चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद का दोषी माना है और उन्हें अयोग्य घोषित करने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर चुका है. इन विधायकों ने दिल्ली विधानसभा का सदस्य रहते हुए संसदीय सचिव का पद भी धारण किया था. दिल्ली के सियासी हलकों में अब इस मामले के बाद की स्थिति को लेकर चर्चा तेज हो गई है. ऐसे सवाल उठने लगे हैं कि क्या आम आदमी पार्टी सरकार संकट में है.

गौरतलब है कि 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिली थीं और भाजपा के खाते में महज 3 सीटें गई थीं, वहीं कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी. इसके बाद हुए एक उपचुनाव में राजौरी गार्डन की सीट भाजपा के खाते में चली गई और उसके बाद आम आदमी पार्टी के पास 66 विधायक रह गए. लेकिन कपिल मिश्रा की बगावत के बाद कई विधायकों के पार्टी से नाराज होने की खबर आई थी, वहीं राज्यसभा न भेजे जाने से खफा कुमार विश्वास को भी कई विधायकों का समर्थन बताया जाता है.

ऐसे में अगर इन 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होती है, तो इन सीटों पर होने वाले उपचुनाव में आम आदमी पार्टी पूरी ताकत से नहीं लड़ पाएगी. आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होने की खबर के बाद से ही कांग्रेस-भाजपा दोनों ने अपने स्तर पर आगे की रणनीतियां बनानी शुरू कर दी है. खबर है कि कांग्रेस ने 2015 के विधानसभा चुनावों में हारे प्रत्याशियों की बैठक भी बुला ली है, वहीं भाजपा भी अपने नेताओं के साथ चर्च कर रही है.

बीते कुछ समय के चुनावी नतीजों को देखें, तो आम आदमी पार्टी की फजीहत ही नजर आती है. दिल्ली नगर निगम चुनाव में भी आम आदमी पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली. उत्तरी दिल्ली नगर निगम में भाजपा को 64 सीट मिली थी, जबकि आप को महज 21 सीटों से संतोष करना पड़ा था. वहीं दक्षिण दिल्ली नगर निगम में भाजपा को 70 सीटें मिलीं, जबकि आप को मात्र 16 सीटें. उसके बाद हुए गुजरात चुनाव में तो पार्टी द्वारा खड़ा किए गए सभी 33 प्रत्याशियों की बुरी हार हुई.

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