बिहार ने 21 जनवरी को इतिहास रच डाला और यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खाते में दर्ज हुआ है. सूबे की तीन करोड़ से अधिक आबादी ने मानव श्रृंखला में एक-दूसरे का हाथ थाम ‘नशा को ना’ कहा, नशा-मुक्त बिहार के आह्वान को सरजमीं पर उतारने का संकल्प लिया. इसमें न उम्र की सीमा रही न धर्म का बंधन. पुरुषों से कहीं कम आधी आबादी रही. सभी रहे, सभी दल और संगठन रहे. सब कुछ नीतीश कुमार की अपेक्षा से अधिक रहा- उन्होंने दो करोड़ लोगों की भागीदारी का अनुमान लगाया था, तीन करोड़ से अधिक लोग शामिल हुए.

सवा ग्यारह हजार किलोमीटर की मानव श्रृंखला तैयार करने का लक्ष्य था, श्रृंखला बनी ग्यारह हजार चार सौ किलोमीटर की. यह शराब सहित सभी तरह के नशे को नकारने का सबसे बड़ा जन अभियान साबित हुआ है. लोग पचास मिनट तक एक-दूसरे का हाथ थामे खड़े रहे. इस ऐतिहासिक मानव श्रृंखला को रिकॉर्ड के तौर पर दर्ज करने के लिए इसरो के पांच उपग्रह तैनात रहे.

हेलीकॉप्टरों के जरिए फोटोग्राफी की गई. सुरक्षा में ड्रोन लगाए गए. मानव श्रृंखला के दौरान कई जिलों और कई इलाकों में जगह छोटी पड़ गई और कहीं-कहीं तो एक ही सड़क पर चार-चार लेन बनाने पड़े. दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा और तिरहुत प्रमंडलों के अनेक मार्गों पर मानव श्रृंखला के दौरान स्थानीय सांस्कृतिक वैशिष्ट्‌य की झलक भी खूब दिखी. महिलाओं और बच्चियों के जोश-जुनून परवान पर थे. इस श्रृंखला में उन हजारों परिवारों के लोग भी थे, जिनके घरों में शराबबंदी के कारण खुशियां लौट आई हैं.

पटना के गांधी मैदान में इस श्रृंखला में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के साथ-साथ बिहार की महागठबंधन सरकार के अनेक मंत्रियों की भागीदारी तो रही ही, बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी और बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह की भागीदारी उल्लेखनीय रही. राज्य सरकार के आला नौकरशाह भी मौजूद थे. भारतीय जनता पार्टी के नेता सुशील कुमार मोदी सहित इसके नेता सीवान में मानव श्रृंखला में शामिल हुए.

जिलों के प्रभारी मंत्रियों, सांसदों, विधायकों को उनके जिलों में ही मानव श्रृंखला में शामिल होने को कहा गया था, वे वहीं थे. वस्तुतः यह मानव श्र्ृंखला समाज परिवर्तन के जज्बे के साथ निष्ठा और प्रतिबद्धता की मुखर अभिव्यक्ति रही. हालांकि यह मानव श्रृंखला सामाजिक बदलाव के अभियान को रेखांकित करने के लिए तैयार की गई थी, पर इसने बिहार की राजनीति में गहरी और लंबी रेखा खींच दी है.

मानव श्र्ृंखला के सफल आयोजन के साथ नीतीश कुमार ने एकबारगी कई पड़ाव तय कर लिए हैं. अनेक कमियों से भरे और सूबे में शराब के अवैध कारोबार पर अंकुश लागने में अब तक की विफलता के बावजूद शराबबंदी का मौजूदा कानून, बिहार मद्यनिषेध अधिनियम, के समर्थन में बिहार की कोई एक चौथाई आबादी को इस अभियान के पक्ष में सड़क पर उतार दिया.

यह मानव श्रृंखला उन लोगों और दलों को नीतीश कुमार का जवाब थी, जो शराबबंदी कानून की कुछ धाराओं को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर करते रहे. मानव श्रृंखला के बाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में परोक्ष तौर पर मुख्यमंत्री ने यह बात कही भी. मानव श्रृंखला का इतिहास रचने के साथ उन्होंने सभी दलों, नेताओं और समाज के विभिन्न तबके के लोगों को जता दिया कि बिहार के शराबबंदी कानून में कुछ भी गलत नहीं है और इसमें किसी तरह के सुधार की कोई गुंजाइश भी नहीं बचती है.

बिहार में शराबबंदी गत एक अप्रैल से लागू हुई और उसके बाद से ही इसमें सुधार की मांग की जा रही है. ऐसी विरोधी दलों के साथ-साथ महागठबंधन में शामिल दलों के अनेक विधायक भी करते रहे हैं. इस मसले पर राजद में भी कई आपत्ति रही. राजद सुप्रीमो भी इस कानून के कई प्रावधानों से सहमत नहीं रहे हैं. नीतीश कुमार को लालू प्रसाद ही नहीं, राजद विधायकों को समझाने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी. सो, विरोधी ही नहीं, उन्हें अपनों को भी जबाव देना था और इसके लिए मानव श्रृंखला से बेहतर क्या हो सकता था- बगैर हल्दी-फिटकरी के रंग चोखा हो गया. इसका एक और दूरगामी राजनीतिक निहितार्थ है. इसके जरिए नीतीश कुमार ने उन लोगों- राजनीतिक दलों,

राजनेताओं, राजनीतिक भाष्यकारों- को भी आईना दिखाने की कोशिश की है, जो विधानसभा चुनावों में महागठबंधन की जीत में उनसे बड़ी राजद सुप्रीमो की भूमिका मानते रहे हैं. उन्होंने यह जताने की कोशिश की है कि बिहार की एक चौथाई आबादी उनकी आवाज पर सड़क पर उतर सकती है. सो आनेवाले महीनों में सूबे की सत्तारूढ़ महागठबंधन की आंतरिक राजनीति में तनाव के लक्षण दिखे तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए. वैसे भी नीतीश कुमार की संपूर्ण राजनीति में छवि बहुत बड़ा प्रेरक तत्व रही है. हालांकि यह बड़ी बात है और किसी राजनेता की प्रतिबद्धता और निष्ठा की अभिव्यक्ति भी है. पर यह अटूट नहीं है तो सवालों का घेरा भी बनाती है. यह समय बताएगा कि मानव श्रृंखला से निर्मित राजनीतिक माहौल कौन सा स्वरूप ग्रहण करता है. इसके लिए राजनीति को चौकस रहना होगा.

मानव श्रृंखला को लेकर नीतीश कुमार की राजनीति की सफलता का एक और आयाम है. उन्होंने शराबबंदी की अपनी लाइन पर समर्थन के लिए विपक्ष को आगे आने को विवश कर दिया. एनडीए की नेता भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी भी मानव श्रृंखला में शामिल हुई. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा इससे अलग रहा. मांझी ने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी ही नहीं, एनडीए का कोई भी दल शराबबंदी का विरोधी नहीं है. पर इस कानून की कई धाराएं और उप धाराएं ‘काले कानून से भी बदतर’ हैं.

अधिनियम की इन धाराओं के विरोध में एनडीए ने अगस्त में विधान मंडल के दोनों सदनों की कार्यवाही का बहिष्कार किया था और इसे नेताओं-विधायकों ने राजभवन मार्च कर इसे मंजूरी न देने की अपील की थी. इन ‘काले कानूनों’ के रहते इसका कैसे समर्थन किया जा सकता है? मानव श्रृंखला का भाकपा (माले) ने भी समर्थन नहीं किया. पर इससे क्या फर्क पड़ता है? अधिनियम के ‘काले कानूनों’ का सबसे अधिक विरोध भाजपा ने किया था, वह राज्यपाल के पास तो गई ही, सड़क पर भी उतरी. और राजनीति की विडंबना देखिए, सबसे पहले भाजपा ने ही मानव श्रृंखला का समर्थन किया, उसमें शामिल होने की

घोषणा की. लोजपा ने ताड़ी के कारोबार को शराबबंदी के इस अधिनियम में शराब के समान पेश करने के विरोध में अभियान चलाया था. ताड़ी को तो कानून में कोई छूट नहीं मिली, पर लोजपा मानव श्रृंखला का अंग बन गई. हालांकि उसकी यह सहमति कई अगर-मगर के साथ थी और भाजपा के एकतरफा फैसले से वह खुश नहीं थी. लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने भाजपा के स्डैंड के बारे में पूछे जाने पर कहा भी था कि कोई भी निर्णय घटक दलों से राय-विचार के बाद ही लेना चाहिए.

पर, भाजपा का संकट दूसरा ही रहा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक मंच से बिहार में शराबबंदी की भूरि-भूरि प्रशंसा की और सामाजिक परिवर्तन के इस अभियान के लिए नीतीश कुमार का अभिनंदन किया. इससे और जो हो, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का नीतीश प्रेम तो जाहिर हो ही गया. इस बरअक्स, प्रादेशिक नेतृत्व इतनी जल्दी कैसे अपना स्टैंड बदल लेगा, जबकि पिछले कई महीनों से नीतीश सरकार के विरोध का उसका बड़ा मुद्दा शराबबंदी अधिनियम के काले कानून ही रहे हैं.

इसीलिए मानव श्रृंखला में शामिल बिहारी भाजपा नेताओं के दो सुर रहे-समर्थन के बावजूद उत्कट नीतीश विरोध और दूसरा निरामिष विरोध के साथ समर्थन. आनेवाले महीनों में भाजपा की राजनीति जिस करवट बैठे, पर नीतीश कुमार ने बिहार की भाजपा को नख-दंत और विषहीन तो साबित कर ही दिया. यह उनकी भावी राजनीति को नई ताकत देगी, दिशा भी दे सकती है. इतना ही नहीं, इससे महागठबंधन के भीतर शक्ति संतुलन भी प्रभावित होगा.

मानव श्रृंखला की ऐतिहासिक सफलता कई अपेक्षाओं को जन्म देती है. कोई साढ़े ग्यारह हजार किलोमीटर लंबी तीन करोड़ से अधिक लोगों की मानव श्रृंखला की प्रस्तुति सहज और सबके बूते की बात नहीं है. नीतीश कुमार को बिहार के आमजन से मिले अकूत स्नेह ने उन्हें इतिहास रचने की ताकत दी है. सूबे की जनता ने नायक तो उन्हें कई बार बनाया है और हर बार लोगों की नई अपेक्षा रही, तो नीतीश कुमार की भी बहुमुखी जिम्मेवारी रही. इस बार एक सूत्री अपेक्षा हैः नशा-मुक्त बिहार. यहां शराबबंदी कानून कोई दस महीने से लागू है, जो है, वह काफी कठोर कानून है.

सूबे में शराबबंदी कानून के उल्लंंघन पर मृत्युदंड तक की सजा का प्रावधान है. बलात्कार और एके-47 जैसे हथियार रखने की सजा से ज्यादा कठोर सजा शराब रखने, शराब पीने और शराबी को संरक्षण देने की है. विधान मंडल के दोनों सदनों के सभी सदस्यों ने शराब का सेवन न करने, इसके सेवन को प्रश्रय न देने और लोगों को इसके सेवन से दूर रहने के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया था. ऐसा ही संकल्प अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी लिए, सूबे के सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों ने लिए…सभी ने लिए.

फिर भी, राजनेता शराब रखने के जुर्म में पकड़े जा रहे हैं, शराब के नशे में झूमते विधायक मीडिया के सामने पेश होते हैं, पुलिस के जवान नशे में टुन्न होकर बदतमीजी करते हैं, थानों के मालखानों से शराब बरामद हो रही है, जिला समाहरणालय में शराब के सेवन करते कर्मचारी-अधिकारी पकड़े जाते हैं. राजनेताओं, जिनमें मंत्री और विधायक शामिल हैं, के संरक्षण में शराब माफिया के सिंडिकेट निर्विघ्न अपना काम करते हैं, पुलिस अधिकारियों के हाथ काट लेते हैं. सूबे में अवैध शराब के कारोबारी को उच्च स्तर से संरक्षण मिल रहा है.

ऐसे में किसी भी कानून पसंद बिहारी के मन में सवाल है, उस संकल्प का क्या हुआ जो कोई नौ महीने पहले सभी से लिया गया था? इसका जवाब कोई नहीं दे रहा है-बिहार सरकार न महागठबंधन के नेता-प्रवक्ता. और अब कोई साढ़े ग्यारह हजार लंबी मानव श्रृंखला कुछ ऐसे ही सवाल कर रही है-मौन की भी आखिर कोई मुखरता तो होती ही है! यह सच्चाई है कि कठोर कानून के बावजूद बिहार में शराब सहज उपलब्ध है.

शराब की दुकान नहीं है, पर शराबी के घर उसकी जरूरत व हैसियत के हिसाब से शराब पहुंच रही है. पटना गांधी मैदान में मानव श्रृंखला में शामिल एक किशोरी ने कहा, ‘पिछली रात पड़ोसी कोई आधी रात में शराब पीकर घर आया था और हंगामा कर रहा था’. एक अन्य किशोरी ने बताया, ‘पिता जी अब भी रोज शराब पीकर आते हैं. इन्हें शराब तो मिल रही है. मानव श्रृंखला में सूबे के सभी उम्र की आम भागीदारी रही, पर किशोर-किशोरियों सहित युवा बिहारियों और आधी आबादी ने जिस उत्साह और संख्या में भागीदारी की है वह उल्लेखनीय रही. यह भागीदारी सरकार के दावों को जमीनी हकीकत में बदलते देखना चाहती है. यह बिहार की सत्ता, जिसकी कमान नीतीश कुमार के हाथ है, के लिए मामूली चुनौती नहीं है.

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