bunkarउत्तर बिहार का सीमावर्ती क्षेत्र और मिथिला की हृदयस्थली मधुबनी अपनी सांस्कृतिक विविधता और विरासत के लिए पूरे देशभर में प्रसिद्ध है. यहां की मिथिला-पेंटिंग और बुनकरों की उत्कृष्ट कारीगरी का लोहा पूरा विश्व मान चुका है. इन्हीं वस्तुओं में है हैण्डलुम वस्त्र, जो मधुबनी जिले के बुनकरों द्वारा तैयार किया जाता है. भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न स्व. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, स्व. गुलजारी लाल नन्दा, स्व. विनोवा भावे और जय प्रकाश नारायण मधुबनी हैण्डलूम से इतने प्रभावित थे कि यहां आकर मुक्त कंठ से इसकी प्रशंसा करते थे. यहां के बुनकरों द्वारा तैयार किए गए हैण्डलूम के कपड़े कभी पेरिस के बाजारों और होटलों की शान हुआ करते थे और आज भी यहां के बुनकरों द्वारा तैयार किए गए कपड़े देश-विदेशों में प्रसिद्ध हैं.

लेकिन 50-60 के दशक के बाद भारत में शुरू हुए औद्योगिकीकरण और केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार के खादी उद्योग के प्रति उदासीन रवैये ने कई पुश्तों से चली आ रही दस्तकारी का अंत कर दिया. आज ऐसी कई संस्थाएं बन्द हो गई हैं या ऋृण के बोझ तले डूब गई हैं जो कभी खादी के वस्त्रों के बेहतरीन उत्पादन के साथ-साथ खादी के दस्तकारी से जुड़े कामगारों की भी मदद किया करती थी. ऐसे कई संस्थान मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर में थे जो दस्तकारों को हैण्डलूम, चरखा, कच्चा माल मुहैया कराकर तैयार उत्पाद को बेचने के लिए बाजार उपलब्ध करवाती थी. ऐसी ही बड़ी संस्थानों में एक संस्था थी बिहार राज्य हैण्डलूम क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर संघ लि.

लेकिन अब इसे बंद कर दिया गया है. इस संस्था को बन्द कर देने से बिहार और इससे जुड़े बुनकरों की कला का अध्याय भी समाप्त हो गया. सरकार द्वारा यदा-कदा छोटी-मोटी मदद से इनकी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है. मानव सभ्यता एवं संस्कृति के विकास में प्रमुख भूमिका अदा करने वाली अंसारी बिरादरी (अर्थात बुनकर) समाज, जिन्होंने वस्त्रविहीन मानव जाति को अपने बेजोड़ कारीगरी से वस्त्र पहनाये.

अगर हम इनके इतिहास पर नजर डालें तो महज 50 वर्ष पूर्व मानव जाति अपने वर-वधुओं को सजाने और अपने मृत परिजनों के अंतिम संस्कार में इन्हीं बिरादरी (बुनकरों) के द्वारा तैयार वस्त्रों का उपयोग करते थे. लेकिन वर्तमान परिदृश्य में मशीनों की चकाचौंध ने इस महान मानवीय ऐतिहासिक धरोहर को आज के सामाजिक परिवेश से इतना दूर कर दिया है कि ये समुदाय स्वयं को अलग-थलग महसूस करने लगा है.

आज इसी बेरुखी के कारण इनकी जीविका खतरे में पड़ गई है. दूसरों को कपड़ा पहनाने वाली यह कौम अपने लिए कफन का कपड़ा भी जुटा पाने में असमर्थ है. आज की तारीख में ये एक बड़ा सच है कि उनके बच्चे दो जून की रोटी के लिए भी तरस रहे हैं. देश के विभिन्न भागों जैसे- मुंबई, दिल्ली, मेरठ और बनारस की सड़कों के किनारे कचरा बीनते दिखाई देते हैं. खानाबदोश की तरह ठोकरें खाने को विवश हैं.इतिहास गवाह है कि भारत की आजादी के आन्दोलन के वक्त अंग्रेजों ने इन पर बेइंतेहा जुल्म किया था.

ढाका के 80 हजार जुलाहों (बुनकरों) के अंगूठा काटे लिये गये थे. उनके घरों को आग के हवाले कर दिया गया था. इनकी एक बड़ी आबादी को घर-बार छोड़ अन्यत्र बस जाने को कहा गया था.मधुबनी जिले में अंसारी समुदाय के लोग सबसे अधिक हैं. भौआरा मोहल्ला जिला मुख्यालय में स्थित है. सर्वाधिक अंसारी (मोमिन) आबादी होने के कारण भौआरा इस समुदाय का मुख्य केन्द्र माना जाता है.

वर्तमान में बिहार एवं खासकर मधुबनी में हस्तकरघा से जुड़े बुनकरों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक हालात पर एक नजर डालें तो स्थिति अत्यंत ही दयनीय है. ज्यादातर बुनकर गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी बसर कर रहे हैं. कल तक जो हाथ लोगों के लिए कपड़ा और रोजगार उपलब्ध कराते थे आज हालात ने इन हाथों को लाचार और अपाहिज बना दिया है. अगर पूर्व में नजर डालें तो 1970 के दशक तक इनकी स्थिति काफी हद तक ठीक थी.

जब 1977 में केन्द्र और राज्य में जनता पार्टी की सरकार बनी तो बुनकरों की बदहाली को देखकर तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर, नेता हुकुमदेव नारायण यादव एवं धनिक लाल मंडल की पहल पर इनकी बदहाली को दूर करने और बेरोजगार नौजवानों को रोजगार और रोजी-रोटी से जोड़ने के लिए मधुबनी क्षेत्रीय हस्तकरघा संघ लि. बिहार स्टेट हैण्डलूम यूनियन, पटना हैण्डलूम हैण्डीक्राट कॉरपोरेशन तथा अन्य बुनकर कल्याणकारी संस्थाओं की स्थापना 1978 में की गई. इस तरह कुल मिलाकर सरकार की पहल से 1982 तक यहां के बुनकरों की स्थिति में काफी सुधार हुआ.

लेकिन कुछ ही वर्षों बाद केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने इनकी ओर से अपनी आंखें बन्द कर लीं. इसका परिणाम ये हुआ कि दिन-ब-दिन इनकी स्थिति खराब होने लगी. ये बिल्कुल हाशिए पर चले गये. आज हालात ये है कि इन्हें सिर्फ चुनाव के समय ही याद किया जाता है. आजादी से लेकर आज तक शासक वर्ग इन्हें अपना वोट बैंक ही समझता रहा है.

इन्हें जरूरी मानवीय अधिकार रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखा गया है. कभी इसी समुदाय के स्व. मौलाना शफीकुल्लाह अंसारी नगर पालिका की राजनीति से दिल्ली के संसद भवन तक पहुंचे थे. उनके निधन के बाद स्व. हाजी अब्दुल हन्नान अंसारी क्षेत्रीय हस्तकरघा संघ लि. के अध्यक्ष बने और संसद भवन तक का सफर किया.पिछले 10 वर्षों से जिले की राजनीति का केन्द्र माना जाने वाला भौआरा को तलाश है एक कुशल राजनीतिज्ञ की जो उनकी आवाज बन सके, उनकी मांगों को सरकार तक पहुंचा सके.

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