चारा घोटाले के आरसी 33ए/96 मामले में नीतीश कुमार को रांची हाईकोर्ट से करारा झटका लगा है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद बिहार का राजनीतिक पारा एक बार फिर चढ़ने लगा है. खासकर लालू प्रसाद का खेमा कोर्ट के फैसले के बाद अपने होमवर्क को अंतिम शक्ल देने में जुट गया है. आगामी 2 अगस्त से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में भी हंगामे के आसार हैं. इस बीच नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच लंबे अर्से बाद हुई मुलाकात के बाद राजधानी पटना में अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया है. चारा घोटाले के आरसी 33ए/96 मामले में रांची हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट द्वारा 28 नवंबर, 2011 को पारित आदेश रद्द कर दिया है. बीते 20 जुलाई के अपने आदेश में हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट रांची के विशेष न्यायाधीश को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ता मिथिलेश कुमार सिंह के अधिवक्ता के प्रत्येक बिंदुओं को सुनते हुए कानून के तहत मामले के गुण-दोष के आधार पर आदेश पारित करें. हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सीबीआई की विशेष अदालत में अब नीतीश कुमार एवं शिवानंद तिवारी को चारा घोटाले के विभिन्न मामलों में अभियुक्त बनाने और उनके खिलाफ सम्मन जारी करने पर बहस का रास्ता साफ हो गया है. हाईकोर्ट के इस फैसले का सीधा लाभ लालू प्रसाद को मिल सकता है, क्योंकि अब इस मामले की सुनवाई और भी लंबी चल सकती है. भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि लालू प्रसाद का खेमा अपनी ओर से भी इन मामलों में याचिका डालने की तैयारी कर रहा है.
गौरतलब है कि रांची की विशेष अदालत में मिथिलेश कुमार सिंह ने चारा घोटाले के कई मामलों में याचिका दायर करके  अदालत से कहा था कि श्याम बिहारी सिन्हा, डॉ. आर के दास एवं अनुसंधान अधिकारी ए के झा के 161 और 164 के बयान के अलावा कई अन्य बयानों से स्पष्ट होता है कि नीतीश कुमार एवं शिवानंद तिवारी ने इस घोटाले में पैसा लिया है. याचिका में कहा गया था कि ऐसे ही आरोपों में कई अभियुक्तों को अदालत ने सजा सुनाई है और कई अभियुक्त जेल की हवा खाने के बाद अदालती कार्यवाही से गुजर रहे हैं. गौरतलब है कि सूचना अधिकार कानून द्वारा मांगी गई जानकारी के तहत सीबीआई ने मिथिलेश कुमार सिंह को बताया है कि श्याम बिहारी सिन्हा ने अपने बयान में कहा था कि उमेश कुमार सिंह के मार्फत एक करोड़ रुपये नीतीश कुमार के यहां भेजे गए थे, लेकिन उमेश कुमार सिंह ने अपने बयान में इस बात से इंकार किया है. इसलिए नीतीश कुमार पर आगे की कार्रवाई नहीं की जा सकी. याचिका में कहा गया था कि अनुसंधान अधिकारी ने गवाही के दौरान स्वीकार किया कि एक करोड़ रुपये विजय मल्लिक के मार्फत उमेश सिंह के पास नीतीश कुमार को देने के लिए भेजे गए थे. इसके अलावा दस लाख रुपये महेंद्र प्रसाद और पांच लाख रुपये आर के राणा के मार्फत नीतीश कुमार को दिए गए. नीतीश कुमार ने पैसा पाने की बात स्वीकार कर श्याम बिहारी सिन्हा को धन्यवाद भी दिया. आर के दास ने अपनी गवाही में विदेश जाते वक्त भी नीतीश कुमार द्वारा पैसा लेने की बात कही है. इन बातों के आधार पर मिथिलेश कुमार सिंह ने अपने वकील दीनू कुमार से राय-मशविरा करके रांची की सीबीआई कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता बी पी पांडेय के मार्फत याचिका दायर कर अदालत से प्रार्थना की थी कि नीतीश कुमार एवं शिवानंद तिवारी के खिलाफ सम्मन जारी किया जाए. इसके अलावा वैकल्पिक प्रार्थना यह भी की गई थी कि 173/8 के तहत इन दोनों के खिलाफ आगे की जांच की जाए, लेकिन सीबीआई कोर्ट ने याचिकाकर्ता का पक्ष सुने बिना याचिका खारिज कर दी थी. कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता Stanger हैं और इनका Locus standi नहीं है. मिथिलेश सिंह ने इसी के खिलाफ हाईकोर्ट में मामले को चुनौती दी थी.
 
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि सीबीआई अदालत का फैसला गैरकानूनी और असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट  मुंबई बमकांड और टू जी स्पेक्ट्रम मामले में यह व्यवस्था दे चुका है कि कोई भी व्यक्ति अपराध के संबंध में कोर्ट में न्याय प्रक्रिया को मदद करने के लिए आवेदन दे सकता है. हाईकोर्ट को बताया गया कि चारा घोटाला में नीतीश कुमार एवं शिवानंद तिवारी के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं. इन सब बातों को सुनते हुए हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट का फैसला रद्द कर अपना फैसला सुनाया. हाईकोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए मिथिलेश सिंह ने बताया कि आरसी 20ए/96 मामले में भी जल्द से जल्द कानूनी प्रक्रिया तेज कर दी जाएगी. उन्होंने कहा कि वह काफी पहले से कह रहे हैं कि चारा घोटाले में लालू से कहीं ज़्यादा नीतीश कुमार एवं शिवानंद तिवारी की भूमिका है. रांची हाईकोर्ट के फैसले के बाद तो नैतिकता के आधार पर नीतीश कुमार को इस्तीफा सौंप देना चाहिए. वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार ने कहा कि अगर शंका भी होती है तो वैसे मामले में कोर्ट में ट्रायल होता है. इस मामले में तो श्याम बिहारी सिन्हा के बयान, डॉ. एस के दास के 164 के बयान और अनुसंधान अधिकारी द्वारा दिए गए साक्ष्य को आधार मानते हुए अभियुक्तों के खिलाफ सम्मन जारी किया जा सकता है. इन्हीं सब सबूतों के आधार पर लालू प्रसाद के खिलाफ मामला चल सकता है तो नीतीश कुमार एवं शिवानंद तिवारी के खिलाफ क्यों नहीं? बहरहाल, रांची हाईकोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक गलियारे में चर्चाओं का बाज़ार गर्म है और यह आशंका गहराती जा रही है कि विधानसभा का आगामी सत्र कहीं चारा घोटाले की भेंट न चढ़ जाए.

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