अज़ीम तुमान श्रीनगर के पर्यटन उद्योग से जुड़ा एक जाना पहचाना नाम है. एक शानदार जीवन व्यतीत कर चुके ये अधेड़ उम्र के व्यक्ति इन दिनों बीमार हैं. लेकिन अपने स्वास्थ्य से ज्यादा चिंतित वो इस बात से हैं कि कश्मीर का पर्यटन उद्योग अपना वो नाम और स्थान खो रहा है, जो उसे कभी प्राप्त था. श्रीनगर की प्रसिद्ध निगीन झील में अज़ीम तुमान के तीन हाऊस बोट हैं, लेकिन ये तीनों हाऊस बोट पिछले एक साल से खाली पड़े हैं और पर्यटकों के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. हाऊस बोटों के खाली रहने का मतलब उनके मालिकों का लगातार घाटा है, क्योंकि ये होटलों की तरह नहीं होते, जिन्हें ताला बंद करके रखा जा सकता है. एक हाऊस बोट को उसकी शान व शौकत के साथ बहाल रखने के लिए लगातार खर्च करना पड़ता है. अज़ीम तुमान के तीन हाऊस बोटों के उदाहरण से इसका बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है. हाऊस बोटों की देखरेख और पर्यटकों की खिदमत  के लिए कम से कम चार कर्मचारी चौबीस घंटे तैनात रखने पड़ते हैं. ये शख्स केवल अपने घाटे के लिए परेशान नहीं हैं, बल्कि अपने कबीले के लोगों के लिए भी चिंतित हैं. उनका कहना है कि मैं तो जैसे-तैसे ये घाटा लगातार बर्दाश्त कर रहा हूं, लेकिन आप उस शिकारा वाले की कल्पना करें जिसने बैंक से कर्जा लेकर इस उम्मीद पर एक शिकारा बनवाया कि वो उसमें पर्यटकों को डल झील की सैर करवाएगा और अपने कुनबे के लिए पैसा कमाएगा. यहां लगातार एक साल से कोई पर्यटक नहीं आ रहा है. कश्मीर की टूरिज्म इंडस्ट्री से जुड़े हर शख्स के लिए तुमान के चिंता की एक वजह शायद यह भी है कि वो कई वर्षों तक ईश्‍वर का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. अज़ीम तुमान वर्षों तक कश्मीर हाऊस बोट ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं. चौथी दुनिया के साथ एक बातचीत में उन्होंने भले दिनों की इन शब्दों में चर्चा की. ‘मेरे बचपन में भारत, अंग्रेजों के वर्चस्व से अभी-अभी आजाद हुआ था. कश्मीर विश्‍व के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में गिना जाता था. विश्‍व भर से पर्यटक आकर यहां हफ्तों रहते थे. कश्मीर की समृद्धि का ये सिलसिला 1990 की शुरुआत में ही खत्म होने लगा. जब यहां सशस्त्र आंदोलन हुआ, इसके पश्‍चात ही पर्यटकों ने कश्मीर से रुख मोड़ना शुरू कर दिया. यहां की हिंसक स्थिति को देखकर अमरीका और यूरोपियन मुल्कों समेत कई देशों ने अपने नागरिकों के नाम एडवाइजरी जारी करते हुए उन्हें कश्मीर के पर्यटन पर न जाने का सुझाव दिया. ये एडवाइजरी यानी कश्मीर की टूरिज्म इंडस्ट्री के लिए मौत का संदेश थीं. हिंसक स्थिति के कारण 1990 से लेकर 2004 तक घाटी की टूरिज्म इंडस्ट्री पूरी तरह प्रभावित रही है. इसके बाद हालात में सुधार आने शुरू हुए, लेकिन पिछली दशक के दौरान कई घटनाएं घटीं, जिनके कारण टूरिज्म इंडस्ट्री नए सिरे से बहाल होना संभव न हो सका.

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