बिहार में भाजपा और जदयू सत्ता के भागीदार हैं. हैरानी की बात यह है कि भाजपा को नीतीश सरकार में भ्रष्टाचार नज़र आ रहा है और नीतीश को भाजपाई सांप्रदायिक नज़र आ रहे हैं. यही बिहार की सियासत की कड़वी सच्चाई है.

बिहार में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. चुनावी साल में प्रवेश करने से ठीक पहले ही भाजपा व जदयू के रिश्तों की दीवार दरकने लगी है. आम जनता से जुड़ी कई योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल विपक्ष ने नहीं, बल्कि सरकार में शामिल भाजपा ने खोलकर यह बात उजागर कर दी कि सरकार में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. जन वितरण प्रणाली, मिड डे मील व आंगन बाड़ी केंद्रों में कमीशनखोरी को उदाहरण बनाकर भाजपा ने गठबंधन सरकार  को कठघरे में खड़ा कर दिया है. चार साल तक जदयू के साथ सत्ता सुख भोग चुकी, भाजपा का विपक्षी तेवर वाला यह चेहरा सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गया है. भाजपा के इस नए पैंतरे से विपक्षी दलों को एक ऐसा मुद्दा मिल गया है, जिसकी तलाश में वह चार सालों से लगे थे. गठबंधन के कमज़ोर होने का नफा- नुक़सान विपक्षी दल समझ रहे हैं और जनता की अदालत में वे इसे भुनाने की तैयारी में जुट गए हैं.
इस सारे विवादों की जड़ में भाजपा के मीडिया प्रभारी वीरेंद्र झा द्वारा मुख्यमंत्री को लिखा गया वह पत्र है, जिसमें उन्होंने कुछ योजनाओं में फैले भ्रष्टाचार का खुलासा किया है. चार पृष्ठों का यह पत्र इस बात का गवाह है कि भाजपा अपनी ही सरकार द्वारा आम जनता को राहत पहुंचाने के लिए चलाई जा रही कुछ योजनाओं के परिणाम से संतुष्ट नहीं है. पत्र में कहा गया है कि बिहार सरकार की दो कल्याणकारी योजनाएं आंगन बाड़ी और मिड डे मील भ्रष्टाचार का केंद्र बन गई हैं.
पत्र में यह भी कहा गया है कि जन वितरण प्रणाली में कमीशनखोरी संस्था का रूप ले चुकी है. इसमें उसके बदले में डीलरों को मिलने वाले सरकारी संरक्षण पर भी सवाल उठाए गए हैं. पत्र में पूछा गया है कि एसडीओ के कार्यकलापों की जांच उनके समकक्ष या कनिष्ठ अधिकारियों को देना कैसे मुनासिब है? आंगनबाड़ी केंद्रों के कार्यकलाप पर प्रहार करते हुए भाजपा ने आरोप लगाया है कि बतौर कमीशन एक सीडीपीओ एक आंगनबाड़ी केंद्र से दो हज़ार रुपये प्रतिमाह लेता है. इसके अलावा आंगनबाड़ी सेविकाओं की नियुक्ति में 40 हज़ार से लेकर सवा लाख रुपये तक लिए जा रहे हैं. इसी तरह मिड डे मील में भी मची लूट की चर्चा पत्र में की गई है. पत्र में कहा गया है कि सरकार ने अलग से प्रति विद्यार्थी नकद राशि देने का प्रावधान किया है, जिसका ग़लत उपयोग हो रहा है. वर्ग में न आने वाले छात्रों को भी उपस्थित दिखाकर उसके नाम से अनाज और राशि उठाए जा रहे हैं.
भाजपा के इस पत्र से राजनीतिक तूफान आ गया है. राजद के प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दकी कहते हैं कि हमलोग तो बार- बार यह कहते आ रहे हैं कि नीतीश सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है. आज भ्रष्टाचार का मसला उठाकर भाजपा अपनी ज़िम्मेदारी से कैसे बच सकती है? राज्य में भाजपा और जदयू की मिली जुली सरकार है और इस पाप के लिए दोनों बराबर के ज़िम्मेदार हैं. सिद्दकी का कहना है कि भाजपा को सरकार के जाने का अहसास हो चुका है, इसलिए वह पिंड छुड़ाकर भागना चाहती है, लेकिन भाजपा के मीडिया प्रभारी वीरेंद्र झा कहते हैं कि गठबंधन में दरार जैसी कोई बात नहीं है. हमारा गठबंधन जदयू से है और आगे भी रहेगा पर जनता से जुड़े मसलों से सरकार को अवगत कराने की ज़िम्मेदारी हर किसी की है. इधर जदयू प्रवक्ता श्याम रजक का मानना है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के मामले में नीतीश सरकार ने बेजोड़ काम किया है. अगर पत्र में किसी इलाक़े का मामला उठाया गया है तो सरकार इसकी पूरी जांच कराएगी और दोषी लोगों को इसकी सज़ा भी मिलेगी. भ्रष्टाचारियों को सज़ा दिलाने के लिए तो सरकार ने क़ानून बनाकर केंद्र के पास भेजा है. देरी तो दिल्ली से हो रही है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अनिल शर्मा को लगता है कि भाजपा का यह पत्र जदयू से दूर होने की पहली कड़ी है. शर्मा का कहना है कि मंत्रिपरिषद में फेरबदल कर कुछ मंत्रियों को बैठा देने के दिन से भाजपा जदयू से खफा है. भाजपा अपना कोई एजेंडा लागू नहीं कर पा रही है. सरकार में भ्रष्टाचारी अफसरों का बोलबाला है. भाजपा को लगता है कि नीतीश सरकार इसे खा जाएगी. इसलिए अब भ्रष्टाचार का मसला उठाकर खुद को सा़फ-सुथरा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है. जनता के सामने भाजपा का चेहरा बेनक़ाब हो चुका है. लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान दो टूक कहते हैं कि यह सरकार अब जाने वाली है, इसलिए भाजपा ने यह नाटक शुरू किया है. हम बार-बार कह रहे हैं कि यह घोटालेबाजों व समाज को तोड़ने वालों की सरकार है और इसने पिछले चार सालों में जनता के लिए कुछ नहीं किया है.
सूबे की राजनीति को जानने व समझने वाले विश्लेषकों की मानें तो भाजपा के पत्र के बहुत सारे मायने हैं. चुनावी साल में भाजपा जनता को यह संदेश देना चाहती है कि भले ही पार्टी सत्ता में भागीदार है, पर निचले स्तर पर फैले भ्रष्टाचार से कोई समझौता नहीं करेगी. स्वच्छ छवि भाजपा की विरासत है और उसे किसी भी क़ीमत पर बरक़रार रखा जाएगा. इसके लिए भले ही उसे अपने ही गठबंधन सरकार के खिला़फ सार्वजनिक पत्र क्यों न लिखना पड़े. उपचुनाव के नतीजों व पार्टी के अंदर की खेमेबाजी से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व परेशान है. इन चार सालों में भाजपा की छवि ऐसी पार्टी के रूप में बनी जो नीतीश के हां में हां मिलाने के अलावा कुछ नहीं कर पाई.
भाजपा अब चाहती है कि कार्यकर्ताओं तक यह संदेश जाए कि जो हुआ सो हुआ, आगे अब ऐसा कुछ न होगा. अगर सरकार में कुछ गड़बड़ी है तो उसे उजागर किया जाना चाहिए, ताकि आम जनता का भला हो सके. कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए इस तरह के तेवर को पार्टी ज़रूरी मान रही है, क्योंकि किसी वजह से अगर अकेले चुनाव लड़ने की नौबत आ जाए तो नुकसान की भरपाई की जा सके. अनुमान है कि भाजपा अभी से ही जदयू पर दबाव बनना चाह रही है, ताकि सीटों के बंटवारे में उसे लाभ मिल सके.
अब वजह चाहे जो भी हो पर भाजपा के पत्र से यह बात तो सा़फ हो ही गई है कि सरकार व गठबंधन में सबकुछ सही नहीं है. भाजपा सरकार में है. अगर वह चाहती तो भ्रष्टाचार के मामले को उजागार किए बिना जदयू पर दबाव बना सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. हालांकि पिछले चार सालों में कई बार ऐसा हुआ. मगर, चुनावी साल में प्रवेश करने से ठीक पहले इस धमाके से भाजपा व जदयू के रिश्तों में तो दरार आ ही गई.

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