लेकिन मेरे अन्य पूर्वनियोजित कार्यक्रम के कारण, मै सशरीर आपके बिचमे उपस्थित नहीं हो सकता इसलिए माफी चाहता हूँ ! उपस्थित सभी साथियों को क्रांतिकारी अभिवादन !
मधू लिमये के बारे में शायद मुझसे अच्छा अन्य साथियों के भाषण होने की संभावना है ! लेकिन वरिष्ठ पत्रकार साथी, विजय नारायणजी और हिंदी तथा उर्दू के मुर्धन्य साहित्यकार राही मासुम रजा साहब के प्रतिष्ठान के राम किशोर जैसे साथियों के आग्रह के कारण ! मै अपनी बात लिखकर भेज रहा हूँ ! जिसे ठीक लगे तो आप सभी के सामने पढा या बाटा जाए यह विनम्र निवेदन करता हूँ !
मधू लिमये समाजवादी आंदोलन में एक जन्मना प्रतिभाशाली लोगों में से एक थे ! उम्र पंद्रह साल के पहले तत्कालीन ग्यारहवीं मैट्रिक बोर्ड की परीक्षा में ! बगैर स्कूल में गए ! बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष से, विशेष इजाजत लेकर, मेरिट में पास होने के बाद ! सिर्फ इंटर कॉलेज के दिनों में 1938 – 39 दुसरे महायुद्ध की शुरुआत देखते हुए ! और भारत के लोगों की पर्वा किए बगैर ! अंग्रेजों ने जबरदस्ती से भारत को भी उस युध्द में घसिटने के खिलाफ, किसानों तथा गांव के लोगों के जनजागरण के लिए ! और समाजवादी पार्टी के खान्देश के काम को अंजाम देने के लिए ! इंटर कॉलेज की शिक्षा को छोड़कर ! सिधे राजनीतिक क्षेत्र में कुदने के बाद ! दोबारा पिछे मूडकर नही देखा ! बचपन से ही अध्ययन करने की आदत के कारण ! अपने उम्र के अन्य लडको की तुलना में ! अंग्रेजी मराठी तथा संस्कृत का अध्ययन करने के कारण ! और तत्कालीन अगल – बगल की स्थिति से लेकर, विश्व के अन्य देशों में चल रही घटनाओं के बारे में पढकर ! अपने आपको मुस्तैद रखने की आदत के कारण ! उम्र की तुलना में राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा तत्वज्ञान,साहित्य और इतिहास तथा आर्थिक विषयों में जानकारी हासिल करने के कारण ! वैचारिक परिपक्वता गजब की रही है ! और इसी कारण विश्व युद्ध से लेकर, जनतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, समतामूलक समाज का समाजवादी दल के सारतत्व को समझना ! और उसके उपर बोलने लिखने का आभ्यास ! उम्र के बीस साल पहले ही शुरूआत किया है !


और सबसे अहं बात, 1930-40 के दौरान पुणे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग, स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं की सभाओं में गड़बड़ी करने की कृती देखते हुए ! जन्मना कोकणस्थ ब्राह्मण होने के बावजूद ! समझ आई तबसे संघ या हिंदूत्ववादीयो के खिलाफ ! अपने जीवन के अंतिम समय 8 जनवरी 1995 के दिन तक रहे हैं ! और उसकी कीमत भी जींदगी भर चुकाई है ! भारतीय संसदीय राजनीति के क्षेत्र में संघ परिवार के चाल – चरित्र को लेकर इतनी गहरी समझ रखने वाले लोग बहुत ही बिरले दिखाई देते हैं !


जीवन में स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर, गोवा मुक्ती तथा समाजवादी दल के विभिन्न आंदोलनों , तथा जयप्रकाश नारायण के बिहार आंदोलन और उसके बाद की आपातकाल की घोषणा और उस कारण जेल ! फिर जनता पार्टी का गठन, और विघटन के बाद की स्थिति ! लगभग इन सभी मुद्दों पर मधू लिमयेजकी पैनी नजर रही है ! और लोकसभा में के कामकाज में की उनकी भुमिका तो भारतीय संसदीय इतिहास के अनूपम दस्तावेजों में शुमार होता है ! कुलमिलाकर 73 साल की जिंदगी जीए थे ! जिसमें शुरू के तेरह साल बचपन के निकाल दे तो ! साठ साल का सार्वजनिक जीवन जीने वाले मधूजी की अडतीस से अधिक किताबें ! और अखबारों तथा पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखन को देखते हुए समाजवादी आंदोलन के पुरोधाओं में से आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया की कडी मे चौथा नाम मधू लिमये का दिखाई देता है ! और 1982 से सक्रिय राजनीति से अलग होने का एक कारण, उनके दमे की बिमारी और भारतीय समाजवादी आंदोलन के पतन ! और मेरे हिसाब से समाजवादी आंदोलन का पतनने अधिक मात्रा में, उन्हें सक्रिय राजनीति से हटने का मुख्य कारक तत्व है ! कभी समाजवादी आंदोलन पर बोलने-लिखने के समय मै, इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालना चाहुंगा !


उसमे चार बार संसद में जाकर वहां के कामकाज में भाग लेने का कार्यकाल ! सबसे सजग और संसदीय कार्यक्षेत्र की मर्यादाओं का और नियमों का पालन करते हुए, सरकारों की खामियों का पर्दाफाश करने के लिए हमेशा याद किए जाएंगे ! और वर्तमान समय की संसद की दयनीय स्थिति को देखते हुए बरबस याद आते हैं !
आजसे 28 साल पहले ! उन्होंने अपनी ‘धर्मांधता’ किताब के आमुख मे 24 जनवरी 1994 दिन को हस्ताक्षर किया है ! “कि आजकल मेरा ज्यादातर लेखन बढता जा रहा धार्मिक विद्वेष और उसके कारण निर्माण हो रहे संघर्ष के उपर है ! और ऐसी परिस्थिति से आजादी के बाद बनाए हुए संविधान, और उसके उपर खडी सुनियोजित राज्यसंस्था के उपर भिषण संकट मंडरा रहा है !” उन्होंने देश की सांप्रदायिक परिस्थिति के बारे में जो कुछ भी लिखा है ! वह आज हूबहू दिखाई दे रहा है ! लेकिन आज मै सिर्फ वर्तमान देश की स्तिथी, जो उन्होंने तो 1967 से कहा है ! जो कि मै खुद गत तीस सालों से भागलपुर के 1989 के दंगों के बाद बोल लिखने की कोशिश कर रहा हूँ ! और मेरा और उनका आकलन शतप्रतिशत सही-सही सिध्द होते हुए ! मै अपनी आंखों से देख रहा हूँ ! जो बहुत ही दुखद है !
लेकिन आज विजय नारायणजीने जब मुझे, उत्तर प्रदेश मधू लिमये जन्मशताब्दी के, आयोजन समिति के तरफसे, लखनऊ के समापन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में बोलने के लिए फोन किया ! और मेरे न आ सकने की मजबूरी के साथ, मैने मधूजी की और मेरी आनेवाले पचास वर्षों तक, भारत की राजनीति सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द घुमेगी ! यह आकलन शेयर किया तो ! विजयबाबूजीने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह उचित होगा ! और आपके भाषण को आप लिखकर भेजने से हम साथीयो में बांटने का काम करेंगे ! इसलिए उनके विशेष आग्रह के कारणही ! आज इस भाषण को लिखने के लिए बैठा हूँ ! उम्मीद करता हूँ कि आप लोग मेरे अनुपस्थिति में इसे आपसमे बांट लेंगे !
मै लखनऊ के कार्यक्रम के लिए, विशेष रूप से, मधूजीने लिखा हुआ ‘धर्मांधता’ इसी शिर्षक का , केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट और साधना प्रकाशन द्वारा मराठी किताब, 224 पन्नौ की ! 15 अगस्त 2022 को प्रकाशित ! ‘भारत में बढती हुई धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों का हिसाब – किताब ‘ इस नाम से गिनकर 68 पन्नौ का लेख ! और ‘संघ परिवार और गोलवलकर गुरुजी’ इस नाम से 23 पन्नौका लेख में ! भारत के वर्तमान सांप्रदायिकता के सवाल को समझने में सहायक होंगे ! इसलिए उन्हें विशेष रूप से देने की कोशिश कर रहा हूँ ! तथाकथित धर्मयुद्धो के बारे में भी लिखा है ! उसे देखते हुए ही ! मै अपने तरीके से अन्य पहलुओं पर भी रोशनी डालने की कोशिश कर रहा हूँ ! और काफी सामग्री उसी कीताब से लेकर लिख रहा हूँ !
उदहारण के लिए “भारतीय राजनीति के कुछ निरिक्षको की राय है ! कि पिछले कुछ सालों में भारत में सांप्रदायिकता की भावना काफी बढ़ी है ! भिन्न-भिन्न जमातों के धार्मिक संबंध बटवारे के पहले ( 1946 – 47 ) जितने खराब थे ! उससे भी अधिक आज के समय में खराब हो चुके हैं ! यह शायद अतिशयोक्ति लग सकती है ! लेकिन वर्तमान समय की परिस्थिति को देखते हुए बहुत गंभीर है ! इसमें कोई शक नहीं है !और जिस लखनऊ में यह कार्यक्रम हो रहा है ! वहां आयेदिन बुलडोजर से लेकर गोमांस के नाम पर अखलाख तथा अन्य लोगों की मौत तथा अलिगढ, इलाहाबाद तथा बनारस जैसे शहरों में तनावपूर्ण स्थिति और अभी अभी मुख्यमंत्री ने घोषणा की है ! “कि सरकारी अधिकारियों के द्वारा विभिन्न पूजा-पाठ के लिए सरकारी कोष से धन खर्च कर के, पूजा-अर्चना करने की बात मधूजी ने जिन आजादी के मुल्य और उनमें से निकले हुए मुल्यो के उपर खडी राज्यव्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं ! और कोई भी व्यक्ति खुलकर बोल नहीं रहे ! इससे अधिक उदाहरण सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की राजनीति का और क्या हो सकता है ?


इसे सिध्द करने के लिए सबसे अहं बात बात – बात में चल रहे सांप्रदायिक दंगे मुखतः अस्सी के दशक के अंत में अक्तूबर 1989 में हुआ भागलपुर दंगे ने भारत के दंगों के चरित्र को ही बदल कर रख दिया है ! स्वतंत्रता के बाद पहला दंगा है ! जो तीन सौ से अधिक गांवों में फैला है ! अबतक के सभी दंगे गलि-कुचे के होते थे ! लेकिन भागलपुर का दंगा पूरी भागलपुर के कमिश्नरीमे फैला था ! और उसे देखते हुए लगता है ! कि आने वाले समय में भारत में सांप्रदायिक तनाव कम होने की जगह बढने की संभावना अधिक है ! सबसे अहं बात कांग्रेस के मुसलमानों के तुष्टिकरण करने की बात, हिंदू समुदाय में जानबूझकर फैलाने के कारण तथाकथित पढे – लिखे समाज का इस प्रकार के प्रचार-प्रसार पर विश्वास होते जा रहा है ! इसके कारण तलाशने की जरूरत है ! शैक्षणिक रुप से मुसलमान बहुत ही पिछडे है ! यह सभी कबूल करेंगे ! उत्तर प्रदेश इस्लामीक संस्कृति का गढ है ! ऐसा माना जाता है ! लेकिन उत्तर प्रदेश में भी ! आजादी के बाद मुसलमानो को शैक्षणिक क्षेत्र में पिछडा देखा जा सकता है !
आजादी के पहले उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को शिक्षा से लेकर, जीवन के हर क्षेत्र में हिंदूओं की तुलना में पिछे नहीं थे ! सरकारी विभागों में हिंदूओ की तुलना में जनसंख्या के हिसाब से मुसलमान हिंदूओ से अधिक थे ! बटवारे के बाद पढे- लिखे, बुद्धिजीवि मुसलमान पाकिस्तान चलें गए ! और उसके बाद ढंग के नेतृत्व के अभाव में उत्तर प्रदेश के मुसलमान पिछड़ गए ! 1939 मे तत्कालीन संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री ( हालांकि उन्हें उस समय प्रधानमंत्री बोला जाता था ! ) पंडित गोविंद वल्लभ पंत ने 11 जनवरी 1939 के दिन अपने भाषण में कहा कि “मुसलमानों की जनसंख्या 14 % प्रतिशत ! और गैर मुस्लिम और गैर हिंदू 5% प्रतिशत और हिंदू 81 % प्रतिशत ! मै यह जानकारी कोई ओर उदेश्य से नही दे रहा हूँ ! सिर्फ वास्तविक स्थिति क्या है ? यह रखने की कोशिश कर रहा हूँ ! मेरा और कोई उद्देश्य नहीं है ! उसमें से क्या अर्थ निकालना है ? वह आपने तय करना है ! मुसलमानो की जनसंख्या के तुलना में सरकारी नौकरी में कितने अधिक मुसलमान हैं ! उदहारण के लिए कुछ विभागों के आकड़ों को लिजिए संयुक्त प्रांत के उच्च स्तरीय अधिकारियों में 52-5% हिंदू है, और मुस्लिम 39-6% है ; तहसीलदारो में 54-9% हिंदू तो 43-6% मुस्लिम समुदाय के है ; नायब तहसीलदार 54-9% तो 41-1%मुस्लिम समुदाय के ; प्रांत के कानून विभाग में हिंदू 72% मुस्लिम 25 % ; पुलिस अधिक्षक हिंदू 56% तो मुसलमान 28% ; पुलीस उपअधीक्षक हिंदू 56 % तो मुसलमान 28 % ; पुलीस निरीक्षक हिंदू 46-4 तो मुसलमान 30 % ; उपनिरीक्षक 54-2 % हिंदू तो 43-8 % मुसलमान ; हेडकॉन्स्टेबल 35-3 % हिंदू तो 64-4 % मुसलमान ; कृषि विभाग में प्रथम वर्ग के अधिकारियों में 64% हिंदू तो 21% मुसलमान ; कृषि विभाग के द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों में 76% हिंदू है तो मुसलमान 12% ; दुय्यम कृषी विभागमे 73% हिंदू तो 25% मुसलमान हैं ; पशुवैद्यकीय विभाग में हिंदूनिरिक्षक 24% तो मुसलमान 52 % ; पशुवैद्यकीय उप – सर्जन 35% हिंदू तो मुसलमान 58% ; सहकार विभाग में राजपत्रित अधिकारीयों में 62-5% हिंदू तो मुसलमान 37-5% ; वनविभाग हिंदू 57% तो मुसलमान 19% ; वनसंरक्षक 80-5 हिंदू और मुसलमान 18-5 ; अबकारी उपायुक्त हिंदू 57% और मुसलमानों की संख्या 14% ; अबकारी निरिक्षकोमे हिंदू 65% तो मुसलमान 31% ; शिक्षाविभाग में प्रथम वर्ग अधिकारी के पद पर पंद्रह जगहों में से चार जगह मुसलमान हैं !”
इस तरह का दुसरा प्रदेश जिसमें मुसलमानों को उनकी जनसंख्या की तुलना में अधिक लाभ मिला था ! वह हैदराबाद संस्थान, में जहां के निजाम मोगल सरंजामी वंशज की सत्ता थी !


उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने पाकिस्तान में स्थलांतर किया ! और उनका नौकरियों में का प्रतिशत घटता गया ! और जो उत्तर प्रदेश में हुआ, लगभग हर प्रदेश में वही हुआ है ! आज ऐसी स्थिति है ! कि पुलिस और रक्षा विभाग में मुसलमान बहुत ही कम है ! और बैंक, सार्वजनिक उपक्रमों में और प्रायवेट सेक्टर में भी मुसलमानों की जनसंख्या के तुलना में बहुत ही कम है !और रंगनाथ मिश्रा तथा सच्चर कमेटी के रिपोर्टों से भारत के मुसलमानों की माली हालत के बारे में जो तथ्य निकल कर आए हैं ! उससे आजादी के बाद मुस्लिम समुदाय को अपिजमेंट करने की बात की हवा निकाल कर रख दिया है ! बंगाल जैसे 35 साल से भी अधिक समय से राज किया वामपंथी सरकार के राज्य में सच्चर कमेटी के अनुसार 26% से अधिक मुस्लिम आबादी लेकिन सरकारी नौकरियों में दो प्रतिशत से कम है ! और उसके बावजूद सरकार की मुसलमानों के उपर विशेष मेहेरबानी है ! ऐसी भावना हिंदूओ में घर करते जा रही है ! और मुस्लिम अपिजमेंट के आरोप लगाए जा रहे हैं !


1952 के पहले सार्वत्रिक चुनाव के पहले, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और स्वयंसेवकों की मदद लेकर, भारतीय जनसंघ नाम की पार्टी की स्थापना की ! जिसमें हिंदू महासभा, रामराज्य परिषद जैसे हिंदूत्ववादी संघटनाओ ने भी मदद की ! लेकिन पहले लोकसभा चुनाव में पार्टी को विशेष सफलता नहीं मिली ! जनसंघ का बौद्धिक आधार गोलवलकर के ‘बंच अॉफ थॉट्स’ किताब के ऊपर ही था ! और चुनाव की राजनीति को देखते हुए कुछ मामुली बदलाव किए ! जिसमें गैरहिंदूओ को भी सदस्य बनने की सहुलियत और हिन्दू राष्ट्रवाद की जगह भारतीय राष्ट्र बोलने की शुरुआत !
अगले पंद्रह सालों में जनसंघ की ताकद बढ़ाने में समाजवादियों की आपसी टूट, के कारण उनका प्रभाव घटना ! और उस खाली जगह पर जनसंघ का प्रवेश होता गया ! मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में ! कांग्रेस के बाद दो नंबर की पार्टी के रूप में अपनी जगह बना ली है ! 1966 में संघ परिवार के लोगों ने गोहत्या बंदी के सवाल पर आंदोलन शुरू करने के बाद ! इस आंदोलन में साधुओं तथा संन्यासीओ को शामिल करने के बाद ! पुलिस – प्रशासन के साथ हुई हिंसा के परिणामस्वरूप ! 1967 के चुनाव में जनसंघ ने 9-4% मतों को कब्जे में करने में कामयाबी हासिल की ! और उसके बाद चौथे सार्वत्रिक चुनाव के बाद ! गैर-कांग्रेसवाद के राजनीति में जनसंघ भी शामिल हुआ ! अनेक राज्यों में गठबंधन की सरकारो में शामिल होने का मौका दस साल तक मिलने के कारण ! अन्य घटक दलों के दबाव में ! जनसंघ ने अपने सांप्रदायिकता के मुद्दे को छुपाएं रखने के कारण ! उस दौर में देश में सांप्रदायिक हिंसा कम हुई है ! यहां तक कि 1977-78 में जनसंघ जो जनता पार्टी में शामिल होने के बाद ! उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना को विरोध नहीं किया ! और 370 जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा देने वाले मुद्दों को लपेट कर रख दिया था ! और अटल बिहारी वाजपेयी ने तो विदेश मंत्री की हैसियत से, पाकिस्तान में जाकर कहाँ की “जनसंघ की पाकिस्तान के बारे में पुरानी भुमिका छोड़ कर ! अब मैं जनता पार्टी के विदेश मंत्री के रूप में पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध सुधारने के लिए विशेष रूप से आया हूँ !”


उसी तरह लाल कृष्ण आडवाणी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि ! “आप लोगों को याद होगा कि 1971 से 1980 तक हम लोग कई मुद्दों पर सहमत नही होते हुए ! हमने अल्पसंख्यक आयोग से लेकर कई मुद्दों पर जोर नहीं दिया ! लेकिन हमारे ध्यान में आ रहा था कि हमारे चुनाव प्रणाली में मुसलमानों को आदमी न समझते हुए सिर्फ मतदाता ही समझा गया !” मधू लिमये आगे जाकर लिख रहे हैं कि “अडवाणीजीने सिर्फ 1971 न बोलते हुए 1967 से जबसे गठबंधन की सरोकारों की शुरुआत हुई है ! तबसे जनसंघ की भूमिका में बदलाव होने की शुरुआत हुई है ! जब पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार के सरकारों में सिर्फ समाजवादी ही नहीं थे ! कम्युनिस्ट पार्टी भी थी ! और पंजाब में तो जनसंघ अकालियों के बाद दो नंबर की पार्टी थी ! गठबंधन की सरकारों के कारण ! जनसंघ को अपने सांप्रदायिक अजेंडा को परे रखना पडा है !


लेकिन अडवाणीजीने मुसलमानों को मानव बोलने की बात शतप्रतिशत राजनीतिक पैतरेबाजी के अलावा और कुछ नहीं थी ! क्योंकि वह और उनके दल की निंव ही मुस्लिम विरोधी भावनाएं भड़काकर उसका राजनीतिक फायदा उठाने का रही है ! कांग्रेस ने मुसलमानों की अलग पहचान का लाभ उठा कर अपने राजनीति को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया है ! उदाहरण के लिए शाहबानो के मामले में अपने ही एक मंत्री को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद उस फैसले के तरफसे बोलने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया ! और जैसे ही कठमुल्ला मुसलमानों ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ हंगामा मचाने की शुरुआत की ! तो दुसरे मुस्लिम मंत्री को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बोलने के लिए आमंत्रित किया ! हालांकि बीजेपी की शाहबानो के साथ की सहानुभूती ! रत्तीभर भी महीलाओ के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिए नहीं थी ! क्योंकि हिन्दू धर्म में चल रहे बालविवाह, सति, दहेज और उसकारण महिलाओं के अत्याचारों को अनदेखा करने के लिए हिंदू कोड बिल के विरोध के समय से बीजेपी का विरोध जारी है !


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संघ परिवार के राजनीतिक ईकाई बीजेपी ! और अन्य ऑक्टोपस के जैसे सभी संबंधित संघठनो को, 1979 में विश्व हिंदू परिषद के पुनर्निर्माण के बाद ! हिंदू मतों को एक गठ्ठे के रूप में निर्माण करने के लिए ! फरवरी 1981 में मीनाक्षीपूरम के दलितों के एक समूह ने इस्लाम धर्म का स्विकार की घटना पर ! संघ के एक प्रकाशन ने लिखा कि “इस धर्मांतर के कारण संपूर्ण देश में गुस्सा और चिंता की लहर निर्माण होकर धर्मांतर का आक्रमक और अलगाववादी समय अब हमेशा के लिए पिछे छुट गया है ! और भारत चुपचाप अपने सर्वधर्मसमभाव के प्रयोग के साथ अपनी राह चल रहा है ! यह भ्रम अब मीनाक्षीपूरम की घटना को देखते हुए हमेशा के लिए टूट गया है ! ” इस घटना को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भविष्य में गंभीर संकट के रूप में लिया है !
हालांकि इस घटना में हिंदू धर्म में के ही एक उपेक्षित समूहने अपने सम्मान तथा आर्थिक – सामाजिक विकास, अन्य लोगों की बराबरी में आनेके लिए ! आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण कदम था ! 1956 में डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी ने नागपुर के दिक्षाभूमी पर अपने लाखों की संख्या में अनुयायियों को लेकर किया गया धर्मांतर है ! उसी प्रकार से मीनाक्षीपूरम के दलितों को भी लगा कि इस्लाम धर्म के “ब्रदरहुड अॉफ द फेथफूल” के द्वारा अपनी उन्नति होगी !


आजादी के पहले मुसलमानों का आरक्षण के साथ केंद्र की सरकार मे और राज्य सरकारों में अच्छा खासा दबदबा था ! आजादी के बाद आरक्षण के साथ दबदबा भी खत्म हो गया ! भले कुछ राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राज्यपाल या मुख्यमंत्री भी बनें ! लेकिन विधानसभा, लोकसभा से लेकर नौकरी पेशा में मुसलमानों का अनुपात उनकी जनसंख्या की तुलना में कम होने के बावजूद अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टिकरण वाली बात पढ़े-लिखे हिंदू समुदाय के लोगों के दिमाग में घर कर के बैठी हुई है !
मै अपने हिसाब से कुछ कारणों को गिना रहा हूँ ! राजीव गांधी के समय सलमान रुश्दी की किताब में मोहम्मद साहब की बदनामी की बात लिखी थी ! और इस कारण पूरे इस्लामी विश्व में गुस्से की लहर चल रही थी ! तो भारत में उस कीताब पर जल्दबाजी में बैन लगाने की बात ! बहुसंख्य हिंदूओ को मुस्लिम तुष्टिकरण की कृती लगीं ! क्योंकि हिन्दू धर्म और देवी – देवता के उपर आलोचना करने वाले साहित्य की भरमार रहते हुए ! ( मधूजीने 30 साल पहले लिखा है ! ) तो इस्लाम धर्म के उपर थोड़ी बहुत आलोचना होती है, तो तुरंत बैन लगाने की कृतियों के बारे में पढे – लिखें हिंदू सवाल करने लगे हैं ! उसी तरह शाहबानो के मुद्दे पर प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लोकसभा में मुस्लिम मुल्लाओं के दबाव में समान नागरी कानून का सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करने की कृती, और इन्ही सब बातों से घबरा कर, हिंदूओ को खुष करने के लिए, विश्व हिंदू परिषद के साथ दोस्ती कर के बाबरी मस्जिद का ताला जो तीन दशकों से बंद था ! उसे खोलने की इजाजत देने के लिए, फैजाबाद कोर्ट को फैसला देने के लिए कहा गया ! और यहीसे विश्व हिंदू परिषद के आत्मविश्वास में वृद्धि होकर, संपूर्ण देश में रथयात्रा और शिला पूजा की भरमार शुरू की गई ! और इलेक्ट्रानिक मीडिया की इस पूरे मामले में बहुत बडी भूमिका रही है ! जिसमें रामायण और महाभारत जैसे मालिकाओ का प्रसारण ! तथा कुंभ मेले और ईद की नमाज के प्रसारण, करने के कारण दोनों समुदायों का धार्मिक विश्वास बढ़ाने के लिए विशेष रूप से काम आया है !


विश्व हिंदू परिषद की मुहिम को तत्कालिन उत्तर प्रदेश और केंद्र की कांग्रेस सरकारों ने खुब मदद की है ! 19 दिसम्बर 1985 विश्व हिंदू परिषद के प्रतिनिधि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विरबहादूर सिंह को आयोध्या में मिल कर क्या खिचड़ी पकाई मालूम नहीं ! लेकिन 1 फरवरी 1986 के दिन फैजाबाद के कोर्ट में जिस तरह से तीन दशकों से लगे तालों को लेकर पूरी कार्रवाई हुई ! उसके दूसरे क्षण बाबरी मस्जिद के ताले खोलने की काम हुआ है ! नौवीं लोकसभा के चुनाव के लिए हिंदू वोट की राजनीति के लिए कांग्रेस ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने केंद्र सरकार के निर्देशन में विश्व हिंदू परिषद के प्रतिनिधियों के साथ 27 सितंबर 1989 को केंद्रीय गृहमंत्री बुटासिंग की उपस्थिति में एक बैठक में एक एग्रीमेंट तैयार किया गया ! जिसका मजमून इसप्रकार है ” 27 सितंबर 1989 के दिन लखनऊ में मुख्यमंत्री और विश्व हिंदू परिषद के प्रतिनिधियों की बैठक हुई, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री बुटासिंग भी उपस्थित थे ! उसमे तय किया गया कि विश्व हिंदू परिषद संपूर्ण देश में शिलापूजा करने के बाद, आयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए 9 नवंबर 1989 को लाने को लेकर चर्चा की गई और चर्चा में के मुद्दे इस प्रकार के है ! ( 1)शिलाओं के जुलूस के मार्ग के बारे में विश्व हिंदू परिषद जिलाधिकारी को पहले से सूचना देंगे ! और कानून व्यवस्था को लेकर जिलाधिकारियों ने मार्ग के संदर्भ में कुछ बदलाव के सुझाव दिया तो जूलूस के मार्ग बदलने की बात मान ली जायेगी ! (2) सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले नारे विश्व हिंदू परिषद के अनुयायियों के तरफसे नही दिए जायेंगी ! (3) जिलाधिकारियों के साथ विचार विमर्श करने के बाद ही ! शिला रखें हुए ट्रकों का मार्ग तय होगा ! और उसी मार्ग से ट्रक जायेंगे ! ( 4 ) विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व जुलूस को जिला प्रशासन के सहयोग से ही जुलूस निकाले जायेंगे ! ( 5 ) आयोध्या में जिस जगह पर शिला इकट्ठे कर के रखि जायेगी ! वह जगह जिला प्रशासन के साथ विचार विमर्श करने के बाद ही तय की जायेगी ! ( 6 ) अलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ बेंच ने 14-8-1989 के दिन आदेश दिया था ! कि ” कोर्ट से संबंधित दावेदार जैसे थे स्थिती कायम बनाएं रखेंगे ! और विवादास्पद जगह पर किसी भी तरह का बदलाव नहीं करेंगे ! और सांप्रदायिक एकता बनाए रखने की गॅरंटी विश्व हिंदू परिषद देगी !”
निचे लिखित व्यक्ति विश्व हिंदू परिषद के प्रतिनिधि के रूप में उत्तर प्रदेश के सरकार के साथ सहयोग और समन्वय रखने का काम करेंगे !
( 1) श्री. दाऊ दयाल खन्ना
(2) श्री. दीक्षित, पूर्व डीजीपी (उत्तर प्रदेश)
( 3) श्री. ओंकार भावे
( 4) श्री. सुरेश गुप्ता, पूर्व उपकुलगुरू
( 5) श्री. महेश नारायण सिंग, अयोध्या
हस्ताक्षर
अशोक सिंघल
महंत अवैधनाथ
नृत्यगोपाल दास
दाऊ दयाल खन्ना
हम रामराज्य लाने की घोषणा कर के राजीव गांधी ने अपने चुनाव प्रचार के नारियल को फोडते हुए ! और केंद्रीय गृहमंत्री बुटासिंग ने हस्तक्षेप करते हुए ! मस्जिद से सौ फिट दूरी पर स्थित जगह पर ! नए मंदिर के शिलान्यास समारोह होने दिया ! (जो न्यायालय में विवादास्पद थी ! ) और विश्व हिंदू परिषद ने दावा किया कि ! “यह समारोह राज्य और केंद्रीय सरकार के सहयोग से ही संपन्न हुआ है !”
इस पूरे प्रकरण की शोकांतिका 24 अक्तूबर 1989 के दिन भागलपुर दंगे के तीन हजार से अधिक लोगों की जाने लेने से हुई है ! जिसकी मुख्य वजह विश्व हिंदू परिषद ने अपने लिखित रूप से दिए गए वचन का पालन नहीं करते हुए ! तातारपूर जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र से जुलूस निकाला जो कि पूर्वनियोजित मार्ग नहीं था ! और प्रशासन ने मना करने के बावजूद उसी मार्ग से शिलापूजा के जुलूस को लेजाया गया और सबसे संवेदनशील बात ! अत्यंत आक्षेपार्ह नारेबाजी की गई थी ! उदाहरण के लिए (1) पांच बार नमाज अदा करने की आदत छोड़ दो !
( 2) भारत में रहना है तो जयश्रीराम बोलना होगा !
(3) मुसलमानों की दो ही जगह – पाकिस्तान या कब्रिस्तान !
और इसके लिए भागलपुर के तत्कालीन एस पी, और उनके उकसाने के कारण पुलिस ने चुन-चुन कर मुसलमानों के साथ कहर बरपा है ! जो बाद में तेरह साल के बाद गुजरात में हूबहू नकल कर के उसे दोहराया है !
और भागलपुर दंगे के बाद हुआ चुनाव में कांग्रेस की गंगा – यमुना के क्षेत्र से लेकर ! पस्चिम के पाकिस्तान की सरहद से पूर्व की बंगाल की सरहद और बंगाल के उपसागर के किनारों तक ! कांग्रेस बुरी तरह से हार गई ! और नई लोकसभा में भाजपा बड़ी ताकत के साथ चुनकर आई थी ! और उसी तरह कई विधानसभा का विजय मिडिया में चर्चा का विषय बना ! और नववी लोकसभा में 89 सदस्य और 12% वोट मिले हैं ! मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में पूर्ण बहुमत और राजस्थान में सब से बडी पार्टी के रूप में ! और गुजरात में भी इस तरह राजस्थान और गुजरात में जनता दल के साथ गठबंधन की सरकारों का गठन हुआ है ! इस तरह समय-समय पर अलग – गठबंधन करते हुए, अपने हिंदूत्ववादी अजेंडा को आगे बढ़ाने की वजह, आज की तारीख में भारतीय जनता पार्टी अपने बलबूते पर दोबारा सत्ता में आने का सफर तय किया है ! जिसे भारत के पूंजीपतियों ने दिल खोलकर मदद की है ! आज विश्व की सबसे अमीर पार्टी और तथाकथित सदस्यों को लेकर वह भारत के संविधान की ऐसी की तैसी करने के लिए विशेष रूप कोशिश कर रहे हैं !

दुसरा आरोप है कि मस्जिदों के उपर लगे लाऊडस्पीकर ! हालांकि मंदिर और गुरुद्वारा में भी लाऊडस्पीकर लगे है ! और उनके द्वारा भी गुरुवाणी तथा भजनों की झडी लगी रहती है ! सबसे ज्यादा गदर दुर्गा, काली, गणपती और आजकल रामनवमी, अंबेडकरजी के जयंती तथा धर्म परिवर्तन के दिन दशहरे ! और साल भर में विभिन्न प्रकार की पूजा और शादी – ब्याह के दौरान भी ! बिमार या बुजुर्ग लोगों की तबीयत की परवाह किए बगैर ! और विद्यार्थियों के पढाई में होने वाले व्यवधानों की भी ! और आजकल तो डीजे नामसे भयानक आवाज करने वाले यंत्र घरों को कंपन दिलाने की क्षमता रखता है ! लेकिन धड़ल्ले से उसके प्रयोग होता है !
मुस्लिम समुदाय के बारे में बचपन से ही संघ परिवार ने ! वह आक्रमक है से लेकर चार – चार बिविया करते हैं ! तथा क्रिकेट के समय हमेशा पाकिस्तान के समर्थन में फटाके फोडते है ! हिजाब या बुरका पहनने की प्रथा ! और मुसलमान भारत के प्रति वफादार नही होता है ! जैसे प्रचार प्रसार से पूर्व दूषित करने में काफी हद तक कामयाब हो रहे हैं ! जिसमें गत तिस – चालिस साल से शुरु किए गए दंगों के कारण ! हिंदू और मुसलमानों की बस्तियों का अलग – अलग हो जाने से ! पहले की तुलना में एक दूसरे के साथ उठना – बैठना कम होने की वजह से ! एक दूसरे के साथ संवाद कम होने के कारण ! गलतफहमियां बढने में और अधिक मदद होने से ! आपसी समझ भाईचारे की कमी दिनबदीन बढते जा रही है ! इस कारण दोनों तरफ की सांप्रदायिक ताकतों के लिए सांप्रदायिकता बढ़ाने के लिए और अधिक फायदा हो रहा है ! लेकिन हमारे यहां रह रहे किसी भी नागरिक को कोई भी देश ! फिर वह मुस्लिम मुल्क हो या तथाकथित हिंदू नेपाल हो ! कोई अपने देश में हमेशा के लिए बसने की इजाजत नहीं देगा ! तो फिर हमें एकही साथ रहना है तो ! एक दूसरे को देखते हुए आखें लाल – पीली करने से ! और दंगे – फसाद करने से किसका भला होता है ? राजनीतिक दलों को तो अपनी राजनीतिक रोटीया सेंकने के लिए, सांप्रदायिकता के तवे को सतत गर्म रखकर, अपनी राजनीति करना है ! हम उनके चपेट में आकर अपना रोजमर्रा का काम क्यों खराब करें ? अब यह सोचना – समझना चाहिए ! और अपनी जिंदगी जीने का शांतिपूर्ण समाधान ढूंढ कर जिना चाहिए ! यही मधूजी के प्रति सच्ची श्रध्दांजलि हो सकती है ! क्योंकि मधूजी 1982 से सक्रिय राजनीति से निवृत्त हो गए थे ! लेकिन तबसे लेकर 8 जनवरी 1995 के दिन तक ! तेरह साल का चिंता और चिंतन का विषय देश की वर्तमान स्थिति को लेकर ! पढ़ने – लिखने का काम सतत करने की वजह से ही ! आज यह किताब अपने सामने दिखाई दे रही है ! जिसमें उन्होेंने सांप्रदायिकता के कारण और उपायों को तटस्थता से लिखने की कोशिश की है ! और मुख्यतः मेरे जैसे कार्यकर्ताओं को संभल मिल रहा है ! कि पैंतीस साल पहले के भागलपुर दंगे के बाद ! अपनी मेडिकल की प्रेक्टिस छोड़कर, सांप्रदायिकता के खिलाफ काम करने की कोशिश कर रहा हूँ ! और उनके और मेरी समझ इस विषय पर एक जैसी है इसकी मुझ खुषी है !


सबसे अंतिम बात आपातकाल की घोषणा के बाद ! वह नरसिंहगढ़ की जेल में बंद रहे हैं ! और मै अमरावती की जेल में बंद था ! एस एम जोशी जी जयप्रकाश नारायण के कहने पर सभी विरोधी दलों की एक पार्टी बनाने के लिए विभिन्न जेलों में बंद लोगों से बातचीत कर रहे थे ! तो उन्होंने मुझे अमरावती जेल में मिलने के बाद मैंने कहा “कि जनसंघ आर एस एस की राजनीतिक ईकाई हैं ! उनका समाजवादी तथा सेक्युलरिज्म जैसे अपने विचारों पर रत्तीभर का विश्वास नहीं है ! इसलिए समाजवादी पार्टी और जनसंघ की एक पार्टी यह हर तरह से गलत मिलन होगा ! बहुत ही हुआ तो कुछ मुद्दों पर चुनाव के लिए तात्कालिक गठबंधन कर सकते ! पर एक पार्टी बहुत ही गलत निर्णय होगा ! उस समय मैं 23 साल की उम्र का था ! और एस एम जोशी जी ने कहा “कि कुछ दिनों पहले ही मै मधू लिमये को नरसिंहगढ़ की जेल में मिलने गया था ! और लगभग मधूने तुम्हारे जैसे ही तर्क दिए हैं !” मैंने उन्हें कहा “कि मधूजी की उम्र मेरे पिताजी बराबरी की है ! ( पिछले साल मेरे पिताजी की भी शताब्दी थी ! ) अगर मधूजी जैसे बुध्दीमान नेता का भी मेरी तरह ही सोचना है ! तो मुझे लगता है कि मैं सही सोच रहा हूँ ! ”
मधू लिमये की मराठी कीताब ‘धर्मांधता ‘के पन्ने नंबर 70 में उन्होंने इस विषय पर अच्छी तरह रोशनी डाली है ” यह सचमुच ही बहुत ही दुखद है कि, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद, आज हिंदू सांप्रदायिकता को आमने-सामने की लड़ाई में पराजित नही कर सकता ! धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद ने मुस्लिम सांप्रदायिक कट्टरपंथी तत्वों के साथ समय-समय पर सिध्दांत- हिन गठबंधन किया है ! उसी का यह परिणाम है ! कांग्रेस पार्टी, प्रजा समाजवादी पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, संयुक्त समाजवादी पार्टी इन सभी ने मुस्लिम लीग के साथ कभी केरल में तो कभी तमिलनाडु में गठबंधन किया है ! और वैसाही अन्य सांप्रदायिक तत्वों के साथ महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ ! ( 1955-56 ) संयुक्त महाराष्ट्र और महागुजरात के आंदोलन के दौरान ! कम्युनिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने ( द्विभाषा के मुद्दे पर ) मुंबई राज्य में गठबंधन किया है ! जिसमें हिंदू महासभा तथा जनसंघ को भी शामिल किया गया था ! वैसे ही गोवा मुक्ती के आंदोलन के दौरान ! और 1962 में डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसी गठजोड़ में तो ! दोनों कम्युनिस्ट पार्टी के साथ हिंदू – मुस्लिम तथा शीखो के सांप्रदायिक दलों को जगह दी गई है ! इस गठबंधन ने कांग्रेस को पराजित करने के लिए अपनी भूमिका अदा की है ! लेकिन यही से जनसंघ तथा मुस्लिम लीग को अपना जनाधार बढ़ाने के लिए मौका मिला है !
जनसंघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक ईकाई हैं ! इस कारण संघ का ‘फॅसिझम और एकचालकानुवर्त’ इन दोनों तत्वों की निंव के उपर उसकी संपूर्ण इमारत खडी है ! अगर ऐसा नहीं होता तो जनसंघ मध्यमार्गी दल बनने की संभावना बहुत थीं ! इसमें कोई दो राय नहीं है ! सरदार पटेल, लोहिया और जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परिवार के आयोजन तत्वों के महत्वपूर्ण मुद्दे को ( नॉनअॉटोनॉमस कॅरेक्टर – कठपुतली के जैसा संघ के इशारे पर, अपनी नियत और नितियो की रचना करना ! और उसके अनुसार कृति करना उसकी नियती है ! ) यह बात लोहिया और जयप्रकाश नारायण की ध्यान में नहीं आने के कारण ! 1977 के सितम्बर माह में जयप्रकाश नारायण ने संघ के प्रमुख को ! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विसर्जित करने की सूचना करते वक्त ! संघ के प्रमुख की प्रतिक्रिया, उम्मीद के मुताबिक अत्यंत अचरज के भाव – भौहें-चढ़ाते हुए ! जयप्रकाश नारायण की सूचना को ठुकरा दिया है !
साथियों मुझे माफ करेंगे ! क्योंकि मेरा भाषण कुछ ज्यादा ही लंबा होते जा रहा है ! इसलिए मैं अभी रुक रहा हूँ ! लेकिन आपकी इच्छा हो तो मै मधूजी की इस किताब को संक्षेप में एक छोटी सी पुस्तिका के रूप में लिखने की कोशिश करूंगा ! तो आप लोगों को उचित लगे तो इसे प्रकाशित करने का कष्ट करेंगे ! इस उम्मीद के साथ, इसे समाप्त करते हुए ! सभी साथियों को क्रांतिकारी अभिवादन !

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