आज रवींद्रनाथ टैगोर की ईक्यासवी वी पुण्यतिथि है ! इन ईक्यासवे सालो में रवींद्रनाथ टैगोर ने विश्वभारती की कल्पना नई आर्थिक नीतियों के परिप्रेक्ष्य और तथाकथित डिजिटल क्रांति के हिसाब से दुनिया का बाजारीकरण जरूर हुआ है ! लेकिन आत्मा हीन, मनुष्यताका अभाव में, और बेतहाशा स्पर्धा में, लगभग संपूर्ण विश्व शामिल होने के कारण ! विश्व भारतीकी कल्पना एक कवि कल्पना बन कर रह गई है ! और सबसे बड़ी विडम्बना जिस भावी भारत की परिकल्पना इन तीनों महानुभावों ने की थी ! बिल्कुल उनके विपरीत विचारों के लोगों ने गत कुछ समय से संपूर्ण भारत में उग्र हिंदुराष्ट्रवादीय लोगों का भारत में राजनीतिक और सामाजिक माहौल बढ़ाने में जो कामयाबी हासिल की है ! यह सभी मानवतावादी लोगों के लिए चिंता और चिंतन का विषय है ! क्योंकि रविंद्रनाथ टागौर तो भारत के पहले आंतरराष्ट्रीय स्तर के चिंतक थे ! जिन्होंने अपने नोबेल पुरस्कार के बाद संपूर्ण विश्व की यात्रा के दौरान दिए गए भाषणों में संकुचित राष्ट्रवाद की आलोचना की है ! जिसे आज उग्रहिंदुराष्ट्रवाद की शक्ल देकर, वर्तमान समय का सत्ताधारी दल अपनी राजनीतिका केंद्र बिंदू बनाकर जिस तरह की राजनीति कर रहा है ! वह रविंद्रनाथ टागौर की जयंती के दिन याद करते हुए बहुत ही हैरानी हो रही है ! और इस दल के मातृसंस्था के प्रमुख व्यक्ती रविंद्रनाथ टागौर को भी हिंदुराष्ट्रवादी बताने की हिमाकत कर रहा है ! इससे बडा अपमान रविंद्रनाथ टागौर का और क्या हो सकता है ? और टागौर के उपर अकादमिक महारथी चुप्पी साधे हुए बैठे हैं !


महात्मा गाँधी, (हिंद स्वराज्य) रवींद्रनाथ टैगोर(स्वदेशी समाज) और विनोबा भावे के( स्वराज्य शास्त्र) मे लिखे भावी भारत की, और समस्त विश्व की भी जयजगत की कल्पना, वर्तमान हिंदूउग्र राष्ट्रवादी विचारधारा के कारण, इतिहास के क्रम में कभी नहीं उतने संकट के दौर से गुजर रही है ! और उसी कडी में वह स्वामी विवेकानंद, डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी, सरदार वल्लभभाई पटेल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी जैसे नेताओं को भी घसीटने के पीछे लगे हुए हैं ! और उस तुलना में हिंदुत्ववादीयो के तरफसे चलाए जा रहे द्वेषपूर्ण प्रचार के खिलाफ जितना जवाबी कार्रवाई होनी चाहिए उतनी नहीं हो रही है !


तो आने वाले नई पीढ़ी के लिए इस तरह का प्रचार गलत, और विकृत विभाजनकारी मानसिकता बनाने के लिए काम कर रहा है ! जो आज से सौ साल पहले हिटलर – मुसोलीनी ने किया है ! संघ शतप्रतिशत फासीस्ट विचारधारा की बुनियाद के उपर खडा किया गया संघटन है ! यह बात मै भागलपुर दंगे के बाद बत्तीस साल पहले से लगातार लिख – बोल रहा हूँ ! लेकिन मुझे बहुत पीडा के साथ आज रविंद्रनाथ टागौर की इक्यासवी जयंतीपर लिखना पड रहा है ! कि विश्व भारती के प्रमुख पद पर रहे, बुद्धिजीवी और रविंद्रनाथ – गांधी, जयप्रकाश नारायण के जीवन के भाष्यकार मित्र को भी मेरी बात समझने के लिए तेरह साल का समय लग गया ! (गुजरात के दंगों को देखनेके बाद ! ) और यही गलती काफी सेक्युलर और वामपंथी लोगों से भी हुई है ! अगर समय रहते ही इन फासिस्टोका संघटीत होकर मुकाबला किया गया होता तो ! वर्तमान कुछ और होता ! इसलिये सिर्फ इन महापुरुषों की जन्मतिथि और पुण्यस्मरण दिवस मनाने के कर्मकांड करने के अलावा, इन्होंने जीस भारत की परिकल्पना की थी ! उसे अमल में लाने के लिए कोई विशेष प्रयास न करने के कारण ही, यह मानवता विरोधी विध्वंसक विचारों के लोगों की ! नही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी थी और न ही इस देश के सर्वहारा वर्ग के लिए कोई विशेष योगदान न करते हुए ! केंवल उग्रहिंदुराष्ट्रवाद की लफ्फाजी कर – कर के भारत जैसे बहुलतावादी संस्कृति के देश के शासक बनना, यही रविंद्रनाथ टागौर, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद, आचार्य विनोबा भावे, डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी तथा जयप्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया जैसे वैश्विक सोच वाले लोगों का सबसे बड़ा अपमान है !


इसलिए आज रवींद्रनाथ टैगोर की इक्यासवी वी पुण्यतिथि पर सही स्मरण उन्होंने अपने साहित्य के द्वारा विश्व मानवता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है ! और उसे ही खत्म करने की कोशिश की जा रही है ! उन्होंने अपने जीवन में भावी दुनिया के लिए जो कल्पना की थी, और उसी लिए विश्वभारती की स्थापना आजसे 121साल पहले की थी, सिर्फ कर्मकांड के तौर पर उनके जन्मदिन या पुण्यतिथि को मनाने की जगह उनके मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने के लिए हम सभी गाँधी, विनोबा, तथा रवींद्रनाथ टैगोर को मानने वाले लोगो ने कोशिश करने के लिए कटिबद्ध होना ही सही श्रद्धांजलि होगी !
रवींद्रनाथ का जन्म 1861 कलकत्ता में सात मई को हुआ था ! और सात अगस्त 1941 के दिन कलकत्ता में अस्सी साल की आयु में निधन हुआ ! साहित्य, संगीत, नाट्य, नृत्य, चित्रकारी, शिक्षाविद, समाजसुधारक, ग्रामसुधार, और आधुनिक खेती, मानवाधिकार ! लगभग जीवन के हर क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के प्रयोग करने वाले बीसवीं शताब्दी के एक मात्र व्यक्तित्व थे !
उन्होंने उम्र के दस साल के थे तबसे साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया ! और सोलवे साल के थे तबसे अभिनय के क्षेत्र में ! और उम्र के चौतिसवे साल मे शिक्षा के क्षेत्र में ! और उम्र के साठ वर्ष पूरे करने के बाद चित्रकारी ! अपने कुल अस्सी साल के जीवन में सत्तर साल वह विभिन्न प्रकार के कामों मे व्यस्त रहे !
वैसे उनका जन्म जिस घरमें हुआ वह बंगाल की संस्कृति और रैनेसां (पुनर्जागरण) का केंद्र बिंदु वाले घर मे जन्म होने के कारण, विरासत में ही उन्हें कई तरह के कला और विभिन्न प्रकार की विधाओं से अनायास ही परिचित होने का मौका मिला है और सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक स्तर पर सोच विचार करने के लिए ! और उन्होंने उस परिस्थिति का संपूर्ण लाभ अपने हर तरह के अभिव्यक्तियों के लिए किया है !
उनके दादाजी द्वारकानाथ ठाकुर राजा राम मोहन राय के सामाजिक प्रबोधन के कामों में शामिल थे ! और उनके पिता महर्षि देवेद्रनाथ ने बंगाल मे ब्रह्मो समाज की स्थापना करने वाले लोगों मे से एक है ! इसलिए उन्हें महर्षि की उपाधि से सम्मानित किया गया है !
रवींद्रनाथ के भाई भी विभिन्न प्रकार की कलाओं में माहिर थे ! जतिंद्रनाथ संगीत मे, सत्येंद्रनाथ भारत के पहले भारतीय आय सी एस अफसर थे ! रवींद्रनाथ का क्रम अपने भाई-बहनों में चौदहवाँ नंबर था !
रवींद्रनाथ की पहचान संपूर्ण विश्व में साहित्यिक के रूप मे ज्यादा है ! उनके साहित्य के क्षेत्र के चार चरण माने जाते हैं ! उसमें 1878 से 1890 यह पहला चरण जोकि अपरिपक्वता का था ! इस चरण के दौरान उन्होंने कविता, नाटक, पंत्रसंग्रह मिला कर पच्चीस किताबें प्रकाशित की है !


रवींद्रनाथने मैथिली, बंगाली, संस्कृत, और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया था ! मैथिली में विद्यापति कवि के प्रभाव के कारण वैष्णव कवि की शैली में मैथिली मे भानुसिंह ठाकुरेर पदावली यह गीत संग्रह भानुसिंह छद्म नाम लेकर लिखा है ! शेक्सपीयर के मॅक्बेथ नाम के नाटक का बंगला अनुवाद किया है ! इन सभी विधाओं में साहित्यिक परिपूर्णता का अभाव था ! लेकिन भविष्य के प्रगति की झलक मिलती है ! वह उस समय के प्रतिष्ठित कवि और साहित्यिक मायकेल मधुसूदन दत्त और बंकिमचन्द्र के प्रभाव से मुक्त होने की कोशिश कर रहे थे !
1890 से 1913 यह रवींद्रनाथ के साहित्य का दुसरा चरण जिसमें वह साहित्य के क्षेत्र के शिखर पर पहुँच गए थे ! और इसी कालखंड को रवींद्र युग के रूप में जाना जाता है ! इन चौबीस सालो में उनअस्सी किताबें प्रकाशित की है ! जिसमे गीतांजलि यह कविता संग्रह, चोखेर बाली, नौकाडुबी, गोरा जैसे उपन्यास और प्राचीन साहित्य, आधुनिक साहित्य, लोक साहित्य यह समीक्षा ग्रंथ, शारदोत्सव, प्रायश्चित, राजा, अचलायतन इन नाटकों के अलावा जीवनस्मृती यह संस्मरणग्रंथ के अलावा इसी चरण में उन्होंने कथा लेखन की शुरुआत की है ! इन कथाओं में अपने जमिनदारीके काम के अनुभवों के आधार पर कथा लेखन किया है !
इसी काल में लिखी हुई कविताओ और गीतों में अध्यात्मिक भावो का दर्शन मिलता है ! और इस भाव में लिखी हुई कविताओं ने यूरोप के रसिकोंको मंत्रमुग्ध कर दिया था ! और रवींद्रनाथ को 1912 का साहित्य के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार गीतांजलि काव्य संग्रह को मिला ! और उसके बाद विश्व की विभिन्न भाषाओं में उनके साहित्य का अनुवाद होने की शुरुआत हुई है !
रवींद्रनाथ के साहित्य का तीसरा चरण 1914 से 1931 माना जाता है ! इस चरण के दौरान उन्होंने अड़तालीस किताबों का प्रकाशन किया जिसमें सर्वोत्तम काव्य संग्रह बलाका, 1932 में पुनश्च काव्य संग्रह से उनके साहित्य का आखिरी और चौथे चरण की शुरूआत हुई है परिशेष और पुनश्च यह उनकी आखिरी रचनाओं मे आते हैं !
रवींद्रनाथ ने फिलासफी, भाषाशास्त्र, साहित्य विचार, भौतिक शास्त्र जैसे विषयों पर भी लेखन किया है ! और दो हजार से भी ज्यादा गीत और तीन हजार से भी ज्यादा चित्रों को बनाने का काम किया है !
प्रथम वर्ग से चौथी तक के बच्चों के लिए पाठ्यक्रम की किताबें भी लिखी है! अत्यंत आसान भाषा में और सरल शब्दों का विनोदी शैली यह उनकी गद्द लेखन की खासियत रही है !
और सबसे बड़ी बात लोगों के रोजमर्रा के जीवन की भाषा का, साहित्य में इस्तेमाल करने की शुरुआत रवींद्रनाथ ने ही की है ! और इस लिए उन्हें काफी आलोचना का सामना भी करना पड़ा !
उनके शांतिनिकेतन के प्रयोग की भी खुब आलोचना हुई है ! और इस कारण पालक अपने बच्चों को वहां भेजनेके लिए तैयार नहीं थे ! और अन्य लोगों को भी अपने बच्चों को वहां भेजनेके लिए मना करते थे !
रवींद्रनाथ ने उस समय शांतिनिकेतन में बच्चियों को आत्मरक्षा के लिए जुडो-कराटे सिखाने के लिए जापान से प्रशिक्षक को बुलाया था ! लेकिन इस तरह के प्रयोग करने के बावजूद लोग अपने बच्चों को वहां भेजनेके लिए तैयार नहीं थे !
इस कारण नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद कलकत्ता में उनके सत्कार समारोह मे उन्होने अपने मन का दर्द साफ-साफ शब्दों में कहा था ! कि यह सम्मान मेरा नहीं है ! मुझे मिला नोबेल पुरस्कार का सम्मान है !
रवींद्रनाथ ने बचपन में ही स्कूल छोड़ दिया था ! उन्हें शिक्षित करने के लिए उनके परिजनों ने उन्हें और भी स्कूल के लिए भेजा लेकिन उन्हें उनमेसे एक भी स्कूल रास नहीं आया ! और इसी कारण कैसे स्कूल होने चाहिए ! यह प्रयास करने हेतु शांतिनिकेतनके स्कूल की स्थापना की है ! और आज वह विश्वविद्यालयके स्तर पर आया है ! लेकिन रवींद्रनाथ टैगोर ने शुरू किया हुआ शांतिनिकेतन और वर्तमान शांतिनिकेतन में कोई मेल नहीं है ! वह सिर्फ अन्य मुझियम पिस के जैसा एक दिखावा है ! उसमें रवींद्रनाथ टैगोर की आत्मा कही नहीं है ! रवींद्रनाथ टैगोर की बगैर आत्मा की समाधिस्थल बनकर रह गया है !
और अन्य विश्वविद्यालयों के जैसे ही डीग्री देने के कारखाने जैसी स्थिति वर्तमान शांति निकेतन की भी है !
और गत आठ साल से बीजेपी सत्ता में आने के बाद भारत की अन्य संस्थाओं तरह ही विश्वविद्यालयों में जैसा संघ के अजेंडा के तहत संपूर्ण कारोबार जारी है ! जिसके खिलाफ विद्दार्थी और रवींद्रनाथ टैगोर की फिलासफी को मानने वाले लोगोमे वर्तमान प्रशासन के खिलाफ काफी आक्रोश है ! और समय-समयपर विश्वभारती मे आंदोलन जारी है !
रवींद्रनाथ ने अपने बेटे और दामाद को अमेरिका के इलिनाॅय विश्वविद्यालयमें आधुनिक कृषि क्षेत्र में की शिक्षा के लिए भेजा था ! और वह दोनों वहिसे प्रशिक्षण लेकर आने के बाद श्रीनिकेतन नाम से कृषि, पशुसंवर्धन, और हस्तकला के लिए और मुख्य रूप से अगलबगल के गाँवो के विकास के लिए यह शुरुआत की है !
लेकिन वह भी आज अन्य विश्वविद्यालयों के जैसे ही डीग्री देने के कारखाने जैसी स्थिति वर्तमान शांति निकेतन की है ! उसमें निर्माण होने वाले सामान को बेचने के लिए पौष मेला शुरू किया था ! वह भी वर्तमान प्रशासन ने बंद कर दिया है ! तो लोगों ने अपने पहल से इस साल पर्यायवाची मेले का आयोजन अपने अगुवाई में आयोजित किया था ! और उसे बहुत ही अच्छा प्रतीसाद मिला है और लाखों रुपये की बिक्री हुई है !
आज की तारीख में उनके इक्यासी साल की पुण्यतिथि पर सही श्रद्धांजलि, अगर कोई हो सकती तो रवींद्रनाथ टैगोर की फिलासफी और कल्पना के अनुसार उन्होंने शुरू किए हुए दोनों संस्थाओं को सुरक्षित रखने के लिए, यह शुरुआत करना ही सही श्रद्धांजलि होगी ! जो हमारे अपने ही कुछ मित्रों ने बंगला सांस्कृतिक मंच नामसे एक मंच बनाकर, पर्यायी मेला, पर्यायी पौष उत्सव जैसे महर्षी देवेन्द्रनाथ ठाकुर के समय से शुरू किए गए कार्यक्रमों को जनसहयोग से करने की कोशिश कर रहे हैं !
क्योंकि रवींद्रनाथ टैगोर सिर्फ साहित्यकार नहीं थे ! 1905 में बंगाल के विभाजन को लेकर लार्ड कर्ज़न के खिलाफ खड़े हुए थे ! और जालियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ अपनी सर उपाधि अंग्रेजी सरकार को वापस की है ! और महात्मा गाँधी के विभक्त मतदाता संघ के खिलाफ हुए एरवडा जेल पुणे के अनशन का समर्थन करने के लिए खुद पुणे जाकर गाँधी के अनशन को अपना समर्थन दिया है !


गाँधीजी 1915 मे हमेशा के लिए दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद, उन्हें और उनके साथियों के रहने के लिए भारत मे कोई जगह नहीं मिल रही थी ! तो रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में बुलाया था !
और गांधी जी को महात्मा गाँधी के रोजमर्रा की जीवन शैली को देखकर उनके मुंह से अनायास महात्मा शब्द निकल गया था ! और गांधी जी के नामके आगे महात्मा गाँधी नाम से, पुकारने की शुरुआत की है ! और उनकी और गांधी जी की एतिहासिक चर्चा असहकार, और हस्तकला से लेकर ग्रामीण विकास की चर्चा स्वदेशी समाज नाम का निबंध लिखने के लिए वही निमित्त मात्र है !
महात्मा गाँधी की और रवींद्रनाथ टैगोर की भारत और दुनिया को बेहतर बनाने की कल्पना , काफी मिलती जुलती है ! लेकिन आज भारत तो दूर की बात है ! बंगाल में भी रवींद्रनाथ टैगोर की कल्पना ,सिर्फ कवि कल्पना बन कर रह गई है ! अगर उन्हें सचमुच ही श्रद्धांजलि देना है तो उन्होंने जो स्वदेशीसमाज की कल्पना की है,उस कल्पना को अमल में लाने के लिए कोशिश करना यही सही श्रद्धांजलि होगी !
डॉ सुरेश खैरनार 7 अगस्त, 2022 ,नागपुर

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