हिंदू धर्म पर कुछ लिखने से पहले आइए इस पर विचार करते हैं कि आखिर मनुष्य जाति का उद्भव कहां हुआ होगा? वाकई यह सवाल काफी रोचक है,  लेकिन अभी तक इसका सही जवाब ढूंढा नहीं जा सका है. विद्वानों ने इसकी कई तरह से व्याख्या की है. बाइबिल में इसका जवाब तलाशने वाले सीरिया को मानव का उत्पत्ति स्थल मानते हैं. इस बारे में अलग-अलग तरीके से अटकलें लगाई जाती रही हैं. दुनिया के कई भूभागों के बारे में लोग इस तरह की अटकलें लगा चुके हैं. कई लोग पश्चिम एशिया को मानव का उत्पत्ति स्थल मानते हैं तो कई मध्य एशिया, बर्मा, अफ्रीका और उत्तरी ध्रुव के पास के प्रांतों के बारे में समझते रहे हैं कि आदमी सबसे पहले यहीं उत्पन्न हुआ होगा. लोग मनुष्यों के जीवाश्म अवशेषों की प्राचीनता को भी अपनी धारणा का आधार बनाते हैं. पीकिंग मैन जीवाश्म को 30,000 वर्ष पुराना बताया गया है. कई दूसरे आधार भी हैं. जैसे कि मनुष्य मूलतः बे-रोएंदार प्राणी है, इसलिए उसकी उत्पत्ति किसी गर्म देश में होने का अनुमान लगाया जाता है. इस सिद्धांत को मानने वाले अफ्रीका, भारत या उससे भी दक्षिण पूर्व के भागों को मानव की उत्पत्ति का केंद्र मानते हैं.
एक दलील यह भी दी जाती है कि भारत का वह भाग जो अभी समुद्र में समाया हुआ है, लेकिन पहले वह थल का हिस्सा था, हो न हो मनुष्य सबसे पहले वहीं पैदा हुआ होगा. जो लोग अफ्रीका को मानव की उत्पत्ति का केद्र मानते हैं, वे वहां बहुतायत में पाए जाने वाले चिपांजी, गोरिल्ला, गिब्बन और ओरांगउटान आदि को इसका आधार मानते हैं. ये सभी जीव मानव विकास की महत्वपूणर्र् कड़ी स्वीकार किए जाते हैं. अफ्रीका से उत्खनन में प्रचुर मात्रा में हड्डियां निकलने से भी लोग इस बात की अटकलें लगाते हैं. जहां तक भारतीय विद्वानों की बात है तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ग्वालियर अधिवेशन में डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी ने आदि मनुष्य के पंजाब और शिवालिक की ऊंची भूमि पर विकसित होने का प्रमाण मिलने की बात कही थी.

सिंधु घाटी में कृषि सभ्यता का विकास और सिंधु के पठार में भारत की प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष मिलने से इस बात की पुष्टि होती है, इसलिए डॉ. मुखर्जी का अनुमान सत्य के ज्यादा करीब मालूम पड़ता है.

अगर यह मान भी लें कि मनुष्य की उत्पत्ति भारत में हुई होगी तो उसका उद्भव कहां हुआ होगा, उत्तर में या दक्षिण में? युक्तिसंगत अनुमान यह है कि उसकी उत्पत्ति उत्तर में नहीं, दक्षिण में हुई होगी. भारत की सबसे पुरानी धरती विंध्य से फैलती हुई दक्षिण की ओर चली गई है. आज से लगभग तीन लाख वर्ष पूर्व दक्षिण भारत में मनुष्य रहा होगा, इस अनुमान को विद्वान उचित आधार के साथ मानते हैं. 1935 में बड़ोदा राज्य के वादनगर स्थान पर लघु मानव का एक तीस इंच लंबा कंकाल मिला था, जिसे वैज्ञानिक आदि नीग्रो का कंकाल समझते हैं. चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत के बाद विद्वान मनुष्य का पूर्वज बंदर जाति के ही किसी जीव के होने की बात कहते हैं. जो लोग विकासवाद के सिद्धांत को पूर्णतः मान चुके हैं,  वे कपि, गिब्बन, ओरांगउटान और चिपांजी की चार प्रजातियों से मनुष्य का विकास हुआ मानते हैं.
वहीं कुछ लोगों का विचार है कि आदमी जिस जीव से बढ़कर आदमी हुआ है, वह बंदर नहीं, बल्कि बंदरों के समान ही कोई अन्य स्थलचारी जीव था. एक दूसरा अनुमान यह भी कि आदमी आरंभ से ही आदमी के स्वरूप में है और उसकी पैदाइश एक साथ अनेक जगहों पर हुई. इस अनिश्चय के बीच ज्यादातर विद्वान यह मानते हैं कि हमारे पूर्वज अन्य देशों से यहां आए और आपस में मिश्रित होकर उन्होंने इस देश में वर्तमान जनसमूह की रचना की. भारत अनंत काल से विभिन्न जातियों के लोगों के समागम का केंद्र रहा है. ईसाइयों और मुसलमानों को छोड़कर यहां ग्यारह जातियों के आने और रच-बस जाने के प्रमाण हैं. उन्होंने इस देश को अपना देश मान लिया और यहां की संस्कृति और समाज में शामिल होकर आर्य अथवा हिंदू हो गए. नीग्रो, ऑस्ट्रिक, द्रविड़, आर्य, यूनानी, यूची, शक, आभीर, हूण, मंगोल और मुस्लिम आक्रमण के पूर्व आने वाले तुर्क आदि जातियों के लोग कई झुंडों में इस देश में आए और हिंदू समाज में दाख़िल होकर सब के सब उसके अंग हो गए. असल में हम जिसे हिंदू संस्कृति कहते हैं, वह किसी एक जाति की देन नहीं है, बल्कि इन सभी जातियों की संस्कृतियों के सम्मिश्रण का परिणाम है.

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