संजय सोनी : पूरे कोसी में आजकल एक सवाल काफी चर्चा में है. जगह-जगह राजनीतिक मिजाज के लोग एक दूसरे से जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कोसी में शरद यादव राजद को बचाएंगे या राजद यहां शरद यादव को सहारा देगा. इस सवाल का जबाव तो आने वाला वक्त ही देगा. हालांकि इसे लेकर कोसी में राजनीतिक बिसात बिछ चुकी है कि राजद और शरद यादव दोनों को एक दूसरे की जरूरत है. शरद यादव के हालिया कोसी यात्रा को विश्‍लेषक इसी नजरिये से देख रहेे हैं.

जन संवाद यात्रा के बहाने कोसी की धरती पर एक बार फिर से जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद शरद यादव ने अपनी राजनीतिक जमीन टटोली. उन्होंने वहां राजद के वजूद को भी जांचा-परखा. उन्हें जन समर्थन भी मिला. कोसी के लोगों ने उन्हें कोसी में राजद की डूबती नैया का खेवनहार कहा, तो वहीं बहुजन चौपाल के छात्रों व राजद समर्थकों ने शरद यादव को मंडल मसीहा घोषित कर दिया. बीपी मंडल की धरती कोसी में पहले एक नारा बुलंद किया जाता था- ‘रोम है पोप का और मधेपुरा है गोप का.’ लेकिन जब शरद यादव, नीतीश कुमार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगे, तब ये नारा भी ठंडा पड़ गया. अब शरद यादव को मंडल मसीहा घोषित करने के बाद फिर से आरक्षण की बुझती आग को ताजा किया जा रहा है.

इसी के साथ आरक्षण का लाभ पाने वाली जातियों को जागृत करने, खासकर यदुवंशियों की भावना भड़काने का भी पूरा प्रयास शुरू हो गया है. ये तो सब जानते हैं कि कोसी की धरती पर मंडल मसीहा बीपी मंडल सरीखे नेताओं की कुर्बानी का मार्केटिंग करने में राज्यसभा सांसद शरद यादव को महारत हासिल है. राजनीतिक विश्‍लेषकों की मानें तो कोसी प्रमंडल में भाजपा का वैसा जनाधार नहीं है, जिसपर वो इतरा सके. कांग्रेस का आधार वोट ही भाजपा को मिलता है. भाजपा का आधार वोट कहे जाने वाले बनियां समुदाय ने कोसी में भाजपा ने कभी तवज्जो नहीं दिया. लिहाजा, भाजपा का जदयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ना भले ही बिहार व देश में लहर पैदा करे, लेकिन विषम परिस्थिति में भी कोसी में राजद व कांग्रेस का गठबंधन भारी पड़ सकता है.

वर्तमान में मधेपुरा व सुपौल लोकसभा क्षेत्र के कुल 13 सीटों में से, जदयू के पास 8, राजद के पास 4 व एक सीट भाजपा के कब्जे में है. जबकि सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल का विधानसभा क्षेत्र खगड़िया लोकसभा क्षेत्र के अधीन है और इस सीट पर भी जदयू का ही कब्जा है. अब महागठबंधन टूट जाने से जदयू की 9 सीटों में से सुपौल मुख्यालय की सीट छोड़कर, बाकी पर राजद व कांग्रेस गठबंधन को लाभ मिल सकता है. अभी सुपौल लोकसभा सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा है. राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन यहां से सांसद हैं.

जदयू से अलग होने के बाद कोसी में भाजपा केवल एक सीट ही निकालने में सफल रही थी. इधर कोसी में जदयू के सीटिंग विधायकों को अभी से ही ये चिंता सताने लगी है कि भाजपा के साथ गठबंधन के बाद अब सीटों का बंटवारा कैसे होगा. दुबारा टिकट लेने से वंचित रहने वाले जदयू विधायकों का भी एक बड़ा हिस्सा शरद यादव के साथ आ जाएगा. इन्हीं सब स्थितियों को ध्यान में रखते हुए शरद यादव ने अभी से राजद के साथ सुर मिलाना शुरू कर दिया है.

हालांकि राजद के सभी सीटों पर भाजपा व राजग के अन्य घटक दलों की जीत से भी इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन जदयू की सीटों के बंटवारे का विवाद कैसे सुलझेगा ये जदयू के लिए चिंता की बात होगी. इसे लेकर अभी से अटकलों का दौर शुरू हो गया है. इन सबसे इतर, ये तो तय है कि कोसी में राजद की डूबती नैया को शरद यादव के पतवार की दरकार है, वहीं शरद यादव को भी लोकसभा सांसद के रूप में संसद पहुंचने के लिए राजद की जरूरत है. यही वजह भी है कि कोसी में अपनी जन संवाद यात्रा के दौरान शरद यादव ने सूबे की जदयू-भाजपा गठबंधन सरकार का खुलकर विरोध किया.

 

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