सिल्क्यारा के घटना के बाद अब सरकारों ने चारधाम परियोजना पर पुनर्विचार करना चाहिए ! भारत के सभी पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे सभी विशेषज्ञों ने हिमालय पर्वत के बारे में कहा है कि यह पर्वत दुनिया का सबसे तरुण और गाद मट्टी का बना हुआ पर्वत होने की वजह से इसमें आज भी हलचलों का होना जारी है ! और इसका ज्यादा तर इलाका भुकंप प्रवण क्षेत्रों में आता है !


इसी चारधाम परियोजना पर पुनर्विचार करने के लिए स्थापित 2019 मे रवि चोपड़ा समिति ने भी इस परियोजना के निर्माण करने से इस क्षेत्र पर कौन-से पर्यावरणीय असर पडेंगे यह बात साफ – साफ कहने के बावजूद वर्तमान सरकार हमारे देश के लोगों की धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा देने के लिए फिर राममंदिर हो या चारधाम परियोजना जोर-जबरदस्ती से करते जा रही है ! और यह करने वाले मंत्रालय के मंत्री महोदय को पर्यावरण संरक्षण की कुछ भी परवाह नहीं है ! वह बस तथाकथित विकास की पागलदौड में बौराए हो गए हैं ! इसलिए उन्हें सिर्फ चौड़ी सड़कें, ओवरब्रिज, फ्लाई ओवर, और हिमालयीन प्रदेशों में भी तथाकथित चौड़ी सड़कें ताकि लोगों को चारों धामों की यात्रा आसान हो सके लेकिन वह आसानी कितने बडे संकटों को मोल लेकर बनाई जा रही है ? यह सिल्क्यारा तथा जोशीमठ के हजारों मकान धसने की घटना से सिखने की जगह हम यह परियोजना पूरी करके रहेंगे यह निर्णय आत्मघाती निर्णय है !

उत्तरकाशी के सिल्क्यारा – बाडकोट के बीच 4-5 किलोमीटर लंबी वाहनों का परिवहन किया जा सके ! ऐसी सुरंग बनाने के समय, जिस तरह का हादसा हुआ ! और 41 मजदूरों की जाने आफत में आ गई थी ! जिन्हें चुहो जैसे बील बनाने वाले पारंपरिक मजदूर(जो आहिस्ता-आहिस्ता मट्टी को कुरेदते हुए छोटे – छोटे बिल बना कर उन फंसे हुए मजदूरों तक रास्ता बनाने में मददगार साबित हुए हैं ! जिसमें हिंदू – मुस्लिम समुदाय के मिलजुलकर उन्होंने जो रास्ता बनाया जिस कारण बड़ी मशीनों के इस्तेमाल से रास्ता बनना तो दूर उल्टा हिमालय पर्वत कच्चा पहाड़ होने की वजह से धसने के कारण वह मशीन फंसने के कारण इन चूहों के जैसे बिल बनाने वाले पारंपरिक तकनीकों की वजह से सत्रह दिनों से 41 मजदूरों की जाने बचाने में कामयाबी हासिल हुई ! क्या यह घटना तथाकथित चारधाम परियोजना पर पुनर्विचार करने के लिए पर्याप्त नहीं है ?


क्या सिल्क्यारा के टनैल निर्माण मे धसने की घटना कुछ संकेत नहीं दे गई ? यदि यह परियोजना पूरी होने के बाद क्या सब कुछ ठीक – ठाक रहेगा ? क्योंकि पर्यावरण संबंधी आपत्तियों को पूरी तरह से नजरअंदाज जो किया गया है ! यह गरूर किस लिये ? क्या जोशीमठ के हजारों मकान धसने की घटना भी आपके आंखें खोलने के लिए पर्याप्त नहीं है ?


सड़कों को चौड़ा करना मैदानों के इलाकों में और पहाड़ी क्षेत्र में जमीन आसमान का फर्क पड़ता है ! और वह भी हिमालय जैसे कच्चे पहाड़ के साथ वृक्षों को काटकर और मट्टी के ढेर में सुरंगों का निर्माण करना साक्षात मृत्यु को निमंत्रण देने की बात है ! क्योंकि पहाड़ सुरंगों के निर्माण करने से पहाड़ और कमजोर हो जाता है, और मट्टी और चट्टानों को निचले स्तर पर लुढकते आते हुए मैंने खुद अपने आंखों से सितंबर 2022 के प्रथम सप्ताह में जम्मू से श्रीनगर के रास्ते पर हल्का सा पानी बरस रहा था और मै गाडी में ड्राइवर की बगलवाली सिटपर बैठा हुआ था ! उधमपुर से थोड़ा आगे देखा कि पहाड से कुछ मट्टी और पत्थरों को गिरते हुए देखकर मैंने ड्राइवर को गाडी रोकने के लिए कहाँ और सामने कुछ दूरी पर हमारे गाडी से भी बड़े आकार की चट्टान पहाड से फिसलकर गिरने का हादसे से बाल – बाल बचें ! थोडा आगे बढे तो रामबन के पास और ज्यादा चट्टान और मट्टी गिरने से हम लोग सुबह दस बजे जम्मू स्टेशन से निकल कर रात को दस बजे तक बड़ी मुश्किल से श्रीनगर पहुंचे थे ! जम्मू-कश्मीर हो या उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश या उत्तरपूर्व के सभी पहाडी क्षेत्रों के तथाकथित चौडी सड़कों के निर्माण और उसके लिए पहाड़ों को काटकर सुरंगों के निर्माण कार्यों को अविलंब रोकने की आवश्यकता है !


क्योंकि हिमालय की टोपोग्राफी यह सब कुछ बर्दाश्त नहीं कर सकती, चौडी सड़कों के निर्माण होने के बाद वाहनों की आवाजाही बहुत बढ जाने से यह क्षेत्र इतना बोझ सहन करने योग्य नहीं है. इस बात को क्यों ध्यान में लिया जा रहा ? चारधाम महामार्ग परियोजना के तहत जो हर मौसम वाली सड़क (अॉल वेदर रोड) का निर्माण हो रहा है, वह भुकंप प्रवण और कच्चि चट्टानों का क्षेत्र है, वहां पहाड़ टुटने का खतरा हमेशा मौजूद रहता है ! बॉर्डर रोड ऑर्गनायझेशन (बी आर ओ) तथा आई टी बी पी की निगरानी रहने से वहां की देखभाल हो रही है और जहाँ मलबा, पत्थर लुढकते है, वहां यातायात रोक दिया जाता है.
जो लोग गंगोत्री, जमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा करके आए हैं, वे जानते हैं कि वहां स्थिति कितनी खतरनाक है. प्रकृति से छेडछाड का नतीजा आत्मघाती हो सकता है ! ग्लोबल वॉर्मिंग और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से ही ग्लेशियर पिघलना शुरू हुआ है ! 10 वर्ष पहले हुई केदारनाथ त्रासदी से भी सिख नही ली गई ? पर्यावरण संबंधी आशंकाओं और खतरों को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है ?
टिहरी तथा हिमालय पर्वत की श्रेणी में बनायें जा रहे बांधों का विरोध सुंदरलाल बहुगुणा तथा प्रोफेसर अग्रवाल जिन्होंने अपने आप को गंगापुत्र नाम से जाना जाता है ! अपने प्राण तक त्याग दिया लेकिन सरकारों के कानों तक जूं भी नहीं रेंगी ! तथाकथित कुशल तकनीक का गुरुर के सामने कुदरत का रौद्ररूप केदारनाथ, जोशीमठ और सिल्क्यारा के घटना से हम कुछ भी सबक नहीं ले सकते ? की सवाल आस्था का है भले ही उसके लिए समस्त हिमालय पर्वत ही क्यों न दांव पर लगा दे लेकिन मंदिर वहीं बनाएंगे के जैसा चारधाम परियोजना बनाकर ही रहेंगे !

Adv from Sponsors