south-africa-xenophobic-attदक्षिण अफ्रीका की राजधानी जोहांसबर्ग के टाउनशिप अलेक्सेंड्रा में 18 अप्रैल की सुबह अफ्रीकी देश मोजाम्बिक के नागरिक इम्मानुएल सिथोले कहीं जा रहे थे. यह मालूम नहीं है कि उन्हें दक्षिण अफ्रीका में विदेशियों के खिलाफ चल रही हिंसा का ज्ञान था या नहीं, लेकिन उनके साथ जो हुआ, उससे पूरी दुनिया इस देश में चल रही हिंसा की गंभीरता से अवगत जरूर हो गई. वाक्या कुछ यों था कि इम्मानुएल को चार-पांच लोगों ने घेर कर उनपर ताबड़तोड़ हमला बोल दिया. एक हमलावर ने उन पर चाकू से वार किया और इम्मानुएल वहीं गिर गए. इस घटना के गवाह बने स्थानीय फोटोग्राफर जेम्स ओटवे. जेम्स ने अपने कमरे में इस पूरी घटना को क़ैद कर लिया और जब हमलावर वहां से चले गए, तो एक अन्य राहगीर की मदद से उन्होंने इम्मानुएल को अस्पताल पहुंचाया, जहां इलाज के दौरान इम्मानुएल की मृत्यु हो गई.
विदेशियों का खौफ, विदेशियों से घृणा या जेनोफोबिया दक्षिण अफ्रीका के लिए कोई नया नहीं है. रंगभेदी सरकार के समय भी और रंगभेद की समाप्ति के बाद लोकतंत्र की स्थापना के बाद भी दक्षिण अफ्रीका में विदेशियों के साथ रंगभेदी हमले होते रहे हैं. दरअसल, दक्षिण अफ्रीका एक बहुसंस्कृतिवादी देश रहा है. यहां कई अफ्रीकी कबीलों के साथ-साथ भारत समेत दुनिया के कई देश के लोग ब्रिटिश उपनिवेशवाद के समय से बसते या बसाये जाते रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ चूंकि दक्षिण अफ्रीका एक तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, इसलिए अफ्रीकी देशों से बड़ी संख्या में लोग यहां नौकरी या रोजागर की तालाश में आने लगे हैं, जिसके कारण यहां के मूल निवासी यह समझने लगे हैं कि ये प्रवासी लोग उनका हक मार रहे हैं. इसी वजह से वर्ष 2000 से 2008 के बीच इस तरह के हमलों में 60 से अधिक लोग मारे गए थे. केवल मई 2008 में ही विदेशियों के विरुद्ध दंगों में 62 लोग मरे गए थे, जिसमें 21 दक्षिण अफ्रीकी नागरिक भी शामिल थे. इसी साल जनवरी महीने में जोहांसबर्ग में विदेशियों के खिलाफ हिंसा फैल गई थी, लेकिन सुरक्षा बालों ने त्वरित कार्रवाई करके इसे फैलने से रोक लिया था. बहरहाल, दक्षिण अफ्रीका एक बार फिर विदेशियों के प्रति खौफ या घृणा से प्रेरित दंगों के चंगुल में है और इस बार भी पिछले हमलों की तरह जो लोग प्रभावित हुए हैं, वे अफ्रीकी देशों के अश्वेत लोग हैं. ये वे लोग हैं, जो नौकरी की तलाश में या व्यापार करने के उद्देश्य से इस देश में आए थे. गौरतलब है कि दक्षिण अफ्रीका में विदेशियों की संख्या 20 लाख के आसपास बताई जाती है. चूंकि दक्षिण अफ्रीकी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, देश में बेरोज़गारी दर 25 प्रतिशत तक पहुंच गई है और इस बेरोज़गारी का सबसे अधिक शिकार देश के अश्वेत लोग हैं. वो यह समझते हैं कि उनकी बेरोज़गारी की वजह अफ्रीकी देशों से आए हुए लोग हैं, जो उनकी नौकरी चट कर जा रहे हैं. इसीलिए एक हलकी सी चिंगारी उनके अन्दर के आग को भड़काने के लिए काफी है. लिहाज़ा, देश में पिछले कुछ हफ़्तों से चल रहे विदेशियों के खिलाफ हमले की शुरुआत कथित रूप से ज़ुलू कबीले के पारंपरिक राजा गुडविल ज्वेलिथिनी के पिछले महीने दिए गए भड़काऊ भाषण से हुई थी. इस भाषण में उन्होंने देश में हो रही हिंसा के लिए विदेशियों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए उन्हें देश से चले जाने का फरमान जारी किया था. हालांकि बाद में किंग गुडविल ने अपनी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगया है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.
ज़ुलू राजा के कथित भड़काऊ भाषण के बाद पिछले कई हफ़्तों से इस देश के कई बड़े शहर हिंसा के चपेट में हैं, लेकिन सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र ज़ुलू-नटाल प्रान्त और गोटेंग प्रान्त हैं. अब तक की ख़बरों के मुताबिक, इस हिंसा में कम से कम 7 लोग मारे गए हैं और 5000 से ज़्यादा बेघर हुए हैं. विदेशी नागरिकों की कई दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया है. बहुत सारे लोग शरणार्थी कैम्पों में चले गए हैं. हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हिंसा से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में सेना को तैनात करना पड़ा है. रक्षा मंत्री नोसिवीवे म्पीसा-नकालुका ने एक बयान जारी करके कहा कि ज़ुलू-नटाल प्रान्त में सेना भेजी जा रही है और जोहांसबर्ग में सेना तैनात कर दी गई है. राष्ट्रपति जैकब जुमा ने इन हमलों कि निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का यकीन दिलाया है, लेकिन अफ्रीका के वो देश, जिनके नागरिक इन हमलों से प्रभावित हुए हैं, वो इसे हलके में नहीं ले रहे हैं. नाइजीरिया और मोजाम्बिक समेत कई देशों ने ज़ुलू राजा से अविलम्ब मा़फी की मांग की है और सरकार से हिंसा रोकने के लिए क़दम उठाने को कहा है. साथ ही कई देशों में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं. दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने कई देशों में अपने वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए हैं और चीन जैसे कई देशों ने अपने नागरिकों को दक्षिण अफ्रीका नहीं जाने की सलाह दी है.
बहरहाल, इन घटनाओं का दक्षिण अफ्रीका के ऊपर प्रत्यक्ष रूप से असर पड़ेगा. चूंकि यह देश तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है और अफ्रीका महाद्वीप में विकास के ऊंचे दर को हासिल करने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं, इसलिए दक्षिण अफ्रीका के पास भी अफ्रीकी देशों में पूंजी निवेश का बड़ा मौक़ा है. ऐसे में अगर उसके रिश्ते दूसरे अफ्रीकी देशों से ख़राब हो जाते हैं, तो उससे बहुत नुकसान उठाना पड़ सकता है. विदेशियों पर हमलों से एक सवाल यह भी उठता है कि आखिर ये हिंसा होती ही क्यों है? ऐसा नहीं है कि यह स्थिति केवल दक्षिण अफ्रीका में ही है. दुनिया के दूसरे देशों में भी ज़ेनोफोबिया के मामले सामने आ रहे हैं. हैरानी की बात तो यह है कि इसमें अमेरिका से लेकर यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश भी शामिल हैं. एक वैश्वीकृत (ग्लोबलाइज) दुनिया में ऐसी घटनाएं चिंता का विषय हैं और वैश्वीकरण के मूल सिद्धांतों के विपरीत हैं. जब आप दुनिया के बाजारों को एक बड़ा साझा बाज़ार मान रहे हैं, तो किसी देश में काम करने वाले देशी और विदेशी को अलग तरीके से क्यों बांटा जाता है? इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि किसी देश में अगर किसी वजह से बेरोज़गारी दर में वृद्धि होगी, तो वहां काम कर रहे विदेशी नागरिक सबसे आसान निशाना होंगे. इसलिए इस मसले पर सरकारों को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए.

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