अफसोस किस पर करें. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ क्या इससे नीचे भी गिरेगा या यही इसकी सीमा है. हमने हमेशा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को नैतिकता का नाम लेते और शालीनता का व्यवहार करते देखा है. जो लोग संघ को ज़्यादा जानते हैं, वे इस पर ज़्यादा भरोसा नहीं करते तथा कहते हैं कि वह संघ का बाहरी चेहरा है. असलियत के पक्ष में उनका तर्क है कि देश में पिछले सालों में जहां भी बम धमाके हुए, उनमें जांच के बाद जिनकी गिरफ़्तारी हुई, वे सभी संघ से जुड़े थे. मुसलमानों के ऊपर ज़िम्मेदारी डालने की रणनीति जांच एजेंसियों की वजह से नाकाम हो गई. हम इस बहस में अभी नहीं पड़ना चाहते, क्योंकि जांच एजेंसियां अभी भी कुछ बड़े खुलासे करने की राह में हैं और कई जगहों पर केस अदालत में पहुंच गया है.

संघ का चेहरा माने जाने वाले गुरुजी, रज्जू भइया या स्वयं सुदर्शन जी और अब मोहन भागवत ने कभी शालीनता की हद नहीं तोड़ी. तो ऐसा क्या हो गया कि पूर्व संघ प्रमुख के सी सुदर्शन को यह कहना पड़ा कि सोनिया गांधी सीआईए की एजेंट हैं और उन्होंने ही अपनी सास श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या कराई है? जिन लोगों ने वीडियो देखा है और सुदर्शन को बोलते सुना है, उन्हें आश्चर्य हुआ कि तीन वाक्य सही न बोल पाने वाले पच्चासी वर्षीय सुदर्शन बुढ़ापे के कितने दबाव में हैं.

पर संघ का चेहरा माने जाने वाले गुरुजी, रज्जू भइया या स्वयं सुदर्शन जी और अब मोहन भागवत ने कभी शालीनता की हद नहीं तोड़ी. तो ऐसा क्या हो गया कि पूर्व संघ प्रमुख के सी सुदर्शन को यह कहना पड़ा कि सोनिया गांधी सीआईए की एजेंट हैं और उन्होंने ही अपनी सास श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या कराई है? जिन लोगों ने वीडियो देखा है और सुदर्शन को बोलते सुना है, उन्हें आश्चर्य हुआ कि तीन वाक्य सही न बोल पाने वाले पच्चासी वर्षीय सुदर्शन बुढ़ापे के कितने दबाव में हैं. तब क्या यह बयान सुदर्शन ने अपने आप दिया या उनसे दिलवाया गया, यह सवाल है.
एआईसीसी के दिल्ली अधिवेशन, जिसमें सोनिया गांधी को अध्यक्ष पद पर चुने जाने का अनुमोदन हुआ, ने कोई ख़ास असर नहीं छोड़ा. इसलिए क्योंकि कांग्रेस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुप रही, लेकिन उसने संघ को आतंकवादी जैसा बताने वाली शब्दावली का प्रयोग किया. राहुल गांधी ने भी कहा कि संघ और सिमी एक बराबर हैं. उधर संघ के नेता इंद्रेश का नाम अजमेर बम ब्लास्ट की योजना बनाने वालों में आ गया. इसने संघ के ऊपर दबाव बनाया और संघ ने सारे देश में विरोध प्रदर्शन किए. इन्हीं प्रदर्शनों के दौरान सबने भाषण दिए और सुदर्शन ने अपना शालीनता की हद तोड़ता बयान दे दिया. संघ रणनीतियां बनाता है और उन पर अमल भी करता है, लेकिन संघ ने सबसे अजीब काम यह किया कि एक ओर तो पच्चासी वर्षीय सुदर्शन से सोनिया गांधी के ख़िला़फ घटिया बयान दिलवाया और चौबीस घंटे के भीतर आधिकारिक तौर पर अपने को उससे अलग कर लिया. कहा कि ये सुदर्शन के अपने विचार हैं. इस क़दम को किन शब्दों में क्या नाम दें, आप ख़ुद तय करें, पर संघ ने बताया कि या तो सुदर्शन जी शुरू से अशालीन और अतार्किक आदमी रहे हैं या फिर उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है.
अटल बिहारी वाजपेयी सात साल तक प्रधानमंत्री और लालकृष्ण आडवाणी उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे. दोनों संघ से जुड़े बड़े नाम हैं. सुदर्शन सामान्य आदमी नहीं हैं. इनके लगाए आरोप के पक्ष में अटल जी और आडवाणी जी को आना चाहिए तथा यह बताना चाहिए कि यदि ये आरोप सही हैं तो उनकी सरकार ने आपराधिक कार्रवाई क्यों नहीं की. और यदि ग़लत हैं तो सुदर्शन और संघ को देश से माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि इससे उनका विश्वास भी टूटा है, जो संघ की विचारधारा से कतई सहमत नहीं थे, पर उनका सम्मान करते थे. अब संघ की मशीनरी यह प्रचार कर रही है कि सुदर्शन का बयान राहुल गांधी का जवाब है, जिसमें उन्होंने संघ को आतंकवादी कहा है. पर क्या राहुल गांधी को संघ अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानने लगा है, जो उनके बयान पर उसने यह क़दम उठा लिया, जिसने देश के लोगों के मन में संघ को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं. भारतीय जनता पार्टी में इंदिरा गांधी से रिश्ता रखने वाले दो लोग और हैं, मेनका गांधी और वरुण गांधी. ये दोनों सोनिया गांधी को अच्छी तरह जानते हैं. वरुण गांधी तो के सी सुदर्शन के सबसे नज़दीकी लोगों में रहे हैं तथा वरुण गांधी को भाजपा की मुख्यधारा में लाने में उनका बहुत बड़ा हाथ रहा है. क्या यह जानकारी के सी सुदर्शन को वरुण गांधी ने दी थी? संदेह साफ होना चाहिए और वरुण गांधी तथा मेनका गांधी को सार्वजनिक रूप से के सी सुदर्शन के बयान का विरोध करना चाहिए या फिर समर्थन करना चाहिए.
कांग्रेस के महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने देश भर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा कि वे विरोध प्रदर्शन करें, पर विरोध प्रदर्शन जिस संख्या और तेवर में देशव्यापी होना चाहिए, वह नहीं हुआ. सोनिया गांधी को इससे अपने संगठन की गतिशीलता और सामर्थ्य का पता चल गया होगा. संगठन पर ध्यान न देना राज्यों में हार का सामना कराता है और जब सुदर्शन के बयान जैसा मामला आता है, तब संगठन नाकारा बन जाता है. लेकिन यह सुदर्शन और सोनिया गांधी का आपसी मामला नहीं है. यह मामला देश के प्रधानमंत्री की हत्या और विदेशी एजेंसी के एजेंट बने रहने में एक शख्स शामिल है या नहीं, इसका मामला है. अगर इस मामले को यहीं रोकना है तो अटल बिहारी वाजपेयी, आडवाणी जी, मेनका गांधी और वरुण गांधी को तत्काल स्थिति साफ करनी चाहिए तथा अंत में देश के गृहमंत्री को सामने आना चाहिए. यदि सोनिया गांधी संदेह के दायरे में नहीं हैं तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख रहे के सी सुदर्शन की न केवल निंदा होनी चाहिए, बल्कि उन पर क़ानूनी कार्रवाई भी होनी चाहिए. और यदि सोनिया गांधी के बारे में कुछ है तो आडवाणी को सामने आकर रहस्य से पर्दा उठाना चाहिए और सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए.
यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि सार्वजनिक जीवन में जो कुछ अच्छा बचा है, वह बचा रहे. उसे नष्ट करने वालों की, चाहे वे कोई क्यों न हों, सारे देश को निंदा करनी चाहिए.

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