santosh bhartiyaफेसबुक ज्ञान के आदान-प्रदान का एक बड़ा माध्यम है, लेकिन यह माध्यम उनके लिए है, जो ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं. पर, इन दिनों फेसबुक भारत में घृणा फैलाने और लोगों को एक-दूसरे के प्रति अविश्वास के माहौल में ले जाने का सबसे बड़ा माध्यम बन गया है. फेसबुक के ऊपर चालाकियां तो होती थीं, झूठ का प्रचार तो होता था, लेकिन फेसबुक देश के संवैधानिक ताने-बाने को तोड़ने का माध्यम बनेगा, यह बात कल्पना में कभी नहीं आई.

इन दिनों फेसबुक के ऊपर स्वयं को हिंदु ग्रुप कहलाने वाले लोगों की तऱफ से और मुस्लिम ग्रुप कहलाने वाले लोगों की तऱफ से घृणास्पद सूचनाओं की बाढ़ आई हुई है. हमारे देश में कोई यह कष्ट नहीं उठाता कि अगर कोई सूचना है, तो उसका सत्यापन कर लिया जाए. हम सूचना पढ़ते हैं और फौरन उसे शेयर कर देते हैं. शेयर करते ही वह सूचना कम से कम दो हज़ार से लेकर पांच हज़ार लोगों के बीच पहुंच जाती है.

और वे लोग जब सूचना पढ़ते हैं, तो उन्हें लगता है कि इसे हमारे मित्र ने भेजा है, तो यह सही होगी. इस तरह से सारे देश में कम से कम दो समुदायों के बीच घृणा का वातावरण तेजी के साथ पनप रहा है. यह घृणा का वातावरण कब बारूद के रूप में सुलग जाएगा, कोई नहीं कह सकता. देश में कुछ ऐसे तत्व मौजूद हैं, जो उन विदेशी ताकतों के उद्देश्य पूरे कर रहे हैं, जो हमारे देश को टूटते हुए देखना चाहते हैं.

हमारे देश में सुख रहे, शांति रहे, हम विकास करें और आपस में प्रेम से रहें, यह दुनिया के बहुत सारे देशों में बैठे हुए कुछ लोग नहीं चाहते. और, उनके हाथों का खिलौना कुछ तत्व जानबूझ कर और कुछ तत्व अनजाने में बन रहे हैं. आवश्यकता इस बात की है कि हम भारत में रहने वाले लोग इस तथ्य को समझें कि जब आग लगेगी, तो स़िर्फ पड़ोसी का घर नहीं जलेगा, हमारा खुद का भी घर जलेगा. स़िर्फ वही लहूलुहान नहीं होगा, हम भी लहूलुहान होंगे.

यह तथ्य इतना सत्य है कि इस पर तभी विश्वास होता है, जब खुद के भी हाथ दूसरों के घर जलाते-जलाते झुलस जाते हैं. लेकिन, उस समय सुधार की कोई गुंजाइश नहीं रहती और जन-धन की हानि उतनी ही खुद की भी होती है, जितनी पड़ोसी की होती है. यह तथ्य आज गले के नीचे नहीं उतरता, लेकिन जब यह गले के नीचे उतरेगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. भारत सरकार सोई हुई है. इस सरकार को देखकर थोड़ा डर लगता है.

अपने द्वारा प्रचारित, अपने द्वारा तय किए हुए निश्चित कार्य करने की जगह यह वे सारे कार्य करने की कोशिश कर रही है, जिनका लोगों के जीवन से सीधा रिश्ता नहीं है. और, जो कार्य यह नहीं कर पा रही है, उसे जबरदस्ती प्रचार के ज़रिये लोगों के बीच ले जाना चाहती है कि ये काम हो रहे हैं. लेकिन, यह सरकार इस चीज पर ध्यान नहीं दे रही है कि फेसबुक जैसे माध्यम का इस्तेमाल करके कैसे इस देश में दो समुदायों के बीच द्वेष बढ़ाने या सक्रिय रूप से घृणा पैदा करने का कार्य कुछ लोग कर रहे हैं. फेसबुक हमारे कुछ पड़ोसी देशों में प्रतिबंधित है.

शायद उन्होंने फेसबुक का यह महत्वपूर्ण खतरनाक पहलू देख लिया था और हमारी सरकार इसे नहीं देख पा रही है. सरकार अगर देखे भी, तो हमारी अदालतें इसे नहीं देख पा रही हैं. एक बार फेसबुक के ऊपर प्रतिबंध लगाने की बात कुछ अर्थों में हुई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इससे सहमत नहीं हुआ.

और, इन दिनों फेसबुक घृणा, गाली-गलौज, अपशब्दों के आदान-प्रदान का माध्यम बन रहा है. मैं अश्लील फिल्मों के प्रचार की तो बात नहीं कहता. मैं बात कर रहा हूं, इंसान से इंसान के बीच घृणा फैलाने के कार्यक्रम की, जो तेजी के साथ देश में फैल रहा है और यहीं पर टेक्नोलॉजी के हानिकारक पहलू का सवाल खड़ा होता है.

ज़रूरी है कि सरकार और अदालत फेसबुक के इस इस्तेमाल को रोकें. देश में शांति एवं प्यार-मोहब्बत बनाए रखने का पहला दायित्व सरकार का है और दूसरा दायित्व अदालत का. मैंने फेसबुक पर देखा कि जामा मस्जिद के इमाम सैय्यद अहमद बुखारी साहब के नाम से एक पोस्ट चारों तऱफ फैलाई जा रही है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उन मोहल्लों-बस्तियों से, उस आबादी से, जहां मुसलमान ज़्यादा हैं, ग़ैर मुस्लिम या हिंदू बाहर चले जाएं. अन्यथा उनका वही हाल होगा, जो कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का हुआ.

मुझे लगा कि यह शैतानी साजिश है. हिंदु ग्रुप नामक एक संगठन इस पोस्ट को फैला रहा है. मैंने फौरन सैय्यद अहमद बुखारी साहब को फोन किया और उनसे पूछा कि क्या आपने यह बयान दिया है? उन्होंने कहा, नहीं दिया है. मैंने कहा कि फेसबुक पर इन्वर्टेड कॉमा के बीच आपका नाम चल रहा है. उन्होंने कहा, कृपया मुझे भेज दीजिए और मैंने उन्हें भेज दिया.

मेरे अपने नाम से, मेरे दफ्तर में काम करने वाले लोगों के नाम से, ग़लत-ग़लत पोस्ट, जिनका रिश्ता हमसे रंचमात्र भी नहीं है, फैलाई जा रही हैं. और जब यह हमारे नाम से हो सकता है, हमारे साथियों के नाम से हो सकता है, तो मैं पूर्णतय: आश्वस्त हूं कि देश में बहुत सारे लोगों के नाम से झूठे बयान चल रहे हैं. सच्चाई का सत्यापन किए बिना ऐसे बयान फैलाए भी जा रहे हैं और हमारा देश एक नए तरह के अविश्वास की अंधी गली में घुसता चला जा रहा है.

मेरा अपना यह मानना है कि अगर सरकार इसके ऊपर तत्काल प्रतिबंध नहीं लगाती, तो हम व्यर्थ के अविश्वास से भरे माहौल के नतीजे के रूप में एक बड़ा दंगा देख सकते हैं और वह स्थिति उनके लिए बहुत सुखद होगी, जो हमारे देश में शांति नहीं चाहते, विकास नहीं चाहते. वह स्थिति उनके लिए भी बहुत सुखद होगी, जो इस देश में आतंकी कार्रवाइयां चाहते हैं. पाकिस्तान के पेशावर में बाचा खान विश्वविद्यालय के अंदर घुसकर बच्चों के सिर में गोलियां मारी गईं.

पाकिस्तान के लोगों में गुस्सा है, हिंदुस्तान के लोगों में भी उससे ज़्यादा गुस्सा होना चाहिए. हम दोनों ही देश आतंकवाद के शिकार हैं, पाकिस्तान ज़्यादा और हम उससे थोड़े-से कम. इसलिए सरकार का दायित्व है कि वह सूचना के उन साधनों पर नज़र रखे और खासकर उन लोगों पर नज़र रखे, जो इस तरह के ऩफरत भरे संदेश चारों तऱफ फैला रहे हैं. हम रोक नहीं सकते, लेकिन उन तत्वों को पकड़ तो सकते हैं, जो ऐसे संदेश फैला रहे हैं. आशा करनी चाहिए कि सरकार अपने कर्तव्य का पालन करेगी. 

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