uttrakhand-ministerप्रगतिशील डेमोक्रैटिक फ्रंट से नाता तोड़ने की मांग उठा कर कांग्रेस ने हरीश रावत सरकार को दुविधा में डाल दिया है. पीडीएफ की भूमिका को लेकर उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के मुखिया किशोर उपाध्याय की तरफ से सवाल खड़ा करने से सरकार और संगठन की बढ़ती खाई उजागर हुई है. मुख्यमंत्री रावत ने कांग्रेस हाईकमान के पाले में गेंद डालते हुए इस मसले से पल्ला झाड़ कर पीडीएफ का साथ न छोड़ने का संकेत दे दिया है.

उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार के गठन से लेकर हरीश सरकार पर आए संकट के समय तक राज्य के पांच निर्दलीय विधायकों के प्रगतिशील डेमोक्रैटिक फ्रंट ने कांग्रेस का साथ दिया, यह एक राजनीतिक मिसाल है. राज्य में थोड़े अंतर से सरकार के गठन का पेंच फंसा था, उस समय प्रगतिशील डेमोक्रैटिक फ्रंट के फैसले से भाजपा की चूलें हिल गईं. फ्रंट कांग्रेस का साथ दे रहा है और तमाम राजनीतिक उठापटक के बावजूद हरीश सरकार का बनी हुई है. उत्तराखंड में कांग्रेस में बगावत करा कर रावत सरकार को बेदखल करने का जो राजनीतिक कुचक्र रचा गया था, वह नाकाम साबित हुआ. इसी का नतीजा है कि कांग्रेस हाईकमान ने भी हरीश रावत को सरकार के गठन से ले कर संचालन तक की पूरी छूट दे दी. लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय इस तालमेल की जड़ में मट्ठा डालने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. जबकि कांग्रेस आलाकमान मिशन 2017 रावत के नेतृत्व में ही चुनावी पताका लहराने की तैयारियां कर रहा है. संगठन के प्रदेश मुखिया द्वारा उठाया गया सवाल भी एक बगावत के संकेत के रूप में देखा जा रहा है. प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भले ही यह कहते हों कि हरीश रावत के साथ उनका कोई मतभेद नहीं है, लेकिन उनका तौर-तरीका इस बयान के ठीक उलट है.

उत्तराखंड राज्य सवर्ण बहुल है. इस राज्य में सत्ता पाने के लिए तमाम राजनीतिक दल सत्ता-संगठन में एक पद ब्राह्मण तो दूसरा राजपूत को सौंप कर मैदान मारने की रणनीति पर कामयाबी प्राप्त करते रहे हैं. इसी फार्मूले पर कांग्रेस भी चल रही है. रावत को पछाड़ने के लिए भाजपा ब्राह्मण मतदाताओं को कांग्रेस से बिदकाने का काम कर रही है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मणों में मजबूत पकड़ वाले नेता माने जाते हैं.

दूसरी तरफ ‘खंडूरी है जरूरी’ की मांग से भाजपा हाईकमान भी परेशान है. कांग्रेस मुक्त हिमालय के भाजपाई संकल्प को कांग्रेस से गए नेता ही पलीता लगा रहे हैं. कांग्रेस के ‘विभीषणों’ के दम पर मिशन 2017 में उत्तराखंड फतह का भाजपाई सपना अंतरकलह के कारण परवान नहीं चढ़ पा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बल पर मुख्यमंत्री की कुर्सी थामे रहने वाले हरीश रावत को सत्ता से बेदखल करना भाजपा के लिए मुश्किल हो गया है. उत्तराखंड में होने वाले चुनाव में सीधा मुकाबला हरीश रावत बनाम नरेन्द्र मोदी होने जा रहा है. जमीनी स्तर पर एक बार फिर उठने लगी ‘खंडूरी है जरूरी’ की मांग से भाजपा हाईकमान परेशान है. मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी भी यह साबित कर रहे हैं कि उनकी लोकप्रियता कायम है और उनमें अभी भी काफी दम है. भाजपाइयों में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि कांग्रेस जब मुख्यमंत्री के बतौर रावत के चेहरे को आगे लेकर चल रही है तो भाजपा क्यों नहीं! लेकिन भाजपा नेतृत्व इसे लेकर असमंजस में है. मुख्यमंत्री पेश करने के सवाल पर भाजपा हाईकमान दो खेमों में बंटा दिखता है. एक खेमा अमित शाह के साथ है, जो संघ के निर्देश पर प्रदेश में कोई संघ-पृष्ठभूमि के युवा चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहता है तो दूसरी तरफ राजनाथ सिंह जैसे नेता हैं, जो जनरल खंडूरी के हिमायती हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए सतपाल महाराज, डॉ. हरक सिंह समेत कई नेता भी अपना दावा यदा-कदा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ठोकते रहते हैं. उत्तराखंड की राजनीति में क्षेत्रीय दल के रूप में सक्रिय भूमिका निभाते रहे ‘उत्तराखंड क्रांति दल’ (उक्रांद) के नेताओं की आज उतनी प्रासंगिकता नहीं रह गई. इस वजह से भी भाजपा और कांग्रेस निश्ंिचत हैं. योग गुरु रामदेव हरिद्वार के सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के पक्ष में खड़े हैं और एक अलग समीकरण बना रहे हैं. जनरल को आगे करने की ख़बर ने भगत सिंह कोश्यारी को राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा तक पहुंचा दिया. कोश्यारी की यह घोषणा हालांकि एक राजनीतिक शिगूफा ही मानी जा रही है.

भाजपा की पिछली कार्यसमिति की बैठक में ‘थिंक टूगेदर, वर्क टूगेदर’ का सूत्रवाक्य तो रचा गया लेकिन अधिकांश प्रतिनिधि आलाकमान की सोच से अलग ‘खंडूरी है जरूरी’ के नारे और विचार के ही साथ खड़ा दिखा. भाजपा आलाकमान खंडूरी को उम्र की दहलीज वाले फार्मूले पर रख कर किनारे लगाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन भाजपा कार्यकर्ता कुछ और चाहते हैं, यह भाजपा के सामने मुश्किल आने ही वाली है. भाजपा का प्रतिबद्ध और ईमानदार काडर हरीश रावत को धूल चटाने के लिए अगली पंक्ति पर सेनापति के रूप में जनरल खंडूरी को ही देखना चाहता है. उत्तराखंड भाजपा की कार्यसमिति की बैठक में पार्टी के लगभग 750 प्रतिनिधियों ने ‘थिंक टूगेदर, वर्क टूगेदर’ का संकल्प लेते हुए खंडूरी के समर्थन का ही संकल्प लिया. कार्यसमिति में यह साफ तौर पर उभर कर सामने आया कि कांग्रेस से आए ‘विभीषणों’ या दागदार निशंक के प्रति भाजपा आलाकमान ने रुझान दिखाया तो पर्वतीय प्रदेश से कांग्रेस मुक्त होने के बजाय भाजपा ही मुक्त हो जाएगी.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here