मशहूर क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी के ऐतिहासिक लखनऊ मॉन्टेसरी स्कूल को हथियाने का भूमाफिया कुचक्र कर रहे हैं. इसमें भाजपा का एक छुटभैया नेता भी शामिल है. ऐतिहासिक धरोहर जैसे इस स्कूल पर कब्जा करने की कोशिशों के खिलाफ पूरा समाज सड़क पर है. लेकिन ‘राष्ट्रवादी’ भाजपा सरकार चुप्पी साधे है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भूमाफियाओं के खात्मे के निश्चय का प्रचार तो करते हैं, लेकिन उन्हें अपनी राजधानी में ही भूमाफियाओं के उत्पात नहीं दिखते. पूरा समाज जानता है कि दुर्गा भाभी कौन थीं, उन्होंने आजादी के आंदोलन में किस तरह साहसी और त्यागमयी क्रांतिकारिणी की भूमिका अदा की और किस जद्दोजहद से उन्होंने लखनऊ में एक ऐसा विद्यालय खड़ा किया, जहां आने वाली पीढ़ियों को अपने क्रांतिकारियों पर गौरवान्वित होने की शिक्षा और संस्कार मिल सके.

लेकिन राष्ट्रवाद की सियासी दुकान चलाने वाली भाजपा को दुर्गा भाभी के ऐतिहासिक योगदानों को संरक्षित रखने और उनके स्कूल को धरोहर के रूप में संजोने की कोई चिंता नहीं. उनकी अथक मेहनत और संलग्नता के कारण ही स्कूल विकसित हुआ और इंटर कॉलेज के रूप में परिणत हुआ. लेकिन घनघोर घृणित तथ्य यह है कि स्कूल पर कब्जा करने में सक्रिय भूमाफियाओं के साथ सत्ताधारी पार्टी के नेता, सरकार के अधिकारी, सोसाइटी पंजीयन महकमे के अधिकारी, शिक्षा विभाग के अधिकारी और संस्कार सिखाने वाले इसी विद्यालय के कुछ कुसंस्कारी शिक्षक शामिल हैं.

स्कूल पर कब्जा करने की कोशिशों के खिलाफ प्रदेश के बुद्धिजीवी, पत्रकार, नागरिक, शिक्षक और छात्र सब आंदोलन चला रहे हैं. महात्मा गांधी, बाबा साहब अम्बेडकर और सरदार पटेल की प्रतिमाओं के समक्ष धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन नौकरशाहों द्वारा पोषित भूमाफियाओं की स्कूल विरोधी गतिविधियां जारी हैं और शीर्ष सत्ता का आपराधिक मौन भी यथावत जारी है. जानकार बताते हैं कि ठीक इसी तरीके से बनारस के राजघाट में लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित गांधी विद्या संस्थान हड़पने की साजिश रची गई थी.

दुर्गा भाभी का लखनऊ मॉन्टेसरी इंटर कॉलेज जिस जगह पर स्थापित है, वह आज राजधानी लखनऊ की बेशकीमती जमीनों में शुमार है. यह विद्यालय विधानसभा से महज एक किलोमीटर दूर है और जिस सचिवालय में शीर्ष सत्ता बैठती है उस बुर्ज से दुर्गा भाभी का स्कूल दिखता है. फिर भी सत्ता धृतराष्ट्र बनी बैठी है, लेकिन उसी सत्ता के नौकरशाह स्कूल की चार एकड़ की बेशकीमती जमीन देख-देख कर लार टपकाते रहते हैं. विद्यालय की स्थापना की दुर्गा भाभी की पीड़ा के बारे में आप जैसे-जैसे परिचित होते जाएंगे, आपको पूरी सत्ता-व्यवस्था से नफरत होने लगेगी. दुर्गा भाभी सरदार भगत सिंह का संबोधन था, जो सभी क्रांतिकारियों का संबोधन बना. दुर्गावती देवी क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी थीं.

इतिहास गवाह है कि लाला लाजपत राय की मौत के जिम्मेदार अंग्रेज पुलिस अधिकारी सैंडर्स की 17 दिसम्बर 1928 को हत्या करने के बाद भगत सिंह, सुखदेव और उनके अन्य साथियों को दुर्गा भाभी ने किस तरह लाहौर से बचा कर ट्रेन से कलकत्ता पहुंचाया था. चप्पे-चप्पे पर छाए अंग्रेज सैनिकों से भगत सिंह को बचाने के लिए उन्होंने भगत सिंह की पत्नी का रूप धरा, अपने दो साल के बच्चे तक को जोखिम में डाला और उन्हें सुरक्षित कलकत्ता पहुंचा दिया. भगत सिंह की हैट पहने जो सुंदर सी तस्वीर आप देखते हैं, वह उसी समय की है, जब उन्होंने और दुर्गा भाभी ने एंग्लो इंडियन दम्पति का रूप धरा था. बाद में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के गिरफ्तार होने पर भगवती चरण वोहरा अंग्रेजों पर हमला करके अपने क्रांतिकारी साथियों को जेल से छुड़ाने की तैयारी कर रहे थे. भगवती बम बनाने में एक्सपर्ट थे.

लेकिन लाहौर में रावी नदी के किनारे परीक्षण करते समय बम फट जाने से 28 मई साल 1930 को भगवती चरण वोहरा शहीद हो गए. इस घोर आफत के बावजूद दुर्गा भाभी ने हार नहीं मानी, वे क्रांतिकारियों के ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की अभिभावक और देशभर के क्रांतिकारियों की सूत्रधार बनी रहीं. अंग्रेज जिस वीरांगना का कुछ नहीं बिगाड़ पाए, उस क्रांतिकारिणी की थाती को अपने ही देश के दलाल नीलाम करने पर उतारू हैं. कुछ निर्लज्ज लोग क्रांतिकारिणी के सपनों की हत्या का षडयंत्र रच रहे हैं और सत्ता राष्ट्रवाद का किराना-स्टोर चला रही है.

चंद्रशेखर आजाद के पास अंतिम समय में जो पिस्तौल थी वो भी दुर्गा भाभी ने ही उन्हें दी थी. आजाद के शहीद होने और तमाम क्रांतिकारी साथियों को काला पानी की सजा हो जाने के बाद दुर्गा भाभी गाजियाबाद आ गईं और एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर लीं. दो साल के बाद नौकरी छोड़ कर वे मद्रास चली गईं और वहां मॉन्टेसरी स्कूल पद्धति की ट्रेनिंग लीं. इसके बाद दुर्गा भाभी ने लखनऊ आकर मॉन्टेसरी सिस्टम का स्कूल खोला. दुर्गा भाभी को मॉन्टेसरी सिस्टम के स्कूलों की शुरुआत करने वाली कुछ खास हस्तियों में गिना जाता है. 15 अक्टूबर 1999 में अपने जीवन के आखिरी पल तक दुर्गा भाभी अपने इसी स्कूल के लिए लहू और पसीना एक करती रहीं. आचार्य नरेन्द्र देव, यशपाल, प्रकाशवती पाल, शिव वर्मा जैसे तमाम विद्वान और आजादी के आंदोलन के सिपाही क्रांतिकारी विद्यालय की प्रबंध समिति से जुड़े रहे थे. पूर्व महाधिवक्ता उमेश चन्द्र भी स्कूल की प्रबंध समिति के अध्यक्ष थे.

‘गिद्धों ’ को मिल गया मौक़ा बना दी समानान्तर प्रबंध समिति

प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और गरीबों की डॉक्टर के रूप में मशहूर डॉ. पुष्पावती तिवारी स्कूल प्रबंध समिति की मंत्री और प्रबंधक रहीं. स्कूल की बेशकीमती जमीन पर आंख गड़ाए भूमाफियाओं और उनकी मदद कर रहे अंदरूनी जयचंदों को डॉ. पुष्पावती तिवारी के एक दुर्घटना में जख्मी होने के बाद मौका मिल गया. डॉ. पुष्पावती अपनी बिटिया के पास कानपुर जाकर रहने लगीं और उनका कार्यभार स्कूल के सहायक मैनेजर संभालने लगे.

उसी बीच स्कूल प्रबंध समिति के अध्यक्ष उमेश चन्द्र का असामयिक निधन हो गया और सहायक मैनेजर ने भी काम छोड़ दिया. उमेश चन्द्र के निधन के बाद शिक्षाविद् प्रो. रमेश तिवारी अध्यक्ष हुए और जयप्रकाश प्रबंध समिति के मंत्री और प्रबंधक हुए. प्रबंध समिति का कार्यकाल जून 2018 तक के लिए था और नियमानुसार प्रबंध समिति का चुनाव जुलाई 2018 में होना चाहिए था. लेकिन षडयंत्र में शामिल जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. मुकेश सिंह ने सालभर पहले ही चुनाव कराने की भूमिका रच दी और कहा कि चुनाव के बाद ही प्रबंधन के अधिकारियों के हस्ताक्षर प्रमाणित किए जाएंगे. पांच नवम्बर 2017 को चुनाव की औपचारिकता पूरी की गई.

जयप्रकाश प्रबंध समिति के मंत्री सह मैनेजर बने रहे और नवीन तिवारी प्रबंध समिति के अध्यक्ष बने. लेकिन स्कूल पर कब्जा जमाने की पूरी बिसात बाहर-बाहर से बिछा दी गई थी. तरह-तरह के बहाने लगा कर प्रबंध समिति के पदाधिकारियों के हस्ताक्षर को मान्यता नहीं दी गई. फिर ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव नामक एक शख्स परिदृश्य में अचानक प्रकट हुए, जिन्होंने यह दावा किया कि उमेश चन्द्र के निधन के बाद डॉ. पुष्पावती तिवारी ने उन्हें रफी अहमद किदवई मॉन्टेसरी मेमोरियल ट्रस्ट का कार्यवाहक अध्यक्ष मनोनीत किया था. जबकि नियम यह है कि ट्रस्ट के सात सदस्यों में से किसी के निधन या इस्तीफे से खाली हुए पद पर कोई सदस्य किसी व्यक्ति को मनोनीत करने के लिए अधिकृत नहीं है. श्रीवास्तव ने 2015 की लिस्ट पेश की, जिसमें अध्यक्ष उमेश चन्द्र का नाम काट कर ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव का नाम लिखा था. जबकि उमेश चन्द्र प्रबंध समिति के अध्यक्ष थे.

उमेश चन्द्र का निधन 29 अगस्त 2016 को हुआ. इस गिरोह ने रजिस्ट्रार, फर्म्स एवं सोसाइटी का पंजीकरण भी पेश कर दिया और 193 आम सदस्यों की एक लिस्ट भी प्रस्तुत कर दी. जिसमें सौ से अधिक सदस्य फर्जी पाए गए. ब्रजेश श्रीवास्तव ने दावा किया कि कई सदस्यों ने वर्ष 2016 में शुल्क देकर सदस्यता ली थी. इसे साबित करने के लिए जिन रसीदों की कॉपियां दी गईं, वह नई छपी हुई रसीद बुक है. इसे देखते ही पता चल जाता है कि रसीदें फर्जी हैं. दस्तावेजों पर डॉ. पुष्पावती तिवारी के जो हस्ताक्षर दिखाए गए हैं, वे भी जांच में फर्जी पाए गए. यह उजागर हो गया कि फर्जी समिति रच कर भूमाफियाओं ने स्कूल की बेशकीमती जमीन पर कब्जा करने की साजिश की, जिसे शिक्षा विभाग के अधिकारी और स्वनामधन्य पूंजीपति बिल्डर भाजपा नेता सुधीर हलवासिया खुलेआम संरक्षण दे रहे हैं.

विद्यालय को डंस रहा है आस्तीन का सांप

एक कहावत है कि सत्य की अनदेखी वही करता है जिसे असत्य से लाभ हो. इसी असत्य को पोषित कर रहा है महान क्रांतिकारिणी दुर्गा देवी वोहरा द्वारा स्थापित लखनऊ मॉन्टेसरी इंटर कालेज की आस्तीन में छिपा एक सांप. वह कहने को तो शिक्षक है लेकिन असलियत में वह जमीनों का सौदागर और तिकड़म का सरगना है. वह निजी स्वार्थ के लिए न केवल अध्ययनरत विद्यार्थियों का भविष्य चौपट करने पर आमादा है बल्कि विद्यालय की महान विरासत को ध्वस्त कर लूट की काली योजना में शामिल गिरोह का साझीदार और फाइनैंसर भी है. सच कहें तो खलनायकी चरित्र वाला यह शिक्षक ही विद्यालय में व्याप्त अराजकता और विवादों का सूत्रधार है. उसने किसी भी तिकड़म से स्कूल का प्रधानाचार्य बनने की महत्वाकांक्षा पाल रखी है और इसके लिए वह कुछ भी करने के लिए आमादा है.

इस तिकड़मी शिक्षक को मृतक आश्रित के तहत सहायक शिक्षक की नौकरी मिली हुई है. इसीलिए उसे न तो शिक्षक की गरिमा का ख्याल है और न ही संस्था के प्रति उसके मन में कोई समर्पण का भाव है. अति महत्वाकांक्षा के शिकार इस तिकड़मी शिक्षक को क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी के ऐतिहासिक विद्यालय की जमीन का महत्व नहीं समझ में आता, उसे वह जमीन का टुकड़ा समझता है और उसे बेच कर चाटना चाहता है. ऐसे व्यक्ति को शिक्षक कहलाने का हक नहीं जो विद्यार्थियों को ज्ञान देने के बजाए अपनी करतूतों से भूमाफियाई के धंधे सिखा रहा है.

इस तिकड़मी शिक्षक ने पैसे के दम पर पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक (जो कई घपले-घोटाले में लिप्त रहे हैं) और माध्यमिक शिक्षा विभाग के तत्कालीन संयुक्त निदेशक (जेडी) से घनिष्ठता साधकर सीधी भर्ती के पद पर अपना (प्रवक्ता के पद पर) प्रमोशन करा लिया. जब यह मामला प्रबंध तंत्र के सामने आया तो खुलासा हुआ कि प्रबंध तंत्र ने इस तिकड़मी शिक्षक के प्रमोशन के लिए न तो सिफारिश की थी और न ही कोई मीटिंग बुलाई थी. विद्यालय की एक अन्य शिक्षिका, जो वास्तव में प्रमोशन की हकदार थी, ने जब न्यायालय का दरवाजा खटखटाया तब यह खुलासा हुआ कि तिकड़मी शिक्षक ने प्रबंध तंत्र की फर्जी सिफारिश और मीटिंग का फर्जी दस्तावेज तैयार कर फर्जी प्रमोशन हासिल कर लिया है.

फर्जीवाड़ा खुलने के डर से उसने और भी बेजा हरकतें शुरू कर दीं. उसी का नतीजा है कि विद्यालय के असली प्रबंध तंत्र के खिलाफ एक फर्जी प्रबंध तंत्र खड़ा हो गया. उक्त शिक्षक ने पिछले दो साल में एक दिन भी क्लास नहीं ली. लेकिन जिला विद्यालय निरीक्षक को यह देखने की फुर्सत नहीं है. विद्यालय के प्रधानाचार्य की शह पर उक्त शिक्षक उपस्थिति पंजिका पर हफ्ते में एक बार एक साथ ही हस्ताक्षर बना देता है. कुछ शिक्षकों ने साक्ष्य के तौर पर उपस्थिति पंजिका की फोटो खींच रखी है. विद्यालय के तिकड़मी शिक्षक को मौजूदा प्रधानाचार्य हरिपाल सिंह का खुला संरक्षण मिला हुआ है, इसलिए उसकी अराजक गतिविधियां खुलेआम जारी हैं. विद्यालय को तहस-नहस करने में प्रधानाचार्य का भी अहम रोल है.

प्रधानाचार्य की उदासीनता के कारण स्कूल का हरा-भरा खेल का मैदान रेगिस्तान में तब्दील हो चुका है. खेल के मैदान में प्रधानाचार्य के एक अतिप्रिय चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पालतू पशु टहलते रहते हैं. खेल शिक्षकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़े शिक्षकों का कहना है कि प्रधानाचार्य के सहयोग के अभाव में विद्यालय में खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियां ठप्प हो चुकी हैं. त्रासदी यह भी है कि प्रधानाचार्य ने अपने कार्यालय में विद्यालय के ही एक रिटायर्ड बाबू को नियुक्त कर रखा है, जिसके जरिए दस्तावेजों से छेड़छाड़ का खेल होता रहता है. अगर विद्यालय की ऑडिट हो तो कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर होंगे. विद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि रिटायर्ड बाबू की तानाशाही के कारण शिक्षकों एवं कर्मचारियों को न तो समय से वेतन मिलता है और न ही जीपीएफ से ऋण मिलता है. कुछ शिक्षकों ने दबी जुबान में यह भी स्वीकारा कि रात के अंधेरे में विद्यालय में तिकड़मी शिक्षक और बिल्डरों, माफियाओं की महफिलें भी सजती हैं.

भूमाफियाओं से स्कूल को बचाने के लिए पूरा समाज आगे आया

क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी द्वारा स्थापित लखनऊ मॉन्टेसरी स्कूल एवं इंटर कॉलेज को भूमाफियाओं से बचाने के लिए पूरा समाज आगे आ गया है. आंदोलन के लिए सड़क पर उतरे नागरिकों में शिक्षाविद्, पत्रकार, वकील, छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं. विद्यालय के ट्रस्टी प्रोफेसर प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि फर्जी दस्तावेजों के बूते विद्यालय पर कब्जा करने का जो षडयंत्र रचा गया, उसे समाज के लोग कामयाब नहीं होने देंगे. वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने कहा कि स्कूल पर कब्जा करने की कोशिश एक गंभीर मामला है, जिसमें सरकारी अधिकारी भी भूमाफियाओं की मदद कर रहे हैं.

रामदत्त ने यह भी कहा कि राजधानी के प्रबुद्ध नागरिकों ने क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी के लखनऊ मॉन्टेसरी स्कूल को फर्जी तत्वों और माफिया से बचाने के लिए ‘दुर्गा भाभी विद्यालय बचाओ संघर्ष समिति’ का गठन किया है, जो इस आंदोलन को व्यापक और निर्णायक बनाएगी. वरिष्ठ किसान नेता शिवाजी राय कहते हैं कि षडयंत्रकारियों में भाजपाई भी शामिल हैं, जिनके दबाव में पुलिस स्कूल के साथ धोखाधड़ी करने वाले लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कोई सख्त कानूनी कार्रवाई नहीं कर पा रही. विद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष नवीन चंद्र तिवारी ने कहा कि स्कूल पर कब्जा करने के षडयंत्र में सत्ताधारी दल से जुड़े बिल्डर शामिल हैं.

इस वजह से विद्यालय के अस्तित्व पर खतरा आ गया है. पिछले दिनों गांधी प्रतिमा के समक्ष हुए धरना कार्यक्रम में शामिल नागरिकों ने विद्यालय को भूमाफियाओं से बचाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष करने का संकल्प लिया और शपथ ली कि आवश्यकता पड़ने पर वे सत्याग्रह करके गिरफ्तारियां देंगे. धरना में पूर्व विधायक रामलाल अकेला, बाराबंकी के वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता राजनाथ शर्मा, मजदूर नेता गिरीश कुमार पांडेय, प्रोफेसर रमेश दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी, सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय, किसान नेता शिवाजी राय, शैलेश अस्थाना, रामकिशोर, भारतीय कृषक दल के अध्यक्ष सरोज दीक्षित, युवा नेता ज्योति राय, पूजा शुक्ला, दीपक मिश्र समेत कई गण्यमान्य नागरिक शामिल थे.

देश पर ऋृण की तरह हैं दुर्गा भाभी के योगदान

दुर्गावती देवी वोहरा उर्फ दुर्गा भाभी का त्याग और योगदान देश के ऊपर ऐसा ऋण है, जिसे कभी चुकाया नहीं जा सकता. लेकिन इसी देश के और हमारे समाज के ही कुछ लोग घृणित किस्म के जीव हैं, जिन्हें अपने पुरखों के त्याग और तपस्या से कोई लेना-देना नहीं, उन्हें बस सिक्के पसंद हैं. नई पीढ़ी को अपने क्रांतिकारियों के बारे में अवगत कराना समाज की नैतिक जिम्मेदारी है. जैसा ऊपर बताया कि दुर्गा भाभी का असली नाम दुर्गावती देवी था. उनका जन्म 07 अक्टूबर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास कौशांबी के शहजादपुर गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित बांके बिहारी था, जो इलाहाबाद कलक्ट्रेट में नाजिर थे. दुर्गावती देवी का विवाह बहुत कम उम्र में ही लाहौर के भगवतीचरण वोहरा से हो गया था. भगवतीचरण भारत की आजादी के लिए क्रांति के रास्ते पर चल रहे थे. दुर्गावती भी उनके साथ शामिल हो गईं. उनका घर क्रांतिकारियों का भूमिगत केंद्र बन गया था.

लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के बाद भगत सिंह और उनके साथियों को सुरक्षित कलकत्ता पहुंचाने की जिम्मेदारी दुर्गा भाभी ने ही उठाई थी. जनरल डायर्स की हत्या में प्रयोग हुए हथियारों का प्रबंध भी दुर्गा भाभी ने ही किया था. क्रांतिकारी भगत सिंह दुर्गावती देवी को दुर्गा भाभी के साथ-साथ चंडी मां भी कहते थे. क्रांतिकारियों के संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन ’ (एचआरएसए) के प्रणेता भगवतीचरण वोहरा ही थे. भगत सिंह के संगठन नौजवान भारत सभा का घोषणा-पत्र भी भगवती ने ही तैयार किया था.

चंद्रशेखर आजाद ने एचआरएसए के प्रचार की जिम्मेदारी भगवतीचरण को ही दी थी. लॉर्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन पर बम फेंके जाने की पूरी योजना भगवतीचरण ने बनाई थी. महात्मा गांधी ने ‘यंग इंडिया’ अखबार में इसकी निंदा करते हुए इसे ‘कल्ट ऑफ बम’ कह कर कटाक्ष किया था. गांधी की निंदा के जवाब में आजाद और भगवती ने लिखा, ‘फिलॉसफी ऑफ बम’. इस लेख में कहा गया, ‘ब्रिटेन ने भारत के खिलाफ सारे अपराध किए, भारत को लूटा, भारतीयों को जर्जर बनाया, अपमानित किया और हमारे आत्म सम्मान को रौंदा. क्या हमें अंग्रेजों के आपराधिक कृत्यों को भूल जाना चाहिए? क्या उन्हें माफ कर देना चाहिए? समझौता और अहिंसा कायरों की बहानेबाजियां हैं. हम कायर नहीं हैं. हम अपने अपमान का बदला लेंगे. यह युद्ध है जिसका चरम या तो विजय है या मृत्यु.’ ऐसे महान लोग हुए हैं देश में, जिन्हें यह कभी एहसास भी नहीं हुआ होगा कि भविष्य में ऐसे नीच लोग भी पैदा होंगे जिनकी नीचता के आगे अंग्रेजों के घिनौने कृत्य भी छोटे पड़ जाएंगे.

इस देश ने दुर्गा भाभी जैसी क्रांतिकारिणी के अभूतपूर्व

योगदानों का कभी औपचारिक श्रेय नहीं दिया. हालांकि जब उन्होंने लखनऊ में मॉन्टेसरी स्कूल की स्थापना की, तब उसका शिलान्यास करने जवाहर लाल नेहरू लखनऊ आए थे. पंडित नेहरू ने दुर्गा भाभी को सरकार की तरफ से मदद की पेशकश भी की थी, लेकिन दुर्गा भाभी ने सरकारी मदद लेने से इन्कार कर दिया था. असेम्बली बम कांड के बाद जब भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारी गिरफ्तार हो गए तब उन्हें छुड़ाने के लिए वकीलों को पैसे देने के लिए दुर्गा भाभी ने अपने सारे गहने बेच दिए थे.

तब तीन हजार रुपए वकील को दिए गए थे. दुर्गा भाभी ने भगत सिंह और साथियों को छुड़ाने के लिए अंग्रेजों से बात करने के लिए गांधी से नाकाम अपील भी की थी. दुर्गा भाभी की ननद सुशीला देवी ने भी अपनी शादी के लिए रखा 10 तोला सोना क्रांतिकारियों का केस लड़ने के लिए बेच दिया था. दुर्गा भाभी और उनकी ननद ने ही असेम्बली में बम फेंकने के लिए जाते समय भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के माथे पर तिलक लगाकर विदा किया था. 63 दिन की ऐतिहासिक भूख हड़ताल के बाद लाहौर जेल में शहीद होने वाले जतींद्र नाथ दास उर्फ जतिन दा का शवदुर्गा भाभी ही लाहौर से लेकर कलकत्ता गई थीं.

पंजाब प्रांत के पूर्व गवर्नर लॉर्ड हेली पर हमला करने की योजना दुर्गा भाभी ने ही बनाई थी. नौ अक्टूबर 1930 को उन्होंने हेली पर बम फेंका, जिसमें हेली और उसके कई सहयोगी घायल हो गए. बुरी तरह जख्मी होकर भी हेली बच गया. बाद में दुर्गा भाभी पकड़ी गईं और उन्हें तीन साल जेल की सजा काटनी पड़ी थी. एक-एक करके जब सारे क्रांतिकारी शहीद हो गए और दुर्गा भाभी को लाहौर से जिला बदर कर दिया गया तब वे गाजियाबाद चली आईं.

दो साल स्कूल में नौकरी करने के बाद वे मद्रास चली गईं और वहां मॉन्टेसरी सिस्टम के स्कूल की ट्रेनिंग ली. उसके बाद उन्होंने लखनऊ आकर छावनी इलाके में मॉन्टेसरी स्कूल खोला. शुरुआत में स्कूल में पांच बच्चे ही थे. वही स्कूल आज लहलहा रहा है, लेकिन लुच्चे-लफंगे उसी ऐतिहासिक थाती को लहूलुहान करने पर तुले हैं. दुर्गा भाभी 15 अक्टूबर 1999 को दिवंगत हो गईं, लेकिन राष्ट्र ने उन्हें राष्ट्रीय सम्मान नहीं दिया. देश की आजादी की लड़ाई में इतना बड़ा योगदान देने वाली क्रांतिकारिणी की ऐसी उपेक्षा भारत में ही हो सकती है, किसी अन्य देश में नहीं.

शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी विद्यालय भी है माफियाओं के कब्जे में

भूमाफियाओं ने गोंडा के शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी विद्यालय पर भी कब्जा कर रखा है. काकोरी कांड के हीरो राजेंद्र लाहिड़ी के नाम पर गोंडा के पंतनगर पथवलिया में 48 साल पहले 1970 में ही एक स्कूल की स्थापना की गई थी. गोंडा जिला जेल में ही अग्रेजों ने क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को फांसी दी थी. ऐसे ऐतिहासिक स्कूल की महंगी जमीन पर भूमाफियाओं की नजर पड़ी और स्कूल पर कब्जा हो गया. स्कूल से कब्जा हटाने में पूरा प्रशासन फेल हो गया, क्योंकि प्रशासनिक अधिकारियों की भी भूमाफियाओं के साथ मिलीभगत थी. माफिया के गुर्गों ने बेधड़क स्कूल पर ताला जड़ दिया और सारे क्लास रूम बंद कर दिए. गुंडों ने स्कूल के शिक्षकों के साथ-साथ छात्रों को भी धमकाया और स्कूल आने से रोक दिया. जब गांव के प्रधान ने इसका विरोध किया तो प्रधान को भी धमकियां दी गईं और माफिया का साथ दे रहे अधिकारियों ने प्रधान को कई फर्जी शिकायतों में फंसा दिया. जिलाधिकारी ने स्कूल पर लगे ताले खोलने का आदेश दिया तो उनका आदेश भी नहीं चला.

भूमाफिया खुलेआम लूट रहे हैं यूपी के स्कूलों की ज़मीन

यूपी के स्कूल भूमाफियाओं के लिए सबसे आसान शिकार हैं. पूरे उत्तर प्रदेश में स्कूलों की जमीनें लूटी जा रही हैं और स्कूलों पर भूमाफियाओं का कब्जा होता जा रहा है. पिछले ही महीने बहराइच के एक स्कूल पर माफियाओं के कब्जे के खिलाफ छात्राओं ने अपने अभिभावकों के साथ धरना दिया. बहराइच के मिहिपुरवा तहसील के मटेही कला गांव में लड़कियों के प्राथमिक स्कूल पर कब्जा कर लिया गया, जबकि वह गांव भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले का गोद लिया हुआ गांव है. भूमाफिया ने स्कूल की जमीन कब्जे में लेकर वहां अवैध निर्माण कार्य भी शुरू करा दिया. दबंगों के डर से बच्चियों ने स्कूल जाना छोड़ दिया. विडंबना यह है कि प्रदेश की बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल भी बहराइच जिले की हैं, लेकिन उनकी सरकार माफियाओं के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रही है.

ऐसा ही हाल गौतम बुद्ध नगर के दादरी स्थित फूलपुर गांव में हुआ जब भूमाफियाओं ने बाकायदा जेसीबी लगा कर प्राइमरी स्कूल की बिल्डिंग गिरा दी और स्कूल की जमीन पर कब्जा कर लिया. अब उस जमीन पर मार्केट बनाने की तैयारी चल रही है. ‘चौथी दुनिया’ ने अभी हाल ही दादरी में भूमाफियाओं के तांडव पर विस्तृत खबर प्रकाशित की थी. लेकिन खबर छपने के बाद भी सरकार ने कोई सुध नहीं ली. बदायूं जिले के म्याऊ ग्राम पंचायत क्षेत्र में भी स्कूल के लिए आवंटित एक एकड़ बेशकीमती जमीन पर भूमाफियाओं ने कब्जा कर लिया और निर्माण शुरू कर दिया.

अलीगढ़ जिले में तो करीब तीन दर्जन स्कूलों पर भूमाफियाओं के कब्जे की सूचना सरकार को है. लेकिन इस सूचना पर कोई सरकारी हरकत नहीं है. अलीगढ़ जिले में 1519 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं. इनमें सैनपुर, गोजिया, खुदीपुरी, मुगरिया, कोटा, बेरीसला, ताजपुर, एवरनपुर, नगला हीरा सिंह, डंडेसरी, चिरायल, साहसतपुर, नगला ढक, शेखू अजीतपुर, औंदुआ, ममौता कला, इसौदा, थरौरा, नगला तारासिंह, नगला गोविन्द, मेदामई, बाहनपुर, जाफराबाद, मीरपुर और बहादुरपुर भूप गांव समेत कई अन्य परिषदीय स्कूलों की जमीनों पर भी दबंगों ने कब्जा कर रखा है. जिला प्रशासन ने खुद यह कबूल किया है कि 30 विद्यालयों की जमीनों पर दबंगों का कब्जा है.

भूमाफियाओं के आतंक से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ भी आक्रांत है. लखनऊ के कई स्कूलों की जमीनों पर माफियाओं का कब्जा हो चुका है. दूसरे कई विद्यालयों की करोड़ों की जमीन भूमाफियाओं के निशाने पर हैं. लखनऊ जिला प्रशासन की आधिकारिक रिपोर्ट है कि जिले के 67 प्राथमिक और पूर्व माध्यामिक विद्यालयों की जमीनों पर अवैध कब्जा है. यहां तक कि सम्बन्धित फाइलें भी जिला प्रशासन और बीएसए के दफ्तर से गायब कराई जा चुकी हैं. लखनऊ के जोन-एक के प्राथमिक विद्यालय गौरी, अमौसी, भदरुख, हैवतमऊ, आजाद नगर, पूर्व माध्यमिक विद्यालय उतरेठिया, गुडौरा, पानी गांव, अमराई गांव, अलीगंज, इरादतनगर, बटहा सबौली, भरवारा और पूरे गौरी की जमीनों पर भूमाफियाओं और स्थानीय दबंगों ने कब्जा कर रखा है.

खुर्रमनगर प्राथमिक विद्यालय की जमीन पर भी अवैध कब्जा हो चुका है. छावनी मड़ियांव स्थित पूर्व माध्यमिक विद्यालय परिसर के अंदर ही माफिया ने अवैध निर्माण करा रखा है. लखनऊ के पीजीआई थाना क्षेत्र के तेलीबाग प्राथमिक विद्यालय की जमीन पर भूमाफिया ने कब्जा कर अपना अवैध निर्माण करा रखा है. तेलीबाग खरिका के रामटोला पानी टंकी के पास स्थित प्राथमिक विद्यालय के स्कूल भवन के चारों तरफ बच्चों के खेलने के लिए जो विद्यालय का मैदान था उस पर माफियाओं का कब्जा हो चुका है. दबंगों ने स्कूल की खिड़कियां तक सीमेंट गारा लगा कर बंद करा दी हैं. प्रशासन और शिक्षा महकमे को इसकी जानकारी है, लेकिन टालमटोल जारी है.

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