दीनबंधु कबीर : चुनाव के पहले किसी पार्टी में भगदड़ मचे तो उसके अवसरवादी मायने निकाले जाते हैं, लेकिन चुनाव बाद की भगदड़ के खास राजनीतिक निहितार्थ हैं. चुनाव में समाजवादी पार्टी के हाथ जैसा भी परिणाम आया, परिणाम आने के चार महीने बाद वरिष्ठ नेताओं में जो भगदड़ मची उसने सपा के हाथ से तोते उड़ा दिए हैं. जिस तरह डॉ. अशोक वाजपेयी और सरोजिनी अग्रवाल जैसे वरिष्ठ सपा नेताओं ने विधान परिषद की सदस्यता से त्यागपत्र देकर खुद को पार्टी से अलग कर लिया, उसने यह बताया कि समाजवादी पार्टी का बुरा हाल है. सपा के विधान परिषद सदस्य यशवंत सिंह का भी एमएलसी पद को ठोकर मार कर सपा छोड़ जाना यह संकेत दे रहा है कि कुछ खास होने वाला है.

यशवंत सिंह का विधान परिषद का कार्यकाल 6 जुलाई 2022 तक था. चर्चा यह भी रही कि मधुकर जेटली ने भी इस्तीफा दिया, लेकिन शिवपाल ने आखिरी समय में इसे संभाल लिया. शिवपाल ने कहा, ‘मैंने ही मधुकर जेटली को इस्तीफा देने से रोका हुआ है.’ जेटली का जाना तय ही माना जा रहा है. सपा के एमएलसी मजहर हुसैन उर्फ बुक्कल नवाब के इस्तीफे पर यह कहा जा सकता है कि कई मुकदमों में फंसे होने के कारण बुक्कल भाजपा की शरण में आ गए, लेकिन सपा के अन्य नेताओं के इस्तीफे समाजवादी पार्टी के बुरे दिन की सनद हैं. सपाई कहते हैं कि यह सिलसिला तो अभी शुरू हुआ है.

अंबिका चौधरी ने भी विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. अखिलेश द्वारा बेजार होने के बाद अंबिका बसपा में चले गए थे. अंबिका ने कहा कि उन्हें एमएलसी की सीट सपा में रहते हुए मिली थी इसीलिए वे इसे त्याग रहे हैं. इन सबके पीछे कोई खास वजह है. इस तरह की बिसात बिछने के पीछे कोई खास राजनीतिक मकसद और योजना तो है ही. तभी तो हताश अखिलेश यादव ने यह कहना शुरू कर दिया है, ‘हमारे एमएलसी भाग रहे हैं. पता नहीं, भाजपा उन्हें कौन सा प्रसाद दे रही है. वे हमें भी बताएं, आगे हमें भी इस प्रसाद की जरूरत पड़ेगी.’

सपा के डॉ. अशोक वाजपेयी का इस्तीफा बड़ा झटका था. इसके पहले विधान परिषद सदस्य यशवंत सिंह, बुक्कल नवाब और सरोजिनी अग्रवाल इस्तीफा दे चुके थे और मधुकर जेटली इस्तीफा देते-देते रह गए थे. सपा कोटे से एमएलसी बने बसपा नेता अंबिका चौधरी ने भी विधान परिषद सदस्य से अपना इस्तीफा दे दिया. बसपा के एमएलसी जयवीर सिंह पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं. सपा के स्वयंभू अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलायम और शिवपाल के प्रति वफादार होने के कारण डॉ. अशोक वाजेयी और अंबिका चौधरी जैसे नेताओं के प्रति हिकारत और उपेक्षा का भाव रखा.

अंबिका चौधरी को मुलायम ने ही अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनवाया था. अखिलेश यादव ने पहले तो उनका राजस्व विभाग बदला फिर मंत्री पद से ही बर्खास्त कर दिया. पिता-चाचा-भतीजा क्लैश में अंबिका चौधरी पिता मुलायम और चाचा शिवपाल के साथ खड़े रहे. इससे नाराज अखिलेश ने अंबिका को सपा का टिकट नहीं दिया. इससे आजिज चौधरी ने फिस बसपा के टिकट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. अंबिका के बारे में भी कहा जा रहा है कि वे भी जल्दी ही भाजपा में शामिल होंगे. हालांकि इस्तीफे के बाद अंबिका ने कहा, ‘मैं बसपा में खुश हूं. मुझे सपा ने एमएलसी बनाया था, इसलिए इस्तीफा दिया है. मैं बहनजी के साथ हूं.’

जानकार कहते हैं कि इस्तीफों का सिलसिला अभी जारी रहेगा. सपा और बसपा के कुछ और एमएलसी टूटने वाले हैं. इनमें आगरा के एक एमएलसी, एक पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री और एक अन्य एमएलसी का जाना तो तय ही बताया जा रहा है. जानकार कहते हैं कि मुलायम के कहने पर एमएलसी बनाए गए एक अल्पसंख्यक नेता की भी बातचीत हो रही है. ताबड़तोड़ इस्तीफों से बौखलाए अखिलेश यादव ने भाजपा पर सपा के एमएलसी तोड़ने का आरोप लगाया है.

अखिलेश ने गुजरात में राहुल की कार पर हुए पथराव को इससे जोड़ते हुए कहा, ‘भाजपा पत्थर फेंक रही है और एमएलसी तोड़ रही है.’ इसी आशय का उन्होंने ट्वीट भी किया था और कहा था कि जिसे जाना है जाए, बहाने न बनाए. अखिलेश ने कहा, ‘मुझे भी तो पता लगे कि बुरे दिनों में कौन मेरे साथ है!’ अखिलेश के इस वक्तव्य पर सपा के लोग ही चुटकी लेते हैं और कहते हैं कि उन्होंने तो पार्टी और परिवार दोनों के लिए बुरे दिन ला दिए, अखिलेश अब उनका साथ क्यों नहीं दे रहे? अखिलेश की प्रतिक्रिया पर भाजपा ने भी पलटवार किया. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शलभमणि त्रिपाठी ने कहा कि सपा के एमएलसी सपा की गलत नीतियों के कारण पार्टी छोड़कर भाग रहे हैं. इस पर अखिलेश को आत्ममंथन करना चाहिए और अपनी भूल सुधारनी चाहिए.

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