ग्यारह नवम्बर 1888 के दिन मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जी का जन्म मक्का में हुआ ! क्योंकी उनके पिताजी मौलाना खैरूद्दीन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के कारण और उसमें नाकामयाबी के बाद अंग्रेजी सल्तनत को नापसंद करने की वजह से भारत से मक्का में बस गये थे ! और उन्ही के कुछ शागिर्दों ने 1867 देवबंद धार्मिक संस्थान का निर्माण किया ! और मौलाना खैरूद्दीन मक्का में रहकर देवबंद के धार्मिक संस्थान को मार्गदर्शन करते रहें !
11 नवम्बर को पैदा हुए बच्चे का नाम मक्का की प्रथा के अनुसार दो नाम रखे गये ! (1)मोहीउद्दीन अहमद तो कलकत्ता के मुस्लिम पीठ के भावी वारिस के रूप में दुसरा नाम (2) फिरोज बख्त रखा गया ! और मौलाना आझाद ने अपने लेखन के लिए आझाद नाम खुद पसंद किया ! मौलाना आझाद की मक्का की तालीम पारंपरिक मुस्लिम तौर-तरीकों से हुई है ! और जन्मना प्रतिभा के कारण वह मुस्लिम धर्मशास्त्र मे विलक्षण पांडित्य प्राप्त करने के कारण समस्त अरबस्थान में ख्याति अर्जित करने के कारण उन्हें विद्यापारंगत यानी विद्दावाचस्पती मतलब अबुल कलाम यह उपाधि दी गई थी ! ऊस समय उनकी उम्र अठारह साल की थी ! और इसी कारण उनके बचपन के दिये हुए दोनों नाम विस्मरण में चले गये ! और वह आगे चलकर मौलाना अबुल कलाम आझाद के नाम से ही जाने लगे !


कलकत्ता के मुस्लिम पीठ के अनुयायियों के आग्रह के कारण मौलाना खैरूद्दीन अपने बेटे के साथ भारत वापस आए , तबतक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हो चुकी थी ! और देवबंद संस्था का संपूर्ण सहयोग शुरु से ही कांग्रेस को रहा है ! और इस कारण मौलाना आझाद भी स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के साथ भारत वापस आए तो जुडे !
भारत वापस आने के बाद उन्होंने आधुनिक शिक्षा ग्रहण की जिससे हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओ में महारत हासिल की अरबी भाषा का ज्ञान तो पैदायशी हासिल किया था ! इस कारण 1908 में उम्र के बीस साल में अरबस्थान, इजिप्त, तुर्किस्तान और इराक-इराणकी यात्रा की !


1912 में जनजागृति के हेतु से कलकत्ता से ‘अल हिलाल’ नाम की पत्रिका शुरू की ! और इस पत्रिका को पढने के कारण सरहद गाँधी खान अब्दुल गफ्फार खान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए ! कुराण के माध्यम से अंग्रेजी सल्तनत के खिलाफ प्रभावशाली ढंग से ‘अल हिलाल’ में मौलाना आझाद लिखनेवाले लेखक के कारण ! अल हिलाल के हजारों की संख्या में पाठक बढते देखकर, अंग्रेजो ने मौलाना आझाद को गिरफ्तार कर लिया ,और अल हिलाल को बैन कर दिया ! तो जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने ‘अल बलाल’ नाम से दुसरी पत्रिका शुरू किया ! 1923 को दिल्ली कांग्रेस अधिवेशन के वह अध्यक्ष चुने गए ! उस समय वह 35 साल की उम्र के थे ! 1912-1923 इन ग्यारह सालो में विलक्षण लोकप्रिय राजनेताओं में शामिल हो चुके थे !
मौलाना आझाद ने धर्मग्रंथों का क्रांतिकारी विश्लेषण किया है ! मुख्य रूप से कुरान का भाष्यकार के रूप में उन्होंने 1930 में अपना ग्रंथ प्रकाशित किया है ! और इस कारण कठमुल्लापन के शिकार मौलानाओ ने उन्हें बिदात, इरतकाम, और इरतदान यह तीन गुनाहो की सजा सुनाई थी ! और इन तीनों में से किसी भी एक गुनाह की सजा पत्थरों से कुचल कर मारने की थी ! ( और यह 1930 की बात है ! )


मौलाना आझाद को इतनी कडी सजा सुनाने की वजह, मुहम्मद पैगंबर के मृत्यु के तीन सौ साल बाद , यानी 933 में संग्रह करके अधिकृत कुरान को प्रकाशित किया गया है ! और वह अपरिवर्तनीय, परिपूर्ण, परमेश्वरी ग्रंथ होने का दावा करने वाले लोगों को मौलाना आझाद ने चेतावनी दी कि इजतिहाज, कयास, मतलब तर्कसंगत विचार इस्लाम में है ! और यह उन्होंने तर्कशास्त्र, भाषाशास्र के माध्यम से कालसापेक्षता, सर्वधर्म समभाव और शुद्ध मानवता यह कुरान का मुख्य आधार है ! और जिहाद, काफिर,दारूल हर्ब जैसे विचार उस-उस जमाने के स्वार्थी, भ्रष्टाचारी राजनीति की देन है ! इस तरह का इस्लाम में तेरा सौ साल के बाद इतिहास में पहले इस्लाम के विद्वान पैदा हुए थे ! मौलाना आझाद के हिसाब से हादिस यह मनुष्य का भाष्य है ,और उसमें गलतियाँ हो सकती है ! और तीन सौ साल बाद कुरान का अर्थ हजरत मुहम्मद पैगंबर साहब के समय जो लगाया जा रहा था उसे आज मै मानने के लिए बाध्य नहीं हूँ ! और इस तरह से समस्त इस्लामिक परंपरा को जबर्दस्त धक्का देने का काम किया है ! और इस में उनका मुख्य तर्क कालसापेक्षकता का ही रहा ! क्योंकि सातवीं शताब्दी में अरबस्थान की परिस्थितियों से निकला हुआ कुरान आज भी वैसे ही लागू करवाने का आग्रह सर्वथा गलत है ! यही उनका मुख्य तर्क था !
मौलाना आझाद ने कुरान का अर्थ उम्मतुलवाहिदा के संदर्भ में लगाया है ! मदीना में जू, ख्रिश्चन, साबीयान, मागियान और मूर्तिपूजक इस तरह के पाँच गुट और इस्लाम के अनुयायियों को मिलाकर छ प्रकार के समुदाय रह रहे थे ! तो सबकी प्रार्थनापद्धति एक हो, और मक्का की तरफ मुहं करके प्रार्थना करने वाले मुस्लिम जेरूसलम की तरफ मुहं करके प्रार्थना करने लगे ! इश्वर तो सब तरफ है, तो जेरूसलम की तरफ मुहं करके प्रार्थना करने में क्या हर्ज़ है ? यह सवाल खुद पैगंबर साहब ने किया है ! और मुसलमान होने की जबरदस्ती किसी पर भी नहीं करनी है ! इस तरह की बहुधर्मिय सरकार अस्तित्व में लाने का ,और पुरानी अमानुष प्रथाओं को बंद कर के महिला, गुलामोका आदर करना, सूद प्रथा खत्म कर के सभी को समान न्याय व्यवस्था कायम करने की हजरत मुहम्मद साहब के समय धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक इस्लाम का मूल है ! सर्वधर्मिय सरकार ‘उम्मतुलवाहिदा ‘ निर्माण करना और उसे कायम रखना यही सच्चा धर्म है ! और वही कुरान का असली अर्थ है ! यही बात मौलाना आझाद ने अपने कुरान के भाष्य में लिखा था ! जिसके कारण उन्हें पत्थरों से कुचल कर मारने की सजा कुछ कट्टरपंथी मौलाना आजसे नब्बे साल पहले सुना चुके हैं !


मौलाना आझाद ने स्वतंत्र पाकिस्तान के बनने का पुरजोर विरोध किया है ! और हिंदु-मुसलमान दोनों के लिए यह बात गलत है ! यह मौलाना आझाद की राय इमानदारी से थी ! अखंड भारत सर्वधर्मिय उम्मतुलवाहिदाके प्रयोग हेतु मौलाना आझाद को चाहिए था ! उसमें हदीस की तुलना में आधुनिकता, विज्ञान, और शुद्ध धार्मिकता का समावेश उन्हें अपेक्षित था ! और मौलाना आझाद के विचारों के अनुसार भारत बना होता तो भारत में वर्तमान सांप्रदायिक राजनीति का नामो-निशान तक नहीं होता ! और बैरिस्टर जीना, वंदेमातरम, मंदिर-मस्जिद, तीन तलाक़, हिजाब, कश्मीर जैसे भावनाओं को भड़काने वाले सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की संभावना नहीं होती !
हमारी आजादी की पचहत्तरवी मनाने के साल में हम आज मौलाना आझाद की 133 वीं जयंती के अवसर पर उन्हें सच्चा सम्मान देना है ! तो उन्होंने लिखा हुआ साहित्य ‘इंडिया विन्स फ्रीडम,’ ‘तजकेरा,’ गुब्बारेखातिर,’ कौल फौसल,’ दास्ताँने करबला’ और कुरान के उपर लिखा भाष्य, यह उनकी लिखी हुई साहित्य संपदा का अध्ययन करना, और उन्होंने 1924 में एकता परिषद हिंदू-मुस्लिमोके लिए गठित की थी ! इतिहास के क्रम में कभी नहीं उतनी आवश्यकता आज इस तरह के परिषद की है ! क्योंकि गत तीस-पैतीस सालों से हमारे देश की राजनीति का केंद्र बिंदु सिर्फ और सिर्फ हिंदू-मुस्लिमोके भावनाओ भड़काकर बदस्तूर जारी है ! और सचमुच हमारे आजादी के पचहत्तरवी वर्षगाँठ के समय भारत जैसे बहुधर्मिय देश ने ‘उम्मतुलवाहिदा’ के रास्ते से चलना शुरू किया तो हम आने वाले पच्चीस साल के बाद हमारे देश की शताब्दी तक सही मायने में आजादी के लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब होंगे !
कुल 70 साल की उम्र के थे तब 22 फरवरी 1958 आज ही के दिन, हृदयाघात से 66 साल पूर्व मौलाना अबुल कलाम आझाद की मृत्यु हुईं हैं !


आजादी के बाद लगातार भारत के शिक्षामंत्री के रूप में दस साल काम किया ! और वर्तमान आई आई टी, यूजीसी , बंगलोर की विश्व स्तर की विज्ञान की संस्था, और इनके लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधनों की व्यवस्था करने का ऐतिहासिक काम किया है ! और इसी कारण उनके 11 नवम्बर के जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है !
मौलाना आझाद के विचारों के अनुसार भारत ‘उम्मतुलवाहिदा’ (अखंड भारत ) अगर बनाने का सपना सचमुच ही कोई लोग देख रहे हैं ! तो उन्होंने भारत में रहने वाले हर जाति, धर्म, लिंग के लोगों को भारत हमारा सभी का देश है ! ऐसा माहौल बनाना होगा ! और वह प्रेम, आपसी सौहार्द के माहौल से ही संभव है ! नाही लाठी-काठी या आजकल के आधुनिक हथियारों के बल पर !
जब घर के छोटे बच्चे को प्रेम, मुहब्बत से हम सिखाते हैं ! तो वह भी कुछ सीखता है ! तो हम तो अच्छी-खासी कौमों के साथ अगर बलप्रयोग करेंगे तो क्या असर होगा ? तो हम 66 वे पुण्यस्मरण के अवसर पर सचमुच
यही मौलाना आझाद को सही सम्मान देना होगा ! अन्यथा उनके सपने का भारत का उम्मतुलवाहिदा का क्या होगा ?

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