electionफरवरी 2018 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीतामढ़ी जिले के सोनबरसा प्रखंड अंतर्गत दुलारपुर घाट खाप खोपराहा में बाढ़ प्रबंधन एवं जल निस्सरण योजना के तहत तीन योजनाओं का शिलान्यास किया. इन सभी योजनाओं की लागत राशि 144.90 करोड़ रुपए है. इनमें करीब 20 करोड़ की लागत से लखनदेई नदी की पुरानी धारा का पुर्नस्थापना कार्य किया जाना है, वहीं 110.65 करोड़ की लागत से रातों नदी पर तटबंध का निर्माण होना है. 31 मार्च 2019 तक इस काम को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. 14.25 करोड़ रुपए की लागत वाली मनुष्यमारा जल निस्सरण योजना को पूरा करने की डेडलाइन 15 मई 2018 है.

चुनावी साल में विकास योजनाओं के शिलान्यास व उद्घाटन की वर्षों पुरानी परम्परा रही है. लोक लुभावन वादों के माध्यम से प्राय: सभी राजनीतिक दल जनसभाओं में जनमत अपने पक्ष में करने का प्रयास करते रहे हैं. हर पार्टी और नेता किसान, बेरोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, चिकित्सा व सुरक्षा समेत अन्य मुद्दों के जरिए लोगों को अपने पाले में करने की कोशिशें करते हैं. लेकिन जमीनी हकीकत की पड़ताल करें, तो वास्तव में बहुत कम ही ऐसी घोषणाएं होती हैं, जो धरातल पर उतर पाती हैं. बावजूद इसके आम जनता नेताओं की बातों में आकर कहीं दलगत तो कहीं जातिगत आधार पर मतदान करती है. चुनाव पूर्व समस्या निदान की बात करने वाले प्रतिनिधियों का, चुनाव बाद लोगों की समस्या से मुंह मोड़ना आम बात है.

जातिगत राजनीति की बात करें तो सीतामढ़ी जिले में 1952 से लेकर 2009 तक ज्यादातर यादव बिरादरी के नेताओं को ही प्रतिनिधित्व का मौका मिला है. लेकिन बदले राजनीतिक माहौल में 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान सीतामढ़ी सीट से कुशवाहा बिरादरी के राम कुमार शर्मा सांसद चुने गए. हालांकि चुनाव पूर्व से टिकट की आस लगाए कुछ नेताओं को यह पच नहीं पा रहा था. लेकिन गठबंधन के निर्णय की खातिर सभी ने मौन साध ली. आलम तो यह था कि रालोसपा प्रत्याशी राम कुमार शर्मा के समर्थन में गठबंधन दल के नेता व कार्यकर्ता तब तक खुलकर सामने आए, जब तक उन्हें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का सख्त निर्देश नहीं मिला.

चुनाव नतीजा आने के बाद लोगों को पूरी उम्मीद थी कि केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के साथ ही जिले में विकास गरजेगा, लेकिन राम कुमार शर्मा के संसदीय कार्यकाल का तकरीबन पौने चार साल गुजर जाने के बाद भी जिले में वो विकास नजर नहीं आ रहा, जिसकी आस में लोगों ने अपने सांसद को चुना था. नीतीश कुमार द्वारा नदी से जुड़ी योजनाओं के शिलान्यास के बाद राम कुमार शर्मा को भी मौका मिल गया और उन्होंने इसे भी अपनी उपलब्धियों की झोली में डाल दिया. राम कुमार शर्मा ने कहा कि सीतामढ़ी में लक्ष्मणा नदी की उडाही, मनुष्यमारा की जल निकासी एवं रातो नदी के तटबंध निर्माण के लिए मैंने हर संभव पहल की और अब कार्य भी आरंभ हो रहा है.

उन्होंने यह भी कहा कि मेरे कार्यकाल में ही जिला खुले में शौचमुक्त होगा. हर घर में बिजली होगी. सांसद ने रामायण सर्किट के तहत सीतामढ़ी जिले के चार प्रमुख पर्यटन स्थलों के विकास की भी बात कही. उन्होंने यह भी कहा कि एक केंद्रीय विद्यालय और एक मेडिकल कॉलेज खुलवाने की दिशा में भी मैं प्रयासरत हूं. राम कुमार शर्मा ने जिले के तीन गांवों बरियारपुर, तिलकताजपुर व कोईली को गोद लिया है. हालांकि सांसद जो भी दावा करें, स्थानीय निवासी उनके कार्यों से संतुष्ट नहीं दिख रहे हैं. लखनदेई बचाओ संघर्ष समिति के डॉ. आनंद किशोर का कहना है कि स्थानीय सांसद का कोई भी उल्लेखनीय कार्य सीतामढ़ी जिले में अब तक नजर नहीं आ रहा है. लक्ष्मणा नदी उडाही मामले में सांसद के प्रयास का दावा झूठा है. इस कार्य में इनका कोई योगदान नहीं है.

नदी की समस्या निदान को लेकर संघर्ष समिति ने सोनबरसा से जमीनी प्रयास किया. उडाही कार्य में गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के चेयरमैन घनश्याम ओझा व बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के अभियंता प्रमुख राम पुकार रंजन व जिला पदाधिकारी राजीव रौशन ने अहम भूमिका निभाई है. साथ ही नेपाल के पूर्व मंत्री महेंद्र यादव व जंगीलाल राय ने भी सराहनीय सहयोग किया. भाकपा के राज्य परिषद सदस्य जयप्रकाश राय का कहना है कि सांसद राम कुमार शर्मा जुमलेबाज नेताओं की श्रेणी में शामिल हो चुके हैं. सांसद द्वारा गोद लिए गए गांव भी अब तक बदहाली का पर्याय बने हुए हैं.

ऐसा भी नहीं है कि सांसद के दावों पर उनके ही गठबंधन दलों को भरोसा है. गठबंधन दल की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ही सांसद के कार्यों पर सवाल खड़े कर रही है. सीतामढ़ी जिला भाजपा के अध्यक्ष सुबोध कुमार सिंह का कहना है कि अब तक इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है कि सांसद द्वारा जिले में क्या कार्य कराया गया है. भाजपा के ही प्रदेश कार्यसमिति सदस्य सुफल झा का कहना है कि संभव है कि सांसद द्वारा विकास योजनाओं का कार्यान्वयन जिले में कराया गया होगा. लेकिन कोई बेहतर जमीनी कार्य नजर नहीं आ रहा है.

चाहे नदी से जुड़ी योजनाओं का शिलान्यास और उसे अपनी उपलब्धियां बताने की होड़ हो या फिर सांसद की विभिन्न घोषणाएं, यह साफ दिख रहा है कि चुनाव नजदीक आते ही क्षेत्र में शिलान्यासों व घोषणाओं का दौर तेज हो गया है. सरकार प्रायोजित विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन को रालोसपा सांसद अपनी उपलब्धियों की सूची में जोड़कर 2019 का चुनावी नैया पार लगाने की जुगत में लगे हैं. अगर केंद्रीय विद्यालय व मेडिकल कॉलेज की स्थापना सांसद के शेष बचे कार्यकाल में हो जाती है, तो यह इनकी उपलब्धि मानी जा सकती है. अगर नहीं, तो इनके संसदीय कार्यकाल को जिले के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा.

सांसद द्वारा गोद लिए गए तीनों गांव भी अब तक पुरानी दशा में ही हैं. चुनाव से पहले सार्वजनिक घोषणा हुई थी कि शहर से सटे बरियारपुर में औद्योगिक इकाई की स्थापना होगी. लेकिन हजारों युवा रोजगार की राह देख रहे हैं. तिलकताजपुर में बागमती के कटाव के कारण विस्थापित परिवार आज भी पुनर्वास की राह देख रहे हैं, न तो उन्हें अब तक कोई सहायता मिल सकी है और न ही नई घोषणाओं में कहीं उनका जिक्र है.

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