कल 20 जनवरी 2024 बादशाह खान को इस दुनिया से विदा होकर जाने को चौतिस साल हो गये हैं !
आज के अखबारों में पाकिस्तान की एक खबर के अनुसार जी एम सैयद (जिये सिंध के संस्थापक नेता) की 118 वी जयंती की पूर्व संध्या पर जमशोरो जिले के सन्न शहर में पाकिस्तान विरोधी नारे लगाने के आरोप में पचास से अधिक सिंधी राष्ट्रवादीयो के उपर मामला दर्ज किया गया ! जीसमे राजद्रोह के आरोपी सारंग जोयो भी शामिल है ! सारंग को 2020 में जबरन गायब कर दिया था ! जिसका पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने इस कदम की निंदा की है ! और सिंधी राष्ट्रवादीयो के खिलाफ आरोपों को तुरंत हटाने की मांग की है !


सिंध प्रांत से लापता राजनीतिक कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए प्रदर्शन रविवार की रात और सोमवार को दो विरोध प्रदर्शन हुए ! और जय सिंध तहरिक और जय सिंध महाज के कई राष्ट्रवादी समुहो और गुटों, द्वारा दिवंगत नेता जी एम सैयद की कब्र के पास विरोध प्रदर्शन किया गया था ! 34 कार्यकर्ताओं पर मामला दर्ज किया गया है !
यह आज लिखने की एकमात्र वजह बादशाह खान अब्दुल गफ्फार खान की जिंदगी के सबसे ज्यादा समय पंद्रह साल से अधिक पाकिस्तान निर्माण होने के बाद पाकिस्तान की जेलों में गया है !


हालांकि उन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई के समय भी वर्तमान पाकिस्तान के किसी भी नागरिकों की तुलना में, अंग्रेजी राज में भी सबसे ज्यादा जेल और यातनाएं सहन की है ! और भले ही उनका राजनीतिक सफर पहली बार आगरा के मुस्लिम लिग के अधिवेशन जो 1913 मे शामिल होने से शुरु हुआ है ! लेकिन 1940 के लाहौर प्रस्ताव के पाकिस्तान बनाने के सख्त खिलाफ लोगों में बादशाह खान अब्दुल गफ्फार खान, प्रथम श्रेणी के लोगों में से एक थे ! और उनके इस निर्णय का खामियाजा उन्हें 15 अगस्त 1947 के बाद भी, मरते दम तक भुगतना पडा है ! भारत में रहकर पाकिस्तान के खिलाफ बोलना, लिखना और पाकिस्तान में रहकर बोलने – लिखने में जमीन आसमान का फर्क है ! जिसका ताजा उदाहरण मैंने अपने पोस्ट के शुरू में ही, सिंध प्रांत की जी एम सैयद की 118 वी जयंतीपर किया गया प्रदर्शन, और उसके खिलाफ कार्रवाई की जानकारी से शुरू की है !
बादशाह खान को लगभग सौ साल का जीवन जीने को मिला था ! और उनकी जिंदगी के सबसे बेहतरीन समय, लगभग एक चौथाई हिस्सा, पहले अंग्रेजी सल्तनत और बाद में पाकिस्तानी सरकार की जेल मे गुजरी है ! उन्होंने मरते दम तक पाकिस्तान का अस्तित्व स्वीकार नहीं किया था !

और इतिहास की विडम्बना देखिये बैरिस्टर मुहम्मद अली जीना और बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर जो बिल्कुल भी धार्मिक विश्वास के शख्सियत नहीं थे ! लेकिन धर्म के आधार पर एक मुल्क को बाटने की राजनीति को अमली जामा पहनाने में कामयाब हुए ! और बादशाह खान महात्मा गाँधी के टक्कर के उस समय के सार्वजनिक जीवन में शायद ही कोई धार्मिक व्यक्ति होंगे ! लेकिन धर्म को लेकर राजनीति कर के देश का बटवारा करने के लिए दो बैरिस्टर जीना और सावरकर जिम्मेदार है !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने 14 अगस्त को बटवारे के दिवस के रूप में मनाने की घोषणा ! गत वर्ष के स्वतंत्रता दिवस पर की है ! और मैंने उनकी घोषणा का स्वागत करते हुए कहा, कि पचहत्तर साल के बाद ही सही अगर इमानदारी से बटवारे के कारणों की तलाश कर के, कौन-सी ताकतों के कारण भारत विभाजन हुआ ? इसके कारण अवश्य ढूंढने की आवश्यकता है ! और उस समय बादशाह खान को याद किये बगैर इतिहास पूरा नहीं होगा !


बटवारे के बाद लगभग तेरह महिनों में बैरिस्टर जीना इस दुनिया से रूख्सत पा गए थे ! लेकिन बैरिस्टर सावरकर बटवारे के बाद भी बीस साल जीवित थे ! और बादशाह खान तिरतालिस ( 1990 के 20 जनवरी को उनका इंतकाल हुआ है ! ) 100 साल जीवित थे ! और पाकिस्तान के निर्माण के विरोध में आधे समय जेल में बंद रहे ! और उन्होंने अपनी लाल डगले या खुदाई खिदमतगारो की मदद से पाकिस्तानी सरकारों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था ! 8 जुलाई 1948 को नाॅर्थ वेस्ट फ्रंटियर सरकारने खुदाई खिदमतगार इस संघठन के उपर बैन लगाने के बाद, एक हजार से भी ज्यादा खिदमतगारो को जेल में बंद कर दिया था ! लेकिन उसके बावजूद 12 अगस्त 1948 मतलब पाकिस्तान की निर्माण होने के एक साल को दो दिन कम रहने के समय !


जालियनवाला बाग से भी भयंकर बाबरा नाम के गांव में चारसढ्ढा के पास एक मस्जिद में हुई, खुदाई खिदमदगारो की सभा के उपर, पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलीबारी की ! जिसमें दो हजार से अधिक लोगों को मारने की घटना हुई है ! जिसमें औरतें और बच्चों का भी समावेश है ! और वह कब्रिस्तान आज भी उस जगह पर, उस एरिया का सबसे बड़ा कब्रगाह के रूप में मौजूद हैं ! और पाकिस्तान सरकारने इस घटना की खबर को दबाने की पूरी कोशिश की ! लेकिन यह घटना वह भी पाकिस्तान बनाने के एक साल के भीतर ही हुई है ! और इसके अलावा पाकिस्तान की सेना ने विमानों से पख्तुन के हिस्से पर बमबारी भी की है !
और मेरे हिसाब से यह घटना में मुझे लगता है, कि अहिंसा की परीक्षा की जितिजागती मिसाल के तौर मैं इसे लेकर सोचता हूँ कि ! सिर्फ अहिंसा परमो धर्म बोलना, और इस तरह के हिंसा के बाद भी अहिंसा का पालन करना ! और यह कौम सदियों से अस्र – शस्त्रों के साथ ही अपने जीवन यापन करने के लिए मशहूर लोगों के साथ लेकर अहिंसा का प्रयोग ! शायद विश्व इतिहास में का हाल के दिनों का पहला प्रयोग लगता है ! सरहद गांधी यह उपाधि ऐसे ही थोड़ी मिली होगी !


सबसे बडी बात बादशाह खान ने महात्मा गाँधी के प्रभाव में रहने के कारण, अपने अनुयायियों को (जो कि सदियों से लडाईया करते आए हुए, कौम के लोग थे !) इतना बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने के पस्चात भी, अपने साथियों को अहिंसा के सिद्धांत पर कायम रहने के लिए प्रेरित करते रहे ! अहिंसा का कद इस घटना से कितना बड़ा हुआ है ? इसका अंदाजा लगाया जा सकता है !


सर्वसाधारण जीवन जीते हुए, अहिंसा की बात करना बहुत आसान है ! लेकिन इस तरह की घटनाओं में अपने आपको अहिंसा के सिद्धांत पर कायम रखना, यही अहिंसा की असली परीक्षा की घड़ी थी ! और अहिंसा के सिद्धांत का बाबरा के नरसंहार में, यह प्रत्यक्ष प्रयोग किया है ! जो नरसंहार डी. जी. तेंदुलकर (6 खंडो में ‘महात्मा’ के लेखक ! ) अपनी ‘अब्दुल गफ्फार खान’ नाम की किताब में जालियनवाला बाग के साथ तुलना करते हुए लिखते हैं “कि यह घटना इतनी भयंकर थी कि ! जालियनवाला कांड की तुलना में अधिक बर्बरता वाली घटना है” !


महात्मा गाँधी के अन्य बड़बोले अनुयायियों में और, बादशाह खान अब्दुल गफ्फार खान साहब में यही मौलिक फर्क नजर आता है ! काफी गांधीवादी लोग खान साहब से भी अच्छी तरह से अहिंसा के सिद्धांत पर प्रवचन देने वाले मुझे मालूम है ! लेकिन अहिंसा का साक्षात प्रयोग करने वाले एक मात्र अनुयायी खान साहब ही थे !
और यही बात भारत विभाजन के खिलाफ जो भी लोग हैं ! उन सभी की तुलना में सही- सही शख्सियत अगर कोई थी तो, वह भी बादशाह खान अब्दुल गफ्फार खान ही थे ! और वह भी पाकिस्तान में रहते हुए बटवारे को नकारते हुए कल्पना से परे है !
एक तरफ ‘हिंदुत्व’ नाम की किताब लिखना और, बटवारे का विरोध सिर्फ मुंहसे करने वाले लोगों की बुद्धि पर तरस आता है ! इसमें से एक भी नमूने ने बटवारे के खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश का कही भी उल्लेख नही मिलता है ! शिवाय अस्सी साल के एक निहत्थे महात्मा गाँधी की हत्या करने के अलावा ! इस नपुंसक जमात का और कोई उदाहरण नही है !


उल्टा सांप्रदायिक राजनीति करने वालों ने ही भारत का बटवारा किया है ! और वह दोनों तरफ के ( हिंदुत्ववादी और इस्लामिस्ट, और वह भी सिर्फ अपने स्वार्थ की राजनीति के लिए ! ) क्योंकि बैरिस्टर जीना अपने खास लोगों के साथ की बातचीत में, अक्सर कहा करते थे कि “मै इन जाहील लोगों के लिए थोड़ा ही पाकिस्तान बना रहा हूँ ?” मतलब जीना ने अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति करने के लिए ही बटवारे की कृतियों को अंजाम दिया है ! ऐसा मेरा स्पष्ट मानना है ! और हिंदुत्ववादी तत्वो ने उसे मदद ही की है ! मोर्ले – मिंटो सुधार के निषेध के तौर पर कांग्रेसी सरकारों ने इस्तीफा दिया, तो मुस्लिम लिग और हिंदु महासभा की सरकारों के गठबंधन, वह भी लाहौर प्रस्ताव के बाद भी ! इस कदम से हिंदुत्ववादी लोगों को इतिहास में अपने ही गिरेबान में झाँकना पडेगा ! और पता चलेगा कि इनके इस कदम के कारण मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग को मान्यता मिली ! किसके माथे पर दोष मढ कर हत्या कर दी ? जो आखिर तक बटवारे के विरोध में रहने वाले महात्मा गाँधी की हत्या ? और आजकल उस कृत्य को महिमामंडित करने की होड़ लगी हुई हैं !
तथाकथित साधु संसद ! (देश में एक संसद विधि द्वारा स्थापित रहते हुए ! ) में किस तरह का विषवमन अल्पसंख्यक समुदायों से लेकर महात्मा गाँधी तक ! लगातार बढ़ रहा है ? और वर्तमान सत्ता में बैठे हुए लोगों की मुक संमती होना यह और भी गंभीर बात है !
मुझे अबतक दो बार पाकिस्तान जाने का मौका मिला है ! और एक बार तो वाघा बार्डर से होते हुए पाकिस्तानी पंजाब, सिंध और बलुचिस्तान के रास्ते झायदान तक ! मतलब ईरान के पाकिस्तान से लगे हुए बलुचिस्तान के हिस्से से ईरान में प्रवेश किया !
तो पंजाब के लोगों को पाकिस्तान के अन्य हिस्सों के लिए कितनी नफरत है ! यह मैने कदम- कदम पर देखा है ! हमारे पंजाबी ड्राइवर को मिटर के तौर पर, मैंने देखा कि, पंजाब से सिंध प्रांत में घुसने के पहले, उसने एक पेट्रोल पंप पर पेट्रोल लेने के लिए ! हमारी गाड़ी खडी की, और हमारे साथ पंजाब पुलिस की दो गाड़ियों का काफिला ! ( एक आगे और दुसरी पिछे ) सिक्युरिटी गार्ड के साथ थी ! तो सिक्युरिटी गार्ड ऐके 47 के साथ जाकर, पेट्रोल पंप पर भीड़ को हटाने लगे ! तो मैं ड्राइवर की बगल में ही सामने की सिट परसे देखा कि, पेट्रोल पंप के आफिस के शटर को बंद कर के एक नाटा सा आदमी ने कहा कि, “अब असिफ अली झरदारी भी आया ! तो मैं पेट्रोल पंप नही खोलने वाला !” (उस समय झरदारी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे !) जैसे ही मैंने यह डायलॉग सुना ! तो मैं अपने आप गाड़ी का दरवाजा खोल कर बाहर आकर उसे गले लगाकर, कहा कि “वाह क्या बात है ! आज भी पाकिस्तान में यह जज्बा कायम है ! यह देखकर बहुत ही अच्छा लग रहा है ! आपने हमें पेट्रोल नही दिया तो भी चलेगा !” मैंने तो आपके जज्बे को सलाम करने के लिए आपको गले लगाया हूँ ! ” तो भिडमेसे लोगों ने कहा कि ” यह हमारे मेहमान है ! इन्हें पहले दे दिजीए !” वह नाटा सा आदमी शायद पेट्रोल पंप का मालिक था ! मुझसे कहा कि “देखिये यह आपके सिक्युरिटी वाले लोग, बंदुक दिखाकर पेट्रोल मांग रहे हैं ! इसलिये मुझे गुस्सा आया !” तो मैंने कहा कि ” यह वर्दी की गर्मी है ! जो हमारे मुल्क में भी हम देखते रहते हैं ! ” और उसने हमें पेट्रोल सबसे पहले दे दिया ! पेट्रोल लेकर कुछ कदम ही आगे बढे होंगे, तो पंजाबी ड्राइवर ने कहा कि, वह साला बलुच था ! और यह सभी बलुच हरामखोर, गद्दार होते है ! थोडी देर बाद सिंध प्रांत की शुरुआत हुई तो ड्राइवर ने कहा कि ” और एक गद्दारी वाले लोगों के बीच आ गये !” मतलब पाकिस्तान का युनिफिकेशन अभी भी नही हुआ है ! यह बात मैंने अपने पोस्ट की शुरुआत में ही ! सिंध प्रांत की आज के नवभारत नाम के हिंदी अखबार की रिपोर्ट कोट करते हुए कहा ! कि “किस तरह सिंध प्रांत में एक- दो दिन पहले ही क्या हुआ है ? “और इससे भी ज्यादा बलुचिस्तान में हालात कश्मीर से भी बदतर है ! इसलिए हमें कराची में बताया गया कि “सिंध प्रांत में बहुत बवाल मचा हुआ है ! इसलिए यहाँ से झायेदान हवाई जहाज से भेज रहे हैं !”
कराची से निकलने के घंटे भर में ही, क्वेट्टा एअरपोर्ट पर थोड़ी देर के लिए हमारे प्लेन को रूकना पड़ा था ! तो मैं अपने सिट से उतरकर एअरपोर्ट के जमिन पर उतरने के बाद देखा, कि हर दस फीट पर ऐके 47 और तोप तथा बख्तरबंद गाड़ियों से पूरा एअरपोर्ट घिरा हुआ था ! तो मैंने ग्राउंड स्टाफ को पुछा की क्या यह आर्मी का एअरपोर्ट है ? तो वह बोला कि आप शायद जानते नहीं है ! यह बलुचिस्तान है ! और यहां पर बारह महीनों चौबीस घंटे आजादी की लड़ाई जारी है ! इसलिए इस एअरपोर्ट पर इतनी ज्यादा सिक्योरिटी है ! और यह एअरपोर्ट सिविल ही है ! लेकिन मोस्ट सेसेंटिव सिक्योरिटी झोन की कॅटेगरी मे आता हैं !
हालांकि मुझे अच्छी तरह से बलुचिस्तान की स्थिति के बारे में, हमारे कराची के होस्ट ने पुछा था कि “आप को कराची से झायदान सड़क मार्ग से क्यों नहीं जाने दिया ?” हमने कहा कि कुछ सिक्युरिटी की बात बोल रहे थे !” तो वह बोले” किसकी सिक्युरिटी ? आप लोगों की या पाकिस्तान की ?” मै पशोपेश में पडकर पुछा की” पाकिस्तान की सिक्युरिटी की क्या बात है ?” तो उन्होंने कहा कि “आप लोग क्वेट्टा पहुचने पर एक लाख से अधिक लोग इकट्ठे होकर आपके स्वागत-सत्कार के लिए तैयार थे !” मैंने कहा कि हमें अपनी जगह पडोसी भी ढंग से पहचानते नही है ! और हम लोगों में कोई सचिन तेंदुलकर या शाहरुख खान नही है ! कि हमारे लिये इतनी ज्यादा भिड इकठ्ठा हो !” तो उन्होंने कहा कि “वह अपने स्वतंत्र बलुचिस्तान की बात आप लोग फिलीस्तीन के जैसे ही उठाएंगे ! इस आशा से आपके स्वागत-सत्कार के तैयारी में जुट गए हैं ! और इसे देखते हुए पाकिस्तानी सेना के लोगों ने आपको सड़क मार्ग कराची के आगे जाने की जगह सिधे हवाई जहाज में बैठा कर झायदान पहुचाने का निर्णय लिया है !” और मै भी जानबूझकर जैसे ही कराची के बाद कुछ समय भीतर विमान निचे उतरा ! तो हमने पुछा की झायदान आ गया ? तो एअरहोस्टेस ने कहा कि यह क्वेट्टा एअरपोर्ट है ! और यहां पैंतालीस मिनट का स्टॉफओवर है ! तो मैंने भी इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए मेरे घुटनों में दर्द होने लगता है ! तो थोड़ा टहलने के लिए मै निचे उतरना चाहता हूँ ! तो एअर होस्टेस ने कहा कि प्लिज आप सिर्फ प्लेन को चक्कर लगा सकते हैं ! मेहरबानी करके ज्यादा इधर- उधर मत जाना ! तो उस बहाने क्वेट्टा की जमीन पर पैर लगाने को मिला !
और सबसे महत्वपूर्ण बात बलुचिस्तान के साथ चल रहे पाकिस्तान के रवैये की झलक देखने को मिली ! वैसे तो मुझे बलुच लड़ाई के बारे में काफी कुछ जानकारी मिलती रहती हैं ! चालीस हजार से अधिक बलुच गायब है ! और उनके मुक्ति के लिए क्वेट्टा से इस्लामाबाद के मार्च की खबरें मुझे मालूम थी ! मतलब इस्लामाबाद से पंजाबी लाॅबी, जो कि सेना, प्रशासन से लेकर जुडीशिअरी और पुलिस, मिडिया के साथ ज्यादती की जानकारी से मै अपडेट था ! इसलिये मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ ! कि पचहत्तर साल के बावजूद पाकिस्तान की एकता नही बन पाई है ! और यह भारत के लिए भी एक चेतावनी है ! कि किसी एक भाषा या धर्म संस्कृति जैसे मुद्दों पर अगर जोर जबरदस्ती करोगे ! तो बगल का पाकिस्तान और उसीसे लगकर एक और महत्वपूर्ण उदाहरण तथाकथित सोवियत रूस का है ! 70 साल की फौलाद की दिवार का 1990 में क्या हाल हुआ है ? अगर इनसे सबक नहीं ले सकते तो आप को भगवान राम भी नहीं बचा पाएंगे ! इतना पक्का !
उसके पहले यात्रा के दौरान मेरी लाहौर के किले में कुछ स्वात वैली के लोगों के साथ, मुलाकात हुई थी ! और वह दिन भी छह दिसम्बर का था ! तो वह वहां कितना भयग्रस्त माहौल में हम लोग रहते हैं ! यह दास्तान बता रहे थे ! कराची में जीना की मजारपर कुछ पीओके के लोग मिले ! तो मुझे अकेलेमे हमारे बस में ले जाकर ! अपना दुखडा रो- रोकर बता रहे थे ! कि हमारे साथ कितने जुल्म हो रहे हैं !
आजसे तिरपन साल पहले बंगला देश की निर्मिती किस बात का प्रतीक है ? क्या भारत के तथाकथित हिंदुत्ववादीयोको यह सब नहीं दिखाई देता है ? या जानबूझकर अनदेखी कर रहे हैं ? धर्म के आधार पर इस मुल्क का एक बार बटवारा हुआ है ! और आज पचहत्तर साल के बाद क्या आप लोगों की बुद्धि को लकवा हो गया है ? कि यह सब वास्तव देखकर नहीं लगता ! कि अब धर्म के आधार पर राजनीति करना गलत है ! क्योंकि भारत का एक बटवारा सिर्फ और सिर्फ धार्मिक आधार पर ही हुआ है !
बादशाह खान अब्दुल गफ्फार खान साहब के चौतिसवे पुण्यस्मरण दिवस पर इससे बड़ी श्रध्दांजलि और क्या हो सकती है ?

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