कुलमिलाकर 67 साल की जिंदगी उन्हें जीने के लिए प्राप्त हुई थी ! 1897 में 10 मार्च को प्लेग की बिमारी से उनकी मृत्यु हुई है ! और ज्योतिबा फुले उनसे सात साल पहले, 62 साल की उम्र में चल बसे थे ! ( 28 नवंबर 1890 ! ) लेकिन उस समय 60 साल उम्र की सावित्रीबाई ने, बहुत ही बडी हिम्मत से, ज्योतिबा की मृत्यु के पश्चात, उन्हें अग्निदाह करने का काम किया ! क्योंकि संपत्ति के मोह की वजह से उनके रिश्तेदारों ने उनके गोद लिया हुआ बेटा डॉ. यशवंत को ज्योतिबा के शव को अग्नि संस्कार करने से मनाही करने की वजह से सावित्रीबाई ने खुद यह विधि संपन्न किया ! और उसके पस्चात उन्होंने और ज्योतिबा ने शुरू किए हुए, विभिन्न कार्यों को पूरा करने के लिए अपने आपको खपा दिया ! आजसे पावनेदोसौ साल पहले ! इस तरह की उर्जा एक साधारण घर में पैदा हुई, सावित्रीबाई के अंदर निर्माण होना ! आज महिला दिवस के अवसर पर मुझे लगता है ! हमारे देश की हर महिला के लिए इससे बड़ा उदाहरण और दुसरा नहीं हो सकता !
तत्कालीन भारत की महिलाओं की स्थिति को देखते हुए, सावित्रीबाई फुले ने पहली पाठशाला महिलाओं के लिए, शुरू करने का ऐतिहासिक फैसला लिया ! और हमारे देश में पहली बार ! स्रि-शुद्रो के शिक्षा की शुरुआत करने वाली ! और पेशवाई खत्म होने के बाद, हमारे देश के लोगों के मन में “मनुस्मृति के, नास्ति स्रिणां क्रिया मत्रेः इति धर्मे व्यवस्थिती (9-18)” मतलब स्त्रियों के लिए विवाहविधी ही उनके वैदिक अथवा उपनयन संस्कार है ! स्त्रियों को गुरु के पास अध्ययन करने की जरूरत नहीं है ! पति सेवाही उसका गुरुकुल निवास है ! और रसोई में गृहकृत्य करना यही उसके लिए होमहवन हैं ! यह आदेश हजारों सालों से मनुस्मृति के द्वारा जारी होने के कारण ! महिलाओं के लिए शिक्षा के दरवाजे हमेशा – हमेशा के लिए बंद होने के स्थिति में ! महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी जीवन संगीनी सावित्रीबाई फुले ने मिलकर 180 साल पहले ही ! अपनी कृतियों से मनुस्मृति के खिलाफ सक्रिय रूप से बगावत की है ! वह भी पूना जैसे पेशवाई के सनातनीयो के गढ में ! यह समस्त हिंदू धर्म के भीतर, जबरदस्त सामाजिक क्रांति है ! जो लगभग आजसे पावने दो सौ साल पहले की गई है !
और इसीलिये सनातनीयो के तरफसे रोजाना ! सावित्रीबाई फुले के उपर किचड – गोबर , कंकडो की बौछारो के बीच मे से चलते हुए ! अपने स्कूल में जाने के बाद, किचड – गोबर से सने कपड़े बदलकर, पढाने के लिए जुटना ! मतलब सावित्रीबाई किस मट्टी की बनीं थी ? इसका परिचय मिलता है ! आज किसी को छोटा-सा ताना मारने की घटना से ! स्कूलों को छोड़ देनेवाले उदाहरण मौजूद हैं ! और आजसे पौने दो सौ साल पहले ! रस्ते से चलती हुई महिला पर ! कोई खुराफाती लोग कंकड, किचड – गोबर फेंकने का काम रोज करते हुए ! उसे शांत भाव से सहकर अपने स्कूल में जाकर पढाने की साधना कोई असाधारण ही कर सकता है ! एक सावित्री पुराणों में अपने पति के प्राण तक वापस लाने की कहानी बचपन से ही सुनते आ रहे हैं ! यह आधुनिक युग की सावित्री ! स्रि-शुद्र तथा पददलित लोगों के लिए ! शिक्षा की शुरुआत करने वाली सावित्रीबाई ने जिस निष्ठा के साथ जो काम किया है ! वह आधुनिक युग की सावित्रीबाई फुले ही कर सकती थी !


आज हमारे देश की राष्ट्रपती एक आदिवासी महिला को ! उस पदतक पहुचने के लिए ! अगर सत्ताधारी दल, यह समझता होगा कि ! यह उसके राजनीतिक सुझबुझ का काम है ! तो वह गलतफहमी में है ! क्योंकि आज भी उनकी मातृसंस्था संघने तो, डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी ने संविधान सभा में पहली बार संविधान की घोषणा की थी ! उसके तुरंत बाद तत्कालीन संघप्रमुख श्री. माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने कहा कि “वर्तमान संविधान में भारतीयता का कुछ भी समावेश नही है ! यह देश विदेश के सविंधानो की नकल करने के बाद एक गुदड़ी जैसा संविधान हमारे हजारों वर्ष पुराने ऋषि मनु द्वारा लिखित सविंधान के रहते हुए इस की क्या जरूरत है ?” और उनके दल के कुछ पदाधिकारी भी ! मनुस्मृति का महिमामंडन करने का प्रयास करते रहते हैं ! जिसमें महिलाओं को सिर्फ घर की चारदीवारी के अंदर गृहकृत्य करने के लिए कहा गया है !
जिसका उल्लंघन आजसे पावने दो सौ साल पहले ! सावित्रीबाई फुले ने ! स्रि-शुद्रो के लिए स्कूलों की शुरुआत करके ही किया है ! और उन्हें तत्कालिन हिंदुत्ववादीयो के जुमलेबाजी से लेकर शारीरिक प्रताड़ना को सहते हुए ! स्रि – शुद्रो के शिक्षा कार्य अबाधित रुपसे करने की बदौलत ! आज हमारे देश में राष्ट्रपति के पद से लेकर ! जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर, काम करने के लिए मिल रहा है ! इसलिए स्त्री – शुद्रो की मुक्तिदात्रि सावित्रीबाई फुले के 193 वी जयंतीपर विनम्र अभिवादन !


और हमारे देश के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के प्रति संपूर्ण आदर करते हुए ! हम कहेंगे कि सही शिक्षक दिवस तो तीन जनवरी ही होना चाहिए ! क्योंकि सावित्रीबाई फुले ने भारत के इतिहास में पहली बार स्रि-शुद्रो के लिए स्कूल शुरू किए हैं ! और किस परिस्थिति में किए हैं ? इसलिए सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन के अवसर पर ही शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत होनी चाहिए ! वर्तमान सत्ताधारी दल का एकमात्र कार्यक्रम हमारे देश के शहरों से लेकर ! कई योजनाओं के नाम बदलने का जारी है ! और अनायास वर्तमान राष्ट्रपति महोदया एक आदिवासी महिला होने के नाते ! उन्हें बहुत अच्छी तरह से मालूम होगा कि ! वह इस पद तक कैसे पहुँची है ! तो उन्हीं से विनती करते हैं कि ! तीन जनवरी को ही शिक्षक दिवस मनाया जाना चाहिए ! फुले पति-पत्नी के कार्यो की जानकारी अभितक भारत के सभी लोगों को भी मालूम नहीं है ! जाति निर्मूलन से लेकर हमारी गलत रुढियों के खिलाफ और सबसे महत्वपूर्ण बात स्रि-शुद्रो के लिए विशेष रूप से शिक्षा के लिए स्कूलों की स्थापना ! आजसे पावने दो सौ साल पहले शुरूआत किए हैं ! 1882 के पहले शिक्षा के लिए गठित हंटर कमिशन को शिक्षा के लिए विस्तृत निवेदन महात्मा फुले ने दिया है !
सावित्रीबाई फुले की 193 वी जयंती है ! आनेवाले 2031 को द्वीशताब्दि मनाई जायेगी ! 3 जनवरी 1831 दिन सातारा जिले के, खंडाला तहसील के, नायगाव नाम के देहात में, सावित्रीबाई का जन्म हुआ है ! मतलब राजा राम मोहन राय के निधन के दो साल और नौ महीने पंद्रह दिनों के पहले ! उम्र के नौवें साल में ज्योतिबा फुले के साथ शादी हुई ! और तुरंत अगले वर्ष उन्होंने नॉर्मल स्कूल शिक्षक प्रशिक्षण 1845 – 47 के दौरान उन्होंने अपना शिक्षक प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 1 जनवरी 1848 के दिन, भारत के स्वतंत्रता के 99 साल पहले ! पूना के बुधवार पेठ में, भिडे वाडा नाम के जगह पर ! पहले लड़कियों के स्कूल की शुरुआत की ! और खुद ही शिक्षिका के भूमिका में काम शुरु किया ! और उनके पहली विद्यार्थिनो में 4 ब्राम्हण 1 धनगर (भेड – बकरी चराने वाले समाज से!) 1 मराठा ! कुल मिलाकर छह छात्राओं जिनके नाम (1) अन्नपूर्णा जोशी (2) सुमती मोकाशी (3)दुर्गा देशमुख (4)माधवी थत्ते (5) सोनू पवार (6) जनि कर्डिले यह छह बच्चियां सावित्रीबाई फुले की पहली विद्यार्थीन थी !
पांच महीने के बाद, ज्योतिबा फुले ने 15 मई 1848 में महारवाडा में (दलितों की बस्ती को मराठी में महारवाडा के नाम से संबोधित किया जाता है ! ) दुसरे स्कूल की स्थापना की ! और उसी साल फुले पति-पत्नी और उनके सहयोगियों ने मिलकर ! पूना में ‘नेटिव्ह फिमेल स्कूल्स’ नाम से स्रि-शुद्रो के लिए, शिक्षा संस्था की स्थापना की ! और इन सब गतिविधियों को देखते हुए ! गोविंदराव फुले जो ज्योतिबा फुले के पिता थे ! उन्होंने सनातनी लोगों के दबाव के कारण ! ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले को 1849 में घर से बाहर निकाल दिया ! और सावित्रीबाई के मैकेवालो का भी यही रवैया था !


तो ज्योतिबा के, उस्मानशेख नाम के मुस्लिम मित्र ने ! अपने घर में पनाह देने के बाद ! अपने घर में प्रोढो के लिए स्कूल खोलने की इजाजत दी ! और उनकी बहन फातिमा शेख ने, सावित्रीबाई के साथ पुणे मे चल रहे शिक्षा के काम में हाथ बटाने की शुरुआत की है ! 1849 – 50 के दौरान ! पूना, सातारा, और अहमदनगर इन तीनों जिलों में भी स्कूल खोलने के बाद ! यहां पर भी सावित्रीबाई फुले ने शिक्षिका की भूमिका में काम किया है ! 1851 महारवाडा के बच्चियों के लिए ! स्वतंत्र स्कूल की स्थापना की ! और 3 जुलाई 1851 के दिन पूने के रास्ता पेठ में ! लड़कियों के स्कूल की शुरुआत की !
1852 मेजर कॅंडी के अध्यक्षता में, अंग्रेज सरकार के तरफसे शिक्षा कार्य के लिये, अभिनंदन समारोह किया गया था ! जिसमें 1852 को सावित्रीबाई फुले को ! उनके स्कूलों के निरिक्षण के बाद, आदर्श शिक्षिका का अभिप्राय दिया गया है ! 29 मई 1852 के पूना अॉब्जरवर नाम के अखबार में लिखा गया है कि ! “सावित्रीबाई फुले के स्कूलों में सरकारी स्कूलों की तुलना में लड़कियों की संख्या दस गुना ज्यादा है ! और इसकी मुख्य वजह ! वहां पर लड़कियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था, सरकारी स्कूलों की तुलना में श्रेष्ठ दर्जें की है !”
सावित्रीबाई कुल मिलाकर 66 साल और दो महीने की जिंदगी जी है ! लेकिन एकेक पल सार्वजनिक क्षेत्र के कामों में दिया है ! 28 नवंबर 1890 को ज्योतिबा की जीवन यात्रा ! उम्र के 63 साल छह महीने तक कि रही है ! और उनके जाने के पस्चात ! दत्तक पुत्र यशवंत 1893 में मेट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद ! वह सेना में डाॅक्टर की नौकरी में गया ! और प्लेग की बिमारी का कहर शुरू हुआ ! जिसमें यशवंत की पत्नी 1895 के छह मार्च के दिन चल बसी ! और सावित्रीबाई प्लेग की बिमारी में जबरदस्त सेवा का काम कर रही थी ! प्लेग से पिडीत एक दलित युवकों ! अपने पिठ पर लादकर, इलाज के लिए ढोकर लाई ! और खुद प्लेग की शिकार होकर ! 10 मार्च 1897 के दिन अपनी जीवन यात्रा की समाप्त कर बैठी !
सही मायने में डी क्लास, डी कास्ट तथा डी – वुमेन युगस्रि सावित्रीबाई फुले की स्मृति को सहस्र वंदन ! बाद में ज्योतिबा ने शुरू किए हुए ! हर काम को पूरा करने के लिए ! विशेष रूप से कोशिश करते रही ! ज्योतिबा के पहले स्मृति दिवस पर ! ओतूर अहमदनगर के पास खुद हाजीर रही ! और उसी कार्यक्रम में महात्मा फुले का पहला चरित्र ‘अमरजीवन’ का प्रकाशन किया है ! 1892 के सात नवंबर को उनके दुसरे कविता संग्रह ‘बावन्नकशि सुबोध रत्नाकर ‘ प्रकाशन किया गया !
और 1893 को सासवड पूना के पास ! सत्यशोधक परिषद की अध्यक्ष रही है ! जिस समय महिलाओं को घर से बाहर निकल ने की मनाही थी ! सार्वजनिक कार्यक्रम की अध्यक्षता का शायद यह पहला मौका होगा ! जो सावित्रीबाई ने महात्मा फुले के जाने के बाद ! उन्होंने शुरू किया हुआ, सत्यशोधक समाज के अधिवेशन में ! अध्यक्ष पद विभुषित करने की घटना, आजसे 132 साल पहले की है ! सावित्रीबाई फुले के स्वतंत्र व्यक्तिमत्त्व का सर्वोच्च उदाहरण है ! सही मायने में स्रि-मुक्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है !
उधर बंगाल में भी पंडित इश्वर चंद्र विद्यासागर ने, आठ दस साल बाद ! महिला शिक्षा की शुरुआत 1856 – 57 के दौरान की है ! इसलिए पहली महिला शिक्षिका तथा महिलाओं के लिए शिक्षा की शुरुआत करने वाली सावित्रीबाई फुले ही है ! इसलिए भारत में शिक्षक दिवस पांच सितंबर की जगह तीन जनवरी को ऐलान करने की विनम्र प्रार्थना हमारे देश की राष्ट्रपती श्रीमती द्रोपदी मूर्मूजी को आज सावित्रीबाई फुले के 127 वे पुण्यस्मरण दिवस के अवसर पर कर रहे हैं !

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