gayaअंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्थल गया की सड़कें, नाले और पानी आपूर्ति के साथ अन्य तरह की नागरिक सुविधाओं का जिम्मा संभाले गया नगर निगम के वर्तमान पार्षदों का सभी समीकरण आरक्षण में बदलाव आते ही गड़बड़ा गया है. इससे सबसे अधिक परेशानी उन पार्षदों को हो रही है, जो खुद अपने वार्ड से लगातार चुनते आ रहे हैं या फिर उनके परिवार के लोगों का कब्जा रहा है. गया नगर निगम के 53 वार्ड पार्षदों में कई ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपने वार्ड को पुश्तैनी मान लिया था.

गया नगर निगम के 53 वार्डों के आरक्षण में राज्य के नगर विकास विभाग में ऐसा बदलाव कर दिया कि यहां के दिग्गज पार्षदों को दिन में ही तारे नजर आने लगे. यहां तक कि वर्तमान मेयर और डिप्टी मेयर को भी वार्ड आरक्षित हो जाने के कारण बगलें झांकने को मजबूर होना पड़ रहा है.

दुनिया के नक्शे पर गया एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन स्थल है. जैन, बौद्ध, सिख तथा इस्लाम धर्म से जुड़े कई चर्चित स्थलों के होने के कारण गया एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बना है. पितरों की मोक्ष स्थली होने के कारण यहां साल भर पिंडदानियों का आगमन होते रहता है. पितृपक्ष पर तो यहां दुनिया भर से लोग पिंडदान करने आते हैं. इसी प्रकार अन्य धर्मावलंबियों का भी यहां साल भर आगमन होता रहता है. इस दृष्टि से गया नगर निगम का पार्षद होना बड़े गर्व की बात है. यहां का मेयर या डिप्टी मेयर होना तो और भी गर्व की बात होती है.

हालांकि यह बात अलग है कि चुने गए मेयर-डिप्टी मेयर की छवि स्थानीय लोगों के बीच कैसी है. गया नगर निगम हाल के वर्षों में वित्तीय अनियमितता तथा अन्य तरह की गड़बड़ियों के लिए हमेशा चर्चा में रहा है. आईएएन नीलेश देवरे जैसे नगर आयुक्त के आने के बाद यह नगर निगम अच्छे कार्यों के लिए जाना जाता था. बाद में गया नगर निगम में आए नगर आयुक्तों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. मई 2017 में गया नगर निगम चुनाव की आहट और वार्डों के आरक्षित होते ही निगम के दबंग पार्षदों के सभी समीकरण उलट-पुलट हो गए.

वर्तमान मेयर सोनी देवी का वार्ड 8 अति पिछड़ों के लिए आरक्षित हो गया है. अब वे अपने बगल के वार्ड नंबर 9 से चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. इसी प्रकार गया नगर निगम में शुरू से ही डिप्टी मेयर के पद पर कब्जा जमाए ओंकारनाथ श्रीवास्तव उर्फ मोहन श्रीवास्तव का वार्ड 10 आरक्षित हो गया है. अब उन्होंने बगल के 11 नंबर वार्ड से चुनाव लड़ने की कवायद शुरू कर दी है. वार्ड 22 के पार्षद चर्चित जदयू नेता लालजी प्रसाद ने सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित होते ही दूसरे स्थान से चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है.

पूर्व मेयर विभा देवी का वार्ड 5 पुरुष सामान्य के लिए आरक्षित हो गया है. इस बार विभा देवी अपने पति इंद्रदेव यादव को अपने वार्ड से लड़ा रही हैं. वार्ड 4 के पार्षद विनोद कुमार मंडल भी आरक्षित वार्ड हो जाने के कारण नयी जमीन तलाशने में लगे हैं. वार्ड 17 के पार्षद प्रमोद नवदिया ने भी अपना वार्ड महिला के लिए आरक्षित होने के बाद परिवार की किसी महिला को चुनाव मैदान में उतारने का मन बनाया है.

वार्ड 25 के अवरार अहमद उर्फ मोला मियां वार्ड महिला के लिए आरक्षित होते ही बगल के 26 वार्ड से चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके हैं. वार्ड 9 ऐसा क्षेत्र हो गया है, जहां से वर्तमान मेयर सोनी देवी तथा पूर्व मेयर आशा देवी आमने-सामने होंगी. वार्ड 36 के पार्षद चितरंजन प्रसाद वर्मा उर्फ चितू अब वार्ड 42 से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. उनका पुराना घर वार्ड 36 में था और नया मकान वार्ड 42 में है.

पूर्व मेयर शागुप्ता प्रवीण वार्ड 45 से पार्षद हैं. यह वार्ड अब पिछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित हो गया है. संयोग ऐसा है कि वे इसी दायरे में आती हैं इसलिए उन्हें वार्ड बदलने की जरूरत नहीं पड़ी. वार्ड 41 के पार्षद शशि किशोर शिशु अपने वार्ड से अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में हैं, जबकि वे खुद वार्ड 40 से चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके हैं. वार्ड 46 के पार्षद संतोष सिंह भी नयी जमीन तलाश रहे हैं.

इनका वार्ड महिला सामान्य के लिए आरक्षित हो गया है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की बेटी सुनैना देवी वार्ड 1 से पार्षद हैं, लेकिन अब यह वार्ड भी दूसरे के लिए आरक्षित हो गया है. उपर्युक्त जिन पार्षदों की चर्चा की गई, वे सभी अपने आपको गया नगर निगम के दिग्गज पार्षद रहे हैं. राज्य के नगर विकास विभाग के रोटेशन सिस्टम के तहत गया नगर निगम के वार्डों का नए सिरे से आरक्षण होने के बाद सभी पार्षदों का समीकरण गड़बड़ा गया है.

दो-तीन बार से वार्डों पर खुद या परिवार के सदस्यों का कब्जा बरकरार रखने वाले पार्षदों ने एक तरह से वार्ड को पुश्तैनी मान लिया था. यही कारण है कि ऐसे पार्षदों को अब परेशानी हो रही है. कई ऐसे भी पार्षद हैं, जो गया नगर निगम के मेयर, डिप्टी मेयर व नगर आयुक्त के साथ मिलकर कई तरह के खेल में लगे हैं.

ऐसे कुछ मामलों में जांच भी चल रही है. ऐसे पार्षदों पर शहर के निवासियों का भी खास ध्यान है. निकाय चुनाव में गया नगर निगम के दिग्गज पार्षदों को जनता नकारती है या फिर मौका देती है, यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा. फिलहाल अधिकतर पुरुष पार्षद बगलें झांकने को मजबूर हैं.

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