रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लेकर सदन में लगातार हंगामा होता रहा. सांसद वेल में जाकर प्रदर्शन और नारेबाज़ी करते रहे. लगभग हर दल के  सांसद चाहते थे कि यह रिपोर्ट सदन के  पटल पर रखी जाए, पर वे न सरकार को तैयार कर सके और न ही चेयर पर दबाव डाल सके.

ससद में चौथी दुनिया की गूंज जारी है. कई सालों बाद किसी अ़खबार में छपी रिपोर्ट पर संसद में हंगामा हो रहा है. जब लोकसभा में समाजवादी पार्टी के  अध्यक्ष मुलायम सिंहयादव और उनकी पार्टी के दूसरे सांसदों ने आपके अ़खबार चौथी दुनिया के  हवाले से रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट पर सरकार को घेरा तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आखिरकार झुकना ही पड़ा. उन्होंने सदन को यह आश्वासन दिया है कि संसद के  वर्तमान सत्र के  अंत तक रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट पेश कर दी जाएगी. राज्यसभा में भी रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट पर हंगामा जारी रहा. इन दोनों सदनों में क्या हुआ, इसका पूरा विवरण आप इस अ़खबार के  पेज नंबर 3 और 5 पर पढ़ सकते हैं. लेकिन इससे पहले इस मामले से जुड़े ऐसे दो पहलुओं के  बारे में जानना ज़रूरी है, जो दुनिया की नजर में आने  से रह गए. दोनों ही बातें चौंकाने वाली हैं. पहली तो यह है कि लोकसभा में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आश्वासन के  बावजूद रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को पेश नहीं किया जाएगा. दूसरी बात यह है कि चौथी दुनिया के  संपादक संतोष भारतीय को सच बोलने की सज़ा मिलने जा रही है. उन्हें राज्यसभा से नोटिस मिला है जिसमें यह कहा गया है कि चौथी दुनिया में छपे लेख से सांसदों के विशेषाधिकार का हनन हुआ है.
क्या सचमुच रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट संसद में पेश होगी?
रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट के मुद्दे पर मुलायम सिंह ने लोकसभा की कार्यवाही नहीं चलने दी. 9 दिसंबर को समाजवादी पार्टी के सांसद और मुलायम सिंह ने चौथी दुनिया अ़खबार लोकसभा में लहराया. जब उन्होंने इस अ़खबार में छपी रिपोर्ट का हवाला दिया तो प्रधानमंत्री को इस मसले पर बयान देने के लिए बाध्य होना पड़ा. गौर करने वाली बात यह है कि पिछले कई दिनों से राज्यसभा में रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लेकर लगातार हंगामा होता रहा. राज्यसभा में अलग-अलग दलों के  सांसदों ने रिपोर्ट को सदन में पेश करने की मांग की थी. राज्यसभा में इस मामले पर इतना ज़बर्दस्त हंगामा हुआ कि कई बार सदन की कार्यवाही रोकनी पड़ी. सरकार इस बात से वाक़ि़फ थी कि जिस मुद्दे पर राज्यसभा में हंगामा हो रहा है, वह मामला लोकसभा में भी उठ सकता है. इसलिए यह यक़ीन किया जा सकता है कि सरकार ने इससे निपटने के  लिए रणनीति ज़रूर बनाई होगी. सरकार ने इस पर क्या रणनीति बनाई, इसकी जानकारी हमें कांग्रेस के सूत्रों से मिली.
लोकसभा में हंगामे की घटना के  ठीक दो दिन बाद यानी 11 तारी़ख को कांग्रेस के  सूत्रों ने बताया कि रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को संसद में पेश नहीं किया जाएगा. लोकसभा में जो कुछ भी हुआ, उससे कांग्रेस पार्टी चिंतित है. मुलायम सिंह ने जिस तरह के  तेवर दिखाए, और उस व़क्त लोकसभा में जिस तरह हंगामा चल रहा था, उसे शांत करने के  लिए प्रधानमंत्री ने यह बयान दे दिया कि रिपोर्ट को इसी सत्र में पेश कर दिया जाएगा. कांग्रेस पार्टी इसे एक ऐसा मुद्दा मानती है, जिससे विपक्ष में फूट पड़ जाएगी. इसलिए इस मामले को जितना टाला जाए, उतना ही सरकार के  लिए लाभदायक है. हमारे सूत्रों के मुताबिक़, दलित मुसलमानों और ईसाइयों को आरक्षण की सुविधा देने का सुझाव देने वाली रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट को दबाने के लिए अलग तेलंगाना राज्य के  मुद्दे को हवा दी गई है, ताकि मीडिया और विपक्ष का ध्यान बंट जाए. यही वजह है कि राज्यसभा में भी रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को पेश करने की मांग पर सलमान खुर्शीद ने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के  मॉडल की बात कहकर असली  मुद्दे को टाल दिया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुलायम सिंह के तेवर को शांत करने के लिए यह तो कह दिया कि रिपोर्ट को इस सत्र में पेश किया जाएगा, लेकिन कब पेश किया जाएगा, इस बारे में कुछ भी नहीं बताया. कांग्रेस पार्टी इस बात से भी नाराज़ है कि झारखंड में मुसलमान कांग्रेस का खुलकर साथ नहीं दे रहे हैं. ग़ौर करने वाली बात यह है कि मनमोहन सिंह जी 17 तारी़ख को कोपेनहेगन जा रहे हैं. कांग्रेस के  सूत्रों के  मुताबिक़, उनके  जाने के  बाद तेलंगाना के  मामले को और हवा दी जाएगी और ऐसी संभावना है कि प्रधानमंत्री के  कोपेनहेगन जाने के अगले दिन ही संसद के वर्तमान सत्र को खत्म कर दिया जाएगा.
अगर हमारे सूत्रों की खबर सही है तो दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों के  आरक्षण का मामला ठंडे बस्ते में जाना तय है. कमज़ोर और ग़रीब अल्पसंख्यकों के  साथ यह बड़ी नाइंसा़फी होगी. हमारी हार्दिक इच्छा है कि चौथी दुनिया की यह खबर झूठी साबित हो. अगर ऐसा होता है तो हमें इस बात से सबसे ज़्यादा खुशी होगी. और अगर हमारी खबर सही साबित हुई तो संसद के इतिहास में इसे काले अध्याय के तौर पर याद किया जाएगा. सदन में वादा करने के बाद भी अगर प्रधानमंत्री उससे मुकर जाते हैं तो यह गलत परंपरा को प्रोत्साहित करेगी. अ़फसोस की बात यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे ईमानदार और सा़फ छवि वाले व्यक्तइगर ऐसा करते हैं तो देश की जनता आखिर किस नेता पर विश्वास करे!
संतोष भारतीय के खिला़फ विशेषाधिकार हनन का नोटिस
सच की राह पर चलना कठिन है, यह हम जानते हैं. क़ानून के डर से सच का साथ छोड़ देने वाली पत्रकारिता हमने नहीं सीखी है. यही वजह है कि चौथी दुनिया के  संपादक संतोष भारतीय को राज्यसभा सचिवालय ने विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है. इस नोटिस की वजह है रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट को पेश न करना राज्यसभा का अपमान नामक लेख, जिसे चौथी दुनिया के  पिछले अंक में छापा गया. इस लेख को आपके  संपादक संतोष भारतीय ने लिखा. इस लेख को पढ़कर राज्यसभा के  कई सांसद इतने नाराज़ हो गए कि उन्होंने चौथी दुनिया साप्ताहिक अ़खबार और इसके  संपादक संतोष भारतीय के  ख़िलाफ़ राज्यसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है. नोटिस देने वाले सांसदों में अली अनवर (जदयू), अजीज़ पाशा (सीपीआई), राजनीति प्रसाद (राजद) और साबिर अली (लोजपा) हैं. इन सांसदों ने यह नोटिस उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के  सभापति हामिद अली अंसारी को दी. उपराष्ट्रपति ने इन सांसदों को यह विश्वास दिलाया है कि चौथी दुनिया और इसके  संपादक पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. सांसदों के  आवेदन का संज्ञान लेते हुए राज्यसभा सचिवालय ने संतोष भारतीय को नोटिस भेज दिया.
हमने अपने 07-13 दिसंबर 2009 के  अंक में रंगनाथ मिश्र कमीशन रिपोर्ट पेश न होना राज्यसभा का अपमान शीर्षक से लीड स्टोरी छापी. राज्यसभा के सांसदों को लगता है कि इस लेख से राज्यसभा का अपमान हुआ है और वे अपमानित महसूस कर रहे हैं. इसलिए इन सांसदों ने उपराष्ट्रपति से यह अनुरोध किया है कि चौथी दुनिया साप्ताहिक अ़खबार और इसके  संपादक संतोष भारतीय पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाया जाए, ताकि इस प्रकार के अपमानजनक और आपराधिक कृत्य के  लिए उन्हें प्रताड़ित किया जा सके.
इस लेख में संतोष भारतीय ने सच्चाई और निर्भीकता से राज्यसभा की सार्थकता पर सवाल उठाया था. रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लेकर सदन में लगातार हंगामा होता रहा. सांसद वेल में जाकर प्रदर्शन और नारेबाज़ी करते रहे. लगभग हर दल के  सांसद चाहते थे कि यह रिपोर्ट सदन के  पटल पर रखी जाए, पर वे न सरकार को तैयार कर सके और न ही चेयर पर दबाव डाल सके. यही वजह है कि सरकार ने रिपोर्ट को लेकर न तो कोई क़दम उठाए और न ही कोई सकारात्मक बयान दिया. यूं कहें कि राज्यसभा के  सांसदों की मांगों को टाल दिया. अब ऐसी राज्यसभा के  बारे में क्या कहा जाए, जो कमज़ोर वर्गों के  लोकतांत्रिक अधिकारों का संरक्षण करने में असफल रहने के  कारण अपनी सार्थकता खोती जा रही है. क्या राज्यसभा के  सभापति की यह ज़िम्मेदारी नहीं थी कि वह रिपोर्ट को पेश करने का निर्देश दे देते. इससे राज्यसभा में लोगों का भरोसा मज़बूत होता. कमीशन द्वारा पहचाने गए क्रिश्चियन समाज और मुस्लिम समाज के दलितों के  लिए आरक्षण का फायदा उठाने का दरवाजा खुल जाता. यही सच संतोष भारतीय ने अपने लेख में लिखा था कि क्या राज्यसभा जिस पर लोकतंत्र को संभालने की ज़िम्मेवारी है, उच्च सदन कहा जाता है, शक्तिहीनों और निर्वीर्य लोगों के  बैठने का एक क्लब भर रह गया है. क्या राज्यसभा से जनता को अपना भरोसा खत्म कर लेना चाहिए. संतोष भारतीय ने अपने लेख में एक निर्भीक पत्रकार की भूमिका निभाई और सभापति महोदय से यह गुज़ारिश की कि राज्यसभा की गरिमा को बचाने के  लिए सदस्यों की मांगों पर ध्यान दीजिए और रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को सदन के पटल पर पेश कराइए. लेकिन चौथी दुनिया के  इस लेख के  लिए लेखक को राज्यसभा सचिवालय ने नोटिस दे दिया, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि लेख से राज्यसभा और इसके  सदस्यों के  विशेषाधिकार का हनन हुआ है.  सोचने वाली बात यह है कि जो मामला पिछले कई दिनों से राज्यसभा में उठता रहा, जिस पर हंगामा होता रहा, हर दल के  लोग मांग करते रहे, लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई, उसी रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लेकर जब मुलायम सिंह ने लोकसभा में हंगामा किया तो प्रधानमंत्री को यह आश्वासन देने के  लिए बाध्य होना पड़ा कि रिपोर्ट को इस सत्र में पेश किया जाएगा. सभापति जी को यह समझना चाहिए कि यह कैसे हुआ. मुद्दा एक, लेकिन अलग-अलग सदनों में सरकार का जवाब अलग, कार्रवाई अलग. रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट से जुड़े घटनाक्रम से यह डर पैदा होता है कि लोकसभा के  मुक़ाबले कहीं राज्यसभा अपनी सार्थकता तो खोती नहीं जा रही है. आपको बता दें कि राज्यसभा के सांसदों ने 7 दिसंबर को नोटिस सभापति को दिया, आठ दिसंबर को उसे सदन में रखा, जिसके ऊपर सभापति ने संतोष भारतीय और चौथी दुनिया को 9 दिसंबर को नोटिस भेजने का निर्देश दिया. दूसरी ओर 9 दिसंबर को ही लोकसभा में मुलायम सिंह और कई सांसदों के हस्तक्षेप के बाद प्रधानमंत्री ने रिपोर्ट को लोकसभा में इसी सत्र में रखने का स्पष्ट आश्वासन दिया. यह कैसा अंतर्विरोध है? रिपोर्ट रखने की मांग करने पर राज्यसभा से विशेषाधिकार हनन का नोटिस और उसी अख़बार के आधार पर लोकसभा में मुलायम सिंह की मांग पर प्रधानमंत्री का रिपोर्ट को रखने का आश्वासन. इस घटनाक्रम ने संतोष भारतीय के  लेख को सही साबित किया है.

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