आठ दिसंबर, 2009 की सुबह. राज्यसभा के माहौल में एक अनकही सी कसमसाहट दिख रही है. सभापति उपराष्ट्रपति हामिद अली अंसारी के  कक्ष में बैठे कुछ सांसदों में बेचैनी का आलम है. उनके हाथों में साप्ताहिक हिंदी अख़बार चौथी दुनिया की वे प्रतियां हैं, जिसमें अख़बार के प्रमुख संपादक संतोष भारतीय ने राज्यसभा के सांसदों के लिए नाकारा, कमज़ोर और नपुंसक जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है.  चूंकि राज्यसभा सांसद अपनी पुरज़ोर कोशिशों के बावज़ूद दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को आरक्षण देने संबंधी अनुशंसाओं वाली रिपोर्ट को राज्यसभा में पेश नहीं करा सके, लिहाज़ा संतोष भारतीय ने सांसदों को इन विशेष शब्दों से विभूषित कर दिया. शब्दों की तासीर ने सांसदों के ज़हन में इतनी तिलमिलाहट भर दी कि जद यू के राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी, राजद के सांसद राजनीति प्रसाद, लोजपा के सांसद साबिर अली और भाकपा के सांसद अजीज़ पाशा ने संतोष भारतीय के ख़िला़फ विशेषाधिकार हनन का नोटिस तक दे दिया. उनकी नाराज़गी अ़खबार से तो थी ही, पर उससे ज़्यादा गुस्सा सरकार पर था कि वह जानबूझ कर सांसदों को ज़लील करा रही है. अगर सरकार चाहती है कि सांसदों पर ऐसी तोहमत न लगे तो उसे तुरंत रंगनाथ मिश्र कमीशन पर संसद में बहस कराना होगा. सभापति के कमरे में इस पर रस्साकशी जारी थी. जदयू सांसद अली अनवर बेहद ख़फा अंदाज़ में सभापति से कह रहे थे कि वह आज इस मसले को उठाना चाहते हैं, सभापति इस बात की इजाज़त दें. तभी वहां मौजूद कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला इस मुबाहिसे में द़खलअंदाज़ी कर बैठते हैं. वह कहते हैं कि चौथी दुनिया कौन सा ऐसा बड़ा अख़बार है कि जिसमें छपी बातों से आप इतने परेशान हो गए हैं. अरे छोटा-मोटा अख़बार है. हज़ार प्रतियां भी नहीं बिकतीं. दरअसल यहां राजीव शुक्ला की भी अपनी मजबूरियां थीं. सरकार का नुमाइंदा होने की वजह से भला उन्हें यह कैसे मंजूर होता कि उस रिपोर्ट पर सदन में बहस हो, जो सरकार को मुश्किलों में डाल दे. ख़ैर राजीव शुक्ला की बातें सुन रहे भाजपा नेता कलराज मिश्र से रहा नहीं गया.

कलराज मिश्र चौथी दुनिया के पुराने पाठक रहे हैं और इसकी ताक़त से भी वाक़िफ हैं. उन्होंने राजीव शुक्ला की बात काटते हुए कहा कि आप ग़लत तथ्य मत रखें. चौथी दुनिया अख़बार और इसके संपादक संतोष भारतीय कोई गुमनाम सी चीज़ नहीं हैं. यह अख़बार बेहद उसूल वाले समाचारपत्रों में शुमार किया जाता रहा है.

इस दरम्यान अली अनवर अंसारी अपनी मांगों को दोहराते रहे. हार कर सभापति उपराष्ट्रपति हामिद अली अंसारी ने अली अनवर से कहा कि कम से कम प्रधानमंत्री कार्यालय मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को तो आने दें, पर अली अनवर और उनके साथियों ने तो जिद ठान ली थी . उन्होंने आख़िरी वार किया कि अगर सभापति अनुमति नहीं देंगे तो वे लोग सदन नहीं चलने देंगे. अब तो सभापति को मानना ही था. उन्होंने अली अनवर से कहा कि ठीक है, प्रश्नकाल में आप अपनी बात सदन में रख सकते हैं. सदन में घड़ी की सूइयों ने जैसे ही 12 बजाए, राज्यसभा सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया. लोकजन शक्ति पार्टी के सांसद साबिर अली चौथी दुनिया की प्रतियों के साथ वैल में चले आए. वह बेहद उद्वेलित थे. उनका कहना था कि सरकार राज्यसभा सांसदों को बेइज्जत करा रही है. सरकार की लापरवाही के कारण उनकी अवमानना की जा रही है. साबिर अली के अनवर अली अंसारी, भाकपा के अजीज़ पाशा और राजद के राजनीति प्रसाद भी वैल में मौजूद थे. भाकपा के सांसद अजीज़ पासा का कहना था कि सरकार की चौथी दुनिया अख़बार के साथ मिलीभगत है, तभी वह इसे अनसुना किए बैठी है. जदयू सांसद अली अनवर भी बेहद तमतमाए हुए थे. उन्होंने सवाल किया कि चौथी दुनिया ने पूरे सदन को गाली दी है. सभापति की कुर्सी पर भी छींटाकशी की है. भला सरकार चुप कैसे रह सकती है? सरकार इतनी जलालत कैसे बर्दाश्त कर सकती है? क्या सरकार को सांसदों के मान-सम्मान की कोई फिक्र नहीं? इस वक्त सभापति की कुर्सी उपसभापति के रहमान ने संभाल रखी थी. आक्रोशित सदस्यों को शांत कराने की कोशिश में उनकी पेशानी पर बल आ चुके थे, पर नाराज़ सदस्यों को वह शांत नहीं करा सके. के रहमान ने यह आश्वासन भी दिया कि मामला सभापति के पास विचाराधीन है.
पर सांसद, संतोष भारतीय की रिपोर्ट रंगनाथ मिश्र कमीशन-रिपोर्ट पेश न होना राज्यसभा का अपमान पर लगातार शोर मचा रहे थे. संतोष भारतीय द्वारा यह लिखना कि रिपोर्ट पेश नहीं करा पाने वाले सांसद शक्तिहीन और निर्वीर्य हैं, उन्हें घातक चोट पहुंचा रहा था. थक-हारकर उपसभापति ने 12 बजकर 18 मिनट पर सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी. सीपीएम की सांसद वृंदा करात ख़ासी नाराज़ दिखीं. वह भी बरस पड़ीं. उनका कहना था कि जब इतनी गोपनीय और अहम रिपोर्ट मीडिया में लीक होती जा रही हैं तो राज्यसभा में उन जैसे सांसदों का क्या काम? सरकार न स़िर्फ जनता को, बल्कि सांसदों को भी बेवकूफ बना रही है. अब सोचने का व़क्त बिल्कुल नहीं है. सरकार तुरंत रिपोर्ट पेश करे.
बहरहाल 12 बजकर 32 मिनट पर राज्यसभा की कार्यवाही फिर शुरू होती है. पृथ्वीराज चव्हाण को फिर बुलाया जाता है, ताकि वह नाराज़ और उग्र सांसदों के सवालों का जवाब दे सकें, पर वह सदन में मौजूद नहीं थे. तब कांग्रेस की ओर से अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सलमान खुर्शीद जवाब देने के लिए खड़े होते हैं. सलमान ख़ुर्शीद की तरफ सभी राज्यसभा सांसदों की उम्मीद भरी निगाहें उठती हैं, पर सलमान ख़ुर्शीद ने बड़ी होशियारी से शब्दों की बाज़ीगरी दिखाई. उन्होंने कहा तो ज़रूर कि सरकार पिछड़े मुसलमानों को कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल मॉडल की तर्ज़ पर आरक्षण देने पर विचार कर रही है. रंगनाथ मिश्र कमीशन से संबंधित आरटीआई की रिपोर्ट अदालत में है. सरकार माकूल व़क्त पर इसे सदन में पेश करेगी. हालांकि सांसदों ने सलमान ख़ुर्शीद की चतुराई भांप ली कि वह सांसदों को झांसा देकर निकल गए हैं. लोजपा के साबिर अली ने यह बात सदन में ही कह दी थी. भाजपा के रवि शंकर प्रसाद ने सलमान खुर्शीद की चालाकी पर उन्हें घेर लिया. रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि जब सलमान ख़ुर्शीद ने यह बात एक न्यूज चैनल पर भी स्वीकार की है तो सरकार इस रिपोर्ट को संसद में पेश क्यों नहीं करती? मंत्री चैनल पर कुछ और, संसद में कुछ और क्यों बोलते हैं?
सदस्यों के हंगामे का कोई ठोस नतीजा भले ही न निकला हो, पर एक ख़ास और उत्साहित करने वाली जो बात नज़र आई, वह यह है कि इस बार रिपोर्ट को पेश करने की मांग को लेकर राज्यसभा सांसद एकजुट हो गए थे. समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन के तेवर ख़ासे सख्त थे. उन्होंने बेहद ओजस्वी तरीक़े से सदन में अपनी बात रखी. हालांकि उनकी पार्टी के अमर सिंह उस व़क्त वहां मौजूद नहीं थे. पर शायद वह सरकार को घेरने की उस रणनीति को बनाने में मशगूल थे, जिसका नतीजा अगले दिन यानी 9 दिसंबर को लोकसभा में देखने को मिला. जब समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह के नेतृत्व में सपा सांसदों ने रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट पेश करने के मसले पर हंगामा किया तो प्रधानमंत्री को जवाब देना ही पड़ा कि यह रिपोर्ट इसी सत्र में पेश की जाएगी.

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