ambedkerदेश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक 14 अप्रैल को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती मना रहे थे और 15 अप्रैल को एक भाजपा सांसद के हाथों दलितों का अपमान हो रहा था. सीतापुर के महोली विधानसभा क्षेत्र स्थित सरस्वती शिशु मन्दिर में धौरहरा की भाजपा सांसद रेखा वर्मा का जनता दरबार चल रहा था. दरबार में अपनी शिकायत लेकर आए धानुक (दलित) बिरादरी के जिला पंचायत सदस्य सर्वेश बंसल को न केवल अपमानित किया गया, बल्कि बसपाई कहकर दुत्कारा गया और वहां से भगा दिया गया. यह कृत्य उसी भाजपा सांसद ने किया जिसकी पार्टी में बसपा से आए नेता आज मंत्री बने बैठे सत्ता-सम्मान पा रहे हैं. जिला पंचायत सदस्य को सांसद से जुड़े भाजपा पदाधिकारी ने अपमानित किया और सांसद अपने सामने यह सब देखती रहीं.

उल्लेखनीय है कि बसपा शासनकाल में इसी सरस्वती शिशु मन्दिर के अवैध होने का मामला प्रशासनिक पेंच में फंस गया था और उसके बंद होने की स्थिति आ गई थी, तो इसी स्थानीय दलित नेता सर्वेश बंसल ने हरगांव विधानसभा से बसपा विधायक दलित रामहेत भारती की मदद से विद्यालय का उद्धार कराया था. भाजपा के अधिकांश नेता दूसरे दलों, खास तौर पर बसपा से आए हैं. सीतापुर के वर्तमान सांसद राजेश वर्मा भी बसपा से ही आए थे. ये बसपा से ही धौरहरा के पूर्व सांसद भी हैं. दिलचस्प यह है कि रेखा वर्मा भी बसपा से ही आई हैं और भाजपा की सांसद बनी बैठी हैं. वे पहले बसपाई ब्लॉक प्रमुख थीं. इनके पति अरुण वर्मा स्वयं बसपा के सदस्य थे. गोला से विधायक बनने में असफल रहने के बाद वे हाथी से कूद कर भाजपा पर सवार हो गए. महोली के नव निर्वाचित भाजपा विधायक शशांक त्रिवेदी पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा से टिकट पाने की जद्दोजहद कर रहे थे.

सांसद रेखा वर्मा द्वारा सर्वेश बंसल को अपमानित करने का अकेला मामला नहीं है. महोली कोतवाली क्षेत्र के उरदौली गांव में संज्ञेय आपराधिक मामले में गिरफ्तार ग्राम प्रधान शेर सिंह वर्मा को पुलिस अभिरक्षा से छुड़ाने के लिए सांसद ने जातिवाद की सारी हदें तोड़ डालीं. यहां तक कि अपने दरबार में महोली के उप-जिलाधिकारी अतुल प्रकाश श्रीवास्तव को बुलाकर फटकारा और इतना दबाव बनाया कि महोली पुलिस को शेर सिंह वर्मा को लॉकअप से ही छोड़ना पड़ा. सांसद के इशारे पर दूसरा अपराध ये हुआ कि शेर सिंह वर्मा को छुड़वा कर उसी मामले में कंजड़ समाज के दो निर्दोष लोगों को पकड़ कर जेल भेज दिया गया.

सीतापुर जिले में इस तरह की बेजा गतिविधियां खुलेआम चल रही हैं. भाजपा के नेता इसमें शामिल हैं और उधर दिल्ली या लखनऊ से बड़ी-बड़ी तकरीरें आती रहती हैं. 15 अप्रैल को महोली कोतवाली क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसा गांव उरदौली जातिवादी हिंसा में झुलसने से बच गया. कंजड़ बिरादरी के एक बुजुर्ग के दाह संस्कार को लेकर विवाद शुरू हुआ. उरदौली गांव में रहने वाले कंजड़ समाज के समलिया की मृत्यु के बाद उनके परिजन दाह संस्कार के लिए उरदौली-बम्भौरा मार्ग पर स्थित दलित वर्ग के पैतृक शवदाह स्थल पर पहुंचे. इस भूखंड पर कहार, भुर्जी, कंजड़ और तेली बिरादरी के लोग शव का दाह संस्कार करते आ रहे हैं. यह भूखंड मरघट (गाटा संख्या- 47) के नाम से ही जाना जाता है.

पता चला कि उक्त भूखंड के स्वामी रहे एक पूर्व प्रधान ने अपने करीबी लालजी, पुत्र चन्दन के नाम से गुपचुप उसी जमीन का पट्टा कर दिया. फिर लालजी ने भी दूसरे के नाम से वो जमीन बेच डाली. जबकि पूरे इलाके में जमीन का वह हिस्सा दाह संस्कार के लिए ही इस्तेमाल होता रहा है. इसी भूखंड पर दुलारे कंजड़ की समाधि भी है, जो 1950 में बनी थी. अब जमीन के नए स्वामी ने वहां दाह संस्कार का विरोध करना शुरू कर दिया. इससे गांव का माहौल बिगड़ने लगा. मृतक के परिजनों ने अपने समाज के लोगों को मौके पर बुलवा लिया.

कंजड़ समाज के सैकड़ों लोग अपने धारदार औजार लेकर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जमा होने लगे. थाना रामकोट के वजीर नगर गांव के कंजड़ बिरादरी का सेवानिवृत्त दारोगा राम प्रसाद, पुत्र साहबदीन कंजड़ों का नेतृत्व करने लगा. दलित बनाम सवर्ण का माहौल बनाकर अपनी नेतागीरी चमकाने के लिए ग्राम प्रधान शेर सिंह वर्मा भी वहां पहुंच गए. ऐसे स्थानीय नेताओं के उकसावे में आकर कंजड़ समुदाय के लोगों ने शव को राष्ट्रीय राजमार्ग पर रख कर जाम लगा दिया और माहौल को काफी तनावपूर्ण बना दिया. वरिष्ठ उप-निरीक्षक सुरेश तिवारी और पुलिस बल ने शव हटाने का प्रयास किया तो प्रधान के गुर्गों और कंजड़ों ने हिंसक माहौल बना दिया, जिससे पुलिस को पीछे हटना पड़ा. दिल्ली-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग-24 पूरी तरह से बंद हो गया.

महोली के एसडीएम अतुल प्रकाश श्रीवास्तव और क्षेत्राधिकारी उमाशंकर सिंह को भारी पुलिस बल लेकर मौके पर पहुंचना पड़ा. उन्होंने मृतक के परिजनों को समझाने का प्रयास किया. अराजकता फैलाने पर आमादा ग्राम प्रधान शेर सिंह वर्मा, राम प्रसाद और उनके गुर्गे बबलू पुत्र कन्धई, सुरेश पुत्र सुन्दर, राकेश पुत्र समलिया, मुन्ना पुत्र बौरे, मुन्नालाल पुत्र मथुरा सहित करीब दो दर्जन अज्ञात लोगों ने बातचीत कर पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों से हाथापाई शुरू कर दी. इसके बाद पुलिस को सख्ती करनी पड़ी. पुलिस ने ग्राम प्रधान शेर सिंह वर्मा, सेवानिवृत्त दारोगा रामप्रसाद और उसके साथी बबलू को हिरासत में ले लिया. इसके बाद पुलिस ने राष्ट्रीय राजमार्ग से शव हटवा कर गांव के श्मशान स्थल पर दाह संस्कार करवाया. गांव में अभी भी पुलिस तैनात है.

इसी मामले में धौरहरा की सांसद रेखा वर्मा ने प्रशासन को आड़े हाथों लिया और अपनी बिरादरी के ग्राम प्रधान शेर सिंह वर्मा को पुलिस हिरासत से छुड़वाने के लिए महोली एसडीएम को अपमानित किया और वर्मा को छुड़वा कर ही दम लिया. सांसद के दबाव पर ग्राम प्रधान को महोली कोतवाली की हवालात से ही छोड़ दिया गया, लेकिन रामप्रसाद, बबलू, सुरेश, राकेश, मुन्ना, मुन्नालाल समेत दो दर्जन अज्ञात लोगों पर 147/148/149/342/427/7 सीएलए एक्ट में बाकायदा अभियोग पंजीकृत हुआ और वर्मा के साथ ही गिरफ्तार हुए कंजड़ समाज के दो लोगों को जेल भेज दिया गया. अन्य आरोपितों को भी जल्दी ही गिरफ्तार किया जाएगा, लेकिन सांसद की जाति का ग्राम प्रधान छुट्टा घूमता रहेगा.

कुछ ऐसा ही वाकया अंबेडकर जयंती के दिन ही महोली विधानसभा के पिसांवा थाना क्षेत्र के देवकली गांव में भी हुआ. गांव में दलित समाज के लोगों ने अंबेडकर जयंती पर ग्राम समाज की जमीन पर अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने का प्रयास किया. इस पर विरोध हुआ तो तनाव उत्पन्न हो गया. मौके पर पहुंचे उप-जिलाधिकारी और पुलिस बल ने प्रतिमा को अपने कब्जे में लेकर दोनों पक्षों को समझाया. शासन की मंजूरी के बगैर प्रतिमा स्थापित करने की कोशिश के आरोप में कुछ लोगों पर अभियोग भी दर्ज किया गया. क्षेत्रीय लेखपाल आलोक कुमार मिश्रा ने बताया कि देवकली गांव में एक जमीन (गाटा संख्या 370) पर काफी पहले से एक चबूतरा बना हुआ था.

गांव के खेमकरन, सूबेदार, बनवारी, इंद्रपाल, नंद किशोर, सर्वेश और रामहेत ने बिना प्रशासन की अनुमति के, उसी चबूतरे पर अंबेडकर की प्रतिमा रख दी. गैर दलित समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया. इस पर दोनों तरफ से लोग हथियार वगैरह लेकर जुट गए. सूचना मिलते ही मौके पर पहुंचे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने पुलिस की मदद से प्रतिमा हटवाई और उसे अपने कब्जे में ले लिया. लेखपाल आलोक कुमार मिश्र की तहरीर पर पिसांवा पुलिस ने बिना प्रशासनिक इजाजत के सरकारी जमीन पर प्रतिमा स्थापित करने के आरोप में अभियोग पंजीकृत कर लिया. आरोप है कि पुलिस ने दलितों की तहरीर को नजरअन्दाज़ कर दिया और एक-तरफा कार्रवाई की. गांव में एहतियातन पुलिस बल तैनात है.

बाबा साहब अंबेडकर को लेकर भाजपा का पार्टी स्तर पर राजनीतिक-वैचारिक परिवर्तन तो दिख रहा है, लेकिन भाजपा के सांसदों, विधायकों और नेताओं पर उसका असर नहीं दिख रहा. इससे पार्टी का अपमान हो रहा है और दलित भी क्षुब्ध हो रहे हैं. पिछले दिनों न केवल सीतापुर, बल्कि उत्तर प्रदेश के कई जिलों में अंबेडकर जयंती तनावपूर्ण और हिंसक शक्ल में बदली. मेरठ जिले के किठौर थानान्तर्गत गेसूपुर सुमाली गांव में कुछ असामाजिक तत्वों ने अंबेडकर की मूर्ति पर काला रंग फेंक दिया और चश्मा तोड़ डाला. इस पर भीषण तनाव फैला. पुलिस अधिकारियों ने दूसरी प्रतिमा स्थापित कराने का आश्वासन देकर नाराज लोगों को शांत कराया.

इसी तरह जौनपुर जिले के गोरारी गांव में अंबेडकर जुलूस निकालने पर तनाव फैला और पथराव, आगजनी, फायरिंग की घटना घटी. हालात को काबू में करने के लिए पुलिस ने हवा में गोलियां चलाईं. पथराव में एक सिपाही समेत दर्जनभर लोग घायल हो गए. दो गुमटियां भी फूंक डाली गईं. अंबेडकर जयंती पर गोरारी गांव से डीजे और गाजे बाजे के साथ शोभायात्रा निकली थी. शोभायात्रा मुसलमानों की बस्ती के करीब पहुंची, तो लोगों ने आबादी के बीच से जुलूस को जाने से रोका. इसे लेकर दोनों पक्षों में विवाद हो गया और बाद में हिंसक शक्ल में बदल गया.

आजमगढ़ में भी जीयनपुर कोतवाली क्षेत्र के चुनुकपार गांव में अंबेडकर प्रतिमा की स्थापना को लेकर दो वर्ग के लोग आमने-सामने हो गए. हालात बेकाबू हुआ, तो पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. दो लोगों को हिरासत में लिया गया. मौके पर फोर्स तैनात है. गांव में ग्रामसभा की जमीन पर लोगों ने अंबेडकर प्रतिमा स्थागपित करने की कोशिश की थी. लेखपाल चंद्रभान यादव ने इसे रोका, तो दलित गुस्से में आ गए. अंबेडकर नगर जिले में भी एक विवादित भूमि पर अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने के मसले में दो पक्षों में जमकर मारपीट हुई. पुलिस ने प्रतिमा जब्त कर ली और 11 लोगों को गिरफ्तार किया. यह घटना अलीगंज थाना क्षेत्र के दरियापुर कुतुब गांव में हुई थी.

अध्यक्ष के  चुनाव में होगी दलित प्रेम की परीक्षा

उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के लिए होने वाले चयन में ही भाजपा के दलित प्रेम की परीक्षा होनी है. विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा आलाकमान ने पिछड़ों का ध्यान रखते हुए केशव प्रसाद मौर्य को अध्यक्ष बना दिया. अब केशव मौर्य प्रदेश के उप मुख्यमंत्री हो चुके हैं, लिहाजा, उन्हें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद से हटना है. अब उस पद पर दलितों का दावा है. राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री राजपूत (जबकि संत की कोई जाति नहीं होती), एक उप मुख्यमंत्री पिछड़े और दूसरा उप मुख्यमंत्री ब्राह्मण समुदाय से आते हैं, इसलिए अध्यक्ष पद पर दलित का दावा स्वाभाविक है.

दलित समुदाय के लोगों में यह मांग बढ़ी कि पिछड़ी जाति के अध्यक्ष के उप मुख्यमंत्री बनने के बाद उस दलित समुदाय के नेता को अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए, जिसकी राजनीतिक ताकत अधिक है और जिसने मायावती के खिलाफ अधिक लोहा लिया है और भाजपा का खुला साथ दिया है. राज्य की करीब बीस फीसदी दलित आबादी में 16 फीसदी आबादी पासी जाति की है. यानि, पासी दूसरी सबसे बड़ी दलित उपजाति है. इस आधार पर पासी समुदाय के लोगों का दावा अधिक मजबूत है. हालांकि दलित समुदाय के कई नेता अध्यक्ष बनने का प्रयास कर रहे हैं. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री अशोक प्रधान, आगरा के मौजूदा सांसद रामशंकर कठेरिया, लखनऊ के

मोहनलालगंज से सांसद कौशल किशोर, बुलंदशहर के सांसद भोला सिंह, कौशाम्बी के सांसद विनोद सोनकर, पूर्व विधायक मुंशीलाल गौतम और विद्याशंकर सोनकर के नाम शामिल हैं. इनमें अशोक प्रधान, रामशंकर कठेरिया के नाम प्रमुखता पर हैं. कौशल किशोर पासी समुदाय से आते हैं और यूपी विधानसभा के चुनाव में मलिहाबाद सीट से उनकी पत्नी जय देवी भी चुनाव जीत कर आई हैं, लिहाजा इस रेस में कौशल की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है.

यह तो हुई दावेदारी की बात, लेकिन असली परीक्षा तो भाजपा आलाकमान की है, जिसे अंबेडकर जयंती मास में ही प्रदेश अध्यक्ष तय करना है. दलित समुदाय के कुछ लोगों का कहना है कि कुछ ब्राह्मण नेता प्रदेश अध्यक्ष का पद झटकने की तैयारी में हैं और इसके लिए केंद्र सरकार के एक मंत्री भी अपने खास आदमी के लिए सक्रिय हैं. प्रदेश संगठन के विभिन्न पदों पर भी मनोनयन होना है. इसमें भाजपा नेतृत्व के सैद्धांतिक स्टैंड पर लोगों की नजर है.

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