नौकरशाहों के लिए यह एक पुरानी कहावत है, वे चार और अधिकारी पैदा करेंगे, जो चार और डेस्क बनाएंगे. यही कार्य संस्कृति है और इसे बदलने के लिए प्रशासनिक सुधार की ज़रूरत है. बजट पेश होने के क़रीब एक महीने के बाद मैं देख रहा हूं कि बजट के बाद का वातावरण सामान्य है. वैसा नहीं है, जैसा प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी भाषणों में बनाने की बात कही थी. दिल्ली में एक जोक चल रहा है कि भाजपा अभी भी चुनाव वाली मानसिकता में है. हर कोई ऐसे बात कर रहा है, जैसे वह चुनाव लड़ रहा हो. उन्हें महसूस नहीं हो रहा है कि अब वे सत्ता में हैं और अपने चुनावी वादे पूरे करने हैं. और, इससे भी बड़ा जोक है कि कांग्रेस यह महसूस नहीं कर पा रही है कि वह विपक्ष में है. 

नरेंद्र मोदी को अपने साथियों समेत सरकार बनाए हुए और प्रधानमंत्री बने हुए अब 10 महीने बीत चुके हैं. कुल मिलाकर तस्वीर यह बन रही है कि सरकार हमेशा की तरह एक सरकार के रूप में काम कर रही है. इस देश में ज़्यादातर काम सामान्य रूप से चलते रहे हैं. भाजपा द्वारा कुछ बड़े परिवर्तनों की उम्मीदें जगाई गई थीं. यहां तक कि उस समय भी राजनीतिक प्रेक्षकों ने माना था कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इतनी जल्दी परिवर्तन नहीं लाया जा सकता, चाहे किसी की इच्छा कुछ भी क्यों न हो. ऐसा केवल अधिनायकवादी शासन में हो सकता है. किसी लोकतंत्र में ऐसा नहीं हो सकता. लोकतंत्र में सभी हितधारकों को किसी मुद्दे पर एक साथ लाकर ही कुछ किया जा सकता है. इसलिए सरकार अभी तक विभिन्न बाधाओं के बीच
संतोषजनक रूप से काम करती आ रही है.
नरेंद्र मोदी विकास की बात करते हैं. वह कहते हैं सबका साथ, सबका विकास. उनका मुख्य उद्देश्य भी विकास ही है और वह यह मानते भी हैं कि इसके बिना देश का भविष्य बहुत अच्छा नहीं हो सकता. यह अच्छी बात है. समस्या वाली बात और है. संघ परिवार से जुड़े कई संगठन, चाहे वह विश्‍व हिंदू परिषद हो या कोई अन्य, वे ऐसे काम कर रहे हैं, ऐसे बयान दे रहे हैं, जिनका कोई मतलब नहीं है. दरअसल, वे सब नरेंद्र मोदी के प्रयासों को विफल करने की कोशिश कर रहे हैं. पुणे में दाभोलकर की हत्या, साध्वी द्वारा हिंदुओं को चार बच्चे पैदा करने की सलाह, चर्चों पर हमले इसका प्रमाण हैं. इन सबका कोई मतलब नहीं है. हमारे जैसे धर्मनिरपेक्ष लोग या कांग्रेस इस बात को लेकर चाहे जितने गुस्से में हों, वह अलग बात है, लेकिन इस सबमें नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ही सबसे बड़ी लूजर (हारने वाला) है.
इस देश का इतिहास हज़ारों सालों का है. भाजपा पांच साल के लिए चुनी गई है. पांच साल बाद फिर चुनाव होंगे यानी आज से ठीक चार साल बाद. इसके बाद भी कई सरकारें आएंगी और जाएंगी. नरेंद्र मोदी और भाजपा को इसलिए याद किया जाएगा कि सत्ता में रहते हुए उन्होंने क्या किया? ऐसे में, नरेंद्र मोदी को सफल प्रधानमंत्री बनाने या उनके प्रयासों को पूरा करने के बजाय ये लोग सारेकिए-धरे पर पानी फेरने वाले काम कर रहे हैं. इससे उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा. कुछ चर्च जलाकर, किसी की हत्या करके वे हिंदुत्व का लक्ष्य पा लेंगे, उनकी यह सोच ग़लत है, बल्कि ऐसा करके वे स़िर्फ असुरक्षा की भावना और भय पैदा कर रहे हैं. असली हिंदुत्व की भावना पाने की बात भूल जानी चाहिए. यह लेखक एक हिंदू है, एक समर्पित हिंदू. और, मुझे लगता है कि मैं यह कहने की हिम्मत कर सकता हूं कि हिंदुत्व का प्रचार करने वालों से बेहतर हिंदू मैं हूं. इस पृथ्वी पर ऐसा किसने कहा है कि हिंदुत्व के विचार का विरोध करने वाले की हत्या से हिंदुत्व को ताकत मिल जाएगी या अयोध्या में मस्जिद तोड़कर या कुछ चर्च जलाकर राम और कृष्ण की महिमा बढ़ जाएगी? किसने और कहां ये सारी बातें कही-लिखी हैं? जाहिर है, इन लोगों ने हमारे धर्मग्रंथ नहीं पढ़े हैं.
जो मूल बात मैं कहना चाह रहा हूं, वह यह है कि नरेंद्र मोदी अब देश के प्रधानमंत्री हैं, वे स़िर्फ भाजपा के प्रधानमंत्री नहीं हैं और स़िर्फ भाजपा के नेता नहीं हैं. उन्हें सफलता मिले, इसके लिए प्रत्येक भारतीय का यह कर्तव्य बनता है कि वह उनकी सहायता करे, क्योंकि नरेंद्र मोदी की सफलता का मतलब है, देश की सफलता. यदि आप अधिक रा़ेजगार, अधिक उद्योग, कृषि का विकास, सभी की समृद्धि चाहते हैं, जो मोदी का उद्देश्य है, तो उनकी नीतियों का सफल होना बहुत ज़रूरी है. आरएसएस को एक चिंतन बैठक बुलाने की ज़रूरत है और उन्हें यह निर्णय लेना चाहिए कि वे क्या करना चाहते हैं? अपनी अदूरदर्शिता के तहत अपना एजेंडा आगे करने के लिए सरकार के इस्तेमाल से उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा. ऐसा करके वे भाजपा सरकार का संपूर्ण आधार नष्ट कर देंगे. मुख्य बात यह है कि पहले से ही बहुत अधिक शिकायतें हैं. उदाहरण के लिए, कॉरपोरेट और ट्रेड सेक्टर महसूस करते हैं कि बजट अप टू मार्क (उम्मीद के मुताबिक) नहीं रहा. आख़िर क्यों? वजह, पहले से ही अपेक्षाएं इतनी बढ़ा दी गई थीं कि वित्त मंत्री जो भी करते, वह कम ही लगता.

इस देश का इतिहास हज़ारों सालों का है. भाजपा पांच साल के लिए चुनी गई है. पांच साल बाद फिर चुनाव होंगे यानी आज से ठीक चार साल बाद. इसके बाद भी कई सरकारें आएंगी और जाएंगी. नरेंद्र मोदी और भाजपा को इसलिए याद किया जाएगा कि सत्ता में रहते हुए उन्होंने क्या किया? ऐसे में, नरेंद्र मोदी को सफल प्रधानमंत्री बनाने या उनके प्रयासों को पूरा करने के बजाय ये लोग सारे किए-धरे पर पानी फेरने वाले काम कर रहे हैं. इससे उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा. कुछ चर्च जलाकर, किसी की हत्या करके वे हिंदुत्व का लक्ष्य पा लेंगे, उनकी यह सोच ग़लत है, बल्कि ऐसा करके वे स़िर्फ असुरक्षा की भावना और भय पैदा कर रहे हैं. असली हिंदुत्व की भावना पाने की बात भूल जानी चाहिए.

व्यापार एक निरंतर बात है, इसलिए यह हमारी चिंता का विषय नहीं है. यहां तक कि सख्त समाजवाद और सख्त क़ानूनों के बीच भी कारोबार समृद्ध हुआ. उन दिनों में भी बड़े व्यापारिक घराने अस्तित्व में आए, जब क़ानून कठोर थे. यह सरकार बहुत अधिक भ्रमित है. मोदी विकास चाहते हैं, वहीं संघ परिवार अपना एजेंडा आगे बढ़ाना चाहता है और नौकरशाह नहीं चाहते कि सिस्टम में कोई बदलाव हो. वे किसी भी क़ानून में परिवर्तन नहीं चाहते. सरकार कह रही है कि हम व्यापार को आसान बनाएंगे. मोदी सिंगापुर, फिलीपींस और दक्षिण पूर्व के साथ खुद की तुलना करते हुए व्यापार को आसान बनाना चाहते हैं. वह न जाने किस दुनिया में जी रहे हैं! भारत व्यापार करने के लिए सबसे मुश्किल जगहों में से एक है. यह उनके लिए आसान है, जो यहां रह चुके हैं. ऐसे लोग लाइसेंस, रिश्‍वतखोरी, भ्रष्टाचार की संस्कृति से परिचित हैं और इन सबका कोई न कोई विकल्प तलाश लेते हैं. कोई विदेशी, अगर उसे कोई अन्य विकल्प मिले, तो वह भारत क्यों आएगा? नरेंद्र मोदी इस संस्कृति को बदलना चाहते हैं, लेकिन नौकरशाही उसमें बाधा उत्पन्न करती है.
माफी के साथ कहना चाहता हूं कि गुजरात मॉडल मंत्री से अधिक नौकरशाह पर निर्भर है और प्रधानमंत्री दिल्ली में यही मॉडल दोहराने की कोशिश कर रहे हैं. इससे सफलता बहुत सीमित हो जाएगी. नौकरशाही के बारे में कहा जाता है कि कोई चीज सरल बनाने के लिए आप एक कमेटी बनाते हैं. तीन महीने बाद वह कमेटी एक ऐसी रिपोर्ट लेकर आती है, जो सरलीकरण के नाम पर उस चीज को और अधिक जटिल बनाने का काम करती है. नौकरशाहों के लिए यह एक पुरानी कहावत है, वे चार और अधिकारी पैदा करेंगे, जो चार और डेस्क बनाएंगे. यही कार्य संस्कृति है और इसे बदलने के लिए प्रशासनिक सुधार की ज़रूरत है. बजट पेश होने के क़रीब एक महीने के बाद मैं देख रहा हूं कि बजट के बाद का वातावरण सामान्य है. वैसा नहीं है, जैसा प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी भाषणों में बनाने की बात कही थी. दिल्ली में एक जोक चल रहा है कि भाजपा अभी भी चुनाव वाली मानसिकता में है. हर कोई ऐसे बात कर रहा है, जैसे वह चुनाव लड़ रहा हो. उन्हें महसूस नहीं हो रहा है कि अब वे सत्ता में हैं और अपने चुनावी वादे पूरे करने हैं. और, इससे भी बड़ा जोक है कि कांग्रेस यह महसूस नहीं कर पा रही है कि वह विपक्ष में है. वह ऐसे बात कर रही है, जैसे अभी भी वह सत्ता में है. वह विपक्ष के रूप में अपनी भूमिका नहीं निभा रही है.
दूसरा मुख्य मुद्दा जिससे देश परेशान है, वह है भूमि सुधार अधिनियम. कांग्रेस का अंतिम एक्ट, जिसे भाजपा ने समर्थन दिया था. ठीक है कि भाजपा आज सत्ता में है और उसे लगता है कि अब इसमें कुछ बदलाव की ज़रूरत है. लेकिन इसके लिए उसे एक, दो, तीन, चार यानी कुछ बिंदु बनाने चाहिए और बताना चाहिए कि हम इसे बदलना चाहते हैं. फिर कांग्रेस के साथ बहस करके, उसे सहमत कराकर इसे पास कराना चाहिए. लेकिन, इसकी जगह वे एक अध्यादेश ले आए और लोकसभा से उसे पास करा दिया. अब अन्ना हजारे इस पर आंदोलन कर रहे हैं, विपक्ष आंदोलन कर रहा है और किसान नाराज हैं. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि वास्तव में इस सरकार का उद्देश्य क्या है? वे पांच साल शासन करने वाले हैं, लेकिन ऐसा बर्ताव कर रहे हैं, जैसे पांच साल से पहले ही सत्ता से बाहर जाना चाहते हैं. लेकिन यह मुश्किल है. उन्हें पांच साल शासन करना है और काम भी करना है. जब वे सत्ता में आए थे, तब 15 साल, 20 साल की बात कर रहे थे. केजरीवाल के सत्ता में आने के बाद यह बात होनी बंद हो गई है, अब पांच साल की बात होती है. लेकिन, जितनी जल्दी वे ज़मीनी हक़ीक़त को समझ लें और हालात के मुताबिक काम करना शुरू कर दें, उतना ही अच्छा होगा.प

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