nitish kumarपूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की कार्यशैली के संबंध में अक्सर दो बिंदुओं पर चर्चा होती थी. पहला-कुछ समस्या का समाधान यह है कि उसके समाधान पर हाथ ही ना डालो और दूसरा कई सवालों का जवाब यह है कि उसके जवाब ही न दो. लोकतांत्रिक राजनीति में साफगोई से अपनी बात (राय) रखना सर्वाधिक महत्वपूर्ण खूबी मानी जाती है. लेकिन राजनीति के महारथियों के आचरण पर गौर करें तो लगता है कि लोकतंत्र में बातें रखना जितना महत्वपूर्ण है, कभी-कभी चुप्पी साध लेना भी उससे कम महत्वपूर्ण नहीं है. खास तौर पर तब, जब कोई राजनेता सत्ता के शीर्ष पर बैठा हो तो चुप्पी साध लेने का अपना ही महत्व है.

पीवी नरसिंह राव की कार्यशैली और राजनीति में चुप्पी साध लेने की रणनीति का जिक्र यहां इसलिए जरूरी है क्योंकि ऊपर वर्णित सभी खूबियां बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में हैं. नीतीश कुमार देश के उन चंद कैलकुलेटिव व संयमित नेताओं में से एक माने जाते हैं, जिनके बयानों पर अमूमन विवाद नहीं होता. इतना ही नहीं, जब उन्हें घेरने की कोशिश की जाती है तो वे या तो चुप्पी साध लेते हैं या फिर माकूल समय का इंतजार करते हैं. अगर माकूल जवाब देने की पोजिशन में वे नहीं होते हैं, तो उनकी कोशिश होती है कि विमर्श के विषय को ही बदल दिया जाए. कई बार स्थितियां उनके पक्ष में होती हैं और वे या तो माकूल समय पर जवाब दे देते हैं या फिर विमर्श के विषय को बदल देने में सफल हो जाते हैं.

लेकिन हर बार ऐसा हो, यह संभव नहीं होता है. ऐसे में, जब राज्य में भाजपा नेता सुशील मोदी लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर  आरोपों को लेकर तूफान मचाने की कोशिश कर रहे हों तो स्वाभाविक तौर पर नीतीश इन्हीं रणनीतियों पर काम करते दिख रहे हैं. यानी या तो वे चुप्पी की रणनीति अपनाते हुए माकूल समय का इंतजार कर रहे हैं या विमर्श के विषय को बदलने की कोशिश में जुटे हैं. लेकिन इस बार, अभी तक ना तो वह विमर्श के विषय को बदल पाए हैं और न ही अभी तक उनके लिए जवाब देने का माकूल समय आया है. दरअसल भाजपा विधान मंडल दल के नेता सुशील कुमार अपने साप्ताहिक जनता का दरबार कार्यक्रम के बाद आयोजित होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में लालू परिवार पर जमीन घोटाला, मिट्टी घोटाला या कम्पनी घोटाले का आरोप किस्तवार लगा रहे हैं. मोदी यह काम पिछले चार सप्ताह से कर रहे हैं.

इतना ही नहीं, कई बार वे आरोपों की  गठरी साप्ताहिक रूप से खोलने के बजाय बीच-बीच में भी हल्ला बोल दे रहे हैं. हर आक्रमण के बाद वे नीतीश से जानना चाहते हैं कि घोटालों के आरोपी उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव को वे मंत्रिमंडल से बर्खास्त करें. मोदी के इस ताबड़तोड़ आक्रमण और दोनों मंत्रियों को काबीना से हटाने के मुद्दों पर नीतीश कुमार लगातार चुप हैं. न सिर्फ चुप हैं, बल्कि उनके पोज से ऐसा लगता है कि उन्हें मोदी के आरोपों की कोई खबर ही नहीं है.

नीतीश मंत्रिमंडल में सात वर्षों तक उपमुख्यमंत्री रह चुके सुशील मोदी, नीतीश की कार्यशैली को बखूबी जानते हैं. लिहाजा वे भी अपने आरोपों की पोटली एक ही बार में उड़ेल देने के बजाय किश्तवार उड़ेल रहे हैं. मोदी की रणनीति यह है कि नीतीश भले चुप रहें तो रहें, पर हमला जारी रखो और समय खींचते रहो. उधर नीतीश कुमार मोदी के हर किश्तवार हमले का जवाब देने के बजाय उतने ही प्रभाव के साथ नए विषयों पर विमर्श को शिफ्ट करने में लगे हैं.

मिसाल के तौर पर- मोदी अगर लालू परिवार की सम्पत्ति की जांच कराने की मांग मुख्यमंत्री से कर रहे हैं तो वे शराबबंदी से आगे नशा मुक्ति के अभियान पर विमर्श को शिफ्ट करने की कोशिश करते हैं. इसी तरह मोदी अगर तेज व तेजस्वी को काबीना से हटाने की मांग मुख्यमंत्री से करते हैं तो मुख्यमंत्री, उतनी ही शिद्दत से दहेज की कुप्रथा को मिटाने का ऐलान कर विमर्श के विषय को बदलने की कोशिश करते हैं. अगर पत्रकारों की टोली, मोदी के आरोपों पर कुछ प्रतिक्रिया मांगती भी है तो नीतीश का जवाब होता है- हर विषय पर बोल कर गला खराब करने की क्या जरूरत है?

चूंकि मोदी द्वारा, लालू परिवार पर आरोपों से जुड़ी कहानी पर हम पिछले सप्ताह गहराई से चर्चा कर चुके हैं. इसलिए उस चर्चा पर बात केंद्रित करने के बजाय हम इन आरोपों से जुड़े कुछ दूसरे मुद्दों पर बात करते हैं. मोदी ने अब तक लालू परिवार पर मिट्टी खरीद घोटाला, मॉल निर्माण घोटाला, बेनामी जमीन खरीद घोटाला और निजी कम्पनी इंफोसिस्टम्स की मिल्कियत से संबंधी घोटालों के आरोप लालू प्रसाद के परिवार पर लगाए हैं. आरोपों की इन कड़ियों में कई बार सुशील मोदी ने बड़बोलेपन का भी सहारा लिया है. मिसाल के तौर पर मिट्टी खरीद घोटाला को लें.

मोदी ने 90 लाख रुपए की मिट्टी, निर्माणाधीन मॉल की जमीन से निकाल कर चिड़ियाखाना को बेचने का आरोप लगाया था. लेकिन लालू ने साफ कहा था कि एक रुपए की भी मिट्टी चिड़िया खाने को नहीं दी गई. लालू के इस जवाब के बाद मोदी ने चुप्पी साध ली और अपने दूसरे आरोप की तरफ बढ़ गए. मोदी ने जिन दूसरे आरोपों को हवा दी, उनमें से कुछ को देखने से लगता है कि तकनीकी और कानूनी तौर पर, चाहे मोदी आकाश-पाताल एक कर लें, वे उन आरोपों को सिद्ध नहीं कर सकते. मिसाल के तौर पर लालू परिवार के लिए निर्माणाधीन मॉल की 94 कट्ठा जमीन की मिलकियत को लें.

मोदी ने आरोप लगाया था कि रेल मंत्री रहते हुए लालू ने कोचर बंधुओं को रेलवे के दो होटल दिए थे. बदले में कोचर ने 94 कट्ठा जमीन राजद नेता प्रेम गुप्ता की कंपनी को दी थी, बाद में उस कम्पनी के सारे शेयर राबड़ी देवी और उनके पुत्रों को ट्रांसफर कर दिए गए. मोदी के इस आरोप का जवाब लालू ने देते हुए कहा था कि रेलवे की स्वायत्त संस्था आईआरसीटीसी ने खुली निविदा के आधार पर कोचर बंधुओं को होटल और यात्री निवास लीज पर आवंटित किया था, जिसमें बतौर रेल मंत्री उनकी कोई भूमिका नहीं थी. और यह भी कि कोचर बंधुओं ने प्रेम गुप्ता की कंपनी को, होटल आवंटन के 22 महीने पहले बेची थी.

ऐसे में लालू ने यह भी सवाल दागा था कि क्या कोचर बंधुओं को सपना आया था कि भविष्य में होटलों का आवंटन होगा, इसलिए प्रेम गुप्ता को जमीन बेच दो? इतना ही नहीं, लालू ने यह भी दावा किया था कि केंद्र में मोदी की सरकार है, रेलवे मंत्री सुरेश प्रभु से जांच करवाने को कह दें. इससे पहले मोदी ने भी कहा था कि वह रेल मंत्री से इस मामले की जांच करने को कहेंगे. लेकिन मोदी ने इस जांच की लिखित गुजारिश रेल मंत्रालय से की या नहीं, इसकी जानकारी उन्होंने अब तक किसी को नहीं दी और अपने दूसरे आरोपों के मुहिम पर निकल पड़े. कानून के जानकार मानते हैं कि रेलवे के होटलों के बदले जमीन प्राप्त करने के आरोप को भी किसी जांच से सिद्ध नहीं किया जा सकता है.

ऐसा इसलिए कि होटलों के आवंटन के लिए जो आईआरसीटीसी जिम्मेदार है, उसमें औपचारिक या दस्तावेजी रूप से रेल मंत्री के रूप में लालू की कोई भूमिका साबित नहीं हो सकती. रही बात कोचर द्वारा प्रेम गुप्ता को जमीन हस्तांतरण की बात, तो वह होटल आवंटन से लगभग दो साल (22 महीनेे) पहले की बात है. लिहाजा जांच होने पर भी इसे साबित करना आसान नहीं है. शायद यह बात सुशील मोदी को भी बखूबी पता है, इसलिए वे आरोप तो लगाते हैं और जांच कराने की मांग भी करते हैं लेकिन जांच करवाने की दिशा में पहल करते नहीं दिखते. बल्कि अपने हर आरोपों के बचु गेंद नीतीश कुमार के पाले में डालने की कोशिश करते हैं.

अब सवाल यह है कि लालू परिवार पर सुशील मोदी के इन आरोपों का तात्कालिक प्रभाव क्या पड़ा है? गौर से देखें तो इन आरोपों के दो, मगर विपरीत प्रभाव दिखते हैं. पहला-   लालू प्रसाद के दोनों मंत्री पुत्रों तेजस्वी और तेज प्रताप की छवि को सवालों के घेरे में खड़ा कर सुशील मोदी ने तेज व तेजस्वी विरोधी भावनाओं को मजबूत किया है.

समाज का एक वर्ग जो पारंपरिक रूप से लालू या लालू परिवार का विरोधी रहा है, उसे लालू परिवार पर हमला बोलने का नया हथियार मोदी ने थमा दिया है. अगर जांच हो और तेज व तेजस्वी पाक-साफ निकल भी जाएं (जिसमें कई वर्ष लग सकते हैं) तब तक उनके विरोधियों के लिए यह हथियार हमले के लिए बना रहेगा. गोया इन आरोपों की झड़ी लगा कर मोदी ने जनमानस के एक हिस्से को लालू परिवार के विरुद्ध तैयार कर दिया है.

यह तो हुआ मोदी के आरोपों के प्रभाव का पहला पक्ष. उनके आरोपों के प्रभाव का दूसरा पक्ष खुद सुशील मोदी की छवि के लिए भी नुकसानदेह है. हमने ऊपर दो आरोपों का उल्लेख किया है, जिसमें बताया गया है कि एक आरोप पर लालू के जवाब के बाद मोदी ने चुप्पी साध ली और दूसरे आरोप ( कोचर बंधुओं को होटल दे कर जमीन लेने का आरोप) को कानूनी तौर पर सिद्ध कर पाना काफी मुश्किल होगा.

ये आरोप मोदी ने तो लगा दिया पर रेल मंत्रालय से इसकी जांच के लिए कोई लिखित आग्रह नहीं किया है. लिहाजा इन आरोपों के बाद मोदी की अगंभीर छवि (जिसका जिक्र अक्सर लालू करते हैं, कि मोदी  झूठे हैं, बेसिर पैर की बात करते हैं) ही उभरी है. दूसरे शब्दों में इन आरोपों के बाद अपने राजनीतिक समर्थकों में मोदी की अगंभीर छवि और मजबूत करने में लालू एक हद तक सफल रहे हैं.

सुशील मोदी के लालू परिवार पर आरोपों और उन आरोपों के तात्कालिक प्रभावों पर बात करने के बाद, हम फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की, इस प्रकरण पर चुप्पी साधने के मुद्दे पर आते हैं. राजनीति विज्ञान का सामान्य विद्यार्थी भी इस बात को बखूबी जानता है कि राजनीति का परम लक्ष्य सत्ता प्राप्ति या सत्ता में बने रहना है. चूंकि नीतीश कुमार बिहार के सत्ताशीर्ष पर हैं, ऐसे में वे सुशील मोदी द्वारा तेज और तेजस्वी यादव को काबीना से निकालने की मांग का कोई जवाब क्यों देंगे? नीतीश अपने बयानों और अपनी छवि के प्रति काफी सजग नेता माने जाते हैं.

वह सुशील मोदी के आरोपों को, लालू प्रसाद की तरह झुठला देने का कोई जोखिम नहीं उठा सकते. साथ ही नीतीश इन आरोपों पर रेल मंत्रालय द्वारा जांच करवाने के लिए सुशील मोदी को कहकर फंसना भी नहीं नहीं चाहते, क्योंकि अगर उन्होंने मोदी को छेड़ा तो मोदी उनसे कह सकते हैं कि रेल मंत्रालय को जो जांच करनी है वह करे और राज्य सरकार के अधीन जांच का जो दायरा है, उसके तहत वह जांच करे. लिहाजा नीतीश के लिए यही रास्ता है कि वह इस मामले में चुप्पी साधे रहें. ऐसे में लगता है कि लालू और नीतीश की यह रणनीति है कि सुशील मोदी बोलते-बोलते थक जाएं, साथ ही उनकी कोशिश यह भी है कि मीडिया और समाज के लिए विमर्श का कोई और मुद्दा मिल जाए.

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