व्यवहार में यह होगा कि हर गांव एवं टोला संगठित होगा और उसमें रहने वाले बालिग स्त्री-पुरुषों को मिलाकर ग्रामसभा बनेगी. ग्रामसभा गांव की व्यवस्था चलाएगी. शांति, विकास, सामान्य न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती, रोज़गार एवं मज़दूरी आदि सब काम गांव के भीतर ग्रामसभा ही करेगी. ग्रामसभा ज़रूरत के अनुसार सरकार से सहायता लेगी, लेकिन गांव के दैनंदिन जीवन में सरकार का हस्तक्षेप नहीं होने देगी. ग्रामसभा स्वायत्त होगी, क़ानून एवं संविधान में उसके अधिकार सुरक्षित किए जाएंगे.
प्रश्‍न-लोक उम्मीदवार कितने क्षेत्रों में खड़े होंगे?
उत्तर-देश भर में अधिक से अधिक जितने क्षेत्रों में खड़े हो सकें. जनता आज की राजनीति से ऊब गई है. उसने बारी-बारी से सभी दलों का शासन देख लिया है. अब वह विकल्प चाहती है. कुछ महीने पहले उसने ऐसे नेता को जिताया, जो कभी राजनीति में नहीं था, क्योंकि उसने सोचा कि यह नेता कुछ अच्छा और नया काम करेगा. इसलिए हर निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को सोचना चाहिए कि उम्मीदवार के चयन का काम वे किसी दूसरे पर न छोड़कर अपने हाथ में लें, ताकि प्रतिनिधियों पर उनका अंकुश रहे और वे सही ढंग से सरकार चला सकें. एक बार लोक उम्मीदवार की हवा बह जाए, तो काम कठिन नहीं होगा.
प्रश्‍न-लोकनीति क्या है?
उत्तर-लोक यानी जनता, लोकतंत्र यानी जनता का राज. कहा जाता है कि देश में लोकतंत्र है, लेकिन क्या सचमुच जनता का राज है? जनता से 5 साल में एक बार या उससे पहले वोट देने को कहा जाता है. उम्मीदवार तय करते समय उससे नहीं पूछा जाता. हर दल अपने उम्मीदवार तय करता है और जनता से वोट की मांग करता है. कुछ लोग स्वतंत्र खड़े हो जाते हैं और जनता से वोट देने की अपील करते हैं. उम्मीदवार मतदाताओं को पसंद हो या नहीं, लेकिन उन्हें किसी न किसी उम्मीदवार को वोट देना है. यह क्या है? पहले जमाने में स्वयंवर होता था, जिसमें कन्या को स्वयंवर में आए हुए युवकों में से किसी एक के गले में जयमाल डालनी पड़ती थी. क्या चुनाव आज के जमाने का राजनीतिक स्वयंवर है, जो लोकतंत्र के नाम से रचा जा रहा है? कोई समय था, जब
राजाओं का शासन होता था. राजा के बाद उसका बेटा राजा होता था, लेकिन जागृति बढ़ी, तो जनता ने संघर्ष किया और यह सिलसिला समाप्त हुआ. तब जनता अपने प्रतिनिधि चुनने लगी और उन्हीं प्रतिनिधियों के हाथ में शासन की बागडोर सौंपी गई. अपने देश में राजाओं का राज था, जिनकी जगह पर अंग्रेजों ने अपना राज कायम किया. 1947 में अंग्रेजी राज का अंत हुआ. जिन नेताओं ने आज़ादी की लड़ाई में अगुवाई की थी, उन्हीं के हाथ में जनता ने राज-पाट सौंपा. लेकिन क्या हुआ? पिछले 35-36 वर्षों में कई सरकारें बदलीं, किंतु शासन दिनोंदिन अधिक से अधिक भ्रष्ट एवं निकम्मा होता गया और प्रतिनिधि निरंकुश एवं जनविरोधी बनते गए. प्रभुता के मद ने सबको घेर लिया. सारी सत्ता सरकार के हाथ में केंद्रित हो गई और जनता मोहताज एवं असहाय. अब जनता छटपटा रही है.
इस स्थिति से निकलने का उपाय है:
1-जनता संगठित होकर अपने दैनंदिन जीवन को अपने हाथ में लेने को तैयार हो.
2-सरकार में अपने प्रतिनिधि भेजे और उन पर अंकुश रखे. अगर लोकतंत्र में लोक मालिक है, तो उसे अपना राज-काज चलाने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेनी पड़ेगी और अपने प्रतिनिधियों को कठोर अंकुश में रखना पड़ेगा. कोई दूसरा हमारा काम कर दे, सुराज ला दे, यह कहने से अब काम नहीं चलेगा.
व्यवहार में यह होगा कि हर गांव एवं टोला संगठित होगा और उसमें रहने वाले बालिग स्त्री-पुरुषों को मिलाकर ग्रामसभा बनेगी. ग्रामसभा गांव की व्यवस्था चलाएगी. शांति, विकास, सामान्य न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती, रोज़गार एवं मज़दूरी आदि सब काम गांव के भीतर ग्रामसभा ही करेगी. ग्रामसभा ज़रूरत के अनुसार सरकार से सहायता लेगी, लेकिन गांव के दैनंदिन जीवन में सरकार का हस्तक्षेप नहीं होने देगी. ग्रामसभा स्वायत्त होगी, क़ानून एवं संविधान में उसके अधिकार सुरक्षित किए जाएंगे. हर गांव कम से कम भोजन और वस्त्र के मामले में स्वावलंबी होगा. उसकी अर्थनीति खेती, पशुपालन एवं उद्योग के आधार पर चलेगी.
अगर देश के लाखों गांवों और शहरों को स्वायत्त इकाइयों के रूप में विकसित करना हो, तो अनिवार्य है कि सरकार में ऐसे प्रतिनिधि जाएं, जो इस बात को कहें और इसके लिए लड़ें. आज दलों द्वारा जो प्रतिनिधि भेजे जा रहे हैं, उनसे यह काम नहीं हो सकता. गांव से जाने वाले प्रतिनिधि भी राजधानी में जाकर राजधानी के हो जाते हैं, क्योंकि उन पर कोई अंकुश नहीं रहता और गांव के पास कोई अधिकार एवं साधन न रहने के कारण वे असहाय हो जाते हैं. आज की राजनीति राजधानियों की राजनीति है, जहां स्वार्थों का बोलबाला है. हर अधिकार राजधानी में है और छोटी से छोटी चीज का उत्पादन गांवों से निकाल कर शहरों एवं बड़े केंद्रों में पहुंचा दिया गया है. सत्ता और संपत्ति के केंद्रीकरण पर यह राजनीति पल रही है और जनता दमन एवं शोषण की चक्की में पिस रही है.
इस स्थिति को बदलना है. केंद्रीकरण के विष को निकालने के लिए विकेंद्रीकरण आवश्यक है. विकेंद्रीकरण हर चीज का हो यानी अधिकार का, उत्पादन का, व्यवस्था आदि सबका. यह लोकनीति की दिशा है. लोक उम्मीदवार उस दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण क़दम है. पहुंचना है हमें ग्राम-स्वराज्य तक. वही हमारा धु्रवतारा है. गांव में हर व्यक्ति ईमान की रोटी खाए और इज्जत की ज़िंदगी जिए. किसी की छाती पर कोई सवार न हो. व्यवस्था लाठी-गोली से नहीं, आपस के प्रेम और सहकार से चले. सरकार उतनी हो, जितनी ज़रूरी हो. इतना हो जाए, तब समझिए कि गांव-गांव में स्वराज का सुख आ गया. गांधी जी कहते थे कि हमारे देश में गणतंत्र है, तो हर गांव एक छोटा गणतंत्र क्यों न बने? हम सब अपने अंदर छिपी हुई शक्ति को पहचानें और सही दिशा में क़दम बढ़ाएं, तो वह दिन शीघ्र आएगा, आकर रहेगा. उसके लिए राजनीति नहीं, लोकनीति चाहिए.

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