कभी दौर ऐसा हुआ करता था मौसम के लिहाज से जरूरतें बदलनी पड़ती थीं… अब ज़माना ऐसा हो गया है, जरूरतों ने मौसम बदल दिए हैं….!

आंगन में लहलहाता नीम का पेड़, छोटे लेकिन घर के सामने बसे सुंदर से बगीचे में महकते रंग बिरंगे फूल… बीते जमाने की कहानी होते जा रहे हैं….!

शहरों में महंगे से भी महंगे दाम पर खरीदे गए या प्लाट या फ्लैट की एक एक इंच की जगह का इस्तेमाल करने की नीयत रखी जाती है… पेड़, पौधे, फूलों, हरियाली की कोई गुंजाइश नहीं छोड़े जाने के नतीजे बिगड़ी पर्यावरणीय स्थिति और बदलते मिजाज़ के मौसम के तौर पर सामने हैं…!

बिगड़े इन हालातों में पर्यावरण, हरियाली, खुशबू, खूबसूरती के कुछ चाहने वालों ने अपने शौक को अब भी दिल से लगा रखा है। छोटी जगह में भी घर का एक कोना फूलों के नाम कर रखा है।

टेरेस, सीढ़ियों, ड्राइंग रूम से लेकर किचन और ओपन स्पेस में गमलों में पनपने जैसे फूलों को आबाद करने की कोशिश की जा रही है। घरों में फूलों को जगह देने वाले लोगों की वजह से ही शहर में दर्जनों नर्सरी आबाद हैं, जो हर दिन हजारों पोधों की खरीद फरोख्त कर रहे हैं।

भोपाल से खान आशु की रिपोर्ट

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