raghuझारखंड में हुए कंबल घोटाले ने बहुचर्चित चारा घोटाले को भी पीछे छोड़ दिया. महालेखाकार द्वारा कंबल बुनाई में गड़बड़ी पकड़े जाने के बाद तो मुख्यमंत्री रघुवर दास के साख पर ही दांव लग गया है. इस घोटाले को अंजाम देने वालों में मुख्यमंत्री के सबसे विश्वस्त अधिकारी शामिल हैं. मूल रूप से केरल की रहने वाली रेणु पणिक्कर को मुख्यमंत्री ने झारक्राफ्ट का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बना दिया है. श्रीमती रेणु की शिक्षा-दीक्षा जमशेदपुर से हुई थी, जो रघुवर दास का क्षेत्र है. रघुवर दास के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद रेणु पणिक्कर केरल से लौटकर भाजपा में सक्रिय हुईं और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की.

मुख्यमंत्री रघुवर दास को रेणु पर इतना भरोसा था कि बिना योग्यता के ही सरकारी संस्था झारक्राफ्ट की सीईओ बना दिया. राज्य में लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री लघु उद्योग उद्यमी बोर्ड का गठन किया गया था. इसका भी कर्ताधर्ता रेणु पणिक्कर को ही बना दिया गया. झारक्राफ्ट राज्य के बुनकरों को बढ़ावा देने एवं उसके द्वारा बनाए गए उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया है. इसी संस्था को गरीबों के स्वयं समूह संस्था के माध्यम से नौ लाख कंबल बनाने का आदेश राज्य सरकार ने दिया. सारे कंबल हस्तकरघा से बनने थे, पर झारक्राफ्ट ने बिना कंबल बनाए ही करोड़ों रुपए का गबन कर दिया. यह घोटाला बिल्कुल चारा घोटाले की तर्ज पर ही हुआ है. झारक्राफ्ट ने 8 लाख 13 हजार कंबल बनाने का फर्जी दावा किया. एक दिन में सखी मंडल और बुनकर समितियों ने साढ़े तीन लाख से ज्यादा कंबल तैयार कर लिए, जबकि अमूमन एक हस्तकरघा से पन्द्रह से बीस कंबल ही तैयार किए जा सकते हैं. लेकिन झारक्राफ्ट ने दावा किया कि एक हस्तकरघा से 70 से 80 कंबल प्रतिदिन तैयार किए गए. टारगेट से 3 लाख 60 हजार कंबल ज्यादा.

दरअसल जाड़े में गरीबों के बीच कंबल वितरण करने की योजना बनाई गई थी. राज्य सरकार ने यह काम झारखंड सिल्क टेक्सटाइल्स एंड हैंडिक्राफ्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को दिया. कंबल का निर्माण राज्य के सखी मंडलों से कराना था. गरीबों के लिए झारक्राफ्ट को 9 लाख 82 हजार 717 कंबल बनाने थे और सभी कंबल सखी मंडल एवं बुनकर समितियों से बनवाने थे. झारक्राफ्ट ने इस पर अपनी सहमति दी और यह कहा कि 2000 से अधिक सखी मंडलों एवं बुनकर समितियों से कंबल बनवा लिया जाएगा. झारक्राफ्ट ने इस काम में भ्रष्टाचार की पूरी भूमिका भी तैयार कर ली. इस दावे को सही करार देने के लिए फर्जी-दस्तावेज भी तैयार कर लिए गए. झारक्राफ्ट ने कंबलों की बुनाई के लिए 2 करोड़ 2 लाख रुपए से अधिक मूल्य के हस्तकरघे की खरीद भी दिखाई. इस फर्जी खरीद को सही दिखाने के लिए फर्जी ढंग से सखी मंडलों एवं बुनकर  सहयोग समितियों के बीच हस्तकरघे भी बांट दिए.

इसे किस बुनकर एवं सखी मंडलों को दिया गया, इसका कोई ब्यौरा उसके पास नहीं है. और तो और भ्रष्टाचार का खाका इस तरह बुना गया कि कोई इसे पकड़ नहीं पाए. बुनकरों को ऊनी धागा मुहैया कराने के लिए 13 करोड़ 63 लाख रुपए के 18 लाख 81 हजार किलो ऊनी धागा की खरीद भी दिखाई गई. सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि चारा घोटाले की ही तर्ज पर इन धागों की ढुलाई भी की गई. एक ही ट्रक से एक साथ अलग-अलग जगहों पर 24 घंटे में तीन हजार किलो ऊनी धागा पहुंचा दिया. कुछ स्कूटरों से भी धागे ढोए गए. झारक्राफ्ट ने 144 ट्रकों से 320 ट्रिप का जो ब्यौरा दिया, वह पूरी तरह से फर्जी निकला. ये सभी धागे पानीपत से मंगाए गए थे. ट्रकों के भाड़े में भी करोड़ों रुपयों की हेरा-फेरी की गई.

महालेखाकार ने झारक्राफ्ट से वर्ष 2017-18 में वितरण होने वाले 18 लाख कंबल वितरण में अनियमितता बरते जाने की रिपोर्ट दी. इसमें कहा गया कि सरकार की घोषणा के मुताबिक सखी मंडल से एक साल में नौ लाख कंबल बनाकर इसका वितरण किया जाना था. इस काम के लिए कागजों पर ही सखी मंडल और बुनकर सहयोग समितियों को काम दिया गया, लेकिन यह सिर्फ आई वॉश ही था. राज्य सरकार ने भी यह कोशिश नहीं की कि कंबल किससे बनवाए गए और कहां बांटे गए. एजी ने ट्रांसपोर्टिंग को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े किए. पानीपत से ऊनी धागा मंगाने को पूरी तरह से फर्जी करार दिया.

महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि धागा ढुलाई के लिए प्रस्तुत किए गए 144 ट्रकों से 320 ट्रिप का ब्यौरा और तिथि का मिलान नेशनल हाई-वे अथॉरिटी ऑफ इंडिया से किया गया तो यह पाया गया कि 320 में से 318 फेरे गलत पाए गए. एजी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि झारक्राफ्ट ने 9 लाख 82 हजार 717 में से 8 लाख 13 हजार 91 कंबलों की बुनाई स्वयं सहायता समूह या बुनकर सहयोग समितियों द्वारा कराया ही नहीं गया है. झारक्राफ्ट ने सहयोग समितियों के माध्यम से 8.13 लाख कंबलों की बुनाई दिखाने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए हैं. झारक्राफ्ट के कुछ लोगों ने सहयोग समितियों के साथ मिलकर साजिश रची और ऊनी धागे की ढुलाई, कंबलों की बुनाई दिखाने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए.

महालेखाकार की रिपोर्ट में कहा गया कि झारक्राफ्ट ने कंबलों की वक्त पर बुनाई पूरी करने और बुनकरों एवं सहयोग समितियों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए हस्तकरघा खरीदने की जरूरत बताई. ऑडिट में यह पाया गया कि मई 2016 तक कंबलों की बुनाई के लिए झारक्राफ्ट के पास सिर्फ 50 हस्तकरघे ही थे. 2016-2018 के बीच झारक्राफ्ट ने कंबल बुनने और रोजगार उपलब्ध कराने के लिए 633 हस्तकरघों की खरीद के एवज में 2 करोड़ 2 लाख रुपए का खर्च दिखाया, पर खरीद के बाद हस्तकरघा प्राप्त करने और उसे वितरित किए जाने से संबंधित कोई संबंधित दस्तावेज झारक्राफ्ट के पास नहीं है. इससे यह साफ है कि कोई खरीद ही नहीं हुई है और खर्च दिया.

विपक्षी दल के नेताओं का दावा है कि इस घोटाले की नींव मुख्यमंत्री ने ही रखी. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भाजपा के एक कार्यक्रम में यह घोषणा की कि ठंड में गरीबों को दिए जाने वाले कंबलों का निर्माण सखी मंडलों और बुनकर सहयोग समितियों से कराया जाएगा. महिला सखी मंडलों से कंबल बनवाने की घोषणा करने से पहले सरकार ने किसी तरह की कोई तैयारी नहीं की थी. सरकार में शामिल कुछ लोगों का कहना है कि कम समय होना इस घोटाले का कारण बना.

ऐसे में मुख्यमंत्री की तैयारी और घोषणाओं पर सवाल उठना लाजिमी है. जांच में यह सामने आया कि सखी मंडल और बुनकर सहयोग समितियों ने मात्र 18 हजार कंबल ही बनाए. शेष कंबल बाजार से खरीदे गए, वह भी बिना टेंडर के. नौ लाख कंबलों को जिले में बांट भी दिया गया. अब यह भी सवाल उठने लगा है कि कंबल बंटे भी या नहीं. यह भी जांच के बाद ही पता चलेगा. वैसे यह साफ है कि सारे पैसे का गोलमाल हुआ और झारक्राफ्ट के अधिकारियों व नेताओं ने पूरी राशि का बंदरबांट कर लिया.

इधर रघुवर सरकार के वरिष्ठ मंत्री सरयू राय ने तो सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है. उन्होंने कहा कि यह चारा घोटाला से भी बड़ा घोटाला है. खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने रघुवर दास को यह पत्र लिखकर कहा है कि इस घोटाले में आरोपियों ने वही तरीका अपनाया है, जो बिहार में हुए पशुपालन घोटाले में अपनाया था. इस घोटाले की जांच भी सीबीआई से कराई जाए. श्री राय ने पत्र में लिखा है कि झारक्राफ्ट में भ्रष्टाचार एवं घोटाले की खबरें एजी द्वारा ऑडिट के दौरान पाए गए प्रमाणों पर आधारित हैं.

राज्य के विकास आयुक्त ने झारक्राफ्ट द्वारा कंबलों के निर्माण एवं खरीद में हुई गड़बड़ी की निगरानी जांच कराने का आदेश एक माह पूर्व ही दिया था, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने रेणु गोपीनाथ पणिक्कर का बचाव करते हुए कहा है कि कंबल तो बने और बंटे भी, पर कहां बने हैं, इसकी जांच होगी. उन्होंने कहा कि गृह सचिव को जांच का आदेश दिया गया है. उन्हें यह कहा गया है कि हर जिले में यह जांच कराई जाए कि जो कंबल बंटे हैं, उसे स्थानीय बुनकरों ने बनाया है या बाहर से मंगाया गया है.

इधर झारक्राफ्ट की सीईओ रेणुगोपीनाथ पणिक्कर की नियुक्ति पर भी सवाल उठने लगा है. रघुवर दास इस अधिकारी पर इतने मेहरमान क्यों थे? यह भी चर्चा है कि किसी बड़े भाजपा नेता के दबाव में यह पद उन्हें दिया गया था. आखिर बिना किसी विशेष योग्यता के उन्हें इतने महत्वपूर्ण पद क्यों दिए गए? मुख्यमंत्री रघुवर दास की क्या मजबूरी थी कि उसे दो-दो महत्वपूर्ण पद दे दिए.

रेणु गोपीनाथ ने मुख्यमंत्री लघु उद्योग बोर्ड को भी नहीं बख्शा. रेणु गोपीनाथ ने स्टार्टअप किट के लिए सप्लायर को गलत तरीके से 80 लाख रुपए अग्रिम दे दिए. दस हजार स्वयं सहायता समूहों के बीच मार्च 2018 तक किट का वितरण किए जाने का लक्ष्य था, पर सप्लायर ने अभी तक एक भी किट की आपूर्ति नहीं की है. इस घोटाले के उजागर होने के बाद रेणु गोपीनाथ ने उद्योग विभाग के निदेशक के रवि कुमार पर आरोपों की झड़ी लगा दी और कहा कि कमीशन नहीं देने के कारण उन्हें फंसाया जा रहा है. रेणु गोपीनाथ ने उद्योग निदेशक की सम्पत्ति की जांच निगरानी से कराने की मांग भी की है. इधर उद्योग निदेशक के. रविकुमार ने कहा कि वे रेणु गोपीनाथ पर मानहानि का मुकदमा करेंगे. उन्होंने कहा कि सीईओ ने मनमाने तरीके से भुगतान किया.

महालेखाकार द्वारा मामला उजागर करने के बाद विकास आयुक्त ने एंटी करप्शन ब्यूरो से जांच कराने की मांग की थी. एसीबी जांच से पहले विभागीय स्तर पर जांच कमिटी  का गठन किया गया. प्रकरण के तूल पकड़ने के बाद सात कमिटियों का ताबड़तोड़ गठन किया गया. यह शायद राज्य का पहला मामला है, जिसकी जांच के लिए सात कमिटियों का गठन किया गया.

पशुपालन की तरह है कंबल घोटाला : सरयू

खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने घोटाले में संलिप्त अधिकारियों पर अविलंब कार्रवाई की मांग की है. मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि झारक्राफ्ट के इस घोटाले को गंभीरता से लेना चाहिए, ताकि लोगों में यह संदेश नहीं जाए कि जिन लोगों ने पशुपालन घोटाले के अभियुक्तों को सजा दिलवाई, उनकी सरकार में ऐसा घोटाला उजागर होने के बाद कार्रवाई नहीं हो रही है. झारक्राफ्ट की सीईओ का त्यागपत्र भी स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. इनका त्याग-पत्र स्वीकार करने से यह संदेश जाएगा कि सरकार इनका बचाव कर रही है. झारक्राफ्ट की सीईओ की नियुक्ति किन परिस्थितियों में, किस प्रक्रिया से और इनकी किस विशेषज्ञता को ध्यान में रखकर की गई, इसे भी जांच के दायरे में लाना चाहिए.

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