हम क्यों बार-बार बिहार के लोगों से अपील कर रहे हैं. यह सवाल उन राजनैतिक व्यक्तियों ने हमसे पूछा है, जो ख़ुद अपने दलों के आलोचक हैं. हालांकि उनका कहना है कि हमारी अपील बिल्कुल सही है और इसका बिहार के लोगों पर असर भी हो रहा है, क्योंकि जनता बातचीत में अपराधियों, दागियों और बाहुबलियों के ख़िला़फ खुलकर बात करने लगी है तथा उनके खिलाफ अपना गुस्सा प्रगट करने लगी है, जिन्होंने अपने परिवार के लोगों को चुनाव में खड़ा किया है. मज़े की बात है कि राजनैतिक दलों द्वारा दागियों और बाहुबलियों को चुनाव में खुलकर खड़ा करने की भी ये समझदार राजनैतिक लोग आलोचना करने में सबसे आगे हैं.

बिहार के राजनैतिक दलों ने बाहुबलियों को टिकट देने में इस बार सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. पिछले उप चुनावों में नीतीश कुमार ने बाहुबलियों और विधायकों तथा सांसदों के नज़दीकी रिश्तेदारों को टिकट देने में सख्त रुख़ अपनाया था, जिसकी एक वजह बनी कि वह उप चुनावों में हार गए. इस बार नीतीश कुमार ने ऐसा कोई रुख़ नहीं अपनाया, उन्होंने परिवारवाद और बाहुबली वाद को अपने गले से खुलकर चिपका लिया.

बिहार के राजनैतिक दलों ने बाहुबलियों को टिकट देने में इस बार सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं. पिछले उप चुनावों में नीतीश कुमार ने बाहुबलियों और विधायकों तथा सांसदों के नज़दीकी रिश्तेदारों को टिकट देने में सख्त रुख़ अपनाया था, जिसकी एक वजह बनी कि वह उप चुनावों में हार गए. इस बार नीतीश कुमार ने ऐसा कोई रुख़ नहीं अपनाया, उन्होंने परिवारवाद और बाहुबली वाद को अपने गले से खुलकर चिपका लिया. भाजपा ने दागी उम्मीदवारों को जमकर टिकट दिए तथा अपनी वह छवि तोड़ दी, जिसकी वजह से वह अन्य राजनैतिक दलों से कुछ अलग जानी जाती थी. बेटों, पत्नियों और रिश्तेदारों को जमकर टिकट दिलवाए गए. पराकाष्ठा तो तब हो गई, जब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सी पी ठाकुर ने अपने बेटे को टिकट न मिलने के विरोध में पार्टी से इस्ती़फा दे दिया. भाजपा ने गिड़गिड़ा कर उन्हें मनाया तथा वादा किया कि राज्यसभा में उनके बेटे को भेज दिया जाएगा. सी पी ठाकुर समझदार व्यक्ति माने जाते हैं, बड़े डॉक्टर हैं, जनता से उनका रिश्ता है. उन्होंने लोकनायक जय प्रकाश का भी काफी दिनों तक इलाज किया है.
कोई सीमा ही नहीं रही. रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपने भाई को कांग्रेस से टिकट दिलवा दिया. किसी भी पार्टी का सांसद हो, अपनी पार्टी न सही, दूसरी सही, लेकिन टिकट दिलवाना उन्होंने अपनी इज़्ज़त का पैमाना बना लिया. सारे सिद्धांत बिहार चुनाव में हवा हो गए हैं. एक ही सिद्धांत बचा कि किसी तरह परिवार के लोगों को चुनाव में खड़ा करो और विधानसभा में पहुंचाओ. जिन पार्टी कार्यकर्ताओं ने सालों साल पार्टी के लिए ख़ून-पसीना बहाया, उन्हें आख़िरी क्षण में आसमान दिखा दिया गया. कुछ प्रमुख नाम, जिनमें पहला रामविलास पासवान का नाम है, जिनके परिवार के छह लोग चुनाव लड़ रहे हैं. जेडीयू के मुन्ना शुक्ला की पत्नी चुनाव लड़ रही हैं. पप्पू यादव की पत्नी पहले सांसद थीं, अब विधानसभा का चुनाव लड़ रही हैं. महेश्वर हज़ारी जेडीयू के सांसद हैं, उनके पिता और भाभी चुनाव लड़ रहे हैं. कौशल यादव और उनकी पत्नी को अलग-अलग क्षेत्रों से जेडीयू लड़ा रही है. जेडीयू के सांसद मोनाज़िर हसन की पत्नी आरजेडी से चुनाव लड़ रही हैं. धर्मपाल सिंह आरजेडी से तो उनके भाई बीजेपी से चुनाव लड़ रहे हैं. जेडीयू के सुशील सिंह के भाई आरजेडी के उम्मीदवार हैं. बेगूसराय के उपेंद्र सिंह एलजेपी के उम्मीदवार हैं तो उनके पुत्र भाजपा के उम्मीदवार हैं. ऐसे लगभग चालीस से पचास लोग हैं, जो विधानसभा में किसी तरह घुसना और अपने परिवार को घुसाना चाहते हैं. न ये नेता समझ रहे हैं और न राजनैतिक दल समझ रहे हैं कि लोकतंत्र का इस तरह का दुरुपयोग आम जनता के मन में दु:ख, कुंठा और निराशा पैदा कर सकता है. इसका परिणाम बड़े पैमाने पर अशांति, अपराध और नक्सलवाद की बढ़ोत्तरी की जड़ बनेगा.
मोटे तौर पर अगर प्रतिशत में देखें तो भाजपा ने 68 प्रतिशत, लोजपा ने 60 प्रतिशत, जेडीयू ने 55 प्रतिशत, आरजेडी ने 60 प्रतिशत, बीएसपी ने 42 प्रतिशत और कांग्रेस ने 40 प्रतिशत अपराधी, दाग़दार या बाहुबली कहे जाने वाले उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. राजनीति साफ-सुथरी रहे, अब यह उद्देश्य है ही नहीं. विधानसभा में जीत ही पहला लक्ष्य है. शायद ही कोई बड़ा अपराधी या दागी या बाहुबली बचा हो, जो किसी न किसी पार्टी से चुनाव न लड़ रहा हो. साढ़े चार सौ से ज्यादा इसी नस्ल के उम्मीदवार हैं, अगर जनता ने गलती से वोट दे दिए तो बिहार विधानसभा की तस्वीर बड़ी भयावह बनेगी. हालांकि पांच साल पहले हुए चुनाव में देश को कई तोह़फे बिहार ने दिए थे. जिस बिहार ने बूथ कैप्चरिंग की संस्कृति सारे देश में भेजी, उसी बिहार ने दो हज़ार चार और दो हजार पांच में सबसे सा़फ-सुथरे चुनाव भी कैसे होते हैं, सारे देश को दिखाया. इसमें के जे राव का बहुत बड़ा योगदान था. इन चुनावों में बिहार की जनता की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है. चुनावों में बूथ कैप्चरिंग नहीं हो रही है, लेकिन अपराधी और परिवारवाद पर लगाम लगाना बिहार की जनता के हाथ में है, क्योंकि बिहार में किसी भी तरह विधानसभा में पहुंचो और सरकार पर क़ब्ज़ा करो की नीति पर इन दिनों काम हो रहा है और इसके लिए जाति और पैसे का बेशर्मी और फूहड़ता से इस्तेमाल हो रहा है.
पाकिस्तान में दो सौ के आसपास परिवार हैं, जिनके क़ब्ज़े में वहां की राजनीति है. उन्हीं के हाथ में फौज है, इसीलिए आज पाकिस्तान में बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है. वहां के आतंकवाद का भी बड़ा कारण यही है. पाकिस्तान में आशा ही खत्म हो गई है. वहां के नौजवानों को लगता है कि राजनीति के ज़रिए कुछ भी बदलाव नहीं हो सकता, क्योंकि राजनीति पर उन्हीं का क़ब्ज़ा है, जो बदहाली के ज़िम्मेवार हैं. क्या यही बिहार में भी होगा या बिहार से सीख लेकर देश के दूसरे प्रदेशों में भी होगा? राजनीति से एक ही आशा होती है कि यदि उन्हें चुनाव लड़ने का मौक़ा मिले, जो इसके पात्र हैं तथा जिनकी तक़ली़फ है, तो समस्याओं के हल की आशा बनी रहती है. बिहार की जनता पर इस बात की ज़िम्मेदारी है कि वह उन्हें न जिताए, जो दागी या अपराधी हैं और न उन्हें जिताए, जो परिवारवाद में आते हैं. अगर परिवार के लोगों को चुनाव लड़ना है तो उन्हें पहले जनता के बीच या पार्टी में काम करना चाहिए. राजीव गांधी इसका एक उदाहरण हैं, जिन्होंने का़फी साल पार्टी में काम किया. पर जिन्होंने एक भी दिन काम नहीं किया, केवल पिता या माता या सास-ससुर की वजह से विधानसभा में जाना चाहते हैं, उन्हें हर हाल में हराना चाहिए. एक ही सिद्धांत, जो अपराधी हैं, वे विधानसभा में न जाएं तथा जो परिवारवाद की उपज हैं, विधानसभा का मुंह न देख पाएं.
इसलिए हम बिहार में अपील कर रहे हैं कि बाहुबलियों, दाग़ियों, अपराधियों और परिवारवाद फैलाने वाले लोगों को हारना चाहिए. चुनाव के महत्वपूर्ण चरण खत्म होने वाले हैं. हमारा बिहार की जनता से अनुरोध है कि वह ऐसे तत्वों को, जो लोकतंत्र का दुरुपयोग कर उसके हितों से खिलवाड़ कर रहे हैं, उन्हें हरा कर सारे देश को नया रास्ता दिखाए.

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