अयोध्या का प्रश्‍न विधानसभा में 31 अगस्त, 1950 में उठा. इसमें मुख्य मुद्दे ज़िले का सांप्रदायिक वातावरण, 6 सितंबर, 1950 को अक्षय ब्रह्मचारी का अनशन तथा 14 सितंबर, 1950 को अयोध्या में सांप्रदायिक मामले के कारण शांतिभंग की आशंका आदि थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने 14 सितंबर, 1950 को जो वक्तव्य विधानसभा में दिया, वह विधानसभा की रिपोर्टिंग में इस प्रकार दर्ज है:-
page-3गोविंद वल्लभ पंत का बयान
बजाय इसके कि बहुत-सी जिरह की बातें की जाएं, मैंने मुनासिब समझा कि अयोध्या के मसले के बारे में कुछ लोगों में गलत ख्यालात है और उसकी वजह से परेशानियां भी हैं, तो उसके बारे में एक पूरा बयान दे दूं, ताकि जो चीजें हमारे इल्म में हैं, वह सबके इल्म में आ जाएं और उस बारे में कम से कम जहां तक मेरी मालूमात है, उसके सिलसिले में कोई गलतफहमी न रहे. इस गरज से मैं आपकी इजाजत से इसे पढ़ना चाहता हूं:-
अयोध्या की कुछ घटनाएं अभी हाल ही में समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुई हैं और इस ओर लोगों का ध्यान और तरह से भी गया है, इसलिए सरकार यह उचित समझती है कि इस विषय की सारी बातें आप लोगों के सामने रख दी जाएं. जिन विषयों के बारे में चर्चा है, वे मुख्यतया ये हैं:-
(क) कुछ मकबरों को पहुंची हानि (ख) बाबरी मस्जिद (ग) स्टार होटल (घ) मुर्दों का गाड़ना (ड.) मारपीट.
इस संबंध में सरकार की जानकारी में जो बातें आई हैं, उनके अनुसार असलियत इस प्रकार है:-
(क) मकबरों को हानि पहुंचाने के बारे में
अयोध्या में चारों तरफ़ ऐसी बहुत-सी कब्रें फैली पड़ी हैं, जहां शायद ही कभी कोई जाता-आता हो. अयोध्या की आबादी में बीस हज़ार से ऊपर हिंदू और दो हज़ार से कम मुसलमान हैं. ऐसी दशा में यदि कोई इन कब्रों को कुछ हानि पहुंचा भी दे, तो इस प्रकार की शरारत करने वाले का पता लगाना कुछ सरल काम नहीं है. किंतु फिर भी, जब कभी इस प्रकार की कोई सूचना अधिकारियों को मिली है, तो उसके विषय में बिना विलंब के जांच और आवश्यक कार्यवाही की गई है. अक्टूबर, 1949 के अंत में पता लगा कि बाबरी मस्जिद और जन्म स्थान की चहारदीवारी के बाहर जो खुला मैदान पड़ा है, उसमें की कुछ कब्रों को किसी ने कुछ हानि पहुंचाई. परंतु इसकी जांच प्रारंभ कर दी गई और चार आदमी गिरफ्तार कर लिए गए. मजिस्ट्रेट ने इन लोगों को सजा कर दी, किंतु सेशन की अदालत से वे अपील में छूट गए. उस जगह कब्रों की रक्षा के लिए काफी पुलिस तैनात कर दी गई. इन सब कार्यवाहियों का असर अच्छा पड़ा और जनवरी, 1950 की दो घटनाओं को छोड़कर कब्रों को हानि पहुंचाए जाने की कोई घटना सरकार की जानकारी में नहीं हुई. इन दो घटनाओं में भी मजिस्ट्रेट की अदालत से सजा हो गई. जुलाई, 1950 में इन कब्रों में से किसी एक पर जो तारकोल से लिख दिया गया था, उसका मुकदमा अदालत में अभी चल रहा है.
(ख) बाबरी मस्जिद
बाबरी मस्जिद का मुकदमा अदालत में चल रहा है, इसलिए उसके बारे में कुछ कहना उचित नहीं है.
(ग) स्टार होटल
जनवरी, 1950 में उस समय के फैजाबाद के ज़िला अधिकारी को इस बात की सूचना मिली कि स्टार होटल बदमाशों का अड्डा बन गया है और वहां एक व्यक्ति, जिसके पास बिना लाइसेंस का
रिवाल्वर है, रह रहा है. सूचना पाने पर उन्होंने होटल बंद कर देने की आज्ञा दी और होटल की इमारत मालिक मकान के नाम एलॉट कर दी. जब यह बात सरकार को ज्ञात हुई और सरकार ने समझा कि ज़िला अधिकारी की कार्यवाही उचित नहीं है, तो उसने तुरंत आदेश किया कि इमारत स्टार होटल के मालिक को वापस कर दी जाए, किंतु रेट कंट्रोल एंड इविक्शन एक्ट के कुछ निर्देशों के कारण ज़िला अधिकारी को इमारत होटल के मालिक को वापस करने में कुछ कठिनाई प्रतीत हुई. इस पर होटल के मालिक ने यह चाहा कि उसी इमारत से मिली हुई दूसरी इमारत उसे एलॉट कर दी जाए. उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली गई और वह संतुष्ट हो गया. तबसे वह उस दूसरी इमारत में अपना होटल चला रहा है.
(घ) मुर्दों का गाड़ना
इस संबंध में तीन घटनाएं हुई हैं, जिनका ब्यौरा इस प्रकार है:-
(1) 28 मई को एक आदमी मरा और लोगों ने उसे शीश पैगंबर के कब्रिस्तान में गाड़ दिया. गाड़ने वाले लाश को उस आदमी के घर से सीधे कब्रिस्तान ही ले गए थे. जो आदमी मरा था, उसके संबंधी, बाबरी मस्जिद के निकट जो स्थान है, उसमें उस दिन सबेरे ही संभवत: कब्र खोदने के लिए गए थे. पड़ोस में रहने वाले हिंदुओं ने उस स्थान तथा सुतेहटी नामक कब्रिस्तान के बारे में इस आधार पर ऐतराज किया कि वहां 1934 से कोई मुर्दा नहीं गाड़ा गया था. पुलिस शीघ्र ही मौ़के पर पहुंच गई और तुरंत ही सिटी मजिस्ट्रेट भी पहुंच गए. इसके बाद शीश पैगंबर का कब्रिस्तान उस मुर्दे को गाड़ने के लिए चुना गया. इस बात के तय होने में दो घंटे से अधिक नहीं लगे. उस व्यक्ति के संबंधियों को कफन आदि के इंतजाम में कुछ समय लगा और उनके उक्त प्रबंध कर लेने पर ही मुर्दा गाड़ा जा सका.
(2) दूसरी घटना 20 जून की है. उस दिन आधी रात को सुतेहती के कब्रिस्तान में चुपके से एक मुर्दा गाड़ दिया गया था. उस कब्रिस्तान के बारे में हिंदुओं को पहले से ही आपत्ति थी. दूसरे दिन सुबह जब हिंदुओं को इस बात का पता चला कि उक्त कब्रिस्तान में एक मुर्दा गाड़ दिया गया है, तो वे वहां आकर इकट्ठे हो गए. वहां मुसलमान भी इकट्ठे हुए और जान पड़ा कि झगड़ा हो जाएगा, किंतु पुलिस ने मामले को रफा-दफा कर दिया और लोग वहां से चले गए. इस घटना के बाद हिंदू लोग यह कहने लगे कि जितने में अयोध्या की पंचकोसी परिक्रमा होती है, उसके भीतर कोई मुर्दा न गाड़ा जाए, किंतु अधिकारियों ने इस अनूठी मांग को नहीं माना.
(3) 11 जुलाई, 1950 की रात को कुछ मुसलमान यहां के थानेदार के पास गए और उनसे कहा कि वे सुतेहती में एक मुर्दा गाड़ना चाहते हैं, किंतु इस प्रस्ताव को थानेदार ने नहीं माना. दूसरे दिन सबेरे मुसलमान लोग इस मांग को लेकर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास गए, किंतु डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने उनसे कहा कि मुर्दा उन्हीं छह कब्रिस्तानों में से किसी एक में गाड़ा जा सकता है, जिन्हें गाड़ने के लिए म्युनिसिपल बोर्ड ने इस बीच में विज्ञापित कर दिया है. इसके बाद उन्होंने मुगलपुरा के कब्रिस्तान में मुर्दे को गाड़ना पसंद किया और उसे वहीं गाड़ दिया.
(ड़) मारपीट
फैजाबाद और अयोध्या दो भिन्न स्थान हैं. 4 अक्टूबर, 1949 को बकरीद के दिन फैजाबाद में जो घटनाएं घटी थीं, उनका अयोध्या से कोई संबंध नहीं है. लाख प्रबंध करने पर भी ऐसी घटनाएं जहां-तहां हो ही जाती हैं. उक्त अवसर पर हुआ यह था कि हिंदुओं ने एक कसाई पर इस शक पर हमला कर दिया कि उसने गाय की कुर्बानी म्युनिसिपिलिटी के नियमों के विरुद्ध की है. इस घटना के बाद उस दिन घर में घुसने और मारपीट करने की तीन और घटनाएं हुईं. इन मामलों की पूरी जांच की गई और इस समय उनके मुकदमे चल रहे हैं. 18 जुलाई, 1950 को सुन पड़ा कि फैजाबाद में एक शरणार्थी लड़के को कुछ मुसलमानों ने रात में ले जाकर कुएं में फेंक दिया. जब 18 जुलाई, 1950 को सबेरे यह समाचार ज़िले के अधिकारियों को मिला, तो उन्होंने तुरंत इस बात का प्रबंध किया कि यह आग फैल न जाए. इस बीच फैजाबाद की एक सड़क पर किसी ने एक मुसलमान को छुरा भोंक दिया. पुलिस का काफी प्रबंध पहले से ही किया जा रहा था. इसलिए इस घटना के बाद जनता में सुरक्षा और शांति का भाव शीघ्र ही पूरी तरह फिर स्थापित हो गया. फैजाबाद और अयोध्या में पहले की तरह ईद की नमाज पढ़ी गई. इसके अतिरिक्त फैजाबाद की ईदगाह में एक बड़ा मेला भी लगा, जिसमें सहस्त्रों मुसलमानों ने अपने बाल-बच्चों सहित भाग लिया. अयोध्या में होने वाले मार्च, 1950 के राम नवमी के मेले में और वहीं के पिछले सावन के मेले में सदा की भांति सैकड़ों मुसलमान व्यापारियों ने भाग लिया. फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को, जिन पर उस ज़िले की जनता के सभी वर्गों का समान विश्‍वास है, पूरा संतोष है कि अयोध्या के मुसलमान निवासियों में असुरक्षा या भय का तनिक भी भाव नहीं है. राशनिंग के आंकड़ों से कम से कम यह तो पता चलता ही है कि मार्च, 1950 में अयोध्या की जनसंख्या में लगभग 50 मुसलमान बढ़ गए हैं.
सरकार ऐसे सब मामलों में जिसकी सूचना उसे मिली है, बराबर उचित कार्यवाही करती और कराती रही है और अयोध्या की स्थिति में इस समय कोई असाधारणता नहीं है. तब भी इस बात में सावधान होने की आवश्यकता है कि सभी प्रश्‍नों पर सही दृष्टिकोण से विचार किया जाए, जिससे शांति पूरी बनी रहे और किसी को चिढ़ने या उत्तेजित होने का मौक़ा न मिले. इसलिए कि शांति बनी रहे और प्रत्येक नागरिक अपने नागरिक अधिकारों का स्वतंत्रता से उपयोग कर सके. सभी नागरिकों एवं सभी संप्रदायों में पूरा मेल-मिलाप, एक-दूसरे पर विश्‍वास और सद्भावना स्थापित की जाए. हमारे संविधान ने सबको अधिकारिक अधिकार (फंडामेंटल राइट) की सुरक्षा का आश्‍वासन (गारंटी) दिया है और सरकार चाहती है कि इस राज्य के सभी शांति प्रिय नागरिक इस संबंध में उसे क्रियात्मक सहयोग दें और सहनशीलता तथा संयम से काम लें, जिसमें पूर्ण सुरक्षा का भाव रहे और सभी को इन अधिकारों का शांतिमय उपयोग करने का पूरा-पूरा अवसर सदैव मिलता रहे.
कांग्रेस के ज़िला महामंत्री अक्षय ब्रह्मचारी के अनुसार, जब वह प्रात: ज़िलाधिकारी केकेके नैय्यर के साथ बाबरी मस्जिद में रखी मूर्तियों को देखने के लिए गए थे, उस समय मूर्ति आंगन में रखी हुई थी. बाद में यह मिम्बर तथा बीच गुुंबद के नीचे रखी गई. श्री ब्रह्मचारी ने बताया कि केकेके नैय्यर स्वयं उन्हें इस स्थिति को दिखाने के लिए ले गए थे.
क्या 22/23 दिसंबर, 1949 को रामलला की मूर्ति अचानक ही प्रकट हो गई थी और क्या उसके पीछे स़िर्फ वे ही लोग थे, जिनका उल्लेख थाना अयोध्या में23 दिसंबर, 1949 को दर्ज मुकदमा संख्या 215/1949 में किया गया था? इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत किए गए कुछ पत्र एक बड़े षड्यंत्र की तरफ़ इशारा करते हैं. यह पत्र व्यवहार उत्तर प्रदेश सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट, ज़िलाधिकारी फैजाबाद और कमिश्‍नर फैजाबाद के मध्य हुआ था. हाईकोर्ट में इन पत्रों की सत्यापित प्रतिलिपि दाखिल हुई थीं.
हाईकोर्ट द्वारा मूल पत्रों को मांगे जाने पर ज़िला प्रशासन द्वारा सूचित किया गया कि मूल पत्रावली, जिनमें ये पत्र सुरक्षित रखे गए थे, गायब हो गई है. काफी प्रयास करने के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार/ज़िला प्रशासन फैजाबाद पत्रावली उपलब्ध नहीं करा पाए और इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार ने एफआईआर दर्ज करा दी और जांच सीबीआई को सौंप दी गई. इस पत्रों में सामान्य प्रशासन के डिप्टी सेके्रटरी केहर सिंह की वह चिट्ठी भी है, जो ज़िलाधीश को 20 जुलाई, 1949 को लिखी गई थी. पत्राचार के इन पत्रों में फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट की 10 अक्टूबर, 1949 की वह रिपोर्ट भी है, जिसमें सिटी मजिस्ट्रेट ने लिखा है कि-मैं मा़ैके पर भूमि का निरीक्षण करने गया और इस संबंध में जानकारी प्राप्त की. यहां मंदिर-मस्जिद
अगल-बगल हैं. हिंदू तथा मुसलमान अपनी धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अधिकारों का प्रयोग करते हैं. हिंदुओं के प्रार्थना-पत्र में कहा गया है कि वे यहां छोटे मंदिर के स्थान पर एक भव्य व विशाल मंदिर बनाना चाहते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए हिंदुओं को मंदिर बनाने की अनुमति उस स्थल पर दी जा सकती है, जहां रामचंद्र जी पैदा हुए थे. जहां मंदिर बनना है, वह नजूल की ज़मीन है. (एजी नूरानी, पृष्ठ संख्या 206, दि बाबरी मस्जिद 1528 क्वेश्‍चन 2003 (वॉल्यूम-1, तूलिका बुक्स)

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