बिल्किस बानो, 21 साल की उम्र और तीन महीने की गर्भवती के साथ आजसे बीस साल पहले के गुजरात के दंगों में बलात्कार करने वाले लोगों को आज़ादी के पचहत्तर साल के उपलक्ष्य में मुक्त करने का निर्णय, गुजरात सरकारने लिया है ! मतलब भारतीय जनता पार्टी के हिसाब से, आज़ादी के पचहत्तर साल के यही मायने हैं ! तो भारत में रहने वाली एक चौथाई आबादी को श्री. माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उर्फ गुरुजिके अनुसार भारत के अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को बहुसंख्यक समुदाय के लोगों की सदाशयता के उपर जीना होगा !


और जिस बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर का नाम प्रधानमंत्रीजी ने लालकिले के प्राचिर से लिया है ! उनके मराठी भाषणों का संग्रह “सहा सोनेरी पाने” ( “छ सुनहरे के पन्ने” सावरकर सदन मुंबई से प्रकाशित ! ) नाम की किताब में साफ साफ लिखा है !

“कि शत्रुओं की औरतों पर बलात्कार करना चाहिए ! छत्रपति शिवाजी महाराज ने कल्याण के सुभेदार की बहु को ससम्मान छोड़ कर बहुत बड़ी गलती की है ! उन्होंने उस औरत की इज्जत लुटकर छोडऩा चाहिए था !” उसी कड़ी में वसई के पेशवा चिमाजी आप्पा ने, कोई पुर्तगाली महिला को ससम्मान छोड़ दिया था ! तो सावरकर ने दोनों हिंदु राजाओं को कोसने के बाद आगे जाकर लिखा है ! ” कि शत्रुओं की महिला भलेही तरूणी हो या बुढी, बच्चियों को बलात्कार करके ही छोडऩा चाहिए !” इस तरह के विषवमन करने वाले सावरकर – गोलवलकर जैसे लोगों की शिक्षा – दिक्षा लेकर आए हुए, लोगों के द्वारा बिल्किस बानो के बलात्कारियों को आजादी के पचहत्तर साल के कार्यक्रम अंतर्गत छोडने की कृती हुई है ! इन बलात्कारियों को आगे चलकर कोई पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो अचरज नही लगेगा ! जैसे सावरकर को भारत रत्न देने की मांग बार – बार हो रही है और महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को भी महिमामंडन करते हुए, उसके मंदिर से लेकर मूर्तियां बनाने की कृती किस मानसिकता का परिचायक है ?


शायद गुजरात राज्य की, भारतीय जनता पार्टी की सरकारने, गुरुजिके और सावरकर के वचनों के अनुसार, भारत की आजादी के पचहत्तर साल के उत्सव के अंतर्गत दी जाने वाली सहुलियत का आधार लेकर, इन गुनाहगार लोगों को जेल से मुक्त करने का फैसला ! आजादी के पचहत्तर साल के उत्सव का, मजाक उड़ाने का फैसला किया है ! आगे चलकर इन अपराधियों को, शायद प्रजासत्ताक दिवस पर विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया तो, अचरज नही लगना चाहिए !


वैसे भी बीजेपी के मातृ संघठन संघ की भलेही 1925 में स्थापना की थी ! लेकिन आर एस एस ने एक नितिके अंतर्गत भारत के आजादी के आंदोलन से दूर रहने का फैसला किया था ! और उसका पूरा-पूरा पालन संघने किया है ! और सबसे हैरानी की बात, 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिलने के बाद संघ के मुख्यालय पर भारत का तिरंगा झंडा नही फहराने की वजह ! भारत का संविधान और भारत का राष्ट्रीय झंडा शुरू में ही संघ ने नकारा है ! डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने 26 नवंबर 1949 के दिन, संविधान को भारत की जनता को अर्पण करने की घोषणा के बाद ! संघ के अंग्रेजी मुखपत्र अॉर्गनाईजर के 28, 29 30 नवंबर 1949 के अंकों में ” में हजारों वर्ष पुराना मनुस्मृति जैसा संविधान रहते हुए ! इस देश- विदेशों के सविंधानो की नकल कीए हुए गुधडी जैसे ! (अलग अलग टुकड़े जोडकर सिले हुए कपड़े के जैसा ) संविधान की क्या आवश्यकता है ? भारत की हजारों वर्ष पुरानी परंपरा का कही भी इस संविधान में समावेश नहीं है ! और राष्ट्रध्वज के बारे में लिखा है कि ” तीन आकडा अशुभ होता है !” और तीनों रंगों से लेकर अशोकचक्र तक कि आलोचना करते हुए ! “हजारों वर्ष पुराने भगवा झंडा रहते हुए ! संघ तिरंगा झंडा को संघ नकारता है ” और 20002 में कोई तीन लोगों ने मिलकर, संघ के नागपुर स्थित रेशम बाग के मुख्यालय पर झंडा फहराने की कोशिश की ! तो उन्हे पुलिस के हवाले कर के उनके उपर अभिभी मुकदमा जारी है !
शायद उसी बात के प्रायश्चित के तौर पर, स्वतंत्रता के पचहत्तर साल के कार्यक्रम के नाम पर घर – घर झंडा जैसे सस्ते लोकप्रियता के लिए, नारेबाजी करने की आवश्यकता हुईं हैं ! “लेकिन बुंद से गई वह हौद से नही आती !” कहावत के अनुसार घर – घर झंडा फहराने का कार्यक्रम था ! और खादी को खत्म करने की कडी में खादी के अलावा और कोई भी झंडा चलेगा का फतवा उसी षड्यंत्र का भाग है !


और प्रधानमंत्रीजी ने अपने राष्ट्र के नाम संदेश में अस्सी मिनट से भी ज्यादा समय के, लाल किले की प्राचिर से दिऐ गए भाषण में ! तात्या टोपे, राणी लक्ष्मीबाई, सावरकर के नाम तो लिए लेकिन जिस बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में 1857 के लडाई हुई, उनका का उल्लेख तक नहीं किया ! और उससे भी सौ साल पहले अंग्रेजोको भारत में सत्ता में आने के पहले ही ! रोकने की कोशिश करने वाले, प्लासी की लड़ाई ( 1756) के हीरो बंगाल के नवाब सिराजउद्दोला का उल्लेख नहीं किया है ! कम-से-कम 135 करोड़ आबादी के देश के प्रधानमंत्री के नाते इस देश के इतिहास के बारे में जानबूझकर इस तरह से बोलना ! और वह भी आजादी के पचहत्तर साल के उपलक्ष्य में ! कहा तक ठीक है ?


और इसी मानसिकता के शिकार, गुजरात के वर्तमान सरकार ने, बिल्किस बानो के उपर अत्यंत जधन्य अत्याचार करने वाले अपराधियों को ! उसके तीन बच्चों को और परिवार के अन्य सात सदस्यों की हत्या करने वाले लोगों को, आजादी के पचहत्तर साल के आड में माफ कर के ! मुक्ति का निर्णय भारत की आजादी का अपमान करने की कृती को अमानवीय, सांप्रदायिक कृती कहना पड रहा है ! और हमारे आजादी के आंदोलन से निकले हुए मुल्यो का घोर अपमान जानबूझकर किया है ! अगर पचहत्तर साल के बावजूद इस देश में रहने वाले दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान नही दिया जाता है ! तो फिर उस आजादी के क्या मायने हैं ? और दिखावे के तौर पर मुस्लिम या आदिवासी राष्ट्रपति बनाने का पाखंड किस कामका ?


2002 के गुजरात दंगों के दौरान ! इक्कीस साल की गर्भवती स्त्री पर अत्याचार करने वाले ! और उन्हें मदद करने वाले, लोगों को गुजरात के कोर्ट में न्याय नहीं मिलेगा ! इसलिए उस केस को महाराष्ट्र सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था ! इन सभी अपराधियों को सजा 2008 मे सुनाई थी और मुंबई हाईकोर्ट ने उसपर मुहर लगा दी थी ! आज हमारे न्यायालयो के निर्णयों को देखते हुए लगता है कि भविष्य में किसी भी पिडीत को न्याय मिलेगा ! तो फिर हम सौ साल पहले के नाजीवादी जर्मनी की स्थिति में चले जा रहे हैं ! यह हमारे आजादी का अमृत महोत्सव है या विषैला उत्सव है ? जिस आजादी मे दलित, आदिवासी, महिलाओं तथा अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को सतत असुरक्षित महसूस हो यह हमारे आजादी का पराजय है ! क्योंकि आजादी के बाद भारत की सभी जनसंख्या को लगा था कि अब हमारे अच्छे दिन आ गए हैं ! जिस घोषणा का आश्वासन प्रधानमंत्री ने अपने चुनाव के दौरान कई – कई बार दोहराया है ! क्या यही अच्छे दिन है ?


क्योंकि उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री, वर्तमान समय के देश के प्रधानमंत्री ! श्री नरेंद्र मोदीजी के कार्यकाल के दौरान की बात है ! आजसे बीस साल पहले के, और फिर आज आजादी के पचहत्तर साल के उपलक्ष्य में माफी देने का निर्णय भारत की न्यायिक व्यवस्था से लेकर सभी तरह के मानवीय मुल्यो का अपमान है ! यदि इसी प्रकार हमारे देश के कोर्ट-कचहरी, पुलिस, प्रशासनिक क्षेत्र के निर्णयों को, गत कुछ दिनों से जकिया जाफरी के मामले से लेकर छत्तीसगढ़ के सत्रह आदिवासियों को मारने की घटना की निस्पक्ष जांच की मांग करने वाले हिमांशु कुमार को ही दंडित करने की कृती को क्या भारत के आजादी के पचहत्तर साल की उपलक्ष्य में कीऐ जाने वाले कार्यक्रमों का हिस्सा माना जाय ? तो फिर इससे बडा अपमान हमारी आजादी का और दूसरा हो नहीं सकता !


बिल्किस बानो के साथ अत्याचार करने वाले अपराधियों को आजादी के पचहत्तर साल के उपलक्ष्य में मुक्त करने का फैसला समस्त भारतीय महिलाओं का अपमान है ! और महिला को देवी की उपमा देने वाले लोगों का पाखंड दर्शाता है ! और मुझे सबसे बडी चिंता भारत की न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर, स्वतंत्रता के पचहत्तर साल के दौरान एक के बाद एक ऐसे-ऐसे निर्णयों को देखते हुए हो रही है ! और हमारी न्यायपालिका के उपर के विश्वास को जबरदस्त धक्का पहुंचाया है !


यह फैसला गुजरात के दंगे को जायज ठहराने की साजिश का ही भाग है ! जिस तरह से जकिया जाफरी के मामले में, और सोहराबुद्दीन, इसरत जहाँ और संपूर्ण दंगे में क्लिन चिट देने की कृती ! हमारे देश के आजादी के आंदोलन से निकले हुए मुल्यो का भी अपमान है ! और वह भी आजादी के पचहत्तर साल के जश्न की आड में ! इसका मतलब हमारी आजादी, आजादी के पचहत्तर साल के अंदर, खतरे में ले जाने का घोर षडयंत्र हैं ! जिस के बारे में हम सभी लोगों को सचेत होकर, आजादी को और हमारे संविधान को बचाने के लिये ! कमर कस कर एकजुट होकर इस संकट का मुकाबला करना होगा ! अन्यथा भारत पुनः नई प्रकार की गुलामी में फंसते जा रहे हैं !

डॉ. सुरेश खैरनार, पटना 16 अगस्त 2022

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