supreme-courtजेएनयू और कन्हैया कुमार प्रकरण के बाद देश में देशद्रोह बनाम देशभक्ति एक राष्ट्रीय मुद्दा बनकर सामने है. हालत यह है कि विभिन्न राजनेता एवं संगठन देशद्रोही और देशभक्त का प्रमाण-पत्र बांटने का काम कर रहे हैं. ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि आ़खिर देशद्रोह होता क्या है, इस बारे में संविधान क्या कहता है, क़ानून क्या कहता है? सबसे अहम बात यह कि देश की अदालतों ने इसे कैसे पारिभाषित किया है? यह सब इसलिए भी जानना ज़रूरी है, क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश अपने संविधान एवं क़ानूनों के हिसाब से चलता है और चलना भी चाहिए, न कि कुछ लोगों या समूहों की भावनाओं के मुताबिक. वैसे देशद्रोह को लेकर एक दिलचस्प तथ्य भी है. अगर हम पूरे देश में देशद्रोह के मामलों की बात करें, तो सबसे आगे बिहार और झारखंड का नंबर आता है.

सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, 2014 में देशद्रोह  के मामले में सबसे ज़्यादा गिरफ्तारियां झारखंड में हुईं. उसके बाद केरल में देशद्रोह के सबसे अधिक मुक़दमे दर्ज किए गए. आइए, पिछले कुछ वर्षों के दौरान देशद्रोह के आरोपों पर विभिन्न अदालतों ने क्या कहा, यह जानते हैं. लेकिन, उससे पहले यह जानते हैं कि देशद्रोह की परिभाषा क्या है और इसे सुप्रीम कोर्ट ने कैसे पारिभाषित किया है? भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की एक धारा है 124-ए. इसी धारा के तहत किसी पर देशद्रोह या राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया जाता है.

124-ए के तहत अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिला़फ लिखकर, बोलकर, संकेत देकर या फिर अभिव्यक्ति के किसी अन्य माध्यम के ज़रिये विद्रोह करता है या नफरत फैलाता है, तो ऐसा कृत्य देशद्रोह है. इस क़ानून के तहत अधिकतम सजा उम्रकैद है. लेकिन, पुलिस द्वारा देशद्रोह के आरोप लगाने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124-ए का दायरा फिर से पारिभाषित करते हुए उसे सीमित करने का काम किया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति ऐसा काम करे, जिससे अव्यवस्था फैलती है, क़ानून व्यवस्था खराब होती है और हिंसा को बढ़ावा मिलता है, तभी उसके खिला़फ देशद्रोह का मामला दर्ज किया जा सकता है. अदालतों ने अपने फैसले में कई बार कहा है कि महज नारेबाजी के आधार पर किसी के खिला़फ देशद्रोह का म़ुकदमा नहीं बनता.

 

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