banaras8 नवंबर को प्रधानमंत्री ने टीवी पर 500 और 1000 के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी. तब से लेकर आज तक पूरे देश में बैंकों के आगे लंबी लाइनें लगी हैं. इस दौरान कई लोगों की जानें भी गईं, कई स्थानों पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठियां भांजी.

समाचार माध्यमों से यह संदेश दिया जा रहा है कि मोदी के इस क़दम से लोगों को थोड़ी परेशानी तो हो रही है, लेकिन वे अपनी ख़ुशी से बैंकों के आगे लंबी लाइनों में खड़े हैं. लेकिन सरकार को मीडिया की बातों पर यकीन नहीं है, इसलिए सरकार ने ऑनलाइन सर्वे करा कर खुद ही जनता से इस नोटबंदी पर समर्थन ले लिया.

प्रधानमंत्री का लोकसभा क्षेत्र होने के कारण सबकी नज़र वाराणसी पर है. अब नोटबंदी को लेकर वाराणसी के लोगों की क्या राय है? वहां के व्यापार पर इसका क्या असर पड़ा है? बनारसी साड़ी उद्योग जो पहले से ही बीमार है, उसकी क्या स्थिति है?

जबसे नोटबंदी को सीमा पर तैनात सैनिकों की कठिनाइयों से जोड़ा गया है, तबसे लोग इस क़दम की आलोचना करने से डर रहे हैं. भले ही वे टीवी और अखबार वालों के सामने नोटबंदी को सही ठहरा रहे हों, लेकिन जैसे ही ऑफ रिकॉर्ड होते हैं, लोग सरकार के इस क़दम की आलोचना करना शुरू कर देते हैं. कुछ ऐसा ही हाल सरकार के समर्थकों का भी है. वे बैक-स्टेज कुछ कहानी कहते हैं और स्टेज पर पहुंचते ही कोई और भाषा बोलने लगते हैं.

वाराणसी के एक सहयोगी पत्रकार ने चौथी दुनिया को बताया कि यहां यह अफवाह फैली है कि अगर किसी ने भी नोटबंदी के खिलाफ बोला तो उसके घर आयकर विभाग का छापा डलवा दिया जाएगा, इसलिए यहां के बुद्धिजीवी और बड़े व्यापारी अपनी नाराज़गी ज़ाहिर नहीं कर पा रहे हैं.

बहरहाल, भारत में सर्दी आम तौर पर पर्यटन का मौसम होता है. वाराणसी में भी विदेशी पर्यटकों की एक बड़ी संख्या आती है. इन दिनों यहां के घाटों पर चहल-पहल व मंदिरों में काफी भीड़ रहती है. विदेशी पर्यटकों के आने से यहां के बाज़ारों में भी काफी रौनक रहती है. स्थानीय कारोबारियों का व्यापार भी

ज़ोरों पर रहता है. लेकिन, नोटबंदी के बाद यहां घाटों पर पर्यटकों की संख्या कम हो गई है. मंदिरों में भी लोगों की भीड़ में कमी आई है. स्थानीय व्यापार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. बनारस का व्यापार और व्यवसाय कैश पर आधारित हैं, इसलिए यहां व्यापारियों से लेकर डॉक्टर तक सब परेशान हैं.

लोगों का यहां तक कहना है कि रिक्शे वाले भी खाली घूम रहे हैं. फ़िलहाल शादी का मौसम है. इस मौसम में बाज़ारों में आम तौर पर चहल-पहल रहती है. लोग खरीदारी करते हैं. लेकिन नोटबंदी के बाद लोगों के हाथ खाली हैं और बाज़ारों से रौनक गायब है.

इस बात को खुद प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव जयापुर के लोग भी मानते हैं. हालांकि जयापुर एक आदर्श गांव है और यहां बैंक भी है, लेकिन बैंक में कैश नहीं होने की शिकायत यहां के लोगों को भी है. उनका मानना है कि यह फैसला बहुत जल्दबाजी में लिया गया है.

जहां तक व्यापार के प्रभावित होने का प्रश्‍न है तो यहां सबसे अधिक मुसीबत बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े लोगों को उठानी पड़ रही है. बनारसी साड़ी का कारोबार पहले से ही खस्ता हालत में था. लोकसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में इस उद्योग में नई जान फूंकने की बात की थी.

पिछले दिनों सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज इंडिया कॉरपोरेशन लिमिटेड (वस्त्र मंत्रालय) की ओर से देश के अलग-अलग शहरों में प्रदर्शनी लगा कर बनारसी साड़ी उद्योग को संभालने की कोशिश की गई थी.

लेकिन हैंडलूम से जुड़ी एक ट्रेड यूनियन राष्ट्रीय चेनेता जन समाख्या (आरसीजेएस) के रिसर्च में यह बताया गया था कि बनारस के बुनकरों की हालत बद से बदतर होती जा रही है.

आरसीजेएस के मुताबिक, पिछले दो वर्षों में वाराणसी के 50 बुनकरों ने आत्महत्या की और बहुत सारे बुनकर पलायन करने पर मजबूर हो गए. यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि भाजपा ने बिहार में पलायन को चुनावी मुद्दा बनाया था. लेकिन मज़े की बात यह है कि इस रिपोर्ट पर मेनस्ट्रीम मीडिया बिलकुल खामोश है.

वाराणसी में साड़ी उद्योग का काम कैश पर होता है. आम तौर पर कारीगर 5000 का एडवांस लेकर काम करते हैं. नोटबंदी के बाद उन्हें कैश मिलाना बंद हो गया है. नतीजा यह हुआ है कि रॉ मैटेरियल के रूप में इस्तेमाल होने वाले सूत की सप्लाई, जो गुजरात के शहर सूरत से होती है, तकरीबन बंद हो चुकी है.

पहले का बना हुआ माल उठाने वाला कोई व्यपारी नहीं है. यहां बुनकर आमतौर पर अपने घरों में ही करघा लगाते हैं और बाहर एक कमरे, जो दद्दी कहलाता है, में व्यापारियों से सौदा करते हैं.

नोटबंदी के फैसले के बाद से इन गदिद्यों पर लगभग कोई नहीं आ रहा है. साड़ियों की डिमांड कम होने से यहां के बुनकर बेहद परेशान हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, यहां से बाहर जाने वाली साड़ियों की मांग में 80 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है.

नतीजतन बुनकर तो परेशान हैं ही, इन साड़ियों के सप्लायर्स का धंधा भी करीब-करीब ठप है. कहने का अर्थ यह है कि नोटबंदी ने जहां आम व्यापारियों को नुकसान पहुंचाया है, वहीं अपने वजूद के लिए जूझ रहे बनारसी साड़ी के पारंपरिक उद्योग की भी कमर तोड़ दी है.

एक दूसरी खबर है कि वाराणसी की सब्जी मंडियों में आलू सड़ने लगे हैं और व्यापारी उन्हें मवेशियों को खिला रहे हैं. उनका कहना है कि इस मौसम में पूर्वांचल के इलाकों में आलू की बुआई होती है और आसपास के किसान यहां से आलू खरीद कर ले जाते हैं.

यह व्यापार कैश में होता है, इसलिए यहां कोई खरीदार नहीं और आलू यहां पड़े-पड़े सड़ रहे हैं. ख़बरों के मुताबिक वाराणसी की मंडी में रोजाना 30-40 गाड़ियां आती थीं, लेकिन नोटबंदी के बाद ये संख्या मुश्किल से 8-9 तक रह गई है.

वाराणसी से एक और हैरान करने वाली खबर यह है कि बैंकों में चूंकि नोटों की कमी थी, इसलिए नोट बदलवाने गए किसानों को 2000 रुपए के सिक्के दे दिए गए. आज कल सोशल मीडिया पर और कुछ अख़बारों में दस रुपए के नकली सिक्कों की चर्चा भी जोरों पर है.

लिहाज़ा बीज खरीदते समय दुकानदार इन सिक्कों को लेने से इंकार करने लगे हैं. नोटबंदी ने सिर्फ वाराणसी के व्यापार और कृषि को ही प्रभावित नहीं किया है, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर भी इसके विपरीत प्रभाव पड़े हैं. इस साल यहां गंगा महोत्सव भी नोटबंदी का शिकार हो गया.

गंगा महोत्सव का आयोजन संत रविदास घाट पर 11 से 13 नवंबर तक हुआ था, लेकिन इस महोत्सव में भीड़ इतनी कम थी कि उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव राहुल भटनागर को महोत्सव का उद्घाटन करते समय लोगों से कार्यक्रम में शामिल होने की अपील करनी पड़ी.

ऊहीं, वाराणसी में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो यह तो मानते हैं कि नोटबंदी से उन्हें परेशानी हो रही है, फिर भी यह फैसला ठीक है और इसका फायदा आने वाले दिनों में मिलेगा.

संतुष्टि आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज की डायरेक्टर डॉ. रितु गर्ग कहती हैं कि बनारस के लोग लाइन में ज़रूर खड़े हैं, लेकिन उनमें उत्साह की कोई कमी नहीं है. लोगों को लग रहा है कि इस क़दम की वजह से कालाधन, आतंकवाद और विदेशों से आने वाले जाली नोटों पर भी रोक लगेगा.

डॉ. गर्ग आगे कहती हैं कि लोग परेशान ज़रूर हैं, लेकिन नाराज़ नहीं हैं. नाराज़ इसलिए नहीं हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि इस क़दम से भ्रष्टाचार ख़त्म होगा. उसी तरह साड़ी उद्योग से जुड़े रियाज़ भी यही मानते हैं कि थोड़ी परेशानी तो है, फिर भी प्रधानमंत्री के नोटबंदी का फैसला ठीक है.

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