bjpकेंद्र में भाजपा सरकार के तीन साल   गुजरने के बाद अब बिहार में पार्टी स्तर पर आगामी चुनावी फतह की रणनीति बनने लगी है. इसके तहत बिहार के प्रत्येक जिले में भाजपा कार्यकर्ता सम्मेलनों का आयोजन कर केंद्र सरकार की उपलब्धियों और राज्य सरकार की विफलताओं का बखान किया जाएगा.

खासकर पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं में जोश का प्रवाह किया जा रहा है. हाल में सीतामढ़ी एवं शिवहर जिले में आयोजित भाजयुमो के एक कार्यक्रम में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नीतीन नवीन ने कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी जैसा व्यक्तित्व का मिलना गौरव की बात है.

वहीं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के राजनैतिक चातुर्य का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि इनका सपना आने वाले समय में गांव से लेकर महानगरों तक कमल निशान का झंडा लहराना है. उन्होंने कार्यक्रम के दौरान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद व वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद अपनी करनी से जेल गए थे, अब इनके परिवार की बारी है.

वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से लालू – नीतीश गठजोड़ को समाप्त करने की अपील की. इससे पूर्व जिले के अलग – अलग स्थानों पर पार्टी कार्यसमिति की बैठकों का दौर चला. इसके अलावा विधानसभा स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन भी आयोजित किए गए. कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं से केंद्र सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचा कर बिहार में सत्ता परिवर्तन के लिए जुट जाने का आह्‌वान किया गया.

सवाल यह है कि क्या केंद्र व यूपी समेत भाजपा शासित प्रांतों की सफलता का राग अलाप कर भाजपा बिहार में अपना जड़ मजबूत कर पाएगी? चुनाव के समय टिकट बंटवारे से लेकर उपजने वाला जातीय विद्वेष पर शिकंजा कस पाएगी? उत्तरी बिहार के तिरहुत व दरभंगा प्रमंडल के जिलों में इस पर राजनीतिक मंथन का दौर शुरू हो गया है.

राजनीतिक गलियारों में चौपाल सजाने वालों का कहना है कि भाजपा को सबसे पहले दलगत खामियों को दूर कर आम कार्यकर्ताओं में एक विश्वास का प्रवाह करना होगा. चुनाव के दौरान समर्पित कार्यकर्ताओं से किनारा करने की प्रवृत्ति का त्याग करना होगा. गठबंधन की राजनीति के तहत खासकर राजद और जदयू के कब्जे वाले क्षेत्रों में मजबूत प्रत्याशी को मौका देकर जातीय वर्चस्व को चुनौती देनी होगी. धनकुबेरों की जगह समर्पित पार्टी कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान देना होगा.

साथ ही संबंधित जिलों के दलगत सांसद, विधायक व विधान पार्षदों को भी जातीय जकड़न से हटकर आम लोगों के बीच एक बेहतर माहौल बनाना होगा. भाजयुमो के कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष ने केंद्र की योजनाओं के कार्यान्वयन में कोताही को लेकर सड़क पर संघर्ष का ऐलान किया है. लेकिन इसे जमीन पर सच्चाई के तौर पर उतारना आवश्यक होगा. वैसे अभी बिहार के चुनाव में वक्त है. अब देखना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिहार में कमल खिलाने को लेकर भाजपा राजनीतिक बिसात पर क्या करती है.

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