14भाजपा और शिवसेना के बीच दिनोंदिन तल्खी बढ़ती जा रही है. दोनों पार्टियों का लगभग 30 साल पुराना गठबंधन कब दरक जाए, कहा नहीं जा सकता. दोनों पार्टियों के बीच किस हद तक रिश्ते खराब हो गए हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शिवसेना ने उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है. शिवसेना प्रवक्ता संजय राऊत ने कहा है कि हमारा गठबंधन महाराष्ट्र में है, न की उत्तरप्रदेश में. उन्होंने कहा कि हम देश के अन्य हिस्सों में अपनी पार्टी का विस्तार करेंगे. इसके साथ ही शिवसेना ने ऐलान किया है कि वह दिल्ली में सभी 7 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. शिवसेना ने यह भी ऐलान किया है कि वह उत्तर प्रदेश में 20 सीटों पर और बिहार में 5 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. दूरियां इस कदर ब़ढ गई हैं कि शिवसेना के बारे में यह भी खबर आने लगी थी कि वह भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के खिलाफ भी क्रमश: वाराणसी और लखनऊ से उम्मीदवार उतारेगी, लेकिन उम्मीदवारों को लेकर जूझ रही भाजपा को राहत दी शिवसेना के पार्टी चेयरमैन आदित्य ठाकरे ने. उन्होंेने साफ किया कि पार्टी मोदी और राजनाथ के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी और आदित्य ने इसे अफवाह करार दिया. शिवसेना भाजपा को इससे यह दिखाना चाहती है कि वह कहीं से कमजोर नहीं है. भाजपा भी यह भांप रही है कि अब शिवसेना पहले जैसा मजबूत नहीं रही. उसके कई नेता पार्टी छोड़कर राकांपा, कांग्रेस और मनसे में जा चुके हैं. कहीं ऐसा तो नहीं है कि शिवसेना में दरार पड़ चुकी है? ऐसा ही रहा, तो आने वाले दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है, जिसे देखकर पहले से ही भाजपा सतर्क है और मनसे के साथ अपनी दोस्ती बनाए रखना चाहती है. इन सबके बीच उद्धव ठाकरे नेे भाजपा को सलाह दी है कि वह गठबंधन धर्म का पालन करे.
रिश्तों में तल्खियों का दौर गडकरी और राज ठाकरे की मुलाकात के बाद से ही देखने को मिल रही है. गडकरी और राज की मुलाकात से शिवसेना को इतना नागवार गुजरा कि वह आए दिन भाजपा पर तीखे हमले बोल रही है. दूसरी तरफ राज ठाकरे के ऐलान ने आग में घी डालने का काम किया है. राज ने ऐलान किया है कि यदि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी से सांसद चुने जाते हैं, तो वह मोदी का समर्थन करेंगे. अब भला राज का यह मोदी प्रेम शिवसेना को कहां से पचने वाला था. राज ठाकरे बहुत ही सधी रणनीति के साथ एक तीर से दो निशाना करना चाहते हैं. इसीलिए वे मोदी से दोस्ती के लिए हाथ ब़ढा रहे हैं और इस दोस्ती के सहारे शिवसेना से दुश्मनी का भरोसा भी वे भाजपा से गुपचुप तरीके से ले चुके हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है. राज ठाकरे यदि शिवसेना का वोट काटते हैं, तो इसका असर मोदी के मिशन 272 पर पड़ेगा. दूसरी तरफ अगर भाजपा-शिवसेना-मनसे की लड़ाई जारी रही, तो इसका फायदा यूपीए गठबंधन को भी महाराष्ट्र में हो सकता है. शिवसेना इस बात पर भड़की है कि मनसे भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारी है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि वह शिवसेना के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा कर चुकी है. शिवसेना को भाजपा और मनसे के बीच अंदरूनी गठबंधन का डर सता रहा है, क्योंकि मनसे यदि लोकसभा चुनाव में सीटें लाई, तो वह एनडीए में शामिल हो सकती है, जिससे शिवसेना का महत्व कम होगा. इसके भी मायने समझने होंगे कि भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी राष्ट्रीय नव निर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे से मुलाकात करते हैं और इस मुलाकात के बाद ही राज ठाकरे मोदी का समर्थन करने और भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार न खड़ा करने का ऐलान कर देते हैं. आखिर इस मुलाकात के निहितार्थ क्या हैं? इस मुलाकात के बाद से ही शिवसेना आगबबूला हो गई है. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में गडकरी को घाघ व्यवसायी बताते हुए लिखा है कि वह इतने चतुर हैं कि मनसे प्रमुख को बगैर दक्षिणा का प्रस्ताव दिए ही उनसे समर्थन की मांग कर बैठे. शिवसेना को लगता है कि  भाजपा की राज ठाकरे के साथ कोई न कोई डील हुई है. शिवसेना ने भाजपा पर दबाव बनाने के लिए ही उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार में अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. वास्तविकता यह भी है कि शिवसेना बालासाहेब ठाकरे की मृत्यु के बाद से कमजोर होती जा रही है. भाजपा चाहती है कि शिवसेना और मनसे दोनों के साथ उसका संबंध बना रहे. नरेंद्र मोदी का 2002 गुजरात दंगों पर प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले ने पक्ष लिया था और कहा था कि उनको कोर्ट से जब क्लीन चिट मिल गई है, तो उन्हें दोषी ठहराना ठीक नहीं है. इधर शिवसेना को एनसीपी और मनसे के साथ भाजपा की बढ़ती नजदीकियां भी कहीं न कहीं शिवसेना को परेशान कर रही हैं. संजय राऊत ने कहा था कि भाजपा का कोई नेता राज या शरद पवार का समर्थन करता है या मुलाकात करता है, तो इससे गठबंधन प्रभावित हो सकता है. एनडीए के लोगों को बाहरी लोगों की बखान नहीं करनी चाहिए. शिवसेना चेतावनी भी दे चुकी है कि एनडीए में मनसे या राकांपा शामिल होती है, तो वह एनडीए से नाता भी तोड़ सकती है.
शिवसेना जहां भाजपा पर लगातार हमले बोल रही है, वहीं भाजपा कह रही है कि हमारा गठबंधन मजबूत है, इसे कोई खतरा नहीं है. लेकिन ऐसा तो नहीं है कि अंदर ही अंदर शिवसेना और भाजपा के बीच दरार पड़ चुकी है? भाजपा जानती है कि राज ठाकरे यदि उसके खिलाफ खड़ा होते, तो उसके वोटों को काटेंगे, इसलिए ही नितिन गडकरी राज ठाकरे से मुलाकत कर उन्हें मनाने में कामयाब हो गए. मनसे ने 2009 लोकसभा चुनाव में भी अपने कैंडिडेट उतारे थे, जिससे भाजपा और शिवसेना को नुकसान हुआ था. उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी मनसे ने उम्मीदवार खड़े किए, जिससे इस गठबंधन को भारी नुकसान हुआ. भाजपा और शिवसेना के बीच चल रही लड़ाई को सुलझाने के लिए महाराष्ट्र के प्रभारी राजीव प्रताप रु़डी को जिम्मा दिया गया है. रुड़ी ने उद्धव ठाकरे से मुलाकत की और कहा कि शिवसेना राजग का मजबूत सहयोगी है. इसके बाद नरेंद्र मोदी ने खुद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से फोन पर बात की. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भाजपा शिवसेना के टकराव पर कहा कि हमारा शिवसेना से अटूट रिश्ता है. राज और शिवसेना के बीच मराठी वोटों को लेकर लड़ाई है और भाजपा की कोशिश है कि राज हों या उद्धव, दोनों से मराठी वोटों को फायदा उसे मिलता रहे. शिवसेना मराठी मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत बताती है और कहती है कि मराठी वोट शिवसेना के साथ ही रहेंगे. कुछ भी हो, लेकिन भाजपा और शिवसेना के बीच तल्खी बढ़ने का असली कारण गडकरी और राज की मुलाकात को ही माना जा रहा है. एक तरफ भाजपा और शिवसेना के बीच टकराव की स्थिति बनी है और दूसरी तरफ भाजपा में उम्मीदवारी को लेकर बगावत मची हुई. पहले चरण का मतदान होने में कुछ ही समय है. यदि ऐसा ही रहा, तो इसमें कोई शक नहीं कि मोदी का मिशन 272 अधूरा रह जाएगा.

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