लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत संसद देश की करोड़ों जनता का प्रतिनिधित्व करती है. सदन की शोभा सांसदों से नहीं, बल्कि उनके कार्यों और आचरण से बढ़ती है. इसे पंद्रहवीं लोकसभा के सत्र का स्याह पक्ष ही कहा जाएगा कि जिस अनुपात में विधेयक पारित होने चाहिए, वह हंगामे और वॉकआउट की वजह से नहीं हो पाए. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या संसद राजनेताओं के लिए अपनी पार्टी का प्रचार और अनावश्यक रूप से शोर-शराबा करने का एक केंद्र बन गई है?
zzपंद्रहवीं लोकसभा के सत्र का समापन पिछले दिनों हो गया, लेकिन संसदीय कामकाज और राजनीतिक शुचिता के लिहाज़ से इसे सबसे निराशाजनक कहा जाएगा. जहां तेरहवीं और चौदहवीं लोकसभा में कार्य निष्पादन की दर 91 और 87 प्रतिशत थी, वहीं मौजूदा लोकसभा में यह घटकर 72 प्रतिशत पर आ गई. पिछले साल शीतकालीन और मानसून सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गए. पिछले 25 वर्षों में पंद्रहवीं लोकसभा पहली ऐसी लोकसभा रही है, जिसकी कार्यवाही न स़िर्फ सर्वाधिक बाधित हुई है, बल्कि इसकी कार्यक्षमता में भी भारी गिरावट आई. पंद्रहवीं लोकसभा के विभिन्न सत्रों में कुल 177 विधेयक पारित हुए, जिनमें लोकपाल क़ानून और भूमि अधिग्रहण विधेयक सर्वाधिक महत्वपूर्ण थे. हालांकि, दर्जनों ऐसे विधेयक हैं, जो अभी भी लंबित पड़े हुए हैं और क़ानून बनने की बाट जोह रहे हैं.

जिसे भुलाया नहीं जा सकता
तमाम खामियों के बावजूद पंद्रहवीं लोकसभा में कुछ अच्छे काम ज़रूर हुए. समाजसेवी अन्ना हजारे को जिन सांसदों ने पानी पी-पीकर कोसा, उन्हें मिले अपार जन-समर्थन को अनदेखा करना सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों के लिए संभव नहीं हो सका. साझा हितों की सुरक्षा के लिए उन्होंने लोकपाल विधेयक पास करा लिया. दिल्ली में निर्भया के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के बाद एक कठोर क़ानून बनाया गया. तमाम विरोध के बावजूद बहु-प्रतीक्षित तेलंगाना विधेयक पास कराया गया. इसके अलावा खाद्य सुरक्षा विधेयक, भूमि अधिग्रहण विधेयक, शिक्षा का अधिकार क़ानून भी इसी लोकसभा में पारित हुआ. बहरहाल, मोटे तौर पर यह लोकसभा हमारे सांसदों के अमर्यादित आचरण के लिए जानी जाएगी. जिस संसद में कभी डॉ. राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये, राजनारायण, लाडली मोहन निगम जैसे सांसद अपने व्यवहार और कार्य से लोकतंत्र की प्रतीक संसद का मान बढ़ाया करते थे, अब वैसी बात संसद में देखने को नहीं मिलती. संसद की मर्यादा कैसे क़ायम रहे और सांसदों के व्यवहारों में कैसे सुधार हो, इसे लेकर गंभीर विमर्श करने की ज़रूरत है. हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि लोकतंत्र स़िर्फ चुनावी राजनीति से ही मजबूत नहीं होता.

लोकसभा सचिवालय में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक़, पंद्रहवीं लोकसभा में पारित किए गए कुल विधेयकों में 17 प्रतिशत विधेयक ऐसे थे, जिन पर सदन में पांच मिनट से भी कम वक्त चर्चा की गई. उल्लेखनीय है कि पंद्रहवीं लोकसभा का विस्तारित सत्र का समापन 21 फरवरी को हुआ, जिसमें तेलंगाना विधेयक को किसी तरह पारित कराया जा सका, लेकिन इसे पारित कराने के लिए सदन में जिस तरह अमर्यादित आचरण किया गया, उसे किसी भी सूरत में जायज क़रार नहीं दिया जा सकता. हालांकि, पंद्रहवीं लोकसभा में व्हिसल ब्लोअर संरक्षण विधेयक और सिटीजन चार्टर जैसे महत्वपूर्ण विधेयक पारित हुए, लेकिन काफी कम समय में सरकार ने इतने सारे महत्वपूर्ण बिल पारित कराने की हड़बड़ी क्यों की? क्या पिछले नौ सालों में उसे इनकी सुध नहीं आई, जबकि इन विधेयकों को पारित कराने की मांग काफी पुरानी है?
पंद्रहवीं लोकसभा वाकई यादगार रहेगी. न स़िर्फ इसलिए कि इसमें सबसे कम काम हुआ, बल्कि इसलिए भी कि हमारे माननीय सांसदों ने सर्वोच्च सदन की गरिमा को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पिछली लोकसभा में परमाणु बिल पर मतदान के समय नोटों की गड्डियां सदन के भीतर लहराए जाने की घटना हम सबके जेहन में क़ायम है. इस बार तेलंगाना विरोधी माननीय सांसदों ने लोकसभा में मिर्ची स्प्रे करके अमर्यादित आचरण की एक नई इबारत लिख दी. पंद्रहवीं लोकसभा में महज 177 विधेयक ही पास हुए, जबकि तेरहवीं लोकसभा में 297 और चौदहवीं लोकसभा में 248 विधेयक पास किए गए थे. दूसरी तरफ़ इस लोकसभा में 40 विधेयक लेप्स हो गए. इनमें मेट्रो रेल एमेंडमेंट बिल-2008, नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन एमेंडमेंट बिल-2009, नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया एमेंडमेंट बिल-2008, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना विधेयक- 2007, लघु वित्तीयकरण विधेयक, न्यायिक सुधार संबंधी विधेयक जैसे अहम विधेयक शामिल हैं.
महिला आरक्षण बिल की कहानी तो बेहद अफ़सोसनाक बन गई है. वह भी ऐसी लोकसभा में, जहां सत्तारूढ़ यूपीए सरकार की अध्यक्ष एक महिला हैं, लोकसभा की अध्यक्ष एक महिला हैं और विपक्ष की नेता भी महिला हैं. ऐसे में महिलाओं के लिए अहम माने जाने वाले इस विधेयक का पारित न हो पाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. जहां तक लंबित विधेयकों का सवाल है, इस लोकसभा से 128 लंबित बिल अगली लोकसभा को सौगात में मिलेंगे. हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि नई लोकसभा में इनकी सुध लेने में माननीय सांसद रुचि दिखाते हैं या नहीं.
पास होने वाले महत्वपूर्ण विधेयक

  • भूमि अधिग्रहण पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना विधेयक 2011
  • लोकपाल विधेयक -2011
  • शिक्षा का अधिकार क़ानून
  • खाद्य सुरक्षा क़ानून
  • रजिस्ट्रेशन एमेंडमेंट बिल-2013
  • बैंकिंग लॉ एमेंडमेंट बिल-2011

लंबित महत्वपूर्ण विधेयक

  • महिला आरक्षण विधेयक-2008
  • शत्रु संपदा (एनेमी प्रॉपर्टी) एमेंडमेंट बिल-2010
  • बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स एमेंडमेंट बिल-2011
  • न्यूक्लियर सेफ्टी रेग्युलेरिटी अथॉरिटी विधेयक-2011
  • दिल्ली रेंट एमेंडमेंट बिल-1997
  • मोटर व्हीकल्स कोड बिल-2010
  • उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुधार और शोध विधेयक-2011
  • टेलीकॉम रेग्युलेरिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया एमेंडमेंट बिल-2008

पास होने वाले महत्वपूर्ण विधेयक

  • नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन एमेंडमेंट बिल-2009
  • पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना विधेयक-2007
  • दामोदर घाटी निगम विधेयक-2007
  • मेट्रो रेल एमेंडमेंट बिल-2009
  • नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया एमेंडमेंट बिल-2008

सत्ता और विपक्ष दोनों ज़िम्मेदार
इसमें कोई दो राय नहीं कि पंद्रहवीं लोकसभा में न्यूनतम कामकाज हुआ, लेकिन इसके लिए किसी एक पक्ष को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. सत्तारूढ़ यूपीए विधेयक पेश करने के बावजूद, उन्हें पारित कराने में विफल रहा, क्योंकि विपक्ष संसद चलने देने के लिए ही तैयार नहीं था. विपक्षी पार्टियों ने सदन की कार्यवाही के समय काफी हंगामा किया, क्योंकि यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार, महंगाई एवं अन्य मुद्दों को उभारने का यही एक बेहतर तरीका था. पक्ष और विपक्ष दोनों इस स्थिति में थे कि वे हंगामे को किसी अवरोध की दृष्टि से नहीं देख रहे थे. यह संसदीय कार्यवाही का सामान्य हिस्सा बन गया था. जैसे हर दिन की कार्यवाही पहले से ही तय थी. हंगामा होगा और कार्यवाही 12 बजे तक स्थगित हो जाएगी. फिर हंगामा होगा और कार्यवाही 2 बजे तक टल जाएगी और अंतिम बार हंगामा होने पर पूरे दिन के लिए सदन की कार्यवाही निलंबित कर दी जाएगी. राजनीतिक दलों ने इसे एक परिपाटी बना दिया, जिस वजह से संसदीय परंपरा तार-तार होती रही और जनता चुपचाप अपने जनप्रतिनिधियों की नकारात्मक भूमिका देखती रही. इसी बहाने यूपीए सरकार को भी अपनी नाकामियां छिपाने का एक बेहतरीन मौक़ा मिल गया. संसद में हो रहे हंगामे को देखकर कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता था कि यह सब कुछ पक्ष और विपक्ष की मिलीभगत से हो रहा है.
पंद्रहवीं लोकसभा में हुए हंगामे को इतिश्री मान लेना जल्दबाज़ी होगी, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में संसद सदस्यों का आचरण काफी बदला है. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उनकी हरकतों से संसद की मर्यादा और जनता की उम्मीदें टूटने लगी हैं. ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगली लोकसभा भी पंद्रहवीं लोकसभा के ही नक्शे क़दम पर चलेगी.


 

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