऐसा कर सकें.
  • यदि आप बाहर हैं, तो इमारतों, पेड़ों, स्ट्रीट लाइटों और बिजली की लाइनों से कुछ क़दम से अधिक दूर न जाएं. फिर खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें.
  • यदि आप किसी बीच पर तट के निकट हैं, तो खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें और फिर तत्काल ऊंची ज़मीन की ओर जाएं, यदि भूकंप के बाद सुनामी आ रही हो.
  • यदि आप वाहन चला रहे हैं, तो किसी खुली जगह तक जाएं, रुकें और वहीं ठहरें तथा अपनी सीट बेल्ट तब तक कसे रखें, जब तक कि कंपन न थम जाएं. एक बार कंपन थम जाने पर सावधानीपूर्वक आगे बढ़ें और उन पुलों या ढलानों पर न जाएं, जो क्षतिग्रस्त हो चुके हों.
  • यदि आप किसी पर्वतीय क्षेत्र में या अस्थिर ढलानों या खड़ी चट्टानों पर हैं, तो मलबा गिरने या भूस्खलन होने के प्रति सचेत रहें.बचाव के उपाय
  • भूकंपरोधी मकान का निर्माण कराएं.
  • आपदा किट बनाएं, जिसमें रेडियो, मोबाइल, ज़रूरी कागजात, टार्च, माचिस, चप्पल, मोमबत्ती, कुछ पैसे और ज़रूरी दवाएं हों.
  • भूकंप आने पर बिजली और गैस बंद कर दें.
  • भूकंप अपने पर लिफ्ट का प्रयोग बिल्कुल न करें.
  • भूकंप आने पर खुले स्थान पर जाएं. पेड़ों और बिजली की लाइनों से दूर रहें.

सबसे बड़े भूकंप
26 जनवरी, 2001 : गुजरात में 7.9 रिक्टर स्केल तीव्रता वाला शक्तिशाली भूकंप आया था, जिसमें 30 हज़ार लोग मारे गए.
17 अगस्त, 1999 : तुर्की की राजधानी इस्तांबुल और इमिट शहरों में 7.4 रिक्टर स्केल की तीव्रता का भूकंप आया था. 70,000 से अधिक लोग मारे गए और हज़ारों घायल हुए.
1990 : ईरान के गिलान में आए शक्तिशाली भूकंप ने 40,000 से भी अधिक लोगों की जान गई.

दिसंबर,1988: आर्मेनिया के उत्तर-पश्चिम में 6.9 रिक्टर स्केल की तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें 25,000 लोगों की जानें गई थीं.
1923 : टोक्यो में ग्रेट कांटो नामक शक्तिशाली भूकंप आया था, जिसमें 1,42,800 लोगों की जानें चली गई थीं.


रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता और प्रभाव

0 से 1.9- स़िर्फ सीज्मोग्राफ से ही पता चलता है.
2 से 2.9- हल्का कंपन.
3 से 3.9- कोई ट्रक आपके नज़दीक से ग़ुजर जाए, ऐसा असर.
4 से 4.9- खिड़कियां टूट सकती हैं, दीवारों पर टंगे फ्रेम गिर सकते हैं.
5 से 5.9- फर्नीचर हिल सकता है.
6 से 6.9- इमारतों की नींव दरक सकती है, ऊपरी मंजिलों को ऩुकसान हो सकता है.
7 से 7.9- इमारतें गिर जाती हैं, ज़मीन के अंदर पाइप फट जाते हैं.
8 से 8.9- इमारतों सहित बड़े पुल भी गिर जाते हैं.
9 और उससे ज़्यादा- पूरी तबाही. यदि समुद्र नज़दीक हो, तो सुनामी आने की पूरी आशंका.


हर 87 सेकंड में हिलती है धरती
भूकंप एक सामान्य घटना है. एक अनुमान के अनुसार, विश्व में लगभग प्रत्येक 87 सेकंड में कहीं न कहीं धरती हल्के से कांपती है. इन झटकों को महसूस तो किया जा सकता है, लेकिन ये इतने शक्तिशाली नहीं होते कि इनसे किसी प्रकार की क्षति हो सके. प्रति वर्ष धरती पर औसतन 800 भूकंप ऐसे आते हैं, जिनसे कोई ऩुकसान नहीं होता. इनके अतिरिक्त धरती पर प्रति वर्ष 18 बड़े भूकंप आने के साथ एक अति तीव्र भूकंप भी आता है.

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