कांग्रेस के समय में विदेश में धन भेजने की सीमा 75 हजार डॉलर थी. मेरी सरकार के आते ही एक हफ्ते के अंदर इस सीमा को बढ़ाकर 125 हजार डॉलर कर दिया गया. फिर अगले वर्ष यानी 20 मई 2015 को इसेे बढ़ाकर 250 हजार डॉलर कर दिया गया. इसमें कोई दो राय नहीं कि इस छूट का हवाला कारोबारियों ने भरपूर फायदा उठाया और पिछले 11 महीनों में कई हजार करोड़ डॉलर विदेशों में ट्रांसफर कर दिए.

ये सब मेरी सरकार की जानकारी में हुआ. अब इस प्रश्न का उत्तर आरबीआई के पास इस समय नहीं है, आखिर इतनी बड़ी धनराशियां विदेशों में क्यों भेजी गईं? मैं इस पर विचार कर रहा हूं कि आखिर इतनी बड़ी धनराशि विदेश में क्यों भेजी गई. इस धनराशि को विदेश में भेजने के बावजूद मैंने नोटबंदी का कदम उठाया. मैंने सारे देश में बड़े नोट 1000 और 500 रुपए का प्रचलन बंद कर दिया.

उसे बंद करने के बाद देश में खामखा ये प्रचार चल रहा है कि मैं देश की अर्थव्यवस्था में कमी पैदा कर रहा हूं. मुझे एशियन डेवलपमेंट बैंक पर भी गुस्सा है, जिसने ये कहा है कि देश की विकास दर मेरे अनुमान से 7.1 होनी चाहिए थी, हालांकि ये पहले 7.6 थी, लेकिन अब वो सात प्रतिशत ही रहेगी. एशियन डेवलपमेंट बैंक भी अफवाह फैलाने में अफवाहबाजों का साथ दे रहा है.

लोग लाइनों में खड़े हैं. ये वही लोग हैं, जो कालेधन वाले हैं, भ्रष्टाचारी हैं. मैंने विदेश में कहा था कि देश के सारे काले धन वाले लाइनों में लगे हैं. अब ये लोग उनका 2000, 5000 रुपए का नोट बदलवाने के लिए खड़े हैं, जिनके पास कालाधन है. इनके पास पैसे कहां हैं, जो लाइनों में खड़े होते हैं.

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इनमें रिक्शे वाले, गरीब, मोची और सब्जी बेचने वाले हैं, इनमें बड़ी संख्या में मुसलमान भी हैं. ये सब कालेधन वाले व्यापारियों का पैसा 2000, 5000 और 24000 के रूप में सफेद करने में लगे हुए हैं. इसीलिए मैंने कहा कि ये कालेधन वाले लोग लाइनों में लगे हैं.

इस देश में चाहे अमिताभ बच्चन, अडानी, अजय देवगन या अंबानी बंधु हों या फिर जितने भी वे लोग जो एक हजार करोड़ से ज्यादा का व्यापार करते हैं या उनका टर्नओवर होता है, वे लोग कालेधन के पोषक नहीं हैं. विदेशों में उनकी जितनी संपत्तियां हैं, वो काला धन नहीं है.

वो मेहनत से कमाया हुआ पैसा है. कालाधन तो दरअसल हिन्दुस्तान में ही है, इसीलिए मैंने इस कालेधन को समाप्त करने के लिए जितने भी तरह के नोट बाजार में प्रचलित थे, उन सबको बदलने का आदेश दे दिया.

हमारे बैंकों ने जितनी राशि प्रचलन में थी, 14 लाख 60 हजार करोड़ के आसपास, मैंने उनसे कहा कि अगर अठारह लाख करोड़ भी हमारे पास आ जाएं, चाहे वो असली हों या नकली नोट हों, उन्हें सफेद करके बाजार में उतनी मुद्रा फेंको, ताकि पता रहे कि कितनी मुद्रा का लेन-देन हो रहा है.

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इसे मेरे विरोधी कहते हैं कि मैं देश पर बोझ डाल रहा हूं. मैं देश पर बोझ नहीं डाल रहा हूं. मैं देश से वो मुद्रा, जो कालाधन के रूप में प्रचलित है, जो नकली नोट के रूप में प्रचलित है या जो आतंकवादियों के इस्तेमाल में आती है, उसे समाप्त कर उतने ही रुपए के नये नोट मैंने बाजार में भेजने की योजना बनाई है, ताकि पता रहे कि कहां पर कितना पैसा चलन में है.

मैं संपादक के नाते इन सारी चीजों को गलत मानता हूं कि इनमें सच्चाई नहीं होगी. फिर भी चूंकि आप मेरा संपादकीय पढ़ते हैं, मैं आपसे राय मांगता हूं कि इनमें कितनी चीजें गलत हैं, कृपया मुझे अवश्य बताइए. मैं आपको आमंत्रित करता हूं कि चौथी दुनिया में इस पत्र के विरोध में जो भी लिखेंगे प्रमाण सहित, उसे मैं अवश्य आदर के साथ स्थान दूंगा. सरकार चाहे तो वो भी इन सारे सवालों के जवाब नकारात्मक कहकर खंडन के रूप में दे सकती है.

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