_MG_926216वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव नेताओं के साथ-साथ पत्रकारों के लिए भी थकाने वाला रहा. इस बार फोटोजर्नलिस्टों के लिए अपने काम को अंजाम देना सबसे ज्यादा चुनौती भरा रहा. बनारस इन चुनावों में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र था, वहां से भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल मैदान में थे. बनारस से हर पल एक नई खबर आ रही थी. इस हाइप की वजह से फोटोग्राफरों को सचेत रहना पड़ रहा था कि कब कहां जाने का फरमान मिल जाए. हर कोई खबरों और तस्वीरों को लेकर सजग था, लेकिन पत्रकार खासकर फोटोजर्नलिस्ट किन परिस्थितियों में काम कर रहे थे, इस पर किसी की नज़र नहीं गई.
बनारस में मोदी को रैली करने की अनुमति नहीं देने के बाद मोदी ने एक अघोषित रोड शो करने की बात आई. बदलते चुनावी समीकरणों को कैमरे में कैद करने के लिए दिल्ली से फोटोग्राफर बनारस के लिए निकलने का फरमान मिला. आम तौर पर फोटो जर्नलिस्टों को अपने साथ बहुत सारे उपकरण लेकर चलना पड़ता है. चुनावों के दौरान उनके ऊपर किसी एक इला़के की अधिकांश चुनावी गतिविधियों को कवर करने की बाध्यता होती है. पता नहीं किस जगह क्या ख़बर बन जाए. देश के अधिकांश हिस्सों में बिजली की समस्या है. ऐसे में कैमरे और लैपटॉप की बैटरी को चार्ज रखना और ज्यादा से ज्यादा और सबसे बेहतर तस्वीर निकालना अहम था, ताकि ज्यादा से ज्यादा समय फील्ड में रहा जा सके. तस्वीर खींचने में हुई एक पल की देर, सारा काम ख़राब कर सकती है. किसी भी परिस्थिति में सही समय सही तस्वीर निकालना चुनौती पूर्ण काम होता है. साथ ही भीड़ के बीच अपने उपकरणों को सुरक्षित रखना अहम है. यदि एक पत्रकार फील्ड में नहीं जा पाता है तो वह टीवी पर उसका सीधा प्रसाऱण देखकर भरपाई कर सकता है, लेकिन एक फोटो जरनलिस्ट के साथ मौसम और समय की परवाह किए बगैर फील्ड में जाने की बाध्यता होती है. चुनावी सरगर्मियों के बीच यदि बाहर का असाइन्मेंट अचानक मिलता है तो ट्रेन में रिजर्वेशन या हवाई टिकट मिल पाना बड़ा मुश्किल होता है. ऐसे में बिना रिजर्वेशन के फील्ड तक पहुंचने में परेशानी होती है, सफर आंखों में निकल जाता है. सफर खत्म होते ही थकान और नींद की परवाह किए बगैर काम पर निकलना होता था. यदि आप बिना किसी पूर्व-निर्धारित तरीके से पहुंचे हैं तो होटल एक बड़ी समस्या के रुप में सामने ख़ड़ा हो जाता था. बनारस गए पत्रकारों के लिए यह एक बहुत बड़ी समस्या थी, जहां सारे होटल बाहर से आए पार्टी कार्यकर्ताओं की वजह से भरे हुए थे. यदि होटल न मिले तो किसी तरह रात गुजारने के लिए एक कमरे का जुगाड़ करना बहुत ही पेचिदा काम था. एक कमरे में 3 से 4 लोगों के साथ रहना वक्त की मांग थी. बावजूद इसके फोटो पत्रकार अपने काम में लगे रहे, क्योंकि एक तस्वीर जो बात कहती है वो बात कई बार हजारों शब्द भी नहीं कह पाते हैं.

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