nitish kumarसूबे के अखबार अपराध, रंगदारी और दबंगई की खबरों से लबालब हैं. कोई ऐसा दिन नहीं बीत रहा है, जब सुशासन को चुनौती देने वाली खबरें अखबारों की सुर्खियां नहीं बन रही हैं. नीतीश कुमार हर मौके पर कह रहे हैं कि विपक्ष बिना वजह छाती पीट रहा है. सूबेे में कानून का राज था और आगे भी रहेगा. नीतीश कुमार कह रहे हैं कि अगर सब कुछ खत्म है तो बिहार में विकास दर देश में पहले नंबर पर कैसे है.

नीतीश कुमार कह रहे हैं कि कानून का राज हमारी पूंजी है. संगठित अपराधी गिरोहों को खत्म करने का काम जारी है और जल्द ही सकारात्मक नतीजे आऐंगे. यही बात उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी कह रहे हैं, लेकिन केवल बोल देने भर से अगर स्थिति बदल गई होती तो अखबारों की सुर्खियां कुछ और ही होती. सवाल यह पैदा होता है कि क्या वाकई नीतीश सरकार के वादों पर भरोसा किया जा सकता है और वह भी तब, जब अपराध व दबंगई में सत्ता पक्ष के विधायकों और नेताओं की सहभागिता की बात सामने आ रही हो.जदयू विधायक बीमा भारती के पति अवधेश मंडल थाने से फरार हो गए.

आरोप है कि जदयू विधायक बीमा भारती और सांसद संतोश कुशवाहा की शह पर यह काम हुआ. स्थानीय लोग कहते हैं कि अवधेश मंडल बीमा भारती की गाड़ी पर बैठ के थाने से चले गए. लेकिन एसपी साहब फरमा रहे हैं कि अवधेश मंडल भीड़ का फायदा उठाकर भाग गए. अब यह तो हद है कि एक अपराधी, जिसे पुलिस पकड़ कर थाने लाती है और वह भीड़ का फायदा उठाकर भाग जाता है. ऐसे में कानून का राज और सुशासन की स्थापना के दावे का क्या होने वाला है, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. अवधेश मंडल पर एक हत्या के मामले में गवाह को धमकाने का आरोप है.

इसी मामले में पुलिस उन्हें पकड़कर ले गई थी, लेकिन थाने में अवधेश मंडल की आवभगत शुरू हो गई. स्थानीय लोग बताते हैं कि अवधेश थाने में तनावमुक्त होकर घूम रहे थे. पुलिसकर्मी कभी थाने के पोर्टिको में तो कभी कैंपस के कोने में ले जाकर उनसे बात कर रहे थे. हद तो यह है कि पुलिसकर्मी अवधेश मंडल के साथ फोटो खिंचवाने के लिए ललायित दिख रहे थे. भाजपा नेता सुशील मोदी कहते हैं कि कानून के राज का बढ़-चढ़ कर दावा करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बताएं कि क्या उनकी सरकार अपराधियों के दबाव में काम नहीं कर रही है.

जदयू के कथित स्थानीय नेता थाने पर धावा बोल कर जदयू विधायक बीमा भारती के पति व कुख्यात अपराधी अवधेश मंडल को छुड़ा कर ले जाते हैं. पत्थर माफिया के दबाव में नीतीश कुमार एसपी शिवदीप लांडे का तो लालू प्रसाद के दवाब में विकास वैभव जैसे तेजतर्रार एसएसपी का ट्रांसफर करते हैं. गोपालपुर के जदयू विधायक डीएसपी को गंगा में फेंकने का प्रयास करते हैं तो बड़हरा के राजद विधायक थानेदार को जान से मारने की धमकी देते हैं.

क्या यही कानून का राज है? इधर सुशासन पर एक और दाग लगाया जोकीहाट के जदयू विधायक सरफराज आलम ने. दिल्ली के इंद्रपाल सिंह बेदी ने आरोप लगाया है कि राजधानी एक्सप्रेस में विधायक और उनके बॉडीगार्ड ने मेरी पत्नी और मेरे साथ बदसलूकी की. इस संबंध में श्री बेदी ने एक मामला भी दर्ज कराया है. विधायक सरफराज आलम कहते हैं कि मैं तो उस दिन यात्रा पर ही नहीं था तो इस तरह की बात कैसे हो सकती है. खैर, पुलिस मामले की जांच कर रही है. इधर बैंक डकैती और लूट की घटनाओं में भी काफी इजाफा हो गया है. इन सबको लेकर विपक्ष के तेवर कड़े हो गए हैं.

जीतनराम मांझी कहते हैं कि नीतीश कुमार अपराध की इतनी बड़ी घटनाओं को छोटी-मोटी घटना का नाम दे रहे हैं. अगर ये छोटी-मोटी घटना है तो फिर बड़ी घटना क्या होगी. पटना में ज्वेलर्स की दिनदहाड़े हत्या हो जाती है और नीतीश कुमार इसे छोटी-मोटी घटना कह रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बढ़ते अपराध को लेकर सरकार चिंतित तो है, पर दावे और कार्रवाई में जमीन-आसमान का फर्क है. नीतीश कुमार के लिए परेशानी तब ज्यादा बढ़ जाती है, जब किसी भी अपराध, रंगदारी या फिर दबंगई की घटनाओं में जदयू व राजद के विधायक व नेता का नाम सामने आ जाता है.

अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए तो कड़े से कड़े कदम का आदेश है, पर जब बात राजनीतिक चेहरे की आ जाती है तो सरकार दुविधा में पड़ जाती है. इंजीनियर हत्याकांड और बीमा भारती प्रकरण ने सरकार को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है. इंजीनियर हत्याकांड में अब तक प्रमुख गिरफ्तारी नहीं हुई है. ज्वेलर्स हत्याकांड का आरोपी दुर्गेश शर्मा अभी तक लापता है. यह सबकी जानकारी में है कि नीतीश जब 2005 में सत्ता में आए थे तो उन्होंने अपराध नियंत्रण के लिए कुछ लाजवाब कदम उठाए. स्पीडी ट्रायल इनमें से एक है.

आंकड़े बताते हैं कि 68 हजार अपराधी सजायाफ्ता कराए गए. वैसे अपराधियों की जमानत रद्द करने का अभियान चला था, जो जमानत पर जेल से बाहर आकर अपराध करते थे. जिलों में इसके लिये स्पेशल पीपी बहाल किये गए थे. कई अपराधियों की संपत्ति जब्त हुई. प्रवर्तन निदेशालय की मदद भी ली गई थी. भारतीय सेना के रिटायर जवानों से बनी सैप फोर्स अपराध को नियंत्रित करने में बड़ी मददगार रही थी. इसके अलावा जिले के टॉप टेन अपराधियों को चिन्हित किया गया था और उसे पकड़ने के लिए विशेष अभियान चला था.

डीएम और एसपी से साफ कहा गया था कि वे लोगों से संवाद करें और उनकी किसी भी शिकायत पर फौरन कार्रवाई करें. निर्माण ऐजेंसियों को पूरी सुरक्षा दी गई थी और उन्हें यह भरोसा दिलाया गया था कि वे जितनी सुरक्षा मांगेंगे, उन्हें दिया जाएगा. अपने दूसरे कार्यकाल में भी नीतीश कुमार ने अपना अभियान जारी रखा और जून 2013 तक बिहार पुलिस ने 83000 अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया, लेकिन हाल के दिनों में अपराध का ग्राफ अचानक बढ़ गया और सरकार की चौतरफा आलोचना शुरू हो गई, लेकिन नीतीश सरकार की आलोचना से पहले कुछ दूसरे राज्यों के अपराध के आंकड़ों पर गौर करना जरूरी है.

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि संज्ञेय अपराध के मामले में 2014 में भाजपा शासित मध्य प्रदेश सबसे आगे है. कुल 272423 मामले दर्ज किए गए. दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र में 249834 मामले दर्ज किए गए. महिलाओं के खिलाफ अपराध में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है. साल 2014 में उत्तर प्रदेश में 38467 मामले दर्ज किए गए. बंगाल में 38299, राजस्थान में 31151 और मध्य प्रदेश में 22061 मामले दर्ज किए गए. बलात्कार के सबसे अधिक मामले साल 2014 में मध्य प्रदश में दर्ज किए गए. हिरासत में बलात्कार के सबसे अधिक मामले यूपी में दर्ज किए गए.

इसकी संख्या 189 थी. इसी तरह सबसे ज्यादा गैंगरेप भी उत्तर प्रदेश में ही हुए, जिसकी संख्या 573 थी. ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि साल 2014 में महिलाओं व लड़कियों के अपहरण के 58592 मामले दर्ज किए गए, जिसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 10628 मामले दर्ज किए गए. अब अगर इन मामलों की तुलना बिहार में हुए अपराधों से की जाए तो यह जरूर दिखता है कि बिहार में दूसरे राज्योेें से अपराध कम है, पर हालिया दिनों में जिस तरह से अपराधिक घटनाओं में इजाफा हुआ है, वह कहीं न कहीं सुशासन के हनक पर ग्रहण लगाता हुआ दिख रहा है.

नीतीश कुमार को अपने पुराने फॉर्मूले को एक बार फिर जरूर अपनाना चाहिए, लेकिन जानकार बताते हैं कि तब के हालात और आज के हालात में काफी फर्क आ चुका है. उस समय भाजपा का हर कदम पर समर्थन नीतीश कुमार को था. भाजपा के विधायक कम थे और नीतीश के ज्यादा, लेकिन नई सरकार में ज्यादा विधायक राजद के हैं और हाल की कुछ घटनाएं और बयानों से ऐसा लगता है कि सरकार के अंदर सही तालमेल का अभाव है. यही वजह है कि अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई में दिक्कत आ रही है. नीतीश कुमार को जल्द ही इससे उबरना होगा, ताकि उनकी सुशासन बाबू की छवि बरकरार रह सके.

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