bihar vidhansabhaबिहार विधान परिषद् के गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में पिछले चुनाव की तरह इस बार भी दलीय परंपराएं टूटेंगी या क्या कोई समीकरण बनेगा? यह सवाल इस निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं के बीच गूंज रहा है. 2011 में हुए निर्वाचन में सभी दलों ने लगातार जीत रहे और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके कांग्रेस के प्रत्याशी अरुण कुमार को अपना समर्थन दिया था. तब जद (यू) के बागी प्रत्याशी संजीव श्याम सिंह निर्दलीय चुनाव लड़कर प्रो. अरुण कुमार को हरा कर निर्वाचित हुए थे. संजीव श्याम सिंह की जीत पर चुनावी विश्लेषकों के अनुमान भी फेल हो गये थे.

1972 से लगातार एक क्षेत्र और एक पार्टी से निर्वाचित होते रहे प्रो. अरुण कुमार के हारने ने बहुतों को आश्चर्य में डाल दिया था. लोगों ने संजीव श्याम सिंह की जीत को गया के शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के नए मतदाताओं की नई सोच और बदलते राजनीतिक समीकरण का परिणाम बताया था. जबकि प्रो. अरुण कुमार की छवि एक साफ-सुथरे शिक्षक नेता के रूप में थी और 2011 का चुनाव उनका अंतिम चुनाव बताकर वोट मांगा गया था. इसके बावजूद अंतिम परिणाम में संजीव श्याम सिंह ने जीत हासिल की थी.

गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से इस बार भी आधा दर्जन प्रत्याशी दलीय व निर्दलीय रूप से चुनावी मैदान में ताल ठोकने को तैयार हैं. वर्तमान विधान पार्षद संजीव श्याम सिंह भी अपनी जीत के लिए मतदाताओं के बीच घूम रहे हैं. मगध व भोजपुर के 14191 मतदाता गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से अपने विधान पार्षद को चुनेंगे.

सबसे अधिक मतदाता गया जिले में 3243 हैं, तो सबसे कम जहानाबाद में 771 मतदाता हैं. बक्सर में 1457, भोजपुर में 1457, कैमूर में 2031, रोहतास में 1015, अरवल में 871, औरंगाबाद में 1961 मतदाता हैं. इसमें तमाम शिक्षक संघ और राजकीयकृत उच्च विद्यालय के शिक्षक, मगध और वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेजों, स्नातकोत्तर विभागों, संबद्ध कॉलेजों के शिक्षक मतदाता होते हैं.

बिहार विधान परिषद् के गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के अगामी मई माह में होने वाले चुनाव में जिन संभावित प्रत्याशियों के नामों की चर्चा है या जो क्षेत्र में सक्रिय हैं, उनमें रालोसपा से वर्तमान विधान पार्षद् संजीव श्याम सिंह पुन: अपनी जीत के लिए मतदाताओं से संपर्क कर रहे हैं. 2011 में संजीव श्याम सिंह निर्दलीय जीत कर बाद में रालोसपा में जाकर एनडीए का हिस्सा बन गए थे. उम्मीद है कि भाजपा गठबंधन उन्हें अपना उम्मीदवार बनाएगा या समर्थन देगा. जद (यू) से बक्सर के पूर्व विधायक हृदय नारायण यादव भी गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से

दावेदारी कर रहे हैं. ये बसपा से विधायक थे, बाद में राजद में शामिल हुए थे. फिलहाल ये जद (यू) में हैं. जहानाबाद के एसएस कॉलेज के प्राचार्य प्रो. दिनेश प्रसाद सिन्हा राजद से अपनी दावेदारी कर महागठबंधन का समर्थन मिलने की बात कर रहे हैं. ये मगध विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर शिक्षक संघ के कई वर्षों तक अध्यक्ष रहे हैं. रोहतास जिला माध्यमिक शिक्षक संघ के पूर्व सचिव देववंश यादव भी इस चुनाव में ताल ठोक रहे हैं. पटना विश्वविद्यालय के बीएन कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के प्रो. बीएन सिन्हा भी इस चुनाव में सक्रिय हैं. पिछले विधान परिषद् के चुनाव में भी उन्होंने अपनी किस्मत आजमाई थी.

बिहार विधान परिषद् के गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में दलों द्वारा बहुत ज्यादा उलट फेर नहीं हुआ, तो अनुमान है कि यहां सीधी लड़ाई एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच ही होगी. हालांकि पिछले विधान परिषद् के चुनाव में इस शिक्षक क्षेत्र के मतदाताओं ने तमाम मिथक और परंपराओं को तोड़कर साबित कर दिया कि दलीय आकाओं के निर्णय और निर्देश हम मानने को बाध्य नहीं हैं. 2011 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी प्रो. अरुण कुमार को तब एनडीए में शामिल नीतीश कुमार के जद यू समेत एनडीए का समर्थन भी मिला था. राजद ने भी अपना समर्थन उन्हें दिया था.

प्रो. अरुण कुमार का एक शिक्षक नेता और साफ-सुथरे राजनेता के रूप में ऊंचा कद है. लेकिन पिछले चुनाव में जद (यू) से टिकट नहीं मिलने पर बागी संजीव श्याम सिंह ने निर्दलीय खड़े होकर उन्हें बड़ी चुनौती दे डाली और जीत हासिल की. हालांकि यह जीत बहुत कम अंतर से हुई. अंतिम और चौथी वरीयता मत की गिनती में संजीव श्याम सिंह ने 3266 मत प्राप्त किए, जबकि प्रो. अरुण कुमार 3230 मत प्राप्त कर सके. इस चुनाव में प्रो. अरुण कुमार की हार से बिहार के राजनीतिक मठाधीशों को करारा झटका लगा था.

इस बार भी संजीव श्याम सिंह अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं. उन्होंने कहा कि हमने शिक्षकों, विशेषकर नियोजित शिक्षकों, संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों, मेडिकल कॉलेज के शिक्षकों के लिए संघर्ष कर जो सुविधाएं, मान-सम्मान और वेतनमान दिलाया है, उसका फल मुझे जरूर मिलेगा. फिलहाल हर संभावित प्रत्याशी दलीय और जातीय आधार पर अपना समीकरण बनाने में जुटा है.

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