रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड

rameshकभी झारखंड की राजनीति के एक शख्स की पहचान राजनीतिक गलियारे में अपने खुबसूरत बातों को लेकर बनी थी. इस शख्स का नाम है गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर. वैसे तो राजा पीटर की पहचान अपने क्षेत्र में ‘रॉबिन हुड’ के रूप में थी और ऐसी चर्चा है कि राजा पीटर ने अपने क्षेत्र के लोगों की खुलकर मदद की, खासकर लड़कियों की शादी में, पर बाद में राजा पीटर का दूसरा चेहरा भी सामने आया. यह बात सामने आई कि वे नक्सलियों के हिमायती थे और नक्सलियों को संरक्षण देते थे.

टाटा कंपनी में एप्रेंटिस की नौकरी जाने के बाद उन्हें राजनीति का ऐसा नशा चढ़ा कि तत्कालीन विधायक एवं मंत्री रमेश सिंह मुंडा को रास्ते से हटाने के लिए नक्सलियों का सहारा लिया और एक स्कूली कार्यक्रम के दौरान रमेश सिंह मुंडा की हत्या करा दी और मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को उपचुनाव में हराकर झारखंड की राजनीति में परचम लहराया. राजा पीटर भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के बढ़ते प्रभाव से काफी प्रभावित थे और उन्होंने यह देखा कि एक छोटे से गांव एवं एक गरीब परिवार का लड़का कैसे सत्ता के शीर्ष पर अपने बलबूते पहुंचा.

मुंडा से प्रभावित राजा पीटर ने भी सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का सपना देखा. उन्होंने एक बार निर्दलीय तमाड़ से विधानसभा चुनाव लड़ा, पर भारी मतों से पराजित हो गए. दूसरी बार वर्ष 2005 में उसी विधानसभा क्षेत्र से झारखंड पार्टी की टिकट पर चुनाव तो लड़े, पर पहले की ही तरह जदयू के रमेश सिंह मुंडा से चार हजार मतों से पराजित हो गए. इधर राजा पीटर पर सत्ता का नशा कुछ ज्यादा ही चढ़ता जा रहा था. एनआईए की बातों पर अगर विश्वास करें तो राजा पर इस क्षेत्र का राजा बनने का भूत सवार था.

राजा पीटर को यह अहसास हो गया था कि रमेश सिंह मुंडा को हराना आसान काम नहीं है, तो उसने दूसरा तरीका अपनाने का मन बना लिया और मुंडा को रास्ते से ही हटाने की योजना बनाने लगा. इसमें नक्सली संगठन के लोगों ने राजा पीटर का साथ दिया. इस बीच तमाड़ विधानसभा क्षेत्र में कई जनसमस्याओं को लेकर आंदोलन कर चुके राजा पीटर की छवि जनता के बीच रॉबिन हुड वाली बनती चली गई. राजा पीटर पर यह आरोप लगा कि इसने रमेश सिंह मुंडा की हत्या की सुपारी क्षेत्र के कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन को पांच करोड़ रुपए में दे दिया.

कुंदन पाहन की इस क्षेत्र में तूती बोलती थी. बुंडू के बारुहातु गांव के एक स्कूल में कार्यक्रम के दौरान नक्सलियों ने स्कूल को चारों ओर से घेरकर अंधाधुंध फायरिंग की, इसमें उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री रमेश सिंह मुंडा की घटनास्थल पर ही मौत हो गई, जबकि इस घटना में स्व. मुंडा के अंगरक्षक एवं जदयू के एक नेता सहित स्कूल के एक छात्र की भी मौत हुई.

एनआईए जांच से हुआ खुलासा

इस घटना की जब जांच खुफिया विभाग ने शुरु की तो 9 जुलाई, 2008 को इस हत्याकांड में खुफिया विभाग ने नक्सली संगठन का हाथ होने की आशंका जाहिर की. शक की सुई नक्सली कुंदन पाहन की ओर थी. कुंदन पाहन सहित दस और लोगों को आरोपी बनाया गया. पर स्वर्गीय रमेश सिंह मुंडा के पुत्र विकास मुंडा इस हत्याकांड में बार-बार एक बड़े नेता का हाथ बताते हुए पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर रहे थे. बाद में जब कुंदन पाहन ने सरकारी पहल ‘नई दिशाएं’ के समय आत्मसमर्पण किया तो स्वर्गीय मुंडा के पुत्र विधायक विकास मुंडा आमरण अनशन पर बैठ गए और अपने पिता की हत्या की जांच सीबीआई से कराने की मांग की.

इसके बाद मामले की जांच की जिम्मेदारी एनआईए को सौंपी गई. एनआईए ने इस मामले में राजा पीटर सहित दस लोगों को आरोपी बनाते हुए जेल की सलाखों में पहुंचा दिया. इसमें एक ऐसे व्यक्ति की भी गिरफ्तारी हुई, जिसे रमेश सिंह मुंडा की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी. इसके बाद स्वर्गीय मुंडा के सरकारी बॉडीगार्ड शेषनाथ सिंह खरवार को गिरफ्तार किया गया.

एएसआई शेषनाथ खरवार नक्सली कुंदन पाहन और बलराम साहू के लिए जासूसी का काम करता था. घटना वाले दिन भी शेषनाथ ने ही मुखबिरी की थी. इसके बाद कई नक्सली घटनास्थल पर पहुंच गए, लेकिन मुंडा पर गोली नक्सली बलराम साहू ने ही चलाई. उसके द्वारा की गई अंधाधुंध गोलीबारी में रमेश सिंह मुंडा की घटनास्थल पर ही मौत हो गई.

टाटा स्टील से राजनीति और अब जेल

दरअसल, राजा पीटर कभी टाटा स्टील में छोटे-मोटे अफसर के पद पर कार्यरत थे. उनके पिता आदिवासी समाज के अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और टाटा स्टील में ही सुपरवाईजर के पद पर कार्यरत थे. जमशेदपुर में पत्नी की असमय मौत के बाद उन्होंने टाटा स्टील की नौकरी छोड़ दी. लेकिन सूत्रों के अनुसार, उनकी पत्नी के साथ कुछ अपराधिक छवि के लोगों ने अभद्र व्यवहार किया था. इससे नाराज राजा पीटर ने शेखर शर्मा नामक अपराधी की जमकर पिटाई कर दी थी. शेखर कुख्यात अपराधी युनुस का सहयोगी था.

लेकिन बाद में शेखर की हत्या हो गई और इस हत्याकांड में राजा पीटर को भी अभियुक्त बनाया गया था, पर बाद में इस मामले में वे कोर्ट से बरी हो गए. लेकिन कुख्यात अपराधियों से बचने के लिए उन्होंने भी अपराध की दुनिया में धीरे-धीरे कदम रखना शुरू कर दिया और कुछ ही समय में स्टील सिटी में उनका दबदबा बढ़ गया. उनके नाम से ही लोग थर्राने लगे. डॉन की छवि में राजा पीटर की पहचान होने लगी. इन पर कई अपराधिक मुकदमें यथा आर्म्स एक्ट, रंगदारी, हत्या, धमकी देने जैसे मामले दर्ज होते चले गए.

लेकिन लगभग सभी मुकदमों से वे बरी होते गए. जमशेदपुर में जब कड़क छवि के पुलिस अधीक्षक डॉ. अजय कुमार ने पदभार संभाला, तो राजा पीटर अजय के हत्थे चढ़ गए और उन्हें जिला बदर कर दिया गया. लेकिन राजा पीटर पर सत्ता का नशा सवार था और वे अर्जुन मुंडा की ही तरह सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का सपना  देखा करते थे. राजा पीटर ने राजनीतिक गलियारों में अपनी पैठ बनानी शुरु की. भाजपा नेताओं के साथ ही कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष प्रदीप कुमार बालमुचू से भी अच्छे संबंध बनाए, पर यह दोस्ती कोई काम नहीं आ सकी, तो राजा ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का मन बनाया और इस चुनाव में वे बुरी तरह पराजित हुए.

इसके बाद वर्ष 2005 में भी उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा, इस बार फिर रमेश सिंह मुंडा से चुनाव हार गए. लेकिन इस बार हार का अंतर काफी कम रहा और मात्र चार हजार 62 मतों से वे पराजित हुए. राजनीति का भूत इस कदर पीटर पर सवार था कि वे हर हाल में विधानसभा जाने के लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार थे. सत्ता की इस भूख ने राजा पीटर को इतना दीवाना बना दिया कि उन्होंने साजिशन तत्कालीन विधायक रमेश मुंडा की हत्या का प्लॉट तैयार किया और कुख्यात नक्सलियों के सहयोग से रास्ते में रोड़ा बन रहे रमेश सिंह मुंडा की हत्या करा डाली.

वैसे राजा पीटर अपने को पूरी तरह से निर्दोष बताते हुए कहते हैं कि उन्हें राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया जा रहा है. उन्हें न्यायालय पर पूरा भरोसा है और पहले भी वे अन्य मामलों में न्यायालय से बरी होते हुए आए हैं और इस बार भी उन्हें न्यायालय से न्याय मिलने की आशा है. लेकिन जब तमाड़ विधानसभा उपचुनाव में झामुमो सुप्रीमो एवं मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को उन्होंने बड़े अंतर से हराया तो झामुमो नेताओं ने यह बयान देना शुरु किया कि राजा पीटर हिस्ट्रीशीटर है और नक्सलियों ने उन्हें चुनाव जीता दिया.

मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए शिबू सोरेन को हराने के बाद राजा पीटर राजनीतिक क्षितिज पर छा गए और वर्ष 2010 में जब वे विधानसभा का चुनाव जीतकर आए तो अर्जुन मुंडा मंत्रिमंडल में उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री बने. राजा पीटर ने अपने कार्यकाल के दौरान अपने ऊपर कोई दाग नहीं लगने दिया और ना हीं उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगा. राजा पीटर इसमें तो बेदाग निकले, पर इसी सत्ता की चाहत ने उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

नक्सली कुंदन पाहन को पांच करोड़ रुपए!

एनआईए ने जिस नक्सली को सरकारी गवाह बनाया है, उसने बड़ा खुलासा किया. सरकारी गवाह बने नक्सली राम मोहन सिंह मुंडा ने एनआईए कोर्ट में यह स्वीकार कर लिया कि रमेश सिंह मुंडा की हत्या राजा पीटर ने ही कराई, उसके लिए क्षेत्र के कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन को पांच करोड़ रुपए दिये गए थे. हत्या की सुपारी देते वक्त एडवांस के रुप में तीन करोड़ दिए और शेष दो करोड़ रुपए हत्या के बाद दिये गए.

नक्सली मुंडा ने यह भी बताया कि रमेश सिंह मुंडा का सरकारी बॉडीगार्ड शेषनाथ खरवार कुंदन पाहन को मिनट-मिनट की जानकारी दे रहा था. उसी की खबर पर कुंदन पाहन नक्सलियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचा और नक्सलियों ने आराम से रमेश सिंह मुंडा की हत्या कर दी. घटनास्थल सुदूरवर्ती गांव में रहने के कारण नक्सलियों को कोई परेशानी नहीं हुई और वे सुरक्षित जंगल की ओर भाग निकले.

नक्सली राममोहन ने धारा-164 के तहत बयान दर्ज कराया था और यह कहा था कि उसने विधायक की हत्या को लेकर राजा पीटर और कुंदन पाहन के बीच हुई बातचीत को सुना था.

अब एक दूसरा पहलू यह भी है कि आखिर राजा पीटर के पास पांच करोड़ रुपए आए कहां से? राजा पीटर के परिवार का ही कहना है कि दर्जनों अपराधिक मुकदमें लड़ते-लड़ते पीटर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी. लेकिन सूत्रों पर विश्वास करें तो राजा अपने इलाके में डॉन माने जाते थे.

जमशेदपुर में भी उनका वर्चस्व कायम था. वे नक्सलियों को संरक्षण और पनाह देते थे और इन्हीं स्त्रोतों से उन्हें काली कमाई होती थी. राजा पीटर को यह अहसास था कि अगर वे राजनीति में अपनी किस्मत चमका लेते हैं तो वे झारखंड में वर्चस्व कायम कर बेताज बादशाह बन सकते हैं और उनकी इसी चाहत ने उन्हें अंतत: एक ऐसा कदम उठाने की ओर मजबूर कर दिया, जिसके कारण वे सलाखों के अंदर चले गए.

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