ऐसी चर्चा है कि अररिया उपचुनाव में एनडीए की तरफ से भाजपा ही अपना प्रत्याशी देगी. भाजपा की ओर से पुराने प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह के साथ-साथ भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और वरीय नेता शाहनवाज हुसैन के नाम की भी चर्चा है. वहीं राजद से तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम को टिकट मिलने की बात कही जा रही है. शाहनवाज हुसैन की दावेदारी इसलिए भी मजबूत है, क्योंकि करीब 42 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता वाले अररिया लोकसभा क्षेत्र से भाजपा कोई मुस्लिम चेहरा ही देना चाहेगी.

arriyaतस्लीमुद्दीन के निधन के बाद खाली हुई अररिया लोकसभा सीट पर उपचुनाव की चर्चा तेज हो गई है. यह उपचुनाव इस मायने में पिछले लोकसभा चुनाव से अलग है कि अब बिहार का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है. 2014 के लोकसभा चुनाव के समय बिहार में जो समीकरण था, वह आज नहीं है. पिछले तीन सालों में बिहार की राजनीति में काफी उलट-पलट हुआ है. 2014 के लोकसभा चुनाव के समय जदयू एनडीए का हिस्सा नहीं था और न ही महागठबंधन बना था.

राजद, एनडीए, और जदयू ने लोकसभा का चुनाव अलग-अलग लड़ा था. लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने अपने दो दशक पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंदी लालू यादव से मिलकर महागठबंधन बना लिया. 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के कारण जदयू, राजद और कांग्रेस को सफलता मिली और नीतीश कुमार पुन: महागठबंधन के मुख्यमंत्री बने. लेकिन 22 महीने में ही महागठबंधन टूट गया. नीतीश पुन: एनडीए का हिस्सा हो गए. आज की तारीख में बिहार की राजनीति में महागठबंधन के नाम पर राजद और कांग्रेस ही साथ हैं और एनडीए में भाजपा, जदयू, लोजपा, रालोसपा, और हम शामिल हैं.

इसलिए तय है कि अररिया लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में एनडीए से राजद का सीधा मुकाबला होगा. अब सवाल यह है कि इस उपचुनाव में एनडीए की ओर से कौन आता है और राजद किसे अपना प्रत्याशी बनाता है. ऐसी चर्चा है कि एनडीए की तरफ से भाजपा ही अपना प्रत्याशी देगी. भाजपा की ओर से पुराने प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह के साथ-साथ भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और वरीय नेता शाहनवाज हुसैन के नाम की भी चर्चा है. वहीं राजद से तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम को टिकट मिलने की बात कही जा रही है. शाहनवाज हुसैन की दावेदारी इसलिए भी मजबूत है, क्योंकि करीब 42 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता वाले अररिया लोकसभा क्षेत्र से भाजपा कोई मुस्लिम चेहरा ही देना चाहेगी. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि तस्लीमुद्दीन के नहीं होने पर अब यहां हिन्दू मतदाताओं को गोलबंद करना भाजपा के लिए आसान होगा.

इस लिहाज से पार्टी किसी हिन्दू चेहरे को चुनाव मैदान में उतार सकती है. तस्लीमुद्दीन के सेकुलर चेहरे के कारण राजद के माय समीकरण के अलावा कुछ हिन्दू वोटों का फायदा भी इन्हेें मिल जाता था. तस्लीमुद्दीन की विरासत के जरिए सीट बचाए रखने के लिए राजद यहां से मरहूम तस्लीमुद्धीन के बेटे सरफराज आलम को ही टिकट देना चाहती है. सरफराज अभी जोकीहाट से जदयू विधायक हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सरफराज जदयू और विधायकी दोनों छोड़ सकते हैं. राजद का मानना है कि सरफराज आलम को प्रत्याशी बनाने से सहनुभूति वोटों का लाभ भी मिल सकता है.

अररिया लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले छह विधानसभा क्षेत्रों में से तीन नारपतगंज, फारबिसगंज और सिकटी पर भाजपा का कब्जा है, वहीं रानीगंज और जोकीहाट जदयू के खाते में हैं, जबकि अररिया विधानसभा सीट कांग्रेस के पास है. भाजपा और जदयू के सीटों को मिला दें, तो एनडीए के पास पांच सीटे हैं. इसलिए माना जा रहा है कि राजद के प्रत्याशी के पक्ष में सहानुभूति लहर के बावजूद मुकाबला आसान नहीं होगा. 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद प्रत्याशी मोहम्मद तस्लीमुद्दन को 4,07,978, भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह को 2,61,474, जदयू के विजय कुमार मंडल को 2,21,769 तथा बसपा प्रत्याशी अब्दुल रहमान को 17,724 वोट मिले थे. लेकिन इस बार चूंकि जदयू भी एनडीए के साथ है, इसलिए जदयू के वोटों का लाभ भी भाजपा प्रत्याशी को मिल सकता है.

हालांकि 2009 के लोकसभा चुनाव में जब जदयू एनडीए और लोजपा राजद के साथ थे, तब भाजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह 2,82,742 मत पाकर विजयी हो गए थे. उस समय लोजपा के जाकिर हुसैन खान को 2,60,240 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के शकील अहमद खान को मात्र 49,649 मत मिल पाए थे. इस बार के राजनीतिक समीकरण में लोजपा भी एनडीए के साथ है. इससे कहा जा सकता है कि करीब 41.13 प्रतिशत मुस्लिम वोट और सहानुभूति वोट के बाद भी तस्लीमुद्दीन के बेटे और राजद प्रत्याशी की लोकसभा की राहें आसान नहीं होंगी.

अररिया लोकसभा क्षेत्र में कुल 13,11,225 वोटर हैं. इस उपचुनाव में पप्पू यादव के जन अधिकार मोर्चा (सेकुलर) के भी लड़ने की चर्चा है. उपचुनाव में अपना उम्मीदवार देकर पप्पू यादव सीमांचल में स्थिति पर अपनी पकड़ की पड़ताल कर सकते हैं. गौरतलब है कि तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद शोक व्यक्त करते हुए पप्पू यादव ने कहा था कि सीमांचल की राजनीति में तस्लीमुद्दीन बड़े नेता थे और हमारे राजनीतिक गुरु भी. उन्होंने सीमांचल के जिन मुद्वों पर संघर्ष शुरू किया था, उसे मैं आगे बढ़ाउंगा. तभी से इस बात की चर्चा है कि पप्पू यादव अररिया उपचुनाव के बहाने सीमांचल की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.

देखने वाली बात यह भी होगी कि एनडीए अररिया लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में मुस्लिम प्रत्याशी देकर मुस्लिम बनाम मुस्लिम के जरिए अल्पसंख्सक वोटों में सेंध लगाता है या फिर हिन्दू बनाम मुस्लिम की राजनीति पर ही आगे बढ़ता है. राजद की तरफ से तो तय है कि कोई मुस्लिम चेहरा ही प्रत्याशी होगा, वो चाहे तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम हों या फिर कोई और.

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